NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़ : आदिवासियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस फ़ाइरिंग का बढ़ता विरोध, न्यायिक जांच की मांग
सिलगर में आदिवासियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस फायरिंग के खिलाफ बढ़ता विरोध बढ़ता जा रहा है। कई नागरिक समाज के लोग और जनसंगठन इस मामले पर उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं।
अनिल अंशुमन
21 May 2021
छत्तीसगढ़ : आदिवासियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस फ़ाइरिंग का बढ़ता विरोध, न्यायिक जांच की मांग

बेलगाम कोविड महामारी का संक्रमण गांवों तक फैलने की नयी आपदा ने देश के ग्रामीण समाज को बुरी तरह त्रस्त कर रखा है।  जहां सरकार घोषित टीका मिलना तो दूर, समय पर जांच और समुचित इलाज के अभाव में हर दिन हो रही मौत की ख़बरें हर चुनी हुई सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की असलियत उजागर कर रहीं हैं।

आदिवासी इलाकों में स्थितियां तो और भी अधिक संकटपूर्ण हैं जहाँ सामान्य दिनों में अस्पताल अथवा डॉक्टर की उपलब्धता आज भी सपना बना हुआ है। ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों से भरे जिन इलाकों को कोर्पोरेट कंपनियों को सौंपे जाने का विरोध कर रहे आदिवासी गांवों को नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र घोषित कर जगह-जगह अर्ध सैन्यबलों के पुलिस कैम्प बना रखे हैं, इस कोरोना काल में भी फर्जी मुठभेड़, ह्त्या, गिरफ्तारी, फर्जी समर्पण और दमन की घटनाओं में लगातार इजाफा ही होना काफी चिंताजनक है।

कैसी दर्दनाक विडंबना है कि इस आपदा स्थिति में भी इन आदिवासी गांवों में मेडिकल कैम्प बिठाने के सवाल पर तो सरकार कहीं नहीं दिखती लेकिन पुलिस कैम्प बिठाने के लिए बेगुनाह ग्रामीणों की लाशें बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। यानी महामारी से त्रस्त ग्रामीणों को महामारी संक्रमण की समस्या से निजात भले ही न मिले, पुलिस व अर्ध सैन्यबलों की लाठी गोली का सरकारी बंदोबस्त पूरी तरह चाक चौबंद है।

गत 16 मई को छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर संभाग के बीजापुर जिला स्थित सलगर में आदिवासियों पर हुई पुलिस फायरिंग का विरोध जोर पकड़ता जा रहा है। जहाँ 12 मई को अर्ध सैन्य बल का पुलिस कैम्प बनाए जाने का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे आदिवासियों पर दिनदहाड़े पुलिस फायरिंग और दमन का तांडव किया गया। जिसमें पुलिस के अनुसार 3 आदिवासियों के मारे जाने और 6 के घायल होने की सूचना है। जबकि स्थानीय लोग 9 लोगों के मारे जाने, दर्जनों के गंभीर रूप से घायल होने तथा कईयों के लापता होने की बात कह रहें हैं।

इस काण्ड ने प्रदेश के गैर भाजपा सरकार की तगमाधारी कांग्रेसी शासन के उसी दमनकारी रवैये को सामने ला दिया है जो पिछली सरकारों ने किया था जिससे तंग तबाह इस पूरे इलाके के आदिवासियों ने कांग्रेस को बढ़ चढ़ कर जनादेश दिया था।

एक बार फिर से इस जघन्य काण्ड के लिए पुलिस प्रशासन का वही पुराना और घिसा पिटा तर्क है कि ग्रामीणों के वेश में नक्सलियों ने जब पुलिस पर हमला बोल दिया तो आत्मरक्षार्थ गोली चलानी पड़ी। बस्तर पुलिस आईजी का दावा है कि सभी मृतक और घायल आदिवासी माओवादी नक्सली हैं।  

हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर क्षेत्र में पुलिस प्रशासन द्वारा आदिवासियों पर किये जा रहे जोर ज़ुल्म की लगातार जारी घटनाओं को पूरे देश ने देखा कि किस तरह से यहाँ नागरिक और मानवाधिकार हनन आम परिघटना बना दी गयी। इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता व जागरूक पत्रकारों को पुलिस प्रशासन द्वारा नहीं बक़शा गया। आज भी कई आन्दोलनकारी जेलों में बंद हैं 

