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मज़दूर-किसान
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भारत
ग्रामीण भारत में कोरोना-15: कृषि बाज़ार का बुरा हाल
मंडियों में बिक्री ठप है; बीज और खाद जैसी चीज़ों की ख़़रीदारी न के बराबर होने से खरीफ की बुआई पर भारी असर पड़ने की संभावना है।
प्राची बंसल
19 Apr 2020
ग्रामीण भारत

यह इस श्रृंखला की 15वीं रिपोर्ट है जो ग्रामीण भारत के जीवन पर कोविड-19 से संबंधित नीतियों से पड़ने वाले प्रभावों की झलकियां प्रदान करती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी की गई इस श्रृंखला में विभिन्न विद्वानों की रिपोर्टें शामिल हैं, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में गाॆवों के अध्ययन में जुटे हैं। ये रिपोर्टें उनके अध्ययन में शामिल गांवों में मौजूद प्रमुख सूचना प्रदाताओं के साथ हुई उनकी टेलीफोनिक साक्षात्कार के आधार पर तैयार की गई हैं। यह लेख सरकार की ओर से दी गई छूट के बावजूद मंडियों के कामकाज को लेकर लॉकडाउन के तत्काल असर पर प्रकाश डालता है, जिसमें ग्रामीण भारत में मौजूद बड़ी आबादी को कई मुसीबतों का सामना करना पड़़ रहा है, जैसे कि खेती में इस्तेमाल होने वाले बीज और उर्वरकों जैसे विभिन्न आवश्यक चीजों की खरीद लगभग न के बराबर हो रही है।

कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च, 2020 से सारे देश में 21-दिवसीय सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। इस लॉकडाउन को अब 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है।

लॉकडाउन के पहले चरण में खेती-किसानी से जुड़ी सभी गतिविधियां, जिसमें फसलों की बुवाई और कटाई तक के काम शामिल हैं, अस्थायी तौर पर स्थगित कर दिए गए थे। इसके साथ ही खेती में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के बाज़ार भी पूरी तरह से बंद पड़े थे। खेतीबाड़ी के काम में मदद पहुंचाने वाली गतिविधियां जैसे कि ट्रांसपोर्ट, मज़दूर और अन्य बुनियादी सुविधाएं भी इस लॉकडाउन से अछूते नहीं रह सके थे।

कृषि उपज मंडी समितियों द्वारा नियमबद्ध तौर पर संचालित बाज़ार जिन्हें हम अनाज मंडियों के रूप में जानते हैं वे भी बंद पड़े थे। सिर्फ उन्हीं दुकानों को खुले रखने की अनुमति मिल सकी थी जिनका संबंध 'आवश्यक सेवाओं' (चारे की दुकानों सहित) से था। लॉकडाउन जैसे ही शुरू हुआ पूरे देश में किसानों को हो रहे नुकसान की चिंताजनक ख़बरें सामने आने लगीं थीं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने खेती से जुड़ी गतिविधियों को लॉकडाउन से मुक्त करने संबंधी कदम उठाये।

यह रिपोर्ट खेती से संबद्ध वस्तुओं की बिक्री से जुड़े 12 डीलरों के साथ 27 और 28 मार्च को किए गए टेलीफोनिक साक्षात्कारों पर आधारित है। इसके अलावा इस साक्षात्कार में फतेहाबाद (हरियाणा) से तीन लोग, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) से दो और पटियाला (पंजाब) से एक व्यक्ति शामिल हुए। इसके साथ ही 2 अप्रैल को होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में तीन व्यक्तियों, मंदसौर (मध्य प्रदेश) में एक और मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में दो व्यक्तियों के साथ भी ये इंटरव्यू किए गए। ये इंटरव्यू लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा दी गई छूट के बावजूद मंडियों के कामकाज पर लॉकडाउन से पड़ने वाले तात्कालिक प्रभावों और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर किसानों उठाए जाने वाली परेशानियों पर प्रकाश डालता है।

ये मामला सामने आया है कि फतेहाबाद, पटियाला और बुलंदशहर में इन डीलरों को सप्ताह में तीन बार सुबह के समय तीन घंटे के लिए अपनी दुकानें खोलने की इजाज़त दी गई थी, जबकि होशंगाबाद, मंदसौर और मुजफ्फरपुर में डीलरों को रोज़ाना दो या तीन घंटे के लिए अपनी दुकानें खोलने की इजाज़त दी गई थी।

