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कोविड-19 : प्रधानमंत्री के राहत पैकेज के दावों का सच क्या है?
प्रधानमंत्री की छवि के मामले में जो बात सच है, उस के मुताबिक उन्होंने पिछले तीन महीनों के दौरान लोगों की प्रदान की गई राहत या सहायता को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।
विकास रावल, जेसिम पेस
02 Jul 2020
Translated by महेश कुमार
कोविड-19 : प्रधानमंत्री के राहत पैकेज के दावों का सच क्या है?

प्रधानमंत्री मोदी मंगलवार को एक बार फिर टीवी की स्क्रीन पर नज़र आए, वे मार्च महीने के आखिर में अचानक लॉकडाउन की घोषणा के तीन महीनों के बाद आखिरी दिन को चिह्नित करने के ,लिए टीवी पर संबोधन के लिए आए थे। इस अचानक किए लॉकडाउन ने पूरी अर्थव्यवस्था को संकट में डाल दिया और लोगों को ज़िंदा रहने का जो भी साधन मिला वे उस पर सवार हो गए। बेरोजगारी में भयंकर उछाल आया और, आमदनी के व्यापक नुकसान के परिणामस्वरूप, आबादी का एक बड़ा हिस्सा खाद्य असुरक्षा के अधीन हो गया।

कल के अपने भाषण में, पीएम मोदी ने पिछले तीन महीनों के दौरान सरकार द्वारा चलाए गए कई राहत कार्यक्रमों के बारे में बड़े ऊंचे दावे किए। इस बात से कोई इनकार नहीं है कि इन राहत की कोशिशों से आम लोगों को जो भी राहत पहुंची, उससे उन्हे कुछ तो मदद जरुर मिली होगी। हालांकि, उनकी छवि के बारे में जो बात सच है, कि पिछले तीन महीनों में प्रधानमंत्री ने लोगों को राहत और सहायता मुहैया कराने के अपने कदमों की बड़े पैमाने पर तारीफ की है। इसे कहते हैं अपने मुह मियां मिट्ठू बनाना।  

हम यहां इस पोल-खोल लेख में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए तीन मुख्य दावों की सच्चाई से पर्दा खींच रहे हैं। 

दावा 1: पीएम का पहला दावा कि जन धन योजना (JDY) के तहत 20 करोड़ लाभार्थियों को 31,000 करोड़ रुपए स्थानांतरित किए गए।

पहली बात तो यह नोट करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के घटक के माध्यम से प्रदान की जाने वाली नकद सहायता राशि की मात्रा काफी कम थी और लॉकडाउन के चलते जिन अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों ने रोजगार खोया था, इसने उनके छोटे से हिस्से को ही कवर किया। राहत पैकेज के इस घटक के तहत, सरकार ने प्रति माह सिर्फ 500 रुपये की नकद सहायता दी और वह भी केवल प्रधानमंत्री जन धन योजना की महिला लाभार्थियों को दी गई थी। जिन महिलाओं को इस योजना से लाभ मिला वे कुल महिलाओं के आधे हिस्से (यानि 39 करोड़ में से 21 करोड़) का ही गठन करती हैं। इस राशि को बढ़ाने और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की एक बड़ी तादाद को इसके तहत कवर करने की व्यापक मांग की गई थी,  खासकर उन्हे यह राशि मिलनी चाहिए जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपनी आजीविका खो दी थी। इस मांग को संबोधित करना तो दूर बल्कि 500 रुपये प्रति माह की इस तुच्छ सहायता को जून 2020 से आगे नहीं बढ़ाया गया। दूसरे शब्दों में, पिछले तीन महीनों से जिन गरीब महिलाओं को 500 रुपये प्रति माह मिल रहे थे, उन्हे अब यह सहायता नहीं मिलेगी। 

दावा 2: पीएम मोदी का दावा कि 9 करोड़ किसानों को 18,000 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए गए हैं।

इस दावे के संबंध में तीन महत्वपूर्ण बिंदु सामने आते है।

सबसे पहली बात, कि पीएम-किसान योजना के तहत हर किसान को 2,000 रुपये की सहायता की पहली किस्त दिसंबर 2018 में दी गई थी। पीएम-किसान की इस योजना के तहत खर्च का बजट में पहले से प्रावधान किया हुआ था, जिसका भुगतान किया जाना था, जो दूर-दूर तक लॉकडाउन के कारण हुए नुकसान से निपटने के लिए प्रदान की जाने वाली अतिरिक्त राहत की श्रेणी में नहीं आता है।

