NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कोविड-19 प्रसार : क्या बिहार हक़ीक़त छुपा रहा है?
चुनावी दंगल में उतरने वाले राज्य की महामारी के मोर्चे पर कामयाबी कुछ अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर दिखाई देती है। हालांकि, कई ज़मीनी रिपोर्टों के आधार पर में गहन जांच की ज़रूरत है।
ऋचा चिंतन
16 Sep 2020
Translated by महेश कुमार
कोविड-19 प्रसा

जैसा कि लगता है कि बिहार अक्टूबर में होने वाले विधान सभा चुनावों के लिए तैयार है, इस संदर्भ में राज्य की कोविड-19 संकट से निपटने में इसके प्रदर्शन की बारीकी से जांच की जा रही है।

चूंकि प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में बिहार से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए यह अनुमान लगाया जा रहा था कि जैसे-जैसे ये मजदूर वापस आएंगे, वैसे-वैसे कोविड के मामले बढ़ेंगे। हालाँकि, देखा जा सकता है कि बिहार में श्रमिकों की बड़े पैमाने पर वापसी से कोविड-19 मामलों में खास योगदान नहीं देखा गया जो मुख्य रूप से 25 मार्च और मई-अंत तक वापस आए थे, जबकि बिहार में मोटे तौर पर मामले 15 जुलाई के बाद ही बढ़े हैं।

इस रिवर्स माइग्रेशन ने जो योगदान दिया है वह यह कि इस बड़ी आबादी को भूखा रहना, बिना चिकित्सा देखभाल के, नौकरी के नुकसान और मुआवजे के बिना जीवन यापन करना पड़ा है। चूंकि जल्द ही किसी भी किस्म की आजीविका का कोई संभावित साधन दिखाई नहीं दे रहा था या है, इसलिए इस मोर्चे पर स्थिति गंभीर बनी हुई है।

बाढ़ से स्थिति हुई बदतर

बिहार में जुलाई और अगस्त में भयानक बाढ़ एक अतिरिक्त चुनौती बन कर आई। बाढ़ का प्रभाव बिहार के उत्तरी जिलों में केंद्रित था और इसने कोविड-19 महामारी से निपटने के साधनों को कठिन बना दिया था। नतीजतन, अगस्त के पहले हफ्तों के दौरान, जिलों में नए मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई, जैसे अरवल, कटिहार और सहरसा।

इन चुनौतियों के बावजूद, बिहार ने अन्य राज्यों की तुलना में कोविड-19 महामारी के मोर्चे पर बहुत बुरा प्रदर्शन नहीं किया है, हालांकि बिहार में पुष्ट मामलों की संख्या बढ़ रही है और अब यह संख्या 1,58,000 से अधिक है।

जबकि जुलाई में, भारत में रिपोर्ट किए गए कुल मामलों में से बिहार का हिस्सा केवल 1.75 प्रतिशत था, सितंबर में यह लगभग 3.6 प्रतिशत हो  गया था। बिहार सभी राज्यों के बीच, 1 जुलाई को 13 वें नंबर पर था, और 8 जुलाई के अंत तक आते-आते नंबर 8 पर आ गया था, और नवीनतम रिपोर्ट किए गए आंकड़ों के आधार पर अभी भी उसी स्थिति पर बना हुआ है।

हालांकि, बिहार में कोविड-19 के प्रसार और मामलों की अपेक्षाकृत बेहतर होने की कहानी, जो कि उपलब्ध आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित हैं, जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग हो सकती हैं।

स्वास्थ्य पर कम ख़र्च

स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों पर खर्च के मामले में, बिहार ऐतिहासिक रूप से कमजोर रहा है, जो स्वास्थ्य पर कम सार्वजनिक व्यय का परिणाम रहा है, जो 2018-19 (वास्तविक) के लिए प्रति व्यक्ति खर्च सिर्फ 618 रुपये प्रति वर्ष है।

जमीन से मिली रिपोर्ट न केवल जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कमी, चिकित्सा सुविधाओं की जीर्ण स्थिति, काम के बोझ तले दबे स्वास्थ्य कर्मचारियों, व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी, अस्वास्थ्य स्थितियों को तो सामने लाती है, बल्कि कोविड-19 जांच से संबंधित डेटा की कम रिपार्टिंग, मृत्यु और अन्य बीमारियों रिपोर्ट न करने को भी उजागर करती है।

शीर्ष 10 राज्यों में पुष्ट मामलों की प्रवृत्ति को देखते हुए, हम देखते हैं कि बिहार में मामलों की वृद्धि अन्य राज्यों की तुलना में काफी धीमी रही है (चित्र 1 देखें)। हालाँकि, महामारी के प्रसार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, बिहार में रुझान बताता है कि आने वाले दिनों में मामलों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।

