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कोविड-19 : आख़िर क्यों सुचारू नहीं हो पाया है WHO का C-TAP मंच
मार्च, 2020 में C-TAP का प्रस्ताव आने के बाद अप्रैल में ACT-A को गठित कर दिया गया।  ACT-A एक सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की साझेदारी वाला उपक्रम है, जो वैक्सीन और कोरोना इलाज़ के शोध, विकास, निर्माण और वितरण के लिए मौजूदा व्यवस्था को बरकरार रखने का हिमायती है।
रिचा चिंतन
03 Jun 2021
कोविड-19 : आख़िर क्यों सुचारू नहीं हो पाया है WHO का C-TAP मंच

एक साल पहले C-TAP (कोविड-19 टेक्नोलॉजी एक्सेस पूल) को गठित किया गया था। लेकिन कोविड-19 से जुड़ी तकनीकों के हस्तांतरण के लिए बनाया गया मंच अब तक सुचारू नहीं हो पाया है। 

इस बीच दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है, एक के पास वैक्सीन है और दूसरे के पास नहीं है। C-TAP मंच के सुचारू ना होने से अमीर और गरीब़ देशों के बीच वैक्सीन असमानता बढ़ी है। ज़्यादातर कम और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन लगवा चुके लोगों का अनुपात, विकसित देशों से काफ़ी कम है। बहरीन (46%), अमेरिका (40%), ब्रिटेन (38%) जैसे अमीर देश अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से का टीकाकरण कर चुके हैं। जबकि पूर्वी अफ्रीका में 30 मई तक कुल आबादी में से सिर्फ़ 0.6% लोगों को ही वैक्सीन लगा है। आखिर ऐसी स्थिति कैसे बनी?

मार्च, 2020 में कोस्टारिका ने C-TAP को बनाने का प्रस्ताव रखा और सभी देशों से कोविड-19 तकनीक तक समतावादी वैश्विक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ज्ञान, बौद्धिक संपदा और आकंड़ों का एक साझा स्त्रोत बनाने की अपील की। इसके बाद मई, 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने C-TAP को गठित कर दिया। 

इस उपक्रम में 42 देश शामिल हुए थे। स्पेन सबसे हाल में शामिल होने वाला देश है। बता दें ऐसे बड़े देश जिनके पास वैक्सीन निर्माण की क्षमता या तकनीक मौजूद थी, जिनके यहां बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनियां हैं, उनमें से कोई भी देश इस उपक्रम में शामिल नहीं हुआ। ना तो अमेरिका, ना ही यूरोपीय संघ, यहां तक कि भारत तक इसमें शामिल नहीं हुआ। 

वैक्सीन का निर्माण करने वाली फार्मा कंपनियां भी इसमें शामिल नहीं हुईं। क्योंकि उन्हें अपने व्यापार के रहस्यों और तकनीक पर एकाधिकार की चिंता थी। बौद्धिक संपदा साझा करने वाले एक और मंच, मेडिसिन पेटेंट पूल (MPP) में भी दवाइयों, आंकड़ों और तकनीक हस्तांतरण से संबंधित कोई भी समझौता नहीं हो पाया। बल्कि फार्मा लॉबी C-TAP को एक "मूर्खतापूर्ण" और "ख़तरनाक" उपक्रम बताकर खारिज़ कर रही है। इसके बजाए फार्मा कंपनियां अपना जोर ACT-A (द एक्सेस टू कोविड-19 टूल्स एक्सलेटर) पर लगा रही हैं, जिसे अप्रैल, 2020 में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, CEPI, GAVI और ऐसे ही दूसरे वैश्विक मंचों की पहल पर गठित किया गया था। यह वह मंच हैं, जो बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा करने के पक्ष में हैं।