दूसरी बात, कि सरकार ने मूल रूप से घोषणा की थी कि वे 14 करोड़ किसानों को पीएम-किसान योजना के तहत कवर करेंगे। यह कवरेज घट गया और सिर्फ 9 करोड़ किसानों तक ही पहुंच पाया। दूसरे शब्दों में, सरकार खुद अपने अनुमान के अनुसार करीब 36 प्रतिशत योग्य किसानों को सहायता नहीं दे पाई। इसके अलावा, पीएम-किसान योजना उन गरीब किसानों की विशाल आबादी की पहुँच से बाहर है जिनके पास भूमि रिकॉर्ड अपडेट हैं और वे पट्टेवाले/किरायेदार/जोतदार किसान भी इसमें शामिल है जिनके पास स्वयं के नाम पर भूमि पंजीकृत नहीं है।

तीसरी बात, कि पीएम-किसान की दूसरी किस्त अदा करने के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। सरकार को तुरंत पीएम-किशन की अगली किस्त जारी कर देनी चाहिए क्योंकि किसानों को मानसून की शुरुआत होते ही खरीफ की फसल की बुवाई की लागत पर खर्च करना पड़ता है।

दावा 3: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्ना योजना (PMGKAY) के तहत पिछले तीन महीनों में 81 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल मुफ्त दी गई।

राहत पैकेज का यह सबसे महत्वपूर्ण घटक है और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्ना योजना (PMGKAY) के माध्यम से अतिरिक्त अनाज के वितरण ने खाद्य असुरक्षा के खिलाफ कुछ राहत जरूर प्रदान की होगी। माकपा सहित कई राजनीतिक दलों पुर राज्य सरकारों ने इस योजना के विस्तार की मांग की थी। अंत में, प्रधानमंत्री ने कल घोषणा की कि इस योजना को नवंबर तक बढ़ाया जाएगा। नवंबर तक इस योजना के विस्तार से निश्चित रूप से उन परिवारों को कुछ और राहत मिलेगी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आते हैं।

यह सब बताते हुए, यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि पिछले तीन महीनों के अनुभव से पता चलता है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्ना योजना (PMGKAY) के कार्यान्वयन के दावों और वास्तविकता के बीच बड़ी खाई हैं। वास्तव में इस योजना के माध्यम से वितरित किए गए अनाज की मात्रा सरकार द्वारा किए गए वादे से बहुत ही कम है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अनुसार, सरकार को ग्रामीण आबादी के 3/4 हिस्से और शहरी आबादी के आधे हिस्से को सब्सिडी वाला अनाज प्रदान करना चाहिए था। सरकार इस संबंध में अपनी प्रतिबद्धता का अनुमान लगाने के लिए 2011 की जनसंख्या के आंकड़े का इस्तेमाल करती है। तदनुसार, लगभग 2.39 करोड़ परिवारों (यानि जिनमें करीब 9.93 करोड़ व्यक्तियों कवर होते हैं) के पास अंत्योदय अन्न योजना कार्ड है और 71.1 करोड़ व्यक्ति प्राथमिकता घरेलू (PH) कार्ड के अंतर्गत आते हैं। जबकि एएवाय के तहत परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज मिलता है, और प्राथमिकता घरेलू (PH) परिवारों को प्रति व्यक्ति/प्रति माह 5 किलो अनाज मिलता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत यह प्रति माह कुल 43 लाख टन अनाज के हकदार बनते हैं।

26 मार्च को, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि एनएफएस एक्ट के तहत कवर किए जा रहे सभी 81 करोड़ व्यक्तियों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्ना योजना (PMGKAY) के माध्यम से एनएफएस एक्ट के समान सहाता प्रदान करके उसे तीन महीने की अवधि के लिए दोगुना कर दिया जाएगा और यह अतिरिक्त अनाज नि:शुल्क प्रदान किया जाएगा।

सबसे पहले यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछले छह वर्षों में एनएफएस एक्ट लागू है, सरकार ने अधिनियम के कवरेज का अनुमान लगाने के लिए जनसंख्या में हुई वृद्धि पर ध्यान नहीं दिया है। भारत की जनगणना के अनुमानों के अनुसार 2020 में ग्रामीण आबादी का 75 प्रतिशत और शहरी आबादी का 50 प्रतिशत हिस्सा 89.52 करोड़ लोग होते है। दूसरे शब्दों में कहे तो, सरकार एनएफएस एक्ट के तहत दी जाने वाले सब्सिडी अनाज को 8.1 करोड़ लोगों कम दे रही है। यदि सरकार एनएफएस एक्ट के तहत अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करती, तो वह 43 लाख टन के बजाय हर महीने 48 लाख टन अनाज आवंटित कर रही होती।

