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कला
भारत
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भारतीय संविधान का जश्न मनाओ, रौशन करो और उसकी रक्षा करो
इस संविधान में भारत के विचार को औपचारिक रूप दिया गया था और इसका उद्देश्य प्रगति का होना था। एक असाधारण दस्तावेज़ जिस पर ग़ैर-काल्पनिक ढंग से हमले किए गए और इसके बचाव में सबको कूदना पड़ा, क्योंकि इसे बचाने की ज़िम्मेदारी हम में से हर एक की है।
अबान रज़ा  
07 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
भारतीय संविधान का जश्न मनाओ, रौशन करो और उसकी रक्षा करो
"मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगा, जिस दिन मेरी सांसें फूलने लगीं थी", सना इरशाद मट्टू, कश्मीर; छवि कलाकार के सौजन्य से।

5 अगस्त को भारतीय संविधान की धज्जियाँ उड़ाने के लिए याद रखा जाएगा। 2019 की इस तारीख को हमलों की एक नई झड़ी की शुरूवात की गई थी, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य में असंवैधानिक लॉकडाउन और उसका विभाजन शामिल है। 2020 की तारीख़ में बड़ों हमलों की इस भव्य इमारत में अन्याय की एक और ईंट जड़ दी गई। सर्वोच्च न्यायालय, जो जम्मू और कश्मीर के बारे में संवैधानिकता के बुनियादी सवाल पर फैसला करने में विफल रहा है, ने सर्वसम्मति से बाबरी-रामजन्मभूमि मामले में विरोधाभासी निर्णय पारित कर दिया, जो निर्णय बहुमतवादी विचार की भावनाओं संजोता है।

इसके अलावा, नागरिकता संशोधन अधिनियम, नागरिकता के राष्ट्रीय रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और [सीएए-एनआरसी-एनपीआर] को वर्तमान राजनीतिक सत्ता ने अनुमानित रूप से गैर-बर्दाश्त और भय का माहौल पैदा कर दिया। जिन लोगों को दीमक कहा गया, ये वही लोग हैं जो अपनी नागरिकता खोने के कगार पर खड़े हैं।

सांप्रदायिक भाषा और पहचान की खौफनाक राजनीति की वैधता के कारण विश्वविद्यालयों में ऐसे आंदोलन हुए जो बड़े ही संगठित ढंग से सड़कों तक फैल गए। इस कोलाहल से और सभी तरह की धूल के बीच शहीन बाग और इस जैसे कई आंदोलन के केंद्र उभरे, जिसने आम जनता से प्रतिरोध के खिलने का वादा कर लिया।

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विशाल कुमार कपड़े पर चित्रकारी "अंधेरे समय में"। छवि सौजन्य: सहमत

हर तरह की उथल-पुथल के इस वर्ष के बीच हमारा संविधान इस साल 70 वर्ष का हो गया है। इसके टेक्स्ट में भारत के विचार को औपचारिक रूप दिया गया था और इस काम को प्रगति की राह पर होना था। इस किस्म के असाधारण दस्तावेज पर गैर-काल्पनिक हमले किए गए और अंतत सभी को इसे बचाने के लड़ाई में कूदना पड़ा, क्योंकि हम में से हर एक की इसे बचाने की जिम्मेदारी बनती है। इसके मद्देनजर दिल्ली के कलाकारों के एक समूह और सहमत ने मिलकर एक प्रदर्शनी आयोजित करने की रूपरेखा तैयार की जिसका शीर्षक था, जश्न मनाओं, उजाले करो,  ताज़गी लाओ और साथ ही भारत के संविधान की 70वीं वर्षगांठ पर उसकी रक्षा करो। 

सड़कों पर चल रहे आंदोलन की तरफ यह एक छोटा सा योगदान था, यह प्रतिरोध की आवाज को बढ़ाने और सत्तारूढ़ डिस्पेंसन के असंवैधानिक कदमों के खिलाफ एक सामूहिक स्टैंड लेने का प्रयास था।

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"मैं गैंडा नहीं बनूंगा"; मैड पौल द्वारा कैनवास पर डिजिटल प्रिंट,नई दिल्ली। छवि कलाकार के सौजन्य से।

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 "जामिया 2019"; राम रहमान द्वारा डिजिटल प्रिंट, छवि सौजन्य: सहमत

संविधान बचाने की भावना को लेकर हम 54 कलाकार एक साथ आए और संविधान के संरक्षको के साथ लड़ाई में सड़कों पर उतर गए। समय के साथ, अधिक-अधिक से आवाजें खुद को प्रदर्शनी के साथ जोड़ती चली गई। इसके पीछे विचार यह था कि अधिक से अधिक आवाज़ों को इस बढ़ते प्रतिरोध के साथ जोड़ा जाए और प्रतिरोध के आधार को विस्तारित किया जाए। प्रदर्शनी के भीतर पेंटिंग, बैनर से लेकर मूर्तियां और वीडियो तक शामिल किए गए थे और इसमें फोटोग्राफी और कविता भी शामिल थी।

प्रतिरोध की तरह कला का भी सृजन किए जाने की जरूरत है, जवाब देने और खुद के सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में उसके प्रासंगिक बने रहने की जरूरत है, और अन्याय की सभी बारीकियों के खिलाफ लड़ने और उसे बयान करने की जरूरत है। संविधान हमें इस तरह की जरूरतों को संबोधित करने का मार्गदर्शन देता है और एक ऐसे समाज का निर्माण करने के लिए कहता है जहां प्रत्येक व्यक्ति की पहचान की सराहना की जाए यानि हर इंसान की कद्र जो जैसा वैसे ही की जाए। 

जैसा कि सहमत का "कलाकारों को किए गए आह्वान” में कहना था कि यह, "प्रदर्शनी साहस की भावना को दर्ज़ करना चाहती है, भविष्य की संभावनाओं को खोजना चाहती है और इस प्रतिरोध के माध्यम से बदलाव के ख़्वाब को जीने की कोशिश करना चाहती है जिसे" हम, “भारत के लोग" पूरी तरह से बनाए रखने का संकल्प लेते हैं। कलाकारों के कई कार्यों ने संविधान के नाम को इस्तेमाल किया और यह विचार भारत के विचार का उत्सव बन गया, जिसे हम संजोते हैं- एक ऐसा विचार जो आज न केवल भारत को परिभाषित करता है, बल्कि वह कल एक न्यायपूर्ण समाज का आधारभूत स्तंभ भी बनेगा।"

अबान रज़ा दिल्ली स्थित विज़ुअल आर्टिस्ट हैं

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Celebrate, Illuminate, Defend the Indian Constitution at 70

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SAHMAT
Attacks on constitution
Kashmir
Article 370 secularism
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License