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ग्रामीण भारत में कोरोना-4 :  एमपी के रोहना में अप्राप्य फसलें और रोजगार की अनिश्चितता का सवाल
रबी की फसल, जिसकी अभी तक ख़रीद होनी बाक़ी है, उसके अलावा गाँव के किसान इन महीनों के दौरान उगाई जाने वाली मूँग की फसल को लेकर भी असमंजस में हैं।
सुनीत अरोरा 
10 Apr 2020
ग्रामीण भारत
तस्वीर का इस्तेमाल मात्र प्रतिनिधित्व हेतु। सौजन्य: लाइव मिंट

यह लगातार जारी श्रृंखला की चौथी रिपोर्ट है जो कोविड-19 से सम्बन्धित नीतियों की वजह से ग्रामीण भारत पर पड़ रहे प्रभावों की झलक प्रदान कराती है। सोसाइटी फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा जारी की गई इस श्रृंखला में विभिन्न विद्वानों की रिपोर्टें शामिल हैं जो भारत के विभिन्न हिस्सों में गाँवों के अध्ययन के काम को संचालित कर रहे हैं। ये रिपोर्टें उनकी जाँच में शामिल गाँवों के प्रमुख सूचना प्रदाताओं के साथ टेलेफ़ोन के ज़रिये संपन्न हुई वार्ता के आधार पर तैयार की गई हैं। इस रिपोर्ट में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के रोहना गाँव के हालात का वर्णन किया गया है, जहाँ मंडियों की बंदी की वजह से गेहूं की ख़रीद का काम रुका पड़ा है, नहर का पानी छोड़ने में देरी हो रही है और साथ ही खेती-किसानी में लागत और मशीनरी की उपलब्धता में कमी के चलते यहाँ के निवासियों को होने वाली परेशानियों पर रौशनी डाली गई है। 

राष्ट्रीय राजमार्ग 46 से भोपाल से होशंगाबाद जाने के लिए क़रीब दो घंटे की ड्राइव में पर्याप्त चौड़ी लेकिन बेहद भीड़-भाड़ वाली सड़क मिलेगी, जिसमें उबैदुल्लागंज तक कई जगहों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रहती है। इस शहर को पार करते ही बेहद संकरा और ऊबड़-खाबड़ रास्ता नर्मदा नदी पर बने पुल के पार ले जाता है। पुल पार करते ही होशंगाबाद का इलाक़ा शुरू हो जाता है, जो अपने-आप में मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक ज़िला माना जाता है। इसी राजमार्ग पर 10 किलोमीटर आगे चले चलेंगे तो रोहना गांव मिल जाएगा। 1974 में नर्मदा पर तवा बांध के निर्माण से नर्मदा घाटी क्षेत्र में नहर से सिंचाई व्यवस्था की शुरुआत हो चुकी थी। इसके साथ ही इस गाँव और इसके आसपास के इलाकों के फसल चक्र में बदलाव आ चुका है। पहले जहाँ साल में एक फसल की पैदावार होती थी अब एक कृषि वर्ष में तीन-तीन फसलें उगाई जा रही हैं।

रोहना के लगभग 65% लोगों के पास अपनी थोड़ी-बहुत जमीनें हैं, और खेती से होने वाली वार्षिक आय ही उनकी कमाई का प्रमुख स्रोत है। हालाँकि कृषक वर्ग में ज़मीन का मालिकाना बेहद असमान स्तर पर मौजूद है। करीब 60% किसानों के पास पाँच एकड़ से भी कम जमीन की मिल्कियत है। ऐसे परिवारों को अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए अन्य स्रोतों की ओर देखना पड़ता है, जिसे वे अस्थाई खेतिहर मज़दूरी या दिहाड़ी मज़दूरी करके किसी तरह पूरा करते हैं। लेकिन वहीँ दूसरी तरफ रोहना में 20% की तादाद में कुछ ऐसे चोटी के किसान भी हैं जिन्होंने पिछले एक दशक के दौरान में खेती के तौर तरीकों में विस्तार देकर और खेती से जुड़े अन्य कार्यों में खुद को जोड़कर, अपने धंधे में विविधिता लाकर आर्थिक तौर पर काफी तरक्की हासिल कर ली है। जबकि गाँव के अधिकांश भूमिहीन परिवारों के लिए आय का प्राथमिक स्रोत खेत मजूरी ही बना हुआ है।