तस्वीर1: शीर्ष 10 राज्यों में पुष्ट मामलों की प्रवृत्ति (12 सितंबर तक के मामलों के क्रम में रैंकिंग)

download_0.png

पुष्ट मामलों की संख्या के दोहरे होने की दर को देखते हुए, बिहार के आंकड़े बताते हैं कि 12 सितंबर को यह 33 दिनों में पुष्ट मामलों की संख्या को दोगुना कर रहे थे। शीर्ष 10 राज्यों में ओडिशा सबसे खराब स्थिति में रहा है, जहां पुष्ट मामलों को दोगुना होने में सिर्फ 22 दिन का समय लगता है। जबकि संपूर्ण भारत में 12 सितंबर को 31 दिनों में पुष्ट मामले दोगुने हो रहे  थे।

तस्वीर 2: दिनों की संख्या जिसमें पुष्ट मामले शीर्ष 10 राज्यों में दोगुने हो गए। नोट: सितंबर 12 तक।

graph 2_3.jpg

प्रति सप्ताह नए मामलों को देखते हुए, जुलाई की शुरुआत से 10-16 अगस्त के दूसरे सप्ताह तक, नए मामलों की संख्या ने बिहार में ठीक हुए मामलों की संख्या को पार कर लिया था। यह वह दौर था जब बिहार भीषण बाढ़ की स्थिति से जूझ रहा था।

अगस्त के तीसरे सप्ताह के बाद से, प्रति सप्ताह ठीक होने वाले मामलों की संख्या नए मामलों की संख्या से अधिक थी जो स्थिति में सुधार का संकेत देती है। हालांकि, पिछले सप्ताह 6-12 सितंबर में, दोनो आंकड़ों के बीच की खाई कम हो गई और जो बिगड़ती स्थिति का संकेत बन सकती है (चित्र 3 देखें)।

तस्वीर 3: बिहार में प्रति सप्ताह नए पुष्ट मामले और ठीक हुए मामले

download (9).png

यदि कोई जांच के आंकड़ों को देखे तो 2 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह के बाद से तेज वृद्धि हुई है। यह वह समय है जब नई जांच के लिए एंटीजेन/एंटीबॉडी जांच को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद या आईसीएमआर ने अनुमोदित किया था जो सस्ता और अधिक सटीक आरटी-पीसीआरए जांच की तुलना में परिणाम में बहुत कम समय लेता है।

हालांकि, एक हफ्ते में नौ लाख जांच की संख्या दर्ज करने के बावजूद, बिहार अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पीछे है। बिहार की दस लाख आबादी पर कुल जांच की संख्या आंध्र प्रदेश, असम, तमिलनाडु जैसे राज्यों की तुलना में बहुत कम है। प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एक लाख से अधिक जांच के साथ दिल्ली इस सूची में सबसे ऊपर है (चित्र 4 देखें)

तस्वीर 4: चुनिंदा राज्यों में प्रति मिलियन टेस्ट, 12 सितंबर तक के आंकडो के अनुसार  

download (8).png

जैसे-जैसे बिहार में जांच की संख्या बढ़ी है, पॉज़िटिव मामलों की दर, यानी कुल जाचों में से पॉज़िटिव मामलों की दर कम हुई है। वर्तमान में, पॉज़िटिव दर लगभग 3 प्रतिशत है, जो सभी  राज्यों में सबसे कम है।

तस्वीर 5: चुनिंदा राज्यों में पॉज़िटिव मामलों की दर, आंकड़े 10 सितंबर तक  

download (7).png

जिला-वार अवलोकन

जिलों में मामलों की संख्या पर एक करीबी नज़र डालने से पता चलता है कि बिहार में बाढ़ के बाद के हफ्तों में, अधिकांश जिलों में साप्ताहिक रूप से नए मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है (चित्र 6 देखें)। अगस्त 3-9 और अगस्त 10-16 के सप्ताह में मामलों में वृद्धि हुई और बाद के हफ्तों में घट गई। यह एक पूरे राज्य के लिए अवलोकन का पैटर्न है जिसका अनुसरण करना चाहिए।

चित्र 6: बिहार के शीर्ष 10 जिलों में प्रति लाख जनसंख्या पर साप्ताहिक नए मामले (07-13 के सप्ताह के बीच मामलों के क्रम में रैंकिंग)

download (6).png

 

जिलों में प्रसार को देखते हुए, यह पाया गया है कि प्रति सप्ताह (प्रति लाख जनसंख्या पर) नए मामले सबसे अधिक या तो उत्तरी बिहार में आए हैं, जो बाढ़ से प्रभावित हैं, जैसे किशनगंज, सहरसा, या उन जिलों से जो पटना के नज़दीक हैं जैसे शेखपुरा, जहानाबाद।

यह विशेष रूप से जुलाई-अंत और अगस्त में पहले दो सप्ताह के दौरान का मामला था। पटना जिला लगातार प्रभावित हुआ है, मुख्यतः क्योंकि यह बिहार के सबसे घनी आबादी वाले जिलों में से एक है, जो कि शेओहार के बाद दूसरा जिला है, और सबसे व्यस्त शहरी केंद्रों में से एक है।

