NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़ के ज़िला अस्पताल में बेड, स्टाफ और पीने के पानी तक की किल्लत
कांकेर अस्पताल का ओपीडी भारी तादाद में आने वाले मरीजों को संभालने में असमर्थ है, उनमें से अनेक तो बरामदे-गलियारों में ही लेट कर इलाज कराने पर मजबूर होना पड़ता है।
सौरभ कुमार
28 May 2022
Komal Dev District Hospital
कोमल देव, ज़िला अस्पताल कांकेर जिला, छत्तीसगढ़

कोमल देव जिला अस्पताल छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ित जिले कांकेर में स्थित है। यह जिला राज्य के दक्षिणी हिस्से  का ग्रामीण आबादी वाला जिला है। यहां डॉक्टर नर्स बेड मरीजों के लिए भोजन और पीने का साफ पानी का घोर अभाव है। ओपीडी में  स्टाफ की कमी है।

ऊपर से कड़ी धूप और गरमी के बीच मरीजों की काफी भीड़ भाड़ है। इनमें से कुछ मरीजों का उपचार तो अस्पताल के गलियारे में अस्थाई रूप से बनाए गए बेड पर ही किया जाता है। हरी मांडवी एक 28 वर्षीया एक महिला हैं, जो अपने भाई का इलाज कराने आई हैं। वे कहती हैं, “अपने भाई को दर्द से छटपटाते हुए नहीं देख सकती। पर यहां बेड की बड़ी किल्लत है, इसको देखते हुए मैंने नर्स से अपने भाई का तुरंत इलाज करने की गुजारिश की, जिन्होंने किसी तरह से बरामदे में कामचलाऊ बेड का इंतजाम करा दिया है, और उसकी बगल में सलाइन की बोतल लटका दी है।”

हरि मांडवी के छोटे भाई का गलियारे में इलाज

हरि मांडवी किरगोली गांव की रहने वाली हैं, जो अपने भाई के पेट में बहुत दर्द होने के बाद यहां इलाज कराने आई हैं। अस्पताल के बरामदे में इलाज कराता हरी मांडवी का छोटा भाई यहां आए अनेक मरीज इसी तरह की या इससे भी बड़ी बीमारी से पीड़ित होकर यहां आए हैं, और व्यवस्था की समस्या से जूझ रहे हैं। श्याम मांडवी एक ऐसी ही 60 वर्षीय महिला हैं, जिनके पैर की सर्जरी एक हफ्ते से इसलिए टल रही है कि यहां डॉक्टर ही नहीं हैं। 

अपने माता पिता के साथ 7 वर्षीया फुली

फुली सात वर्षीया एक बच्ची है, जो कथित रूप से लंबे समय से बुखार से पीड़िता रहने के कारण अचानक अचेत हो गई है। ओपीडी के डॉक्टर से दिखाने के बाद फुली को उसकी मां स्ट्रेचर न होने से गोद में ही उठाए आ रही हैं और पिता हीरा लाल सलाइन की बोतल को हाथ में उठाए हुए हैं। वहां स्ट्रेचर नहीं हैं। हीरा लाल कांकेर से 50 किलोमीटर दूर के गांव अम्बोरा से आए हैं और उन्हें अस्पताल में बिस्तर के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा है। 

रायपुर और जगदलपुर शहरों के बीच बसे कांकेर में अधिक आबादी जनजातीय की है और यह क्षेत्र सघन वनों से घिरा है। यहां की आबादी लगभग 6 लाख है, जिसके लिए 230 बेड का एक अस्पताल है, जो 300 से 350 मरीजों से ठसाठस भरा हुआ है, जिनमें अधिकतर बुखार, हैजा और दस्त से पीड़ित हो कर यहां आए हैं। 

चिपरेल गांव के एक पूर्व जन प्रतिनिधि अहीम सोरी यहां 11 मई से अपने पैर की चोट के लिए इलाज करा रहे हैं। वे रोगियों को बिना भोजन और पानी के यों ही छोड़ देने के लिए अस्पताल प्रबंधन पर बरस रहे थे। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, “यहां लगातार दो दिनों तक मरीजों के लिए भोजन और पानी नहीं था। इस पर अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारियों से मरीजों एवं उनके तीमारदारों के विरोध जताने के बाद वे सुविधाएं बहाल की गईं। यह तो स्वास्थ्य विभाग द्वारा इलाज के नाम पर आम आदमी से सरासर मजाक है।"

फिर भी पानी की कमी तो इसके बाद भी कई दिनों तक जारी रही क्योंकि बोरवेल की खुदाई की वजह से उसकी आपूर्ति बीच में रोक दी गई थी जबकि बैक-अप का कोई इंतजाम नहीं किया गया था। पानी की कमी हुई तो मरीजों के लिए खाना बनना भी बंद हो गया। इस बारे में जब जिला के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. जेएल उएके से बात की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि "बोरवेल की खुदाई की वजह से पानी की आपूर्ति बाधित हो गई थी,जिसके चलते मरीजों को खाना नहीं दिया जा सका था, लेकिन चीजें एक दिन के भीतर ही व्यवस्थित कर दी गई थीं"।