देश के बाकी हिस्सों की तरह ही होशंगाबाद भी कोविड-19 महामारी की वजह से लॉकडाउन में है। गाँव में पुलिस की मौजूदगी के कारण 22 मार्च से कामकाज काफी सीमित हो रखा है। गाँव के कोटवार को (राजस्व विभाग में सबसे निचले क्रम में काम करने वाला कर्मचारी) लॉकडाउन को लागू कराने के लिए प्रभार सौंपा गया है ताकि वह किराने की दुकानों, खेती से सम्बन्धित ख़रीदारी और दवाइयों की दुकानों में भीड़भाड़ को रोकने में पुलिस की मदद कर सके।

रबी की फसल पर लॉकडाउन का असर

रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं है और मार्च महीने के बीच में बारिश और उसके बाद लॉकडाउन के कारण जो रोक लगा दी गई है उसकी वजह से कटाई में एक हफ्ते की देरी पहले से ही हो चुकी है। गाँव में गेंहूँ की कटाई का काम मार्च के अंतिम सप्ताह से शुरू हो सका है, जब राज्य सरकार की ओर से समय से फसल कटाई की अनुमति के आदेश जारी किये गए। उम्मीद है कि यह काम 15 अप्रैल तक सम्पन्न हो जाए। फसल कटाई के मामले में रोहना पूरी तरह से कंबाइन-हार्वेस्टरों पर निर्भर है। यहां तक कि बुआई के लिए इस्तेमाल में लाये जा रहे छोटे भूखंडों (पांच एकड़ से कम) तक में फसल की कटाई के लिए ये मशीनें इस्तेमाल में लाई जाती हैं। मध्य भारत के बाकी हिस्सों की तरह ही रोहना में भी कटाई के समय पंजाब से भारी संख्या में कंबाइन-हार्वेस्टर की आमद होती है। लेकिन कोविड-19 के कारण बढती बैचेनी और यातायात पर लगे प्रतिबंधों का अर्थ ये है कि राज्य के अधिकांश हिस्से इन मशीनों की उपलब्धता की कमी को लेकर आशंकित हैं।

राज्य के दूसरे जिलों में यह पहले से ही एक मुख्य समस्या के रूप में उभर कर सामने आ चुका है। लेकिन सौभाग्य से रोहना में कुछ किसान परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपने कंबाइन-हार्वेस्टर हैं, और इस पारकर गाँव में कुल 9 मशीनें मौजूद हैं। जिसका मतलब हुआ कि हार्वेस्टर की कमी के चलते गाँव की फसल कटाई में देरी नहीं होने जा रही। अलबत्ता इन हार्वेस्टरों को चलाने के लिए ड्राइवरों की कमी अभी भी एक रोड़ा बन सकती है। हर साल इन हार्वेस्टरों को चलाने वाले ड्राईवर पंजाब से आते हैं, और महामारी के कारण उनमें से कुछ लोग पिछले पखवाड़े ही गाँव छोड़कर जा चुके हैं।

करीब-करीब सभी किसान अपने गेहूं की उपज का एक बड़ा हिस्सा रोहना में स्थित सहकारी समिति के माध्यम से सरकार को बेचते आये हैं। ग्रामीणों ने सुन रखा था कि अनाज की ख़रीद 25 मार्च से शुरू होने वाली है, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद से अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि सुनने को नहीं मिली। उस दौरान एक आधिकारिक घोषणा की गई थी कि 1 अप्रैल से ख़रीद शुरू होगी।

