NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बदली सरकार, लेकिन न बदला तंत्र का कार्य व्यवहार: भूख से मौत की वजह बीमारी बताया
झारखंड में फिर भूख से मौत का मामला सामने आया। दस्तूर के मुताबिक ‘तंत्र’ ने अपने पूर्व-निर्देशित कार्यशैली के तहत इस मौत की वजह भी बीमारी घोषित कर दिया।
अनिल अंशुमन
18 Mar 2020
jharkhand

किसी शासन अथवा उसके नेता बदल जाने मात्र से ही प्रभावी ‘तंत्र’ (सिस्टम ) कैसे नहीं बदलता है और उसी के चालू दस्तूर के तहत शासन – नेता को बोलना पड़ता है जो ‘तंत्र’ निर्धारित होता है। इसका साक्षात उदाहरण तब दिखा जब झारखंड में फिर भूख से मौत का मामला सामने आया। दस्तूर के मुताबिक ‘तंत्र’ ने अपने पूर्व-निर्देशित कार्यशैली के तहत इस मौत की वजह भी बीमारी घोषित कर दिया । हालांकि मीडिया में इसकी खबर आने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा ट्वीट कर मामले की जांच के आदेश देने की खबर प्रकाशित हुई। लेकिन इसका कोई ठोस जमीनी परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है। 

गत 6 मार्च को मीडिया में आई खबर के मुताबिक 5 मार्च को बोकारो ज़िला कसमार प्रखण्ड स्थित सिंगपुर पंचायत के करमाडीह शंकर टोला निवासी 42 वर्षीय दलित भुखल घासी की भूख से मौत हो गयी। पत्नी के अनुसार उन्हें अभी तक राशन कार्ड नहीं मिलने से घर में अनाज का एक दाना नहीं था और पिछले तीन–चार दिनों से चूल्हा भी नहीं जला था। मौत की इस खबर के आते ही पूरा स्थानीय प्रशासन तंत्र इस घटना की भी लीपापोती में लग गया। खबरों के अनुसार सारा प्रशासनिक अमला वहाँ जुट गया और पीड़ित परिवार पर सरकारी अनुकंपाओं की झड़ी लगा दी। भुखल घासी के परिवार के लिए तुरंत सभी सरकारी सुविधाएं ऑन स्पॉट उपलब्ध कराने की व्यवस्था सहित पत्नी के नाम से राशन कार्ड–विधवा पेंशन देकर सादा कागज़ पर अंगूठा ले लिया गया।

यह भी महज संयोग नहीं कहा जा सकता है कि इस घटना के एक दिन पहले ही जब विधानसभा के चालू सत्र में ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ का प्रदेश में सही ढंग से पालन नहीं किए जाने से गरीबों के समक्ष उत्पन्न  भुखमरी की भयावह स्थिति पर भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने सवाल उठाया। स्पीकर के माध्यम से सरकार से पूछा कि – क्या यह बात सही है कि पिछले पाँच वर्षों में प्रदेश में डेढ़ दर्जन से भी ज़्यादा मौतें भूख–कुपोषण से हुई है? अधिकतर मौतों की वजह समय पर सुचारु रूप से सरकारी राशन का नहीं मिलना रहा है। संबन्धित सरकार के मंत्रालय की ओर से सदन में जवाब दिया गया कि अभी तक राज्य में भूख से कोई मौत नहीं हुई है। सभी लोग बीमारी से मरे हैं। साथ ही लिखित तौर पर यह भी कहा गया कि पूरे प्रदेश में अक्टूबर 2015 से ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अधिनियम लागू है। जिसके तहत गरीबों को सुचारु रूप से राशन मिल रहा है।

bhukh se maut mamlaa - widhansabha.PNG

भुखल घासी की भूख से हुई मौत का मामला विनोद सिंह ने सदन में फिर से उठाते हुए पूछा कि यह सरकार भी कैसे कह रही है कि राज्य में भूख से कोई मौत नहीं हुई है। जबकि मीडिया से लेकर सभी गैर सरकारी संगठन व सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की सभी जांच रिपोर्टों के निष्कर्षों तथा आम लोगों का साफ कहना है कि राज्य में भूख से मौतें हुईं हैं। अनाज के अभाव में भुखल घासी की मौत भूख से हो गयी और उसके यहाँ भी सरकारी राशन नहीं आता था। जितनी भी मौतें हुईं हैं , सबमें पाया गया है कि इनके पास राशन कार्ड नहीं थे और यदि राशन कार्ड था तो वह आधार से लिंक नहीं था । जिससे उन्हें अनाज का एक दाना भी नहीं मिल सका।

