NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
भाग 2 - क्या ख़त्म हो रहा है कोयले का प्रभुत्व : पर्यावरण संकट और काला हीरा
कोरोना महामारी से जितना लंबा लॉकडाउन चलेगा, नवीकरणीय ऊर्जा का भविष्य उतना ही चौपट होता जाएगा। ऊपर से 2020 में इस क्षेत्र में मिलने वाले प्रोत्साहन भी बंद हो रहे हैं।
अदिति रॉय घटक
24 May 2020
 कोयले का प्रभुत्व
प्रतीकात्मक तस्वीर

पांच हिस्सों वाली सीरीज़ का यह दूसरा भाग है, जिसमें हम जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ़ बढ़ने की भारत और वैश्विक प्रतिबद्धताओं का परीक्षण कर रहे हैं। आखिर क्यों कोयले का बड़े पैमाने पर भारत में इस्तेमाल मौजूदा दौर और भविष्य में जारी रहेगा? कैसे जीवाश्म ईंधन को नवीकरणीय ऊर्जा क्षमताओं द्वारा बदलना भारत में संकटकारी होगा?

फैक्ट्रियों-ऊर्जा संयंत्रों से कम उत्सर्जन और विमान उद्योग के ठप होने से लोगों को साफ हवा का स्वाद महसूस हो चुका है। 11 मार्च, 2020 को ब्लूमबर्ग इंटेलीजेंस द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान चीन में 1.5 बिलियन टन कॉर्बन डॉइऑक्साइड का कम उत्सर्जन हुआ है। इस दौरान वैश्विक उड़ानों से होने वाले उत्सर्जन में 11 से 19 फ़ीसदी की कमी आई। इसलिए पूरी दुनिया में नवीकरणीय ऊर्जा पर गंभीर चिंतन किया जा रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की मौजूदा स्थिति से भी ऐसा ही लगता है।  

वरिष्ठ IEA विश्लेषक, नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार टिप्पणीकार 'हेयमी बहर' की मानें तो इस दौरान लोगों ने वास्तविकता को महसूस भी किया है। 4 अप्रैल, 2020 को अपने विश्लेषण में उन्होंने साफ कहा, ''आज दुनिया एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से जूझ रही है। आर्थिक झटके नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में भी महसूस किए गए हैं, इससे क्षेत्र का विकास पटरी से उतर सकता है।''

यह विकास कितना पटरी से उतरता है, यह सरकार की नीतियों पर भी निर्भर करेगा। इसलिए फरवरी से मई के बीच जो फ़ैसले लिए जाएंगे, उनके गंभीर परिणाम होंगे। कोरोना लॉकडाउन जितना लंबा चलेगा, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का भविष्य उतना ही खराब होगा। यह संकट इस क्षेत्र के लिए जरूरी आपूर्ति में समस्याओं के साथ शुरू होगा, इससे भारत जैसे देशों में, जहां नवीकरणीय ऊर्जा आज सरपट दौड़ने की कोशिश कर रही है, वहां इसकी गति धीमी हो जाएगी। इसके प्रोजेक्ट में देरी भी होगी।

नवीकरणीय ऊर्जा में प्रोत्साहन

सबसे ज़्यादा चिंता की बात यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिए मिलने वाले प्रोत्साहन 2020 में ख़त्म हो रहे हैं। चीन और अमेरिका में निर्माताओं को दिसंबर के खत्म होने से पहले तक पवन और सौर फोटोवोल्टिक (PV) प्रोजेक्ट को लगाना है, ताकि वे प्रोत्साहन के प्रावधानों का लाभ ले सकें।

यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों पर पहुंचने के हिसाब से 2020 एक मील का पत्थर साबित हुआ। अलग-अलग देश इन सवालों से कैसे निपटते हैं, इसी बात पर नवीकरणीय ऊर्जा विकास निर्भर होगा। जबकि अब तक यह क्षेत्र अपने पक्ष में  झुकी नीतियों और प्रोत्साहन से चल रहा था।

