दोस्त दोस्त न रहा...ये रोना और गाना पुराना हो गया है अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास के संदर्भ में। आज तो यही शेर याद आता है कि कुछ तो मजबूरियां रही होंगी/ यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता।
ये शेर दोनों के संदर्भ में कहा जा सकता है अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में भी जिनके ऊपर आतंकियों से रिश्ते रखने का आरोप लगाया गया है और कुमार विश्वास के संदर्भ में भी जिन्होंने अपने पुराने दोस्त पर इस तरह के संगीन आरोप लगाए हैं। कुमार, काफी पहले ही केजरीवाल से ख़फ़ा हो गए थे और अलग हो गए थे...लेकिन ऐन चुनाव से पहले ऐसे संगीन आरोप...! और केजरीवाल ने भी सफाई कुछ अलग अंदाज़ में दी...उन्होंने कुमार के आरोपों से इंकार करने की बजाय कहा कि आपने देखा है इतना ‘स्वीट आतंकवादी’। कुछ समझ नहीं आता कि अब क्या सही है और क्या ग़लत। कौन स्वीट (Sweet) है और कौन सॉल्टी (Salty)...
ख़ैर... कुछ तो मजबूरियां रही होंगी...