गाँव के कुछ किसानों को एसएमएस भी आये जिसमें उन्हें सूचित किया गया था कि उनके गेहूं की ख़रीद की तारीख तय हो चुकी है। हालाँकि बाद में इस आदेश को वापस ले लिया गया, और ख़रीद का काम स्थगित है और अभी तक कोई नई तारीख की घोषणा नहीं हुई है। इसके अलावा ख़रीद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण कार्य जैसे कि बोरियों में अनाज के भंडारण और ट्रॉलियों पर इनकी लोडिंग का काम आमतौर पर बिहार से प्रवासी मज़दूरों द्वारा सम्पन्न किया जाता रहा है, जो आज इस हालत में नहीं कि रोहना आ सकें। सहकारी समिति के कर्मचारी मज़दूरों की कमी के कयास लगा रहे हैं क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि इस सीजन में प्रवासी मज़दूरों का गाँव के लिए यात्रा कर पाना संभव होने नहीं जा रहा है।

गाँव में ऐसे भी कुछ छोटे किसान हैं जिन्होंने गेहूँ की कटाई जल्दी कर ली थी और अपने लिए तत्काल नकदी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अनाज बेचने के लिए व्यग्र थे। ऐसे परिवारों को अपना अनाज गाँव के व्यापारियों के हाथ 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जो कि सरकारी ख़रीद की दर से (न्यूनतम समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति क्विंटल) से काफी कम है। कलक्ट्रेट में काम करने वाले एक अधिकारी ने बताया है कि मंडी 14 अप्रैल से पहले नहीं खुलने जा रही। यदि ख़रीदारी का काम जल्द शुरू नहीं होता है तो ऐसे कई और भी किसान हैं जो अपना अनाज इसी तरह कम क़ीमत पर स्थानीय व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होंगे।

मूँग की फसल पर इसका असर 

रोहना में लगभग आधे किसान ऐसे हैं जिनमें से अधिकांश के पास खुद के सिंचाई के लिए ट्यूबवेल जैसे साधन मौजूद हैं, वे अपने यहाँ मूंग की फसल उगाते हैं। हालांकि मूंग के लिए प्रति एकड़ लागत अधिक आती है, लेकिन रबी और खरीफ सीजन के बीच की छोटी अवधि (दो महीने) में तैयार हो सकने वाली यह फायदेमंद फसल है, और इसका दाम भी अपेक्षाकृत अच्छा मिल जाता है। इस साल समाचारों में यह रिपोर्ट थी कि इस बार 10 अप्रैल से तवा बांध से पानी छोड़ा जाएगा और रोहना में लगभग सभी किसान जिनके खेत नहर के पानी पर निर्भर हैं, ने इस गर्मी के मौसम में तय किया था कि मूँग की फसल उगायेंगे। लेकिन लॉकडाउन के कारण किसान इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि अप्रैल में नहर से पानी छोड़ा जाएगा या नहीं।

नतीजे के तौर पर जिन किसानों ने पहली बार मूँग की खेती की योजना बना रखी थी और इसके लिए पूरी तरह से नहर के पानी पर निर्भर थे, वे इस बात को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में हैं कि क्या वे खरीफ की फसल से पहले इस फसल को काट पाने में सफल हो सकेंगे। मूंग की फसल बोने में एक समस्या और भी है जो रोटावेटर और अन्य मशीनों की उपलब्धता पर बनी हुई अनिश्चितता से जुड़ी हुई है, जिनका उपयोग बुवाई के लिए मिट्टी तैयार करने में अति आवश्यक है।

इस फसल में इस्तेमाल होने वाले उर्वरकों और कीटनाशकों की कमी भी किसानों की चिंता का विषय बनी हुई है। भले ही इससे सम्बन्धित ख़रीद केन्द्रों के खुले रहने की आज्ञा है, लेकिन गांव में इसके डीलर अभी भी अपनी दुकानें नहीं खोल रहे हैं। लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने इन दुकान मालिकों से फोन के जरिये संपर्क साध अपने लायक माल का प्रबंध कर लिया है और अपने लिए स्टॉक हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली है।