दूसरी बात यह है कि पिछले तीन महीनों में सरकार ने 45.6 लाख टन कम अनाज वितरित किया है। तालिका 1 में प्रस्तुत आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक योजना के तहत हर महीने 43 लाख टन वितरित करने के बजाय, अनाज का वितरण काफी कम हुआ है। अप्रैल में, पीएमजीकेएवाय के तहत केवल 26 लाख टन अनाज वितरित किया गया था। मई और जून में, एनएफएस एक्ट और पीएमजीकेएवाय दोनों में कमी बहुत महत्वपूर्ण थी। दोनों योजनाओं के तहत अप्रैल में केवल कुल आवंटन 70 लाख टन, मई में 77 लाख टन और जून में 66 लाख टन था।

तालिका 1. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई), अप्रैल-जून, 2020 के तहत अनाज का वितरण

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नोट: 1 जुलाई, 2020 को उपलब्ध जून का डेटा। 28 राज्यों में, अनाज का वितरण पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों के माध्यम से हुआ है, और इसके लिए रियल टाइम डेटा दर्ज किया जाता है। यह संभव है कि उस वक़्त कुछ राज्यों का जून का डाटा पूरा नहीं था, तब जब इन आंकडो को लिया गया था।

स्रोत: https://annavitran.nic.in  

राज्यों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत अनाज के वितरण में डेटा में भी काफी भिन्नता रखता है। जबकि कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्हे जो भी अनाज़ आवंटित किया गया उसके अधिकांश हिस्से को वितरित करने में वे कामयाब रहे, लेकिन कुछ मामलों में भारी कमी देखी गई है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत दिल्ली में खाद्यान्न का कोई भी वितरण नहीं किया गया है (हालांकि अनाज का कुछ वितरण दिल्ली के अपने खाद्यान्न भंडार से हुआ है)। पंजाब में भी पीएमजीकेएवाय के तहत लगभग कोई वितरण नहीं हुआ है। हिमाचल प्रदेश के मामले में, अप्रैल में बहुत कम वितरण हुआ, मई में कोई भी वितरण नहीं हुआ, और केवल जून में यहां महत्वपूर्ण मात्रा में अनाज वितरित किया गया। पीएमजीकेएवाय के तहत पश्चिम बंगाल को आवंटित किए गए अनाज का केवल 59 प्रतिशत ही वितरित किया गया था। इसी तरह, पीएमजीकेवाई के तहत उत्तराखंड में वितरण आवंटन का केवल 53 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 60 प्रतिशत रहा। 

अनाज के वितरण में इतनी भारी कमी स्पष्ट रूप से योजना शुरू होने से पहले की तैयारियों और योजना की कमी का परिणाम थी। इस प्रावधान के बारे में राज्यों को पहले से सूचित नहीं किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप इस अनाज के उठान और वितरण में असमर्थता झलकी।

तालिका 2. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (हजार टन) के तहत अनाज का आवंटन, उठान और वितरण 

table 2_2.png
नोट: 1 जुलाई, 2020 को उपलब्ध जून का डेटा

अंत में, सरकार ने दावा करती है कि उसने पिछले तीन महीनों में इस अनाज के वितरण के लिए 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह दो कारणों से बड़ा भ्रामक दावा है। पहला, यह केवल एक काल्पनिक आंकड़ा है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के माध्यम से वितरित किए जाने वाला अनाज पहले ही सरकार ने खरीद लिया था और भारतीय खाद्य निगम (FCI) के विभिन्न गोदामों में एक वर्ष से अधिक समय से बंद पड़ा था। इस अनाज का बड़ा हिस्सा खराब गुणवत्ता वाला था और अगर इसे तुरंत वितरित नहीं किया जाता तो इसके सड़ने का खतरा था। एफसीआई खुले बाजार में सबसिडी मूल्य पर भी इस अनाज को बेचने में असमर्थ थी। यह भी देखा गया कि इस अनाज वितरण के संसाधनों का कोई अतिरिक्त खर्च नहीं था। वास्तव में, सरकार ने आगे होने वाले खर्च को बचाया है, जिसे वितरित न कर पाने के बाद इस अनाज के भंडारण और संरक्षण पर खर्च करना पड़ता। दूसरे, जो अनाज वितरित किया गया है, उसका मूल्य सरकार द्वारा पीएमजीकेवाई पर खर्च किए जाने वाले दावे से काफी कम है। जब सरकार अनाज के रियायती वितरण पर खर्च का हिसाब रखती है, तो यह आर्थिक लागत पर अनाज का मूल्य (गेहूं के लिए 2684 रुपये प्रति क्विंटल और चावल के लिए 3727 रुपये प्रति क्विंटल) का अनुमान लगाती है। इस लागत पर, पिछले तीन महीनों में पीएमजीकेएवाय के तहत वितरित अनाज के कुल मूल्य केवल 32,194 करोड़ रुपए खर्च हुआ है। 

