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कोविड के तीन प्रमुख देशों-भारत, अमेरिका और ब्राज़ील में क्या आम है?
दस लाख से अधिक कोविड-19 के मामलों के साथ ये तीनों देश समान क़िस्म की ठोकरें खाते हुए, एक जैसी ग़लतियाँ करते रहे हैं।
सुबोध वर्मा
20 Jul 2020
Translated by महेश कुमार
Donald Trump, Jair Bolsonaro and Narendra Modi

18 जुलाई तक, दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के पुष्ट मामले 1.41 करोड़ (14.1 मिलियन) तक पहुंच गए हैं। इनमें से लगभग आधे (यानि करीब 48 प्रतिशत) सिर्फ तीन देशों में हैं – जिन्होने कोविड महाराजा बनने का अविश्वसनीयता का मुकुट पहना हुआ हैं। ये तीन देश अमेरिका, ब्राजील और भारत हैं, जिनके बीच लगभग 67 लाख पुष्ट मामले हैं। [जॉन्स हॉपकिन्स कोरोनावायरस संसाधन केंद्र के आंकड़ों के आधार पर नीचे दिए गए चार्ट पर नज़र डालें] शीर्ष 10 में शामिल अन्य देशों में यूरोप से रूस और ब्रिटेन है, एशिया में ईरान, और लैटिन अमेरिका में पेरू, चिली और मैक्सिको शामिल हैं।

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यह केवल अंधे अवसर या लिखने के लिए चलती उंगली और आगे बढ़ जाने का मसला नहीं है। इन लाखों+ केसों वाले देशों में कुछ बात है जो आम है। चूंकि महामारी इन देशों में समतल होने का नाम नहीं ले रही है – बल्कि इसके विपरीत – अब यह देखने की जरूरत है कि आखिर अमेरिका, ब्राजील और भारत कहां गलत हो गए हैं, जिससे मानव जीवन की इतनी हानि हुई या आम जीवन को पूरी तरह से पटरी से उतार दिया, और इस बढ़ती बीमारी आम लोगों के दुख-तकलीफ को ओर अधिक बढ़ा दिया।

जैसा कि सब जानते है कि इन तीनों देशों के नेता अपने-अपने अंदाज़ में लोकप्रिय नेता हैं, जो अपने आपको बाहरी बताने में पारंगत हैं, जो देश से क्षय और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाएंगे, सब मसलों से पहले राष्ट्र का गौरव बढ़ाएंगे और किसी भी मरणासन्न प्रतिरोध के चलते अपनी नीतियों को मजबूत करेंगे।

निस्संदेह, डोनाल्ड ट्रम्प, जेयर बोल्सोनारो और नरेंद्र मोदी में ये विशेषताएं आम हैं, एक बहुत पतली रेखा सत्तावादी नियंत्रण से इन्हे अलग करती है, यदि कोई है तो। ये तीनों, मुक्त बाजार, वैश्वीकरण और निगमों की महाशक्ति के मानक वाहक भी हैं।

हो सकता है कि इन विशेषताओं के कारण, या हो सकता है कि कुछ अन्य कारकों की वजह से, इन तीनों ने अपने ही देशों में मानवीय आपदा को बढ़ाने में योगदान दे दिया। 

जांच पर कोई विश्वास नहीं 

राष्ट्रपति ट्रम्प इन दिनों शेखी बघार रहे हैं कि अमेरिका ने 44 मिलियन कोविड-19 मामलों की जांच की गई हैं, जो किसी भी अन्य देश से बहुत अधिक है। लेकिन महामारी की शुरुवात में वे इसे गंभीरता से लेने से इनकार कर रहे थे, और बहुत ही अनिच्छा से जांच की अनुमति देते थे - लेकिन फिर वे जांच किट दोषपूर्ण निकली। जांच में छह सप्ताह की हुई देरी ने महामारी के वर्तमान उछाल लाने के लिए जमीन तैयार कर दी थी, और अन्य गलतियों ने भी बीमारी के बढ़ाने में मदद की।