लॉकडाउन के चलते चीन को सौर ऊर्जा पैनलों की 70 फ़ीसदी वैश्विक आपूर्ति करनी पड़ रही है। यह क्षेत्र 2020 जनवरी से छटपटा रहा है। दक्षिणपूर्व एशिया में काम करने वाली चीनी कंपनियां, जिनसे 10-15 फ़ीसदी आपूर्ति होती है, उन पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। अगले दो महीनों में दक्षिणपूर्व एशिया, भारत और अमेरिका में उत्पादन कारखानों पर बहुत बुरा असर पड़ा। चीन में अब भी अपनी क्षमता के हिसाब से उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

पवन ऊर्जा के उपकरणों की आपूर्ति की निर्भरता चीन पर उतनी नहीं है। पवन चक्कियों का मुख्य केंद्र यूरोप है। फिर भी चीन में लॉकडाउन होने से इस पर प्रभाव पड़ा है। वहीं इटली और स्पेन में हालात जैसे ही भयावह हुए, पवन ऊर्जा के उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला ध्वस्त हो गई। भारतीय पवन चक्की और सोलर फोटोवोल्टिक निर्माताओं की दुकानों पर अप्रैल के मध्य तक ताला पड़ा रहा। क्योंकि उन्हें अपने सामान के आपूर्तिकर्ताओं से देरी की चेतावनी मिल रही थी। ऐसी घटनाएं नवीकरणीय ऊर्जा प्रोजेक्ट के समय पर तैयार होने के लिए सही नहीं होतीं।

ऊपर से कमर्चारी भी अपनी काम की जगहों पर नहीं जा पा रहे थे। सोशल डिस्टेंसिंग जारी थी। जैसा हेयमी बहार कहती हैं: ''नवीकरणीय प्रोजेक्ट में कई बैठकें करनी होती हैं, जिनमें सरकारी और सामुदायिक स्तर पर लोग आमने-सामने बैठते हैं। प्रोजेक्ट के विकास क्रम में, जिसमें ज़मीन अधिग्रहण की अनुमति भी शामिल है, ऐसा करने के दौरान बड़े पैमाने पर इंसान के एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। चूंकि पूरी दुनिया में कई ऊर्जा एजेंसियां और सरकारी दफ़्तर बंद पड़े हैं, इसलिए अनुमति देने की प्रक्रिया में देरी होगी, ऐसा तब तक होगा, जब तक एक अच्छे ढंग से प्रबंधित ऑनलाइन ढांचा विकसित नहीं कर लिया जाता।''

सामुदायिक जुड़ाव

नवीकरणीय ऊर्जा कोई मिल में चलने वाला व्यापार नहीं है। इसमें सामुदायिक संबंधों की जरूरत होती है। लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग से इस जुड़ाव पर गंभीर असर पड़ा है। अब इसमें प्रशासनिक और सामाजिक दोनों तरह की देरी होंगी। इसका ''सीधा असर प्रोजेक्ट पर पड़ेगा, जिन्हें 2020 या 2021 में पूरा होना था।''

2019 में 20 फ़ीसदी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता, व्यक्तिगत लोगों या अपने घरों-व्यापारिक प्रतिष्ठानों की छतों पर PV पैनल लगाए हुए छोटे और मध्यम आकार के उद्ममियों के पास थी। इन लोगों के पास कोरोना से हो रही देरी से जूझने के लिए बहुत ताकत नहीं है। इन ''वितरित सोलर PV'' से 2019 के कुल वैश्विक सोलर फोटोवोल्टिक तैनाती का चालीस फ़ीसदी हिस्सा बना था।

लेकिन अब हालात सही नहीं हैं। बचत पर बहुत ज़्यादा दबाव है और निवेश भी खतरे वाले हो चुके हैं, क्योंकि वितरित सोलर PV लॉकडाउन के चलते रुक चुके हैं। सामान्य परिवार मौजूदा हालातों में सौर ऊर्जा में निवेश नहीं कर सकते। साफ है कि सौर PV को कितना भी प्रोत्साहन मिले, इन्हें नुकसान तो होगा ही।

