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छत्तीसगढ़: भूपेश सरकार से नाराज़ विस्थापित किसानों का सत्याग्रह, कांग्रेस-भाजपा दोनों से नहीं मिला न्याय
‘अपना हक़ लेके रहेंगे, अभी नहीं तो कभी नहीं’ नारे के साथ अन्नदाताओं का डेढ़ महीने से सत्याग्रह’ जारी है।
रूबी सरकार
16 Feb 2022
Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के सैकड़ों प्रभावित किसान नया रायपुर के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए बनाए गए दो काले कानून, जैसे- सन 2005 से लगे भू-क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध तथा ग्राम पंचायत कार्यरत रहते हुए नगरीय क्षेत्र की अधिसूचना 2014-2015 को तत्काल निरस्त कराने की मांग को लेकर सत्याग्रह कर रहे हैं।

इसके अलावा भी इनकी और कई मांगे हैं, जिसमें नया रायपुर पुनर्वास योजना के अनुसार अर्जित भूमि के अनुपात में उद्यानिकी, आवासीय और व्यावसायिक भूखंड पात्रतानुसार मुफ्त मिलने के प्रावधान का पालन, भू-अर्जन कानून के तहत हुए अवार्ड में भू-स्वामियों को मुआवजा, जो अब तक प्राप्त नहीं हुए हैं, उन्हें बाजार मूल्य से 4 गुना मुआवजा देने, नया रायपुर क्षेत्र में ग्रामीण बसाहट के लिए पट्टा देने, वार्षिक राशि का पूर्णरूपेण आवंटन करने, पुनर्वास पैकेज वर्ष  2013 के तहत सभी वयस्कों को मिलने वाला 1200 वर्ग फीट प्लॉट दिये जाने, आबादी के गुमटी, चबूतरा, दुकान, व्यावसायिक परिसर को 75 फीसदी प्रभावितों को लागत मूल्य पर देने के प्रावधान का पालन करने जैसी मांगे प्रमुख हैं।

दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार इस समय भ्रष्टाचार, दमन, अत्याचार के आरोपों से घिरी है। नई राजधानी प्रभावित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष रूपन लाल चंद्रकार सिलसिलेवार विस्थापित किसानों का दर्द बयां करते हुए बताते हैं कि जब  मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना, तभी 2002 में नया रायपुर बनाने के नाम पर तब के कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 61 गांवों में जमीन क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय कांग्रेस के बड़े नेता सत्यनारायण शर्मा जो दिग्विजय सिंह के बहुत करीब थे, उनके नेतृत्व में सभी किसान मुख्यमंत्री जोगी से मिले, तो उन्होंने आश्वासन दिया कि 61 गांवों में जमीन खरीद पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया है, ताकि कोई दलाल किसानों की कीमती जमीन न खरीद पाए। उन्होंने किसानों से कहा कि नया रायपुर के लिए किसानों की जमीन नहीं चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि जमीन की जरूरत पड़ी, तो रायपुर के हृदय स्थल कहा जाने वाले गांधी भवन और रवि भवन के मूल्य पर ही किसानों से जमीन ली जाएगी। उसी समय भाजपा नेता चंद्रशेखर साहू ने नया रायपुर का विरोध जताते हुए कहा था कि अभी इसकी जरूरत नहीं है, क्योंकि अभी प्रांत बहुत गरीब है।

ताकि बड़े लोगों की जमीन बच जाए

2005 के बाद जब भाजपा की सरकार बनी, तब भाजपा सरकार ने ही इसकी नींव रखी और बड़ी होशियारी से 61 गांव से प्रतिबंध को घटाकर 41 गांव इसलिए कर दिया, ताकि भाजपा शासन में मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल, भाजपा नेत्री सत्यवाला अग्रवाल की करीब 400 एकड़ जमीन, भाजपा शासन में महाधिवक्ता, कांग्रेस कार्यकाल के मुख्य सचिव, अब नया रायपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी के अध्यक्ष आरबी मंडल तथा अनेक बड़े व्यापारियों की जमीन को अधिग्रहित होने से बचाया जा सके। इनकी जमीन बचाने के लिए भाजपा सरकार ने सड़क को ही मोड़ दिया। परंतु नया राजधानी के नाम पर अन्नदाताओं की 22 हजार हेक्टेयर उपजाऊ जमीन जबरन औने-पौने ले ली गई। यहां तक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बनाने के नाम पर ली गई जमीन का भी सही मुआवजा नहीं मिला। जब अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, तो किसानों को जमीन का दाम भी अंतरराष्ट्रीय हिसाब से मिलना चाहिए था।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2014-15 में भाजपा सरकार ने किसानों से ली गई जमीन को निजी बिल्डरों को ऊँचे दामों में बेचने के लिए अधिसूचना जारी कर गांवों को ही शहरी क्षेत्र घोषित कर दिया, जबकि आज भी वहां गांव पंचायत अस्तित्व में हैं।  

वे आगे कहते हैं- राज्य सत्ता से गांव की सत्ता बड़ी है, लेकिन बिना ग्राम पंचायत की अनुमति के गांव की सार्वजनिक जमीन जैसे कुंआ, तालाब, शमशान, सड़क आदि को भी अधिग्रहित कर लिया गया। यहां तक कि कबीरपंथी, सतनामी जैसे अनेक पंथियों की माटी की जमीन पर डंके की चोट पर बिल्डिंग बना दी गई।