बोलसनारो ने भी कभी इस महामारी में विश्वास नहीं किया था-उसने इसे के "छोटा सा फ्लू" कहा - और ब्राजील में जांच की गंभीर रूप से कमी रही, जिसमें 950,000 से अधिक नमूनों का बैकलॉग है और प्रयोगशालाओं के पास जांच के लिए इस्तेमाल में आने वाला तरल पदार्थ या अभिकर्म की कमी थी। एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन, एमएसएफ (NGO) के अनुसार, ब्राज़ील वर्तमान में प्रति मिलियन लोगों पर केवल 7,500 नमूनों की जांच कर रहा है।

भारत में भी, मोदी सरकार ने कभी भी जांच के प्रति अधिक विश्वास नहीं जताया, शायद उन्हे इसका अंदाज़ा था कि इस सबके लिए एक बड़े प्रयास और संसाधनों की जरूरत होगी– और वे इसमें निवेश करने के भी अनिच्छुक थे। इस पर लगातार चुप्पी बनाए रखने के बाद, इसे राज्य सरकारों के ऊपर सौंप दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप जांच में कुछ तीव्रता आई। 

औसतन, भारत में प्रति दिन प्रति मिलियन यानि दस लाख पर 9,289 नमूनों की जांच हो रही है। ब्राजील या भारत में इन कम जांच दरों का सीधा परिणाम यह है कि संक्रमित मामलों की वास्तविक कुल संख्या को कम आँका जा रहा है। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या आज की संख्या की तुलना में दो से पांच गुना अधिक हो सकती है।

समय पर जांच के बिना, और साथ ही संपर्कों को ढूँढे बिना और उन्हे अलग करे बिना, महामारी हाथ से बाहर निकल गई है- यह ऐसा कुछ है जो तीनों देशों में हुआ है।

लोगों पर डालना 

तीनों नेताओं ने लोगों को महामारी से लड़ने की जिम्मेदारी दे डाली। मोदी ने लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि यह एक खतरनाक बीमारी है, केवल उनके संकल्प, बलिदान और ताकत से ही इसे हराया जा सकता है, और लोगों को घर पर रहने और आपसी दूरी बनाए रखने के लिए कहा।

अन्य दो नेता, यानि ट्रम्प और बोल्सनारो, ने इसके विपरीत राय दी- उन्होंने इस बीमारी हैसियत को ही मानने से इंकार कर दिया, और कहा कि लोग पहले की तरह अपने जीवन को जारी रख सकते हैं। दोनों ने पिछले सप्ताह ही पहली बार मास्क पहना था। हालाँकि ट्रम्प की स्थिति के विपरीत मोदी की समझ अलग थी जिस पर वे लगातार चल रहे थे, लेकिन इसका मतलब सिर्फ इतना था इस महामारी से लड़ने के लिए लोगों को अपनी देखभाल खुद करनी है, वे इसमें अधिक कुछ नहीं कर सकते।

भारत जैसे देश के लिए, जहां लाखों लोग गरीबी में जीते हैं, यह सलाह देना चाहे जो कुछ हो– आम जनता के लिए इसके मायने कुछ नहीं है। जब तक लोगों से हुआ वे इस बेरहम लॉकडाउन को बर्दाश्त करते रहे लेकिन आखिर में भूख ने उन्हे काम और भोजन की तलाश में बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया।

ब्राजील और अमेरिका में, गलत संदेश का मतलब था कि जो लोग अन्यथा मास्क पहनने में या कुछ हद तक दूरी बनाए रखने में सक्षम थे, उन्होंने ऐसा नहीं किया। वास्तव में, आप किसी भी तरह से देखें यह सब जद्दोजहद कोविड-19 मामलों में उछाल के साथ समाप्त हुई।

अर्थव्यवस्था अधिक महत्वपूर्ण है 

फिर से, विभिन्न कारणों से, और विभिन्न मजबूरियों से पीड़ित होकर, तीनों नेता अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने के लिए तैयार हो गए। इससे निस्संदेह मामलों में ओर उछाल आया है।

मोदी के मामले में, यह एक भूलभुलैया थी जिसे उन्होंने खुद बनाया था- और पूरा देश उनकी खुद की बनाई भूलभुलैया में खो गया। समय से पहले और बहुत कड़ा और बेरहम देशव्यापी लॉकडाउन, जबकि कुल अनुमानित मामलों की संख्या लगभग 500 थी, वह लॉकडाउन लगभग दो महीने तक चला। इस लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था, जिससे कम से कम 12 करोड़ (120 मिलियन) लोग बेरोजगार हो गए और 80 प्रतिशत से अधिक लोगों की कमाई छीन गई।

नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण और बैंक खातों में चंद रुपयों के हस्तांतरण ने थोड़ी मदद की, लेकिन वह ना काफी था। अब ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा था जिससे लोग किसी और लॉकडाउन को स्वीकार करते- यह तब ही स्पष्ट हो गया था जब लाखों प्रवासी मजदूर खुलेआम लॉकडाउन को तोड़कर अपने गाँव वापस जाने लगे। एक अनुमान में कहा गया है कि इस अवधि में 971 लोगों की मृत्यु थकावट, भूख, दुर्घटनाओं या यहां तक कि आत्महत्या के कारण हुई। इस बीच, कॉर्पोरेट लॉबी भी काम शुरू करने के लिए दबाव डाल रही थी। इसलिए, मोदी ने आखिरकार जून से लॉकडाउन को हल्का करना शुरू कर दिया था। जून तक उठी महामारी, जो अब तक के कुल पुष्ट मामलों को देखें तो लगभग दो-तिहाई का उछाल आया है। 

ट्रम्प के लिए, अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण थी– क्योंकि यह उनके दूसरे कार्यकाल की कुर्सी का टिकट थी। रोजगार में उतार-चढ़ाव और लंबे समय के बाद अर्थव्यवस्था अच्छी होने की सामान्य संभावनाओं के कारण महामारी से पहले वह सभी चुनावों के अनुमानों में आगे चल रहे थे। लेकिन, राज्यों में कोरोनवायरस और लॉकडाउन के प्रसार से, अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई, बेरोजगारी बढ़ गई, और ट्रम्प की यूएसपी पतली हवा की तरह गायब हो गई। इसलिए, उसने पहले ही पट्टे को खींचा और महामारी के की हैसियत से ही इनकार कर दिया, फिर जल्दी ही यह कहना शुरू कर दिया कि यह नियंत्रण में है, चलो अब सब कुछ खोल देते हैं और वापस काम पर लग जाते हैं। संयोग से, अब वे सभी जनमत सर्वेक्षणों में बुरी तरह से पीछे चल रहे है।

बोलसनारो कभी भी कुछ भी बंद करने के इच्छुक नहीं थे, उन्होंने प्रांतीय सरकारों के साथ लड़ाई लड़ी, दो स्वास्थ्य मंत्रियों को बर्खास्त किया, लगातार इनकार करते रहे और- जैसे-जैसे समय बीतता गया और ब्राजील की अत्यधिक असमान समाज ने कमाई नहीं होने के दबाव को महसूस करना शुरू किया- तो अंततः बोलसनारो ने हथियार डाल दिए और राज्यों को अर्थव्यवस्था को खोलने की अनुमति दे दी। (मोदी भी भी अब यही काम कर रहे हैं।)

चरमराती स्वास्थ्य प्रणाली 

तीनों नेताओं में से किसी ने भी महामारी की जरूरतों के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। आवश्यक उपकरणों की खरीद में देरी की गई, अतिरिक्त कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं बनाया गया, बढ़ते रोगियों को संभालने के लिए कोई योजना नहीं थी, सभी निर्णय हालत खराब होने के बाद में लिए गए।

भारत में, अपेक्षाकृत कम शहरी आबादी और अधिक युवा आबादी के कारण और जांच में कमी से शायद मुंबई और दिल्ली जैसे हॉटस्पॉट को छोड़कर अस्पतालों और सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं पर कम दबाव रहा है। लेकिन आने वाले दिनों में, अध्ययनों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मामले बेकाबू हो जाएंगे, यह फिर वापस आएगा और मोदी सरकार को परेशान करेगा।

इसलिए, इन तीनों नेताओं के व्यक्तित्व समान हैं, अभिव्यक्ति में कुछ अंतर के साथ इनकी महामारी से निपटने की रणनीति, और अलग-अलग रास्तों के माध्यम से अपने-अपने देशों का नेतृत्व करते हुए, ट्रम्प, बोल्सोनारो और मोदी एक ही जगह पहुंच गए हैं– अब वे कोविड किंग हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

What’s Common to Three Covid Kings -- India, US & Brazil

Covid Kings
Pandemic Spread
Covid Cases
Donald Trump
Jair Bolsonaro
Narendra modi
Lockdown
Social Distancing
Covid Testing

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