यहां तक कि पवन ऊर्जा क्षेत्र भी रुक चुका है। भारत में सिर्फ़ 10 गीगावाट के पवन उपकरण निर्माण की क्षमता है। करीब 85 फ़ीसदी सोलर सेल और दूसरी जरूरतों का आयात किया जाता है। घरेलू उत्पादन क्षमता को प्रोत्साहन देने के लिए नई दिल्ली ने सौर सेल और मॉड्यूल के आयात पर कस्टम ड्यूटी लगाई थी।

ऊर्जा शोध और सलाहकारी कंपनी वुड मैकेंजी कहती है, भारत में 2 गीगावॉट से ज़्यादा के सौर और पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट लॉकडाउन की स्थिति में बंद रहेंगे। कंपनी ने 2020 में सौर PV आउटलुक को 24.8 फ़ीसदी कम भी कर दिया है। क्योंकि यह उद्योग चीन से आयातित मॉड्यूल्स पर निर्भर करता है।

वुड मैकेंजी का यह भी मानना है कि आपूर्ति और श्रम में आई बाधाओं से 2020 में भारत के लक्षित 3GW में से 400 मेगावॉट में देर हो जाएगी। यह 2020 में लक्षित सीमा से 11 फ़ीसदी की कमी है। कुलमिलाकर इस साल 21.6 फ़ीसदी की गिरावट आई है।

वुड मैकेंजी के प्रमुख विश्लेषक रॉबर्ट ल्यू कहते हैं: ''लॉकडाउन के आने का वक़्त बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि पहली तिमाही में विंड प्रोजेक्ट को लगाया जाता है। पर मौजूदा आपूर्ति और श्रम बाधाओं से 2020 में इस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।''

वुड मैकेंजी से जुड़े वरिष्ठ विश्लेषक रिषभ श्रेष्ठ कहते हैं कि पहली तिमाही में सबसे बुरा असर पड़ने वाला है। अगर सालाना तिमाहियों की तुलना करें तो इसमें 60 फ़ीसदी की कमी आई है।  इसका मतलब है कि 2019 की पहली तिमाही में 3GW से घटकर आंकड़ा 1.2GW पर आ गया है। इस पर कोई साफगोई नहीं है कि अगली तिमाही में क्या होने वाला है। वुड मैकेंजी ने अपने साल भर के अनुमान में भी कमी कर ली है। पहले 8,9 गीगावॉट की क्षमता वाले सोलर PV इंस्टालेशन का अनुमान लगाया गया था, लेकिन इसमें 24.8 फ़ीसदी की कटौती कर ली गई है।

गुजरात नवीकरणीय ऊर्जा के निवेश में बड़ा केंद्र बनकर उभरा था। लेकिन वहां भी मदद नहीं हो पाई, गुजरात कोरोना से भारत के सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है। वुड मैकेंजी ध्यान दिलाते हैं कि 2019 में जो 1.4GW की नई पवन ऊर्जा जोड़ी गई थी, उसका 58 फ़ीसदी गुजरात से आया था।  

सौर ऊर्जा के मामले में कर्नाटक (2GW), तमिलनाडु (1.6 GW) और राजस्थान (1.7GW) शुरूआती तीन सबसे बड़े उत्पादक हैं। 2019 में कुल सौर PV इंस्टालेशन में इनकी हिस्सेदारी 55 फ़ीसदी थी। तीनों राज्य कोरोना महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित दस राज्यों में शामिल हैं।

ऑप्टिमिस्टिक इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी इकनॉमिक्स एंड फायनेंशियल एनालिसिस के मुताबिक़, ''भारत में नवीकरणीय क्षेत्र में कीमतों की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए कोई भी कर्ज़ देने वाला किसी बड़े उत्सर्जक, भयावह स्तर तक प्रदूषण फैलाने वाले और कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्र के लिए नवीकरणीय संसाधनों की कीमत पर पैसा क्यों देगा? हालांकि सरकार द्वारा कोयले के हालिया व्यवसायीकरण से इसकी पर्याप्त वजहें पैदा हो गई हैं।''

सरकार द्वारा हाल कोयले के व्यवसायीकरण के बाद इसकी पर्याप्त वजह हैं।

अच्छे संकेत

वैश्विक स्तर पर अमेरिका और यूरोप के पास ऐसे संसाधन उपलब्ध हैं, जिनका बड़े पैमाने पर उपयोग कर नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को मदद की जा सकती है। इसके कुछ उदाहरण भी मौजूद हैं।