कुछ केंद्रों पर ही केंद्रित है निर्माण क्षमता

WTO के डॉयरेक्टर जनरल ओकोंजो-इवीला ने वैक्सीन निर्माण की क्षमता को बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि अफ्रीका के पास वैश्विक उत्पादन क्षमता का सिर्फ़ 0.2% और लैटिन अमेरिका के पास सिर्फ़ 2% हिस्सा ही मौजूद है। लंबे वक़्त में, खासकर तब जब कोविड कई सालों तक रहने वाला है, हमें भौगोलिक तौर पर ज़्यादा विविधता वाले वैश्विक वैक्सीन निर्माण आधार की जरूरत होगी।

WHO वैश्विक टीका बाज़ार रिपोर्ट, 2020 के मुताबिक़, वैक्सीन निर्माण की क्षमता चार बड़े निर्माताओं (ग्लेक्सो स्मिथ क्लिन, फाइजर, मर्क औऱ सनोफी) के पास सीमित है, इनका वैश्विक वैक्सीन मूल्य पर 90 फ़ीसदी कब्ज़ा है। वहीं पांच कंपनियां (सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, जीएसके, सनोफी, भारत बॉयोटेक और हाफकाइन) दुनिया की 60% वैक्सीन बना रही हैं। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान चीन एक अहम वैश्विक खिलाड़ी के तौर पर उभरा है। लेकिन उसकी स्थानीय कंपनियों ने अपने स्थानीय बाज़ार पर ही प्रभुत्व जमा रखा है, वैश्विक बाज़ार में उनकी अहम हिस्सेदारी नहीं है।

उत्पादन क्षमताओं के कुछ जगहों तक ही सीमित होने से, जैसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट और मोदी सरकार की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और स्थानीय क्षमताओं के उपयोग में नाकामी ने ना केवल भारत में वैक्सीन आपूर्ति की गणना गलत की है, बल्कि इसका प्रभाव दूसरे देशों पर भी पड़ा है। अकेले पड़ चुके ज़्यादातर गरीब़ देशों को अब चीन और रूस की तरफ अपनी वैक्सीन आपूर्ति के लिए देखना पड़ रहा है।

C-TAP के एक साल पूरा होने पर मीडिया ब्रीफिंग में WHO के सदस्य देशों ने एक बार फिर वैक्सीन निर्माण को तेज करने के लिए तकनीक हस्तांतरण पर जोर की बात दोहराई। इंडोनेशिया के स्वास्थ्यमंत्री ने कहा कि उनके देश में 6 निर्माताओं के पास सालाना 55 करोड़ डोज़ बनाने की क्षमता मौजूद है। बांग्लादेश में इंसेप्टा फार्मास्यूटिकल्स के प्रमुख अब्दुल मुक्तादिर ने भी तकनीक हस्तांतरण की बात दोहराई और कहा कि बांग्लादेश जैसे देशों में उत्पादन की बहुत ज़्यादा संभावनाएं हैं, जिन्हें छुआ तक नहीं गया है। 

प्रेस ब्रीफिंग में WHO में ‘दवाइयों, वैक्सीन और फार्मास्यूटिकल तक पहुंच’ की सहायक महानिदेशक मेरिएनजेला सिमाओ ने माना कि विकासशील देशों में उत्पादन की बहुत संभावनाएं बाकी हैं। उन्होंने बताया कि इन देशों ने तकनीक हासिल करने के लिए दिलचस्पी दिखाई है। विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) में स्थानीय उत्पादन प्रस्ताव पर चर्चा में इस प्रस्ताव को बहुत समर्थन भी मिल रहा है, ये वक़्त अब C-TAP की आपात जरूरत को समझने का है। उन्होंने बताया कि C-TAP दो वैक्सीन निर्माताओं के साथ बात कर रहा है, जो तकनीक हस्तांतरण के इच्छुक हैं।

हेल्थ एक्शन इंटरनेशनल (HAI) ने एक वक्तव्य में कहा, "वैश्विक आपदा को रोकने में C-TAP की वृहद संभावनाओं को समझा नहीं गया। इसकी बड़ी वज़ह फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री द्वारा साथ आने में आनाकानी और वैश्विक जनस्वास्थ्य के ऊपर इन कंपनियों द्वारा फौरी मुनाफ़े को तरजीह देना रहा है।"

क्या ACT-A ने C-TAP को दबा दिया?