अस्पताल में एक और बड़ी समस्या स्टाफ की कमी की है, जो मरीजों को बहुत परेशान करती है। यहां कामकाजी कर्मचारियों की कुल संख्या 36 है, जिनमें 12 डॉक्टर और 24 नर्सें शामिल हैं, लेकिन उनकी गैरहाजिरी ने रोगियों की परेशानियां बढ़ा दी हैं। अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर गंभीर रोगियों के इलाज की जरूरतों के हिसाब से साधन-सम्पन्न नहीं है। इसके चलते मरीजों को रायपुर रेफर कर दिया जाता है। इसके अलावा, सीटी-स्कैन, इकोकार्डियोग्राफी और एमआरआई की मशीनें भी खराब हैं। यहां केवल खून की जांच के उपकरण उपलब्ध हैं और मौसमी बीमारियों के लिए दवाएं मिल जाती हैं।

कांकेर स्थित जन सहयोग संस्थान के प्रमुख अजय मोटवानी के अनुसार, दूर-दराज के गांवों के रोगियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण परेशानी हो रही है और यह अस्पताल काफी हद तक एक रेफरल केंद्र बन गया है, जहां से मरीजों को इलाज के लिए बाहर भेजने का काम होता है।

हालांकि, अस्पताल की प्रमुख सुनीता मेश्राम ने दावा किया कि चरम मौसम के कारण ही रोगियों की तादाद बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे में बेड की कमी हो जाना स्वाभाविक है,लेकिन “बिना देरी किए उसकी व्यवस्था कर दी गई थी।”

कांकेर में सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की स्थापना मार्च 2020 में जिला अस्पताल के सहयोग से की गई थी। इसका मकसद बस्तर संभाग और पड़ोसी जिलों के लोगों को चिकित्सा शिक्षा और सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना है।

अस्पताल के साथ मेडिकल कॉलेज के सहयोग को लेकर उएके ने कहा, "जीएमसी के साथ सहयोग से जिला अस्पताल के प्रदर्शन में मदद मिलेगी। कुछ महीनों की अवधि में, अस्पताल में एक एमआरआई मशीन आ जाएगी, 30 बिस्तरों वाला आईसीयू और 40 बिस्तरों वाली नवजात देखभाल इकाई की स्थापना की जाएगी।”

जबकि यहां के मरीजों को लगातार परेशानी झेलनी पड़ रही है, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस देव सिंह ने 6 मई को उत्तरी बस्तर के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ एक बैठक में उन्हें कोविड-19 का टेस्ट बढ़ाने, 'हाट बाजार' क्लिनिक योजना (विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के लिए) की समीक्षा करने और कांकेर को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने का निर्देश दिया है।

एक स्थानीय समाचार रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल अस्पताल के लिए अपरिहार्य कर्मचारियों की अनुपस्थिति से ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र पंगु हो गए थे। कांकेर जिले में 8 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 34 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिनमें से 12 केंद्रों में कोई प्रयोगशाला तकनीशियन उपलब्ध नहीं था। इसकी वजह से मलेरिया, टाइफाइड, सिकल सेल, एनीमिया, मधुमेह, एचआईवी, हेपेटाइटिस-बी, आदि जैसी बीमारियों की जांच नहीं हो सकी और उनका इलाज नहीं किया जा सका।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Shortage of Beds, Staff, Drinking Water Paralyses Chhattisgarh District Hospital

HEALTH
Chhattisgarh Health
Chhattisgarh government
Kanker district
Chhattisgarh news
India health system 

Related Stories

गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा

विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई

ग्राउंड रिपोर्ट: स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रचार में मस्त यूपी सरकार, वेंटिलेटर पर लेटे सरकारी अस्पताल

पतंजलि आयुर्वेद को कुछ कठिन सवालों के जवाब देने की ज़रूरत 

सिकुड़ते पोषाहार बजट के  त्रासद दुष्प्रभाव

क्या कोरोना महामारी में बच्चों की एक पूरी पीढ़ी के ग़ायब होने का खतरा है?

कोविड-19 में पेटेंट और मरीज़ के अधिकार: क्या किसी अधिकार विशेष के बजाय यह पूरी मानवता का सवाल नहीं है ?

कोरोनावायरस का राजनीतिकरण न करेंः ट्रम्प को डब्ल्यूएचओ की नसीहत

कोरोना वायरस से उत्पन्न हालात से निपटने के लिए रोजाना निगरानी की जा रही है : हर्षवर्धन

क्या है कोरोना वायरस? और क्यों हैं इतना घातक ?


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License