विनोद सिंह ने जब यह मांग की कि भूख से जितनी भी मौतें हुईं हैं, सभी पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाय और सुचारु राशन नहीं मिलने के दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कारवाई की जाये, तो न सरकार की ओर से उसके किसी प्रतिनिधि ने और न ही विधानसभा अध्यक्ष ने कोई प्रतिक्रिया दी।

भूख से मौत के मुद्दे पर सदन के वर्तमान विपक्ष (भाजपा) और उसके नेता–प्रवक्ताओं में से किसी ने भी कुछ कहने की जहमत नहीं उठाई । अलबत्ता अपने शासन काल में भूख से होने वाली मौतों को रोकने में विफल रहने का चुनावी खामियाजा भुगत रहे पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास द्व्वारा हेमंत शासन के भी तंत्र द्वारा भूख से कोई मौत नहीं होना, कहे जाने को सत्य की जीत कहा गया। 

सनद रहे कि चंद महीनों पूर्व ही प्रदेश के रघुवर दास शासन काल में नेता प्रतिपक्ष के रूप में हेमंत सोरेन ने भूख से हुई मौत को राज्य का गंभीर मुद्दा बताते हुए भूख से मौत के आंकड़ों को सदन में पेश कर सरकार को घेरा था। अब जब उनके शासन काल में हुई भूख से हुई मौत का मामला उठा और फिर से जब वही आंकड़े सामने लाये गए तो पिछली सरकार के ही लहजे में इसे साफ खारिज कर दिया गया ।

bhukh se maut 3.jpg

भूख से होने वाली मौतों के जारी रहने तथा पिछली सरकार की भांति उसे हटाकर आयी प्रदेश की नयी सरकार ( अबुआ दिसुम सरकार ) और उसके तंत्र के भी समान रवैये पर चिंता जाहिर करते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री–एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज़ का कहना है – सत्ता में आते ही क्यों बदल जाती हैं भूख से मौत जैसे मामलों की परिभाषाएँ? भुखमरी रोकने के लिए गंभीर कदम उठाए सरकार। 

भूख से मौत के सवाल पर निरंतर सक्रिय रहकर शासन–प्रशासन के रवैये के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले तथा रघुवर दास शासन में भूख से मरी संतोषी का मामला सबसे पहले उजागर कर इसे ज्वलंत सवाल बनाने में अगुवा रहे युवा सामाजिक कार्यकर्ता धीरज कुमार की सोशल मीडिया में दी गयी टिप्पणी झकझोरती है – “..... रह रह के ज़िंदा होती रहती है भूख से मौत / सत्ता पक्ष - विपक्ष – पत्रकार – एक्टिविस्ट – बुद्धिजीवी के बीच गोल गोल घूम रही है भूख से मौत / पहचान का संकट झेल रही है भूख से मौत / जॉब – प्रोब – रिसर्च – फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग – प्रोटोकॉल / कितना रहस्यमयी है भूख से मौत / एक खास अंदाज़ में पेश करें तो एक aura बनाती है भूख से मौत / भूख से मौत को चाहिए एक यौनिक आइडेंटिटी ....!”

Jharkhand
Jharkhand government
Hemant Soren
Hemant Sarkar
poverty
Poverty in jharkhand
Hunger Crisis
deaths due to hunger
poor people are wiser
JMM
CPI
Vinod Singh

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट

कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...

ज्ञानवापी, ताज, क़ुतुब पर बहस? महंगाई-बेरोज़गारी से क्यों भटकाया जा रहा ?

झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार

झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध

झारखंड : हेमंत सरकार को गिराने की कोशिशों के ख़िलाफ़ वाम दलों ने BJP को दी चेतावनी


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License