जैसे-जैसे बाढ़ का असर कम हुआ, इन जिलों में प्रति लाख आबादी पर साप्ताहिक नए मामलों में कमी आ गई थी। हालांकि, अगस्त के अंत से, कई जिलों में इन संख्याओं में वृद्धि देखी जा सकती है। जबकि पटना और अररिया में प्रति लाख जनसंख्या पर नए साप्ताहिक मामलों में गिरावट देखी जा रही है, 31 अगस्त से 06 सितंबर के सप्ताह तक लखीसराय और गोपालगंज में वृद्धि हुई है। इन नए जिलों में बढ़ते मामलों के रूप में उभर रहे हैं, हो सकता है यह बिहार में महामारी के बढ़ते भौगोलिक प्रसार का संकेत है।

बिहार के मामले में सबसे अधिक आशाजनक मापदंडों में से एक मृत्यु संख्‍या दर (सीएफआर) कम रहा है। पुष्ट मामलों में मौतों की संख्या कम रही है। वास्तव में, जुलाई से बिहार में सीएफआर में गिरावट आई है और प्रति 1,000 पुष्ट मामलों में लगभग पांच ही मौतें हैं, जो कि भारत में प्रति 1,000 पुष्ट मामलों में 17 मौतों के आंकड़े की तुलना में बहुत कम है (चित्र 7 देखें)।

हालांकि यह गंभीर मामलों के बेहतर प्रबंधन को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह मृत्यु के खराब पंजीकरण के कारण भी हो सकता है। यूनिसेफ के सहयोग से पटना विश्वविद्यालय के जनसंख्या अनुसंधान केंद्र (पीआरसी) के एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि बिहार में केवल 37.1 प्रतिशत मौतें ही पंजीकृत होती हैं। अगर हम इसे ध्यान में रखते हैं, तो बिहार के आंकड़े अखिल भारतीय आंकड़ों के समान हैं।

चित्र 7: शीर्ष 10 राज्यों और बिहार में मृत्यु दर (प्रति 1000 पुष्ट मामले पर)

download (5).png

यद्यपि उपरोक्त आंकडो से पता चलता है कि बिहार कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में है, इसकी जांच के लिए जमीन पर अधिक पुष्टि की जानी चाहिए, क्योंकि अनौपचारिक रिपोर्टें डेटा के हेरफेर का संकेत देती हैं, खासकर चुनावी मौसम में। ज़िला चुनाव अधिकारियों द्वारा महामारी के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों को चुनाव ड्यूटी में भर्ती करने, डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों को मतदान ड्यूटी के लिए प्रशिक्षण के लिए आदेश जारी करने के खिलाफ विभिन्न स्वास्थ्य कार्यकर्ता यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं।

कोविड-19 के बढ़ते प्रसार और मौजूदा स्वास्थ्य कर्मियों पर बढ़ते दबाव के बीच, स्वास्थ्य कर्मी एसोसिएशन ने उन स्वीकृत पदों को भरने की मांग की हैं जो खाली पड़े हैं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में, डॉक्टरों के लिए कुल 8,575 स्वीकृत पदों (नियमित और संविदात्मक) के मुक़ाबले केवल 4,352 चिकित्सक (नियमित और संविदात्मक) कार्यरत हैं। और ग्रेड ए नर्सों के लिए, 2018-19 में कुल 5,331 स्वीकृत पदों (नियमित और संविदात्मक) के मुकाबले केवल 2,302 कार्यरत हैं।

प्रति लाख आबादी पर केवल चार डॉक्टरों और दो ग्रेड ए नर्सों के साथ, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंडों के हिसाब से संख्या काफी कम है, जिससे स्वास्थ्य कर्मियों की कमी स्पष्ट नज़र आती है, जो एक महामारी से निपटने में स्थिति को और भी बदतर बना देती है।

इसके अलावा, इन डॉक्टरों का एक बड़ा हिस्सा केवल कुछ जिलों में ही स्थित है, जैसे पटना, गया, दरभंगा और मुजफ्फरपुर। बिहार से ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा निराशाजनक और जीर्ण अवस्था में है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल के अनुसार 2018 में प्रति एक लाख आबादी पर सिर्फ 10 सरकारी अस्पताल बेड (ग्रामीण और शहरी) उपलब्ध थे।

इसके अलावा, पिछले कुछ महीनों में, मध्यान्ह भोजन, नियमित टीकाकरण, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीर झटका लगा है, जिससे आने वाले महीनों में रोग का बोझ कई गुना बढ़ सकता है। आर्थिक गतिविधियों ने पहले से ही जनता के बीच आय पैदा करने के वैकल्पिक उपायों को कम कर दिया हैं और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे मनरेगा को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है।

बिहार में कोविड-19 की वजह से आधिकारिक तौर पर हुई मौतों की संख्या 760 के आंकडे को पार कर गई है और चुनावी बुखार बढ़ रहा है, अब उम्मीद तो यही की जा सकती है कि दोनों राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में किए गए वादों के संदर्भ में और खासकर महामारी के बीच चुनाव होने के बीच सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाएगी।

लेखिका जन स्वास्थ्य अभियान और जन स्वास्थ्य आंदोलन से जुड़ी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19 Spread: Is Bihar Masking Ground Reality?

COVID-19
Pandemic Spread
Bihar Covid Tally
Bihar Assembly Polls
Bihar Migrants
Reverse Migration
Bihar Public Health

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License