मार्च, 2020 में कोस्टारिका द्वारा C-TAP मंच के गठन के प्रस्ताव के तुरंत बाद ही अप्रैल में ACT-A का गठन कर दिया गया। ACT-A एक पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का उपक्रम है, जो इलाज़ व वैक्सीन के शोध, निर्माण और वितरण में मौजूदा व्यवस्था का हिमायती है। पिछले एक साल का अनुभव बताता है कि ACT-A ने बड़े आराम से C-TAP को दबा दिया है।

ACT-A का विचार इस तर्क के साथ काम करता है कि बौद्धिक संपदा अधिकारों को सुरक्षित करना चाहिए, भले ही महामारी क्यों ना चल रही हो और यह अधिकार वैक्सीन की वैश्विक मांग और समतावादी पहुंच में बाधा नहीं बनते। ACT-A ने अपने वैक्सीन संस्थान कोवैक्स के साथ मिलकर कम और मध्यम आय वाले देशों में 20% आबादी के लिए वैक्सीन निर्माण और वैक्सीन वितरण का लक्ष्य बनाया था। इस लक्ष्य तक पहुंचने के बाद बाकी का क्षेत्र बाज़ार के लिए खोला जाना था। लेकिन ACT-A के निर्माण के आसपास हुए तमाम हो-हल्ले के बावजूद अब भी ज़्यादातर गरीब़ और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन पहुंचाया जाना बाकी है।

बड़ी फार्मा कंपनियों ने भले ही तमाम बड़े दावे करते हुए कहा हो कि वे ज़्यादा मात्रा में वैक्सीन की समान मात्रा में आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन इस लॉबी ने लगातार C-TAP जैसे उपक्रम को नकारना जारी रखा। लॉबी ने कहा कि आपूर्ति में आने वाली बाधा के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार जिम्मेदार नहीं हैं। एक वक्तव्य में इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर फार्मास्यूटिकल मैन्यूफैकचर्रस एंड एसोसिएशन (IFMPA) ने कहा कि वे C-TAP की कुछ चीजों से असहमत हैं, क्योंकि "यह मंच मानता है कि जिन बौद्धिक संपदा अधिकारों से महामारी के दौर में छूट नहीं दी गई है या जिनका लाइसेंस नहीं दिया गया है, वे वैश्विक शोध, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के साझा प्रयासों या कोविड-19 उत्पादों तक पहुंच के रास्ते में रुकावट हैं।"

कम आय वाले देशों के निर्माताओं के साथ IPR को साझा ना करने के पीछे की वज़ह एकाधिकार बनाए रखने की प्रवृत्ति है। ACT-A ने एक पर्दे का काम किया है, जिसके पीछे फार्मा लॉबी अपने एकाधिकार का खेल जारी रख सकती है। कोवैक्स प्लेटफॉर्म ने भी सिर्फ़ सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया जैसी कुछ कंपनियों तक ही अपना ध्यान केंद्रित रखा। इस तरह ACT-A वैक्सीन आपूर्ति बढ़ाने और देशों के बीच जारी वैक्सीन असमता को कम करने में नाकाम रहा है। यह मंच सफलता के साथ C-TAP को बर्बाद करने में कामयाब रहा है। नतीज़तन वैक्सीन निर्माण बेहद छोटे समूहों तक सीमित हो गया। 

ACT-A के भीतर किया गया ज़्यादातर निवेश सार्वजनिक है। कुल 15 बिलियन डॉलर के निवेश में से 13.1 बिलियन डॉलर का योगदान कई देशों की सरकारों ने दिया है, वहीं BMGF, वेलकम ट्रस्ट की तरह के निजी दान देने वालों ने 0.8 बिलियन डॉलर का योगदान किया है। 1.1 बिलियन डॉलर, ग्लोबल फंड और GAVI जैसे बहुपक्षीय मंचों से आए हैं।