शारीरिक श्रम करने वालों और मज़दूरों पर इसका प्रभाव 

शारीरिक श्रम पर निर्भर अधिकांश मज़दूर रोहना से रोजाना होशंगाबाद शहर जाते हैं। जिला मुख्यालय होने के नाते यहाँ पर भवन निर्माण में काम मिल जाता है या शहर के सुपरमार्केट (स्थानीय तौर पर इसे ‘मॉल' के रूप में जाना जाता है) में रोजाना लगभग 300 रुपये की कमाई हो जाती है। लॉकडाउन की वजह से ये लोग अब शहर नहीं जा सकते और अपने घरों में ही बने रहने के लिए मजबूर हैं। हाल-फिलहाल वे गाँव में खेती से जुड़े काम करने के लिए तैयार हैं, जिसमें उन्हें 200 रूपये की ही दिहाड़ी मिलेगी। लेकिन पिछले एक पखवाड़े से इसकी भी कोई विशेष जरूरत नहीं पड़ी है। कटाई शुरू होने पर इस स्थिति में बदलाव आ सकता है लेकिन इसके बावजूद इन दिहाड़ी मज़दूरों को अपनी मज़दूरी में नुकसान तो पक्का होने जा रहा है।

मनरेगा स्कीम में 108 श्रमिक इसकी सक्रिय सूची में और कुलमिलाकर 575 श्रमिक जुड़े हैं। इनमें से जो सक्रिय मज़दूर हैं उनकी जानकारी पहले से ही सरकार के डेटाबेस में है। लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के बाद से उनमें से किसी को कोई पैसा नहीं मिल सका है। रोहना में सहकारी समिति स्थानीय ख़रीद केंद्र और राशन की दुकान के रूप में दोनों ही काम करती है। फसल ख़रीद के समय अपने काम के बोझ को कम करने के लिए सहकारी समिति हर साल, ख़रीद शुरू होने से पहले तीन महीने का राशन एकमुश्त लाभार्थियों को देती आई है। इस साल भी राशन-कार्ड धारकों को मार्च के मध्य में तीन महीने का राशन दे दिया गया था। समय रहते लिया गया यह कदम गाँव के दिहाड़ी मज़दूरों के लिए बेहद मददगार साबित हुआ है, जिन्होंने पिछले एक पखवाड़े से कुछ भी नहीं कमाया है। कुछ भूमिहीन परिवारों ने खेतों की बिनाई के दौरान कुछ गेहूं इकट्ठा करने में कामयाबी हासिल कर ली थी, जो अब उनकी खाद्य सुरक्षा के लिए अहम होने जा रही है।

कई भूमिहीन परिवार कटाई के बाद खेतों की बिनाई में लगे हुए हैं। हालाँकि जबसे मशीनों से कटाई होने लगी है, अनाज के गिरने की मात्रा पहले से कम हो चुकी है, इसके बावजूद खेतों की बिनाई के माध्यम से इकट्ठा किये गए अनाज गाँव के गरीब घरों की खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद अहम हैं। गाँव के भूमिहीन परिवारों की महिलाएँ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि लॉकडाउन के कारण उन्हें खेतों से अनाज इकट्ठा न करने दिया जाए।

भूमिहीन परिवारों में से कुछ मज़दूर पास की दो कताई मिलों में मशीन ऑपरेटर का भी काम करते हैं। पिछले पखवाड़े से ये कारखाने बंद पड़े हैं, लेकिन मज़दूरों को मार्च के महीने का सारा वेतन दे दिया गया है। हालाँकि अगले महीने नौकरी और आय का क्या होगा इसको लेकर उनके बीच अनिश्चय का माहौल गहराता जा रहा है, क्योंकि अभी तक कारखाना मालिकों की ओर से इस सम्बंध में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

डेयरी व्यवसाय पर असर 

होशंगाबाद पारंपरिक रूप से दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है और रोहना में कुछ घर ऐसे भी हैं जो खुद की डेयरी चला रहे हैं। गाँव में जिन किसान परिवारों के पास अपने दुधारू जानवर हैं, उनसे भी ये दैनिक रूप से दूध एकत्र करते हैं और शहर में दूध की बिक्री करते हैं। चूँकि लॉकडाउन में दुग्ध वितरण में छूट हासिल है, इसलिये यह काम बदस्तूर जारी है।

