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लॉकडाउन : महाराष्ट्र में ट्रांसजेंडर कर रहे हैं बिना आय और राशन के संघर्ष
पुणे की एक ट्रांसजेंडर कहती हैं, “मेरे दो चेले एचआईवी पॉजिटिव हैं और उन्हें ससून जनरल हॉस्पिटल से एंटीरेट्रोवाइरल दवा लेनी होती है। लेकिन, वे वहां नहीं जा पा रहे हैं।”
वर्षा तोरगाल्कर
15 Apr 2020
लॉकडाउन

पुणे: अपनी आय के स्रोत बंद हो जाने के बाद पूरे महाराष्ट्र के ट्रांसजेंडर, COVID -19 लॉकडाउन में अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से कई के पास राशन कार्ड तक नहीं हैं और इसलिए, वे अनुदानित दरों पर अनाज हासिल करने की हालत में नहीं हैं।

कोल्हापुर के एक ट्रांसजेंडर,तेजस्विनी कहती है, "मेरे नौ चेले (प्रोटेक्ट्स) हैं, जो ट्रैफ़िक सिग्नल, रेलवे स्टेशन, मंदिरों में भीख मांगते हैं और लोगों के घरों में जाते हैं। वे सेक्स वर्क भी करते हैं। इससे पहले, हमारी इतनी कमाई हो जाती थी,जिससे कि एक दिन में दो दो बार का खाना चल जाता था और बीमारी होने की हालत में अपनी सेहत का ख़्याल भी रख लेते थे। लेकिन, हर किसी की तरह, हम भी मांगने के लिए बाहर नहीं जा सकते हैं या सेक्स वर्क नहीं कर सकते हैं। हमारे बैंक खातों में पैसे भी नहीं हैं।”

वह कहती है, "इस इलाक़े में 40 ट्रांसजेंडर हैं और सिर्फ़ 14 को मुफ़्त राशन मिला है। पीडीएस दुकानदार बाक़ियों से अगले हफ़्ते आने के लिए कहते रहते हैं। इसके अलावा, हमें सब्ज़ियों और किराने जैसी अन्य ज़रूरी चीज़ों को ख़रीदने के लिए भी पैसे चाहिए। हमने ज़िला कलेक्टर को एक चिट्ठी लिखी है, ताकि हमारी मदद की जा सके और हम अब भी उनके जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं।”

2011 की जनगणना अनुसार, महाराष्ट्र में 67.57% साक्षरता दर वाले 40,000 से ज़्यादा ट्रांसजेंडर हैं। हालांकि, 2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले में तीसरे जेंडर को मान्यता देने के बाद कई और लोगों ने ख़ुद को ट्रांसजेंडर के रूप में चिह्नित किया है।

तमिलनाडु की एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, ग्रेस भानु ने बताया कि दस्तावेज़ों की कमी के चलते ज़्यादातर ट्रांसजेंडरों के पास राशन कार्ड नहीं हैं। वह बताती है, “हमें पीडीएस प्रणाली से भोजन नहीं मिल सकता है। कई संगठन हमें भोजन के पैकेट दिलवाते हैं, लेकिन यह काफ़ी नहीं है। सरकार को हर उस व्यक्ति को राशन उपलब्ध कराना चाहिए, जिसके पास किसी भी तरह का आईडी कार्ड है।”

मुख्य सचिव (खाद्य एनं नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण), महेश पाठक ने बताता कि सरकार पीडीएस के ज़रिये अनाज उपलब्ध करा रही है। वह बताते हैं, “इसके अलावे, कई एनजीओ, सामाजिक संगठन भी खाना उपलब्ध करा रहे हैं। लोग इसका फ़ायदा उठाने के लिए अपने स्थानीय कलेक्टर कार्यालयों से भी संपर्क कर सकते हैं।”

यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार, 2.35 लाख ट्रांसजेंडर,एचआईवी पॉजिटिव हैं; कई दूसरों को बीमारियां हैं। पैसे की कमी और लॉकडाउन के चलते वे अपने इलाज को जारी रख पाने की हालत में नहीं हैं।

पुणे के एक 55 वर्षीय ट्रांसजेंडर,संजना जाधव ज़िंदा रहने के लिए भीख मांगती है, हाल ही में उसके घुटने की सर्जरी हुई है और चलने में परेशानी होती है। उसके पास जो कुछ भी बचे-खुचे पैसे थे,वह ख़त्म हो गये हैं,लिहाजा मदद मांगने के लिए उसे एक एनजीओ से संपर्क करना पड़ा है। वह बताती है, “मेरी हाल ही में एक सर्जरी हुई थी,इसलिए मुझे दवाइयां ख़रीदने की ज़रूरत है। लेकिन, मुझे नहीं पता कि मैं कितने समय तक दोस्तों या संगठनों की मदद ले सकती हूं ?”