जैसे-

  • ब्रिटेन ने एक बिलियन पौंड इलेक्ट्रिक व्हीकल चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर (550 मिलियन पौंड) और इलेक्ट्रिक व्हीकल की खरीद में मदद के लिए (532 मिलियन पौंड) खर्च किए थे।
  • अमेरिका में 11 राज्यों ने वोल्कसवैगन समझौता निधि का इस्तेमाल अपने बेड़े के इलेक्ट्रीफिकेशन और चार्जिंग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए किया।
  • 2020 की जनवरी में न्यूयॉर्क पब्लिक सर्विस कमीशन ने 454 मिलियन डॉलर 2025 तक निवेशकों के स्वामित्व वाले 6 कारखानों में हीट पंप लगाने के लिए दिए।
  • पश्चिमी तट पर कैलीफोर्निया पब्लिक यूटिलिटीज़ कमीशन ने 200 मिलियन डॉलर दो नागरिक निवास आधारित दो बिल्डिंगों के डिकॉर्बोनाइज़ेशन पर खर्च करने का प्रस्ताव दिया था।

क्या इन सब चीजों से नवीकरणीय उर्जा क्षमताओं को वो प्रोत्साहन मिलेगा, जिसकी उसे दरकार है? एशिया और पश्चिमी देशों की स्थिति बिलकुल उलटी है। पश्चिम में जहां आशा की किरण नज़र आती है, वहीं एशिया में बहुत संभावनाएं दिखाई नहीं देतीं। आर्मस्ट्रांग एसेट मैनेजमेंट के मालिक और मैनेजिंग पार्टनर एंड्रयू एफ्लेक कहते हैं,''कोरोना के बाद के दौर में नवीकरणीय ऊर्जा के साथ वित्तीय तनाव की स्थितियां बनेंगी, ऐसे में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नीतिनिर्माता पर्यावरणीय प्रभावों को किनारे रखकर चीन द्वारा बनाए और वित्तपोषित कोयला ऊर्जा संयंत्रों की ओर मुड़ सकते हैं।''

वुड मैकेंजी कहते हैं कि एक सतत् पोषित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए सिर्फ निवेश की ही मांग में कमी नहीं आ रही है, बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा की मांग भी कम हो रही है। कम से कम हाल के वक़्त के लिए कम कीमत वाले जीवाश्म ईंधन समाधान बन रहे हैं।  अब उद्योगों के सामने एक प्रतिस्पर्धी थोक बाज़ार है, जहां उत्पादन की बढ़ती मांग के लिए नई क्षमताओं बनाने की बहुत ज़्यादा जरूरत नहीं है।

graph_5.JPG

कोयले का प्रोजेक्ट

MIT के अध्ययन में भी कोयले के भविष्य को लेकर एक उम्दा तर्क आता है। यह अध्ययन बताता है कि कोयला ऊर्जा भविष्य में अपना अहम किरदार निभाएगा।

कोयले के इस्तेमाल वाला SCPC (सुपर क्रिटिकल पल्वेराइज़्ड कोल कंबशन) प्लांट, किसी नैचुरल गैस कंबाइंड साइकिल (NGCC) यूनिट से दोगुना महंगा पड़ता है, फिर भी कोयला बिजली उत्पादन के लिए सबसे कम कीमत वाला जीवाश्म ईंधन स्त्रोत् साबित होता है।

दूसरी बात, तेल और प्राकृतिक गैसे के उलट, कोयले के भंडार पूरी दुनिया में फैले हैं। कोयले तक पहुंच की सहूलियत और इसके लिए लगने वाली साधारण तकनीक कोयले को आकर्षक बनाती है। बाकी सब मायने नहीं रखता।

लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो 1980 के दशक से कोयले पर लिख रही हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Questioning the Death of Coal–II: COVID Blackhole and Renewable Energy Future

भाग 1 - क्या ख़त्म हो रहा है कोयले का प्रभुत्व : पर्यावरण संकट और काला हीरा

COVID 19
Coronavirus
COVID
Coal Projects
Privatisation of Coal

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License