लेकिन फतेहाबाद, पटियाला और बुलंदशहर में कई डीलरों ने कोविड-19 से संक्रमित होने के भय से अपनी दुकानों को खोलने से ही इंकार कर दिया है। वैसे भी जो लोग अपनी दुकानें खोल भी रहे हैं, उनकी ओर से सूचना मिली है कि संभवतः यातायात की सुविधा न होने के कारण ग्राहकों की संख्या काफी कम है। ऐसा जान पड़ता है कि चूंकि आजकल किसान आमतौर पर आने-जाने के लिए साइकिलों और मोटरसाइकिल का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसलिये वे केवल उतना ही सामान खरीद पाने में सक्षम हैं, जितना इन वाहनों से ले जा पाना संभव हो पा रहा है। ये इन वाहनों से कीटनाशक दवा या कुछ बीज ले जाते हैं। वे खाद को खरीदने में असमर्थ हैं, जिसे आमतौर पर 45 या 50 किलोग्राम के पैक में ही खरीदा जाता है और इसकी लोडिंग/अनलोडिंग के लिए मजदूरों की भी जरूरत पड़ती है।

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में किसानों ने अक्टूबर में मक्का बोया था। उन्होंने जनवरी माह में अपनी फसलों पर यूरिया का पहला छिड़काव किया था और आमतौर पर बेहतर पैदावार के लिए अभी यूरिया का एक और छिड़काव करना चाहिए था। लेकिन लॉकडाउन के कारण यूरिया की बिक्री काफी कम हुई है। डीलरों के अनुसार अभी तक जितना यूरिया बिका है, वह पिछले सीजन की बिक्री के दसवें हिस्से से भी कम है। मुजफ्फरपुर के डीलर अपनी दुकान में यूरिया की लगी ढेर को देख कर चिंतित थे। उन्होंने बताया कि डीलरों को “इन बड़ी-बड़ी कम्पनियों से माल की सप्लाई के लिए पैसा एडवांस में जमा कराना पड़ता है। मेरी दुकान में यूरिया का इतना स्टॉक भरा पड़ा है कि मुझे समझ में ही नहीं आ रहा है कि इस सीजन मैं अपनी लागत कैसे निकालूं।”

उत्तर-पश्चिमी भारत में खरीफ के सीजन में उगाई जाने वाली हरे चारे की फसल के रूप में ज्वार प्रमुख है। फतेहाबाद, पटियाला और बुलंदशहर के व्यापारियों का कहना है कि ज्वार के बीज की मांग तो अच्छी-खासी थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसान बीज खरीद ही नहीं सके हैं। किसान यदि ज्वार उगाने में असमर्थ रहे तो इसका परिणाम पशुओं के लिए हरे चारे की कमी में दिखेगा, जिससे इसका प्रतिकूल असर दुग्ध उत्पादन पर पड़ना तय है।

मौसमी सब्जियों के बीजों की मांग (फतेहाबाद में भिंडी, तुरई, लौकी और पटियाला तथा बुलंदशहर में लौकी; पालक, धनिया, तुरई और इसी तरह होशंगाबाद और मंदसौर में भिंडी) इन सभी ज़िलों में काफी अधिक है, जिन ज़िलों में ये लोग रहते हैं और अपने काम-धंधे में लगे हैं।

अगले सीजन की फसल की बुआई का काम बाधित हो रहा है क्योंकि किसान इसके लिए बीजों की ख़रीद कर पाने में असमर्थ हैं। इस संबंध में डीलरों ने स्वीकार किया है कि उनके पास किसानों के रोज फोन आ रहे हैं, लेकिन एक तो ट्रांसपोर्ट का कोई साधन उपलब्ध नहीं है और साथ ही देश के कई हिस्सों में भय और भ्रम का माहौल बना हुआ है, जिसके कारण अधिकतर डीलर किसानों की ज़रूरतों को पूरा कर पाने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

होशंगाबाद और मंदसौर में मूंग की खेती करने वाले किसान इस बात से काफी चिंतित हैं कि इस फसल की बुआई हर हाल में 15 अप्रैल से पहले पूरी हो जानी चाहिए। होशंगाबाद के सिवनी मालवा तहसील के शिवपुर ग्राम पंचायत में बीज और उर्वरक दुकान के विक्रेता ने बताया कि जिन किसानों के पास ख़ुद की सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वे लॉकडाउन के बाद भी मूंग के बीज ख़रीदकर उसे बोने में सक्षम हैं। लेकिन जो किसान पूरी तरह से बारिश पर ही निर्भर हैं उन्हें हर हाल में पहले ही इस फसल को बोना होगा। सनद रहे कि मध्य प्रदेश में मूंग की खेती के लिए आवंटित लगभग 10.2 हजार हेक्टेयर (2017 के अनुमान के अनुसार) भूमि के साथ होशंगाबाद का स्थान सर्वोच्च है।