चंद्राकर को अफसोस है कि भाजपा के शासन में कांग्रेसी नेताओं ने किसानों के साथ आंदोलन में बैठे। जब भी बड़े नेता राहुल गांधी, जयराम रमेष रायपुर आए, तो किसानों के साथ सत्याग्रह में बैठे। भाषण में आश्वासन दिया कि कांग्रेस की सरकार बनते ही इस मसले को प्राथमिकता देकर सुलझा लिया जाएगा। अब तो कांग्रेस की सरकार बने 3 साल से अधिक का समय निकल चुका है, एक बार भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मिलने का समय नहीं दिया।

चंद्राकर ने बताया, हम लोग इस मुद्दे को लेकर पहले हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए वहां स्थगन आदेश ले आए, फिर भी सरकार का काम निरंतर चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी सरकार उल्लंघन कर रही है। एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोई ने कहा कि किसानों को जमीन का चार गुना मुआवजा दिया जाए। परंतु किसानों को आज भी चार गुना मुआवजा नहीं मिला। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों की नीयत और नीति साफ नहीं है। एक एकड़ के जोतनदार को 3600 वर्ग फुट भूखंड दे रहे हैं। जिस गांव में जमीन की कीमत 1450 व 1750 स्क्वायर फीट है, वहां किसानों से 12 रुपये 57 पैसा और 22 रुपए ली जा रही है। करीब-करीब इसी मूल्य पर किसानों से 22 हजार हेक्टेयर जमीन ले ली गई। भाजपा शासन काल में 2005-06 से ही किसानों से जमीन लेना शुरू हो गया था, जबकि प्लान 2008 में लाया गया।

किसानों के पास आयकर विभाग की नोटिस

चंद्राकर ने कहा, अब तो किसानों के पास आयकर विभाग से नोटिस भी आने लगे कि जमीन के मूल्य का क्या उपयोग किया। कहां इन्वेस्ट किया। अब किसान क्या बताएं कि उस समय के नेता और उनके रिश्तेदार चिटफंड कंपनी बनाकर गांव में डटे थे। एक हाथ पैसा आया, दूसरे हाथ से इन्वेस्ट करवा लेते थे। सब ठगे गए। इस तरह किसानों के पैसे तो डूबे, लेकिन नेता मालामाल हो गए। रूपन लाल चंद्राकर पहले भाजपा समर्थित भारतीय किसान यूनियन से जुड़े थे, इसी मुद्दे पर उन्होंने भारतीय किसान यूनियन से त्याग पत्र देकर पूरी तरह किसानों की हक में लड़ाई लड़ रहे हैं।

छोटे किसान व खेत मजदूरों की आजीविका चली गई

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते बताते हैं कि इन किसानों और खेत-मजदूरों को केवल भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस ने भी बराबर छला है। कांग्रेस विधानसभा चुनाव से पहले इनके साथ मंच साझा करते थे। भाषण देते थे और चुनाव में साथ आने की बात करते थे। चुनाव जीतने के बाद इनकी मांगों को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाने की बात करते थे, लेकिन चुनाव जीतने के बाद आंदोलनरत किसानों को मिलने तक का समय नहीं दिया। उन्होंने कहा, सबसे ज्यादा तकलीफ में खेत मजदूर हैं, जो दूसरों के खेत पर मजदूरी करते थे। अब तो न खेत है और न मजदूरी। उनके सामने पलायन के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। पिछले दिनों जब आंदोलनरत हजारों किसान एयरपोर्ट पर राहुल गांधी से मिलना चाहते थे, तब मुख्यमंत्री के इशारे पर पुलिस ने उन पर डंडे बरसाए।  जिससे कई किसान बुरी तरह घायल हो गए थे। किसानों के साथ पशुओं के समान बर्ताव किया गया।

बैरिकेड लगाकर किसानों को राहुल गांधी से मिलने से रोका

किसान तेजराम साहू ने बताया कि किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल राहुल गांधी से मुलाकात कर समस्या बताना चाहता था। इसके लिए जिला कलेक्टर और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को पत्र लिखा गया था। लेकिन राहुल गांधी से मुलाकात करवाने के बजाए किसानों को जगह-जगह बैरिकेट लगाकर रोका गया। किसान एनआरडीए बिल्डिंग से आगे निकलने पर कायाबंद चौक में बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़े। इसके बाद एयरपोर्ट की बाउंड्री से लगे बरोदा गांव में एक और बैरिकेट लगाया गया था। रैली में आगे किसानों और युवाओं पर लाठीचार्ज किया गया। 

उन्होंने कहा कि भूपेश बघेल करोड़ो रुपए खर्च कर अपनी इमेज बिल्डिंग करते हैं, परंतु किसानों को देने के लिए उनके पास पैसे नहीं है। अब बतोले बाज मुख्यमंत्री की बातों पर भरोसा नहीं कर सकते। अगर मुख्यमंत्री उनकी मांगें जल्द नहीं मानते, तो वो दिन दूर नहीं जब किसान इस शांतिप्रिय आंदोलन को वृहद स्वरूप दे देंगे और इस भ्रष्ट मुख्यमंत्री और इनकी सरकार को सबक सिखाएंगे।

(रूबी सरकार स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

ये भी पढ़ें: कोरबा : रोज़गार की मांग को लेकर एक माह से भू-विस्थापितों का धरना जारी

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