अमीर देशों में है उत्पादन का संकेंद्रण

एस्ट्राजेनेका के सीईओ पास्कल सोरियोट की एक टिप्पणी पर बहुत आलोचना हुई थी। उन्होंने इस टिप्पणी में कहा था कि एस्ट्राजेनेका इस तरह की तकनीक का हस्तांतरण WHO के साथ नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास तकनीक हस्तांतरण में सहायता देने वाले इंजीनियर नहीं हैं। उन्होंने कहा, “वैक्सीन निर्माण बढ़ाने का एकमात्र तरीका मौजूदा उत्पादन केंद्रों में ही उत्पादन को बढ़ाना है, ना कि ज़्यादा संख्या में उत्पादन केंद्र खोलना...”

अपने एकाधिकार को बचाए रखने के लिए कम-मध्यम आय वाले देशों को तकनीक के हस्तांतरण से इंकार कर फार्मा कंपनियों ने इन देशों में मौजूद उत्पादन की क्षमताओं को पूरी तरह नकार दिया।

बड़े वैक्सीन उत्पादकों और निर्माताओं के बीच हुए समझौतों पर नज़र डालने से पता चलता है कि मॉडर्ना, फाइजर और जॉनसन जैसी बड़ी कंपनियों ने ठेके पर उत्पादन करने वाले CDMO (कांट्रेक्ट डिवेल्पमेंट एंड मैन्यूफैक्चरिंग ऑर्गेनाइज़ेशन) संस्थानों के साथ करार किया है, जिसमें से कुछ ही तकनीक हस्तांतरण वाले समझौते हैं। CDMO कंपनियां, वे संस्थान होते हैं, जो फार्मा कंपनियों द्वारा दवा विकसित करने से लेकर दवा निर्माण तक की सेवाएं अनुबंध पर दे सकती हैं। इन कंपनियों के ज़रिए, फार्मा कंपनियां अपने व्यापार के कुछ हिस्से को बाहर भेजकर उत्पादन बढ़वा सकती हैं। इन तीनों फार्मा कंपनियों ने इस तरह के समझौते जिन संस्थानों के साथ किए हैं, वे ज़्यादातर अमीर देशों में ही स्थित हैं। इनमें से सिर्फ़ कुछ ही कम आय वाले देशों में हैं, जैसे भारत में स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया।

दूसरी तरफ गैमेल्या, बीजिंग इंस्टीट्यूट और साइनोवैक दूसरे देशों में ज़्यादातर तकनीक हस्तांतरण समझौते कर रहे हैं, जिसमें गरीब़ और मध्यम आय वाले देशों के निर्माता भी शामिल हैं।

यह पूरा घटनाक्रम कंपनियों द्वारा किए जाने वाले समझौतों की विषमता को स्पष्ट दिखाता है। यह समझौते ज़्यादातर विकसित दुनिया के निर्माताओं के साथ किए जा रहे हैं, वह भी अनुबंध के तहत उत्पादन करने वाले CDMO संस्थानों के साथ, ना कि इन समझौतों में तकनीक हस्तांतरित की जा रही है।

वैक्सीन तक जल्द और समतावादी पहुंच बनाने की दिशा में वैश्विक कदम उठाए जाने की जरूरत है, जिसके मूल में मुनाफ़े की मंशा ना हो। फार्मा इंडस्ट्री अपनी स्थिति साफ़ कर चुकी है कि वो मुनाफ़े के पक्ष में है। अब यह राष्ट्रों और WHO जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करता है कि वे वैक्सीन वितरण में वैश्विक समता सुनिश्चित करें।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19: Why is WHO’s Tech-Sharing Platform C-TAP a Non-Starter?

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