लॉकडाउन के कारण किसानों को न सिर्फ अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए कीटनाशकों पर पहले से कहीं अधिक खर्च करना पड़ रहा है, बल्कि कीटनाशक दवाओं और उनकी क़ीमतों के मामले में भी उन्हें खुद को इन्हीं डीलरों के रहमो-करम पर निर्भर होना पड़ रहा हैं।

मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में किसानों (जिन जिलों को लेकर यह रिपोर्ट केंद्रित है) की खेतों में गेंहूं की फसलें खड़ी हैं, वे लगभग दस या पंद्रह दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाएंगी। उन्हें इस बात का डर है कि कहीं उन्हें देर से गेहूं की कटाई के लिए मजबूर न होना पड़े। इसे देखते हुए ये किसान फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों के हमले से निपटने के लिए कीटनाशकों (जो दुकानें खुली हैं) को इकट्ठा करने में लगे हैं। इसके अलावा मक्का, फूलगोभी और बारसीम जैसी फसलों में भी कीटनाशक की काफी मांग रहती है, क्योंकि इन फसलों में कीट-पतंगों से काफी नुकसान की संभावना बनी रहती है।

डीलरों ने बताया कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद खाद और बीज की मांग को पूरा करने के लिए उनके पास पर्याप्त मात्रा में स्टॉक है, लेकिन कीटनाशक और खरपतवारनाशक का स्टॉक काफी तेजी से खत्म होता जा रहा है। फतेहाबाद के एक डीलर से हुई बातचीत में उन्होंने बताया है कि आमतौर पर जिस कीटनाशक दवा की औसत लागत (सभी ब्रांड्स में एक जैसे रासायनिक घटक के लिए) प्रति एकड़ के हिसाब से 200 रुपये से 250 रुपये के बीच होती थी, अब अचानक से उसकी क़ीमत में उछाल देखने को मिल रहा है और ये अब 200 से लेकर 1,000 रुपये के बीच में बिक रहे हैं।

डीलर इस बात का भी अनुमान लगा रहे हैं कि हो न हो, नया स्टॉक बाजार में नहीं आने के कारण निकट भविष्य में इनकी क़ीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसके साथ ही इस बात को ज़ेहन में रखते हुए कि हाल-फिलहाल में कीटनाशक दवाओं का उत्पादन नहीं हो रहा है, इसके चलते कुछ समय तक इनकी आपूर्ति में कमी बनी रहने वाली है। होशंगाबाद के डीलरों ने भी बातचीत में कीटनाशक उत्पादों की कमी के बारे में बताया है। पटियाला के एक डीलर ने बताया कि मंडी में डीलरों की तरफ से सामूहिक रूप से तैयार किए गए नियमों के अनुसार वह भी अपनी दुकान नहीं खोल रहे हैं, लेकिन अपने घर में उन्होंने कीटनाशक दवाओं का स्टॉक जमा कर रखा है और अपने नियमित ग्राहकों के लिए इनकी आपूर्ति उनकी ओर से की जा रही है।

वहीँ मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और मंदसौर के अधिकांश हिस्सों में गेहूं की कटाई पूरी हो चुकी है। लेकिन मंडियों में अनाज की ख़रीद न होने के कारण किसानों के यहां गेंहूं के ढेर लगे हुए हैं।

किसान अपनी उपज बेच नहीं पा रहे हैं, यह मामला साक्षात्कार में शामिल होने वाले करीब-करीब सभी लोगों ने कहा है। इसके साथ ही साथ किसानों के लिए मुख्य चिंता का विषय मज़दूरों की कमी, मंडियों तक माल पहुंचाने के लिए किराए पर ट्रॉलियों की अनुपलब्धता और किसानों को उनकी उपज के उचित दाम हैं। कई मंडियों में अपनी उपज को बेचने के लिए पहुंचने वाले किसानों की संख्या अभी भी काफी कम है और जो किसान आ भी रहे हैं उनमें से अधिकांश अपनी सब्जियों को औने-पौने दामों में बेच कर चले जा रहे हैं। लॉकडाउन के कारण अधिकतर मंडियों में कमीशन एजेंटों (आढ़तिये) तक ने अपना काम चालू नहीं किया है।

मंडियों की मौजूदा स्थिति यह दर्शाती है कि इस लॉकडाउन की वजह से किसानों को होने वाला नुकसान उनके 21 दिनों में हो सकने होने वाली आय की तुलना में काफी अधिक होने वाली है।

[ये साक्षात्कार 27 मार्च से लेकर 3 अप्रैल 2020 के बीच लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान लिए गए थे]

लेखिका दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इनफॉर्मल सेक्टर एंड लेबर स्टडीज में रिसर्च स्कॉलर हैं।

अंग्रेज़ी में लिखे मूल आलेख को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

COVID-19 in Rural India- XV: Agricultural Markets in Disarray

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