पशु आहार पर प्रभाव 

गेहूं की फसल में बच गया पुआल एक मूल्यवान उप-उत्पाद है। कंबाइन हार्वेस्टर द्वारा फसल से दाना निकालने के बाद पुआल काटने वाली मशीन का उपयोग सूखे पुआल को छांटने और काटने के लिए किया जाता है। इस सीजन में कटी हुई सूखी पुआल का इस्तेमाल साल भर के लिए चारे के रूप में किया जाता है। रोहना में पुआल काटने वाली मशीनें पर्याप्त संख्या में नहीं हैं और किसान आसपास के जिलों की मशीनों पर निर्भर हैं। इस सीजन में पुआल कटाई में असमर्थता पशुधन की लागत को बढ़ाएगी क्योंकि बाजार में चारा काफी महँगा बिक रहा है। सीजन में फसल की कटनी और पुआल की कटाई में लगभग 1200 रुपये प्रति ट्रॉली ख़र्च आता है। जबकि इसकी तुलना में पिछले साल स्थानीय बाजार में पुआल की क़ीमतें 3000 रुपये प्रति ट्रॉली तक पहुँच गई थीं।

खाद्य पदार्थो की उपलब्धता और उनके खुदरा मूल्य 

होशंगाबाद नर्मदा नदी के तट पर बसा है और नदी के किनारे-किनारे प्रचुर मात्रा में सब्जियों की खेती होती है। जबकि रोहना में बहुत से किसान अपने लिए सब्जियां नहीं उगाते, लेकिन इसकी कोई कमी नहीं है। क्योंकि आसपास के गांवों से रोजाना ही सब्जी बेचने वाले आते रहते हैं और सब्जी की क़ीमतें स्थिर हैं। हालांकि चीनी, खाद्य तेल और दाल जैसी अन्य आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों में पिछले एक पखवाड़े से बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। इस सम्बन्ध में दुकानदारों का कहना है कि पीछे से माल कम सप्लाई होने और वस्तुओं की ख़रीद में हो रही कठिनाई की वजह से चीजों के दाम बढ़े हैं।

रोहना गाँव के लोगों के लिए अप्रैल का महीना शादियों का होता है। हालाँकि इस साल इस प्रकार के सभी समारोह पहले से ही स्थगित कर दिए गए हैं लेकिन ऐसे कई परिवार हैं जिन्होंने शादी जैसे समारोह की तैयारी में जो पैसे लगा दिए थे वे सब व्यर्थ चले जाएंगे, इस बात को लेकर चिंतित हैं। यह सब रोहना के किसानों की मुश्किलों को बढ़ाने वाला है जो पहले से ही मंडियों की बन्दी से, गेहूं की सरकारी ख़रीद में स्थगन से, नहर के पानी को छोड़ने में देरी, कृषि वस्तुओं और मशीनरी की उपलब्धता में कमी और कोरोना वायरस के डर से अपनी दूकान खोलने में दुकानदारों की अनिच्छा के कारण पहले से ही मुश्किलों में जी रहे हैं।

सुनीत अरोड़ा सेंटर फॉर स्टडीज़ ऑफ़ रीजनल डेवलपमेंट, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19 in Rural India-IV: Unprocured Crops and Job Uncertainty Grips MP’s Rohna

 इन्हे भी पढ़े :

1. ग्रामीण भारत में कोरोना : हरियाणा में किसान फसल कटाई और बिक्री को लेकर चिंतित         

2. ग्रामीण भारत में कोरोना:2 : ‘मुझे कोकून को 500 की जगह 150 रुपए किलो बेचना पड़ा’

3.ग्रामीण भारत में कोरोना-3 : यूपी के लसारा कलां के किसान गेहूं कटाई में देरी और कृषि श्रमिकों की कमी को लेकर चिंतित

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