NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
वन संरक्षण अधिनियम से छेड़छाड़ करने की नीति से आदिवासियों और भूमि अधिकारों पर पड़ेगा प्रभाव : वनाधिकार कार्यकर्ता
केंद्र सरकार वन मामलों में राज्य सरकारों के अधिकारों को सीमित करने और वन संरक्षण अधिनियम को लागू करने की तैयारी कर रही है।
सुमेधा पाल
04 Apr 2021
वन संरक्षण अधिनियम

ग्लोबल फ़ॉरेस्ट्स वॉच के मुताबिक भारत में बड़े स्तर पर जंगलों में आग लगी, और 20% तक जंगल नष्ट हो गए। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार वन संरक्षण अधिनियम, 1980 से छेड़छाड़ कर वन मामलों में राज्य सरकारों के हस्तक्षेप को सीमित करने की तैयारी में लगी है।

22 मार्च को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अतिरिक्त चीफ़ सेक्रेटरी(वन)/प्रिंसिपल सेक्रेटरी(वन) को लिखे एक पत्र में, पर्यावरण मंत्रालय ने कहा, "राज्य सरकार/केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासन स्वीकृति दिए जाने के बाद किसी तरह अतिरिक्त शर्तें लागू नहीं कर सकते हैं।" यहाँ इस 'स्वीकृति' वन भूमि पर निजी खिलाड़ियों द्वारा किए जाने वाले अन्य प्रमुख परियोजनाओं के बीच निर्माण परियोजनाओं और विकास की पहल से संबंधित है।



सौजन्य : कांची कोहली, सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च में वरिष्ठ शोधकर्ता

विशेषज्ञों का मानना है वन नष्टीकरण को रोकने वाले क़ानूनों से छेड़छाड़ करने की हालिया घटनाओं की वजह से केंद्र की वन भूमि का निजीकरण करने की मंशा का पर्दाफ़ाश हो गया है। हिंदुस्तान टाइम्स में पहले छपी एक ख़बर के मुताबिक राज्य सरकारों के अधिकारों को सीमित करने के पीछे केंद्र की यह मंशा थी कि परियोजनाओं में किसी तरह का भ्रम या अनुमान न पैदा हो।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, कैंपेन फ़ॉर सर्वाइवल एंड डिग्निटी(सीडीएस) के श्रीचरण बेहारा ने इस क़दम से जुड़े ख़तरों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, "अगर राज्य सरकारों के पास वन मामलों में अधिकार कम होंगे, तो केंद्र सरकार अपनी मनमानी के तहत काम करेगी। पहले भी राज्य सरकारों के पास अधिकार कम थे; सब कुछ लोकतांत्रिक नहीं था मगर तब भी कुछ उम्मीद ज़रूर थी। कोविड से पहले और कोविड के दौरान भी केंद्र ने अपनी मनमानी से काम किया जिसकी वजह से बड़े स्तर पर वन नष्ट हुए और बेदख़ली भी हुई।"

बेहारा ने आगे कहा, "केंद्र सरकार वनों के नियंत्रण की विशाल शक्ति बनाने का लक्ष्य बना रही है। यह न केवल जंगलों या किसानों के लिए एक खतरा है, बल्कि सभी के लिए यह संघीय-लोकतांत्रिक संरचना पर हमला करने वाला है, जिससे जंगलों के साथ-साथ जंगलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

वन संरक्षण अधिनियम में बदलाव

वर्तमाम में, वन भूमि के मसलों में राज्यों के अधिकार ऐसे समय में छीने जा रहे हैं जब भारत में 2019 में आर्द्र प्राथमिक जंगलों में पेड़ कवर का 17.3 किलो हेक्टेयर की तुलना में 2020 में 20.8 किलो हेक्टेयर हिस्सा खो दिया है। यह क़दम ऐसे समय में भी उठाया जा रहा है जब साथ ही साथ वन संरक्षण अधिनियम के मूल क़ानून में भी बदलाव किए जा रहे हैं। डाउन टू अर्थ के लेखकों द्वारा खोजे गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि इस महीने केंद्र की कैबिनेट के साथ यह बदलाव साझा किए गए हैं मगर उन्हें अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। इन बदलावों के तहत रेलवे, रोड और अन्य परियोजनाओं को छूट के साथ-साथ आसानी से मंज़ूरी दी जाएगी।

इसके अलावा, पुन: वृक्षारोपण के पहले के अभ्यास को भी खराब कर दिया गया है और डेवलपर्स के लिए मानदंडों को आसान बनाने के साथ नए परिवर्तनों में एक बड़ा झटका लग सकता है। सरकार के इरादे पर टिप्पणी करते हुए, वरिष्ठ पर्यावरण वकील राहुल चौधरी ने कहा, "जब हम निर्माणों को देखते हैं - यह केवल आरक्षित वनों तक सीमित नहीं है, तो सरकार अभयारण्यों सहित हर जगह भूमि का निर्माण कर रही है और उसे नष्ट कर रही है। इस सरकार के लिए कुछ भी पवित्र नहीं है। वन भूमि इनके लिए आसान रास्ता बन गई है।"

उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से स्पष्ट हो गया है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही भूमि को मोड़ना चाहते हैं। चौधरी ने बताया, “1996 में एक निर्णय के अनुसार, आरक्षित वनों से मिलते जुलते सभी जंगल - उदाहरण के लिए अरावली में - वन भूमि घोषित नहीं हैं, लेकिन प्रकृति से वे जंगल हैं। सरकार इन्हें जंगल की परिभाषा से बाहर कर रही है। भारत ने हाल ही में वन क्षेत्र में वृद्धि दिखाई है - बस कवर में हरे क्षेत्रों को शामिल करके। यह कम आंका जा सकता है कि वनों का क्षरण केवल 20% है।"

इस कदम का सीधा असर आदिवासी समुदायों और भूमि अधिकारों पर भी होने की संभावना है। देश में 60% से अधिक वन क्षेत्र 187 आदिवासी जिलों में आता है। एकतरफा बने कानूनों में संशोधन नए सिरे से संघर्ष के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है क्योंकि वे स्थानीय समुदायों के परामर्श के बिना किए गए थे। जगदीश आदिवासी दलित संगठन की माधुरी कृष्णस्वामी ने कहा, "इन कदमों का इस्तेमाल आदिवासी समुदायों को उनकी जमीन के पट्टों (दावों) को नकारने के लिए किया जा रहा है। सरकार और वन विभाग संरक्षण के लिए बिल्कुल भी इच्छुक नहीं हैं।" उन्होंने कहा, "संरक्षण एक चिंता का विषय था, सरकार भूमि पर रहने वाले समुदायों को पीढ़ियों के लिए शामिल करेगी। "इसके बजाय, सरकार उन्हें स्वामित्व और अपनी जमीन बेचने से इनकार कर रही है, जो कि सरकार के पास भी नहीं है।"

ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने कहा है कि इस क़दम को आदिवासी समुदायों और भूमि अधिकारों के लिए उनकी लड़ाई पर हमले को तरह देखा जा रहा है। साथ ही उनका यह भी कहना है कि यह भूमि के निजीकरण का ही एक और प्रयास है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Centre’s Bid to Dilute Forest Conservation Act Will Impact Adivasis and Land Rights, Say Activists

Forest Conservation
Land rights
Adivasi Rights
Forest land
Privatisation

Related Stories

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

पूर्वांचल में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बीच सड़कों पर उतरे मज़दूर

देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन दिल्ली-एनसीआर में दिखा व्यापक असर

बिहार में आम हड़ताल का दिखा असर, किसान-मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता

केरल में दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के तहत लगभग सभी संस्थान बंद रहे

"जनता और देश को बचाने" के संकल्प के साथ मज़दूर-वर्ग का यह लड़ाकू तेवर हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ है

क्यों है 28-29 मार्च को पूरे देश में हड़ताल?

28-29 मार्च को आम हड़ताल क्यों करने जा रहा है पूरा भारत ?

2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल


बाकी खबरें

  • अनिंदा डे
    मैक्रों की जीत ‘जोशीली’ नहीं रही, क्योंकि धुर-दक्षिणपंथियों ने की थी मज़बूत मोर्चाबंदी
    28 Apr 2022
    मरीन ले पेन को 2017 के चुनावों में मिले मतों में तीन मिलियन मत और जुड़ गए हैं, जो  दर्शाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद धुर-दक्षिणपंथी फिर से सत्ता के कितने क़रीब आ गए थे।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली : नौकरी से निकाले गए कोरोना योद्धाओं ने किया प्रदर्शन, सरकार से कहा अपने बरसाये फूल वापस ले और उनकी नौकरी वापस दे
    28 Apr 2022
    महामारी के भयंकर प्रकोप के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सर्कुलर जारी कर 100 दिन की 'कोविड ड्यूटी' पूरा करने वाले कर्मचारियों को 'पक्की नौकरी' की बात कही थी। आज के प्रदर्शन में मौजूद सभी कर्मचारियों…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज 3 हज़ार से भी ज्यादा नए मामले सामने आए 
    28 Apr 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,303 नए मामले सामने आए हैं | देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 0.04 फ़ीसदी यानी 16 हज़ार 980 हो गयी है।
  • aaj hi baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    न्यायिक हस्तक्षेप से रुड़की में धर्म संसद रद्द और जिग्नेश मेवानी पर केस दर केस
    28 Apr 2022
    न्यायपालिका संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में जरूरी हस्तक्षेप करे तो लोकतंत्र पर मंडराते गंभीर खतरों से देश और उसके संविधान को बचाना कठिन नही है. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कथित धर्म-संसदो के…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान
    28 Apr 2022
    आजकल भारत की राजनीति में तीन ही विषय महत्वपूर्ण हैं, या कहें कि महत्वपूर्ण बना दिए गए हैं- जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र। रात-दिन इन्हीं की चर्चा है, प्राइम टाइम बहस है। इन तीनों पर ही मुकुल सरल ने…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License