मोदी जी ने अपनी सत्ता के बल पर पहले से ही परेशान हाल किसान-मज़दूर को कॉरपोरेट की गाड़ी के दो बैल बना दिया है। इससे ज़्यादा ‘अच्छे दिन’ की कामना शायद किसी ने नहीं की होगी।
किसानों के ‘कल्याण’ के लिए कृषि से जुड़े तीन विधेयक पास कराने के बाद बाद मोदी जी ने मज़दूरों के कल्याण के लिए भी तीन श्रम विधेयक संसद में पास करा दिए हैं। ये अलग बात है कि न तो किसानों ने मोदी जी से ये नए कानून मांगे थे और न मज़दूरों ने। किसानों तो बरसों बरस से स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अपनी उपज का लागत से डेढ़ गुना मूल्य मांग रहे थे और अब केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पूरे देश में सभी के लिए अनिवार्य करने की मांग कर रहे हैं। इसी तरह संगठित और असंगठित क्षेत्र के मज़दूर भी नियमित किए जाने, काम की शर्तें और वेतन विसंगतियां दूर किए जाने इत्यादि की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन नहीं, मोदी जी समझते हैं कि ये सब मांगे बेकार की मांगें हैं। उनके लिए तो किसान-मज़दूर नादान हैं, वे क्या जानें उन्हें क्या मांगना चाहिए और क्या नहीं, उनके मुताबिक तो उनका असली भला उन्हें कॉरपोरेट के हाथों पूरी तरह सौंप देने से होगा। और यही वह कर रहे हैं।