पुणे के हडपसर इलाके में रहने वाली संजना हिंदू परंपरा के मुताबिक़ रोज़ाना भीख मांगती थी और हर हफ़्ते 2000-4000 रुपये कमा लेती थी। वह बताती है कि वह ख़ुद पर निर्भर थी, क्योंकि उसकी आय पर्याप्त हो जाती थी। उसकी ही तरह, 10 से ज़्यादा ट्रांसजेंडर,जो हड़पसर के छोटे क़स्बे में एक ही घर में रहते हैं या पुणे के रेड लाइट एरिया,बुधवार पेठ में सेक्स वर्क करते हैं।

वह बताती है, “मेरे दो बच्चे एचआईवी पॉजिटिव हैं और उन्हें ससून जनरल हॉस्पिटल से एंटीरेट्रोवायरल की दवा लेनी होती है, लेकिन,इस समय वे वहां नहीं जा पा रहे हैं। या तो पुलिस उन्हें अनुमति नहीं देती है या आने-जाने की सुविधा उपलब्ध नहीं है।”

इस मामले की छान-बीन के दौरान एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमने इस प्रक्रिया को ऑनलाइन और कॉल के ज़रिये उपलब्ध करा दिया है। हम शिकायत की वास्तविकता के आधार पर शहर के भीतर यात्रा की अनुमति दे देते हैं और इस मामले में हम आवेदक के जेंडर का ख़्याल नहीं करते। चूंकि इसके लिए जो अनुरोध आते हैं,उसकी संख्या इतनी बड़ी है कि कुछ ही अनुरोधों का जवाब दिया जा रहा है।”

इस नोवल कोरोनावायरस संकट के बीच, सामाजिक न्याय विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कोई विशेष उपाय नहीं किया है। 

एक एनजीओ चलाने वाली एक दूसरी ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, चंदानी गोर बताती है, “जैसा कि हम सभी जानते हैं, लगभग सभी ट्रांसजेंडर को अपने माता-पिता के घर छोड़ने पड़ते हैं, क्योंकि वे उनकी इस विशिष्टता को मंज़ूर नहीं कर पाते हैं। उन्हें मुश्किल से उचित औपचारिक, अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरियां मिल पाती हैं। चूंकि उन्हें मुख्यधारा के समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है, ऐसे में वे भीख मांगने या सेक्स कार्य करने के लिए मजबूर होते हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि वे अपने घर ख़रीदने और किराये के मकानों में रहने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं कर पाते हैं।”

वह कहती है, 'कई घर मालिक ट्रांसजेंडर किरायेदारों को मकान ख़ाली करने के लिए कह रहे हैं। इसकी एक वजह तो यही है कि किराया भुगतान करने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। लेकिन, कई लोगों को लगता है कि हम अपनी जीवन शैली के कारण COVID -19 से संक्रमित हो सकते हैं और इसलिए भी वे चाहते हैं कि हम उनका छोड़कर कहीं और चले जायें।”

2019 में प्रकाशित इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की रिपोर्ट में घर के मालिकों द्वारा ट्रांसजेंडर किरायेदारों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का भी उल्लेख है और भारत सरकार से इस मुद्दे का समाधान करने के लिए कहा गया है।

एक दूसरे ट्रांसजेंडर ने बताता कि सरकार को पिछले साल ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) बिल पास होने के बाद उन्हें आईडी कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड जारी करने चाहिए थे। “इससे हमें भी 500 रुपये और मुफ़्त राशन मिल पाते।”

वह कहती है, "केरल और तमिलनाडु की तरह, महाराष्ट्र को भी एक ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना करनी चाहिए थी, ताकि हमारे पास भी अपने मुद्दों से अवगत कराने के लिए एक मंच हो। वर्ना तो हमें सिर्फ़ एक विभाग से दूसरे विभाग का चक्कर लगाना पड़ता रहेगा।"

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