सरकार अभी भी टाल-मटोल की मुद्रा में है, जबकि किसानों ने साफ़ कर दिया है कि सबसे पहले बात होगी तो तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की होगी। उसके बात ही दूसरी कोई बात संभव है।
केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच बुधवार 30 दिसंबर को दोपहर 2 बजे दिल्ली के विज्ञान भवन में बातचीत होगी। लेकिन अभी भी नहीं लगता कि कोई हल निकलेगा। केंद्र और किसान संगठनों के बीच अब तक पांच दौर की औपचारिक और एक दौर की गृहमंत्री अमित शाह के साथ अनौपचारिक वार्ता हो चुकी है लेकिन सभी बातचीत बेनतीजा रही हैं। किसानों का कहना है कि सरकार समस्या के समाधान के प्रति गंभीर नहीं है। कृषि मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक किसी ने भी अभी तक किसान आंदोलन या उनकी मांगों के प्रति कोई नरम संकेत नहीं दिए हैं। सभी नेता-मंत्री अपने बयानों में न केवल किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं, बल्कि बार-बार यही कह रहे हैं कि किसान भ्रमित हैं।
लेकिन किसान बिल्कुल साफ हैं। उन्होंने बातचीत का एक चार सूत्रीय एजेंडा सरकार के सामने रख दिया था। जिसमें पहले नंबर पर बातचीत के लिए तीन केंद्रीय कानूनों को निरस्त या रद्द करने के लिए अपनाए जानी वाली क्रिया विधि पर वार्ता की शर्त निर्धारित की गई है। यानी पहले ये तीनों क़ानून वापस लिए जाएं उसके बाद कोई दूसरी बात होगी।