डेटा की उपलब्धता में कमी के कारण हम पीएमजीकेवाई के तहत प्रदान की गई दालों के मूल्य का अनुमान नहीं लगा पाए है। जून की शुरुआत होने तक, नेफेड पीएमजीकेवाई के तहत वितरण के लिए विभिन्न राज्यों को लगभग 5.3 लाख टन दालें भेज चुका था। हालांकि, इनमें से दालों के कुछ हिस्से को खराब गुणवत्ता और वितरण की कठिनाइयों के कारण वितरित नहीं किया गया। वास्तव में राज्यों ने कितनी दाल वितरित की है, इस पर अभी तक कोई डेटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन चूंकि कुल गुणवत्ता अपेक्षाकृत छोटी है, इसलिए यह उन खर्चों में और वास्तविक तौर पर वितरित किए गए अनाज के वास्तविक मूल्य के बीच बहुत अंतर नहीं कर पाएगी जिसका दावा सरकार पीएमजीकेवाई के तहत कर रही है। 

तालिका 3. आर्थिक लागत पर आवंटित और वितरित अनाज का कुल मूल्य (करोड़ रुपए में)

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केंद्र सरकार ने अब तक प्रमुख नीतिगत निर्णयों की घोषणाओं को आख़िरी पल में करने की परंपरा को जारी रखा है। सरकार पारदर्शी या सबसे सलाह लेने के बजाय, सबको इस बात का अनुमान लगाने की बेचैनी में छोड़ देती है कि लॉकडाउन के प्रत्येक चरण के अंत में क्या होगा (और इसे खोलने के बारे में)। इस परंपरा के तहत, पीएम ने तीन महीने की वक़्त के अंतिम दिन तक इंतजार किया, जिसमें सरकार के राहत उपायों के पहले चरण की घोषणा करनी थी कि सरकार आने वाले महीनों में क्या करने की योजना बना रही है। जबकि कई राज्य सरकारें और राजनीतिक दल राहत कार्यक्रमों के विस्तार की मांग कर रहे थे, सब इस बात का अंदाज़ा ही लगाते रहे कि आखिर सरकार क्या करने वाली है। उनकी यह कार्यशैली न केवल केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों की तैयारी, बल्कि राज्य सरकारों की ऑपरेशनल तैयारियों को भी गंभीर नुकसान पहुंचाती है और राहत के प्रभाव को कम कर देती है। 

कल अपने भाषण में, पीएम ने घोषणा की कि मुख्य पैकेज के केवल एक घटक को-यानि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के माध्यम से मुफ्त अनाज के वितरण को नवंबर माह तक बढ़ाया जा रहा है। यह दुख की बात है कि यह भयंकर रूप से अपर्याप्त है। सरकार को भोजन के सार्वजनिक वितरण के कवरेज को बढ़ाने और इसे कम से कम तब तक सार्वभौमिक बनाने की जरूरत है जब तक कि यह संकट टल नहीं जाता है। यह सुनिश्चित करेगा कि यह अनाज उन लोगों तक भी पहुंचे जो एनएफएसएक्ट के तहत आते हैं, लेकिन वर्तमान संकट के दौरान खाद्य असुरक्षा बढ़ रही हैं।

दूसरे, सरकार को अतिरिक्त अनाज के प्रावधान के साथ-साथ, मनरेगा में नकद मजदूरी के भुगतान को भी जरूरी बनाने की आवश्यकता है। यह मांग को मजबूत करने में मदद करेगा, यह सुनिश्चित करेगा कि लोगों के पास पर्याप्त खाद्यान्न की आपूर्ति हो, और सरकार पर अतिरिक्त खाद्य भंडार का भारी बोझ भी कम हो। तीसरा, नकद हस्तांतरण के प्रावधान को जारी रखने की जरूरत है, इसके कवरेज सभी अनौपचारिक श्रमिकों और बेरोजगार वयस्कों को मिलना चाहिए, और हस्तांतरण की जा रही मासिक राशि को महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ाया जाए जो अब तक मिल रही अल्प राशि के मुक़ाबले अधिक हो।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Prime Minister’s Claims About COVID-19 Relief Package Debunked

Nationwide Lockdown
BJP
Narendra modi
Food Corporation of India
PM-kisan
PMGKAY
National Food Security Act
Antyodaya Anna Yojana Cards
Foodgrains distribution
food security
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