इस बार भी स्थानीय मीडियाकर्मियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा जारी ख़बरों के अनुसार पिछले 12 मई को छतीसगढ़ पुलिस द्वारा नक्सली उन्मूलन अभियान के नाम पर बस्तर क्षेत्र के सुकुमा जिला से सटे बीजापुर जिला स्थित सिलगर गाँव में अर्ध्य सैन्य बल कैम्प स्थापित कर दिया था। उक्त इलाका पांचवी अनुसूची संरक्षित क्षेत्र होने के बावजूद न तो स्थानीय ग्राम सभा से कोई अनुमति ली गयी और न ही इस मामले को लेकर स्थानीय ग्रामीणों से पूर्व में कोई बातचीत की गयी। जिससे नाराज़ क्षेत्र के सभी आदिवासी अपने इलाके में जबरन पुलिस कैम्प लगाये जाने के विरोध में एकजुट होने लगे। 13 मई से शुरू किये गए विरोध अभियान के तहत 14 मई को तिमपुरम गाँव में सैकड़ों की संख्या में एकत्र होकर सरकार व पुलिस विरोधी नारे लगाते हुए शांतिपूर्ण प्रतिवाद प्रदर्शित किया गया। 16 मई की सुबह सिलगर में जब आस पास के दर्जनों गावों से पहुंचे हजारों आदिवासी शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे तो नक्सली हमला बताकर बिना कोई चेतावनी दिए वहां उपस्थित अर्ध सैन्य बल व पुलिस ने अचानक से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। अश्रु गैस के गोले छोड़ते हुए बर्बर लाठी चार्ज कर भीड़ को तितर बितर कर दिया गया, लेकिन सोशल मीडिया में घटना के वायरल वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि वहां हमलावर कौन है और किसके द्वारा भीड़ पर पीछे से गोलियां चलाने की आवाज़ सुनाई दे रही है।

19 मई को नागरिक अधिकार संगठन पीयूसीएल और भाकपा माले की छत्तीसगढ़ इकाई ने बयान जारी कर उक्त गोली काण्ड की तीखी भर्त्सना करते हुए प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार के दमनकारी रवैये के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है। गोली काण्ड की स्वतंत्र और उच्च स्तरीय न्यायिक जांच की मांग करते हुए कहा है कि कितना अमानवीय है कि पुलिस ने बेगुनाह आदिवासियों पर हमला ऐसे समय में किया है जब पुरे छत्तीसगढ़ की जनता भी कोविड आपदा और लॉकडाउन से जूझ रही है।

पीयूसीएल ने इस जघन्य गोली काण्ड के दोषियों को सजा देने की मांग करते हुए  2014 में सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का हवाला दिया गया है जिसके तहत ऐसे मुठभेड़ों के मामले में पीड़ितों की ओर से भी काउंटर एफआईआर अनिवार्य रूप से दर्ज़ किये जाने की बात कही गयी है ताकि दोषी अर्ध सैन्य बल व पुलिस प्रशासन के अधिकारीयों के खिलाफ भी कारवाई सुनिश्चित हो सके। गोली काण्ड में घायलों को पूरी सुरक्षा व समुचित चिकित्सा देने तथा सभी लापता आदिवासियों को अविलम्ब सुरक्षित वापसी की भी मांग की है। वहीँ भाकपा माले ने नारा दिया है “भूपेश बघेल सरकार होश में आओ , आदिवासियों पर गोली मत चलवाओ, आदिवासी इलाकों से पुलिस कैम्प हटाओ!” 

पिछली सरकारों की भांति भूपेश बघेल सरकार प्रशासन द्वारा भी गोली कांड को नक्सली हिंसा का जवाब बताये जाने के विरोध का स्वर लगातार बढ़ता जा रहा है। छत्तीसगढ़ के कई नागरिक व मानवाधिकार संगठनों, वामपंथी दल और सामाजिक जन संगठनों के साथ साथ सर्व आदिवासी समाज समेत कई आदिवासी संगठन भूपेश बघेल सरकार के विरोध में खड़े हो गए हैं।

जन संगठनों के राष्ट्रीय साझा मंच एनएपीएम की चर्चित आन्दोलनकारी मेधा पाटकर ने सोशल मीडिया के माध्यम से गोलीकांड को बड़ा अपराध करार देते हुए कहा है कि प्रदेश की इस नयी सरकार से उम्मीद टूट गयी है कि अब यहाँ के आदिवासियों को न्याय और नयी ज़िन्दगी हासिल होगी।

भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव ने भी ट्वीट जारी कर सिलगर जनसंहार का सच सामने लाने और पीड़ितों व बचे हुए लोगों को न्याय की मांग की है। साथ ही बेला भाटिया व ज्यां द्रेज़ जैसे वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं को वहाँ जाने से रोके जाने का कड़ा विरोध किया है। 

लॉकडाउन बंदी के कारण सोशल मीडिया व कई बेवसाइटों में इस काण्ड की ख़बरों के साथ-साथ प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ लगातार प्रतिक्रियाएं बढती जा रहीं हैं जिनमें नक्सलवादी व माओवादी कहकर बस्तर के आदिवासियों पर वर्तमान की गैर भाजपा सरकार द्वारा पिछली सरकार की ही भांति लगातार जारी राज्य दमन की घोर निंदा की जा रही है।

ऑल इंडिया पीपल्स फोरम छत्तीसगढ़ संयोजक व एक्टू मजदुर नेता ब्रिजेन्द्र तिवारी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि स्थिति सामान्य होते ही पूरे प्रदेश में बड़ा नागरिक प्रतिवाद खड़ा किया जाएगा क्योंकि उक्त काण्ड साबित करता है कि कोरोना महामारी प्रकोप व लॉकडाउन प्रतिबंधों से जहां पूरे प्रदेश का जनजीवन अस्त व्यस्त है लेकिन भूपेश बघेल सरकार भी बस्तर क्षेत्र के जल जंगल ज़मीन को कॉपोरेट कंपनियों के हाथों लुटवाने के लिए गावों में पुलिस कैम्प बिठाकर ‘आपदा को अवसर’ बनाने में पीछे नहीं है। 

सूत्रों के अनुसार इस गोली काण्ड के खिलाफ पूरे प्रदेश का आदिवासी समुदाय काफी आक्रोशित है। सिलगर क्षेत्र के आदिवासियों ने साफ़ ऐलान कर रखा है कि जब तक पुलिस कैम्प नहीं हटेगा, उनका विरोध जारी रहेगा। वहीं पूरा इलाका पुलिस छावनी में तब्दील कर घटनास्थल व पीड़ितों से मिलने जाने के लिए किसी भी सामाजिक कार्यकर्त्ता व पत्रकारों के प्रवेश पर अभी भी पूर्ण पाबंदी लगी हुई है। बीजापुर कलेक्टर का कहना है कि यदि आदिवासी अपना विरोध बंद कर दें तो सभी लापता लोगों को छोड़ दिया जाएगा। 

देखना है कि पिछले विधान सभा चुनाव में वर्तमान प्रदेश सरकार के सत्ताधारी दल व नेताओं द्वारा छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के जल जंगल ज़मीन के अधिकारों व उनके प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षा सुरक्षा के वायदों का क्या होता है। साथ ही नक्सलवाद समस्या और आदिवासियों पर हो रहे राज्य दमन रोकने जैसे अहम् सवालों पर भूपेश बघेल सरकार कैसा रवैया अपनाती है। 

Chhattisgarh
aadiwasi
tribals protest
Chhattisgarh Police
Naxalite
CPI-ML
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • farmers
    चमन लाल
    पंजाब में राजनीतिक दलदल में जाने से पहले किसानों को सावधानी बरतनी चाहिए
    10 Jan 2022
    तथ्य यह है कि मौजूदा चुनावी तंत्र, कृषि क़ानून आंदोलन में तमाम दुख-दर्दों के बाद किसानों को जो ताक़त हासिल हुई है, उसे सोख लेगा। संयुक्त समाज मोर्चा को अगर चुनावी राजनीति में जाना ही है, तो उसे विशेष…
  • Dalit Panther
    अमेय तिरोदकर
    दलित पैंथर के 50 साल: भारत का पहला आक्रामक दलित युवा आंदोलन
    10 Jan 2022
    दलित पैंथर महाराष्ट्र में दलितों पर हो रहे अत्याचारों की एक स्वाभाविक और आक्रामक प्रतिक्रिया थी। इसने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया था और भारत की दलित राजनीति पर भी इसका निर्विवाद प्रभाव…
  • Muslim Dharm Sansad
    रवि शंकर दुबे
    हिन्दू धर्म संसद बनाम मुस्लिम धर्म संसद : नफ़रत के ख़िलाफ़ एकता का संदेश
    10 Jan 2022
    पिछले कुछ वक्त से धर्म संसदों का दौर चल रहा है, पहले हरिद्वार और छत्तीसगढ़ में और अब बरेली के इस्लामिया मैदान में... इन धर्म संसदों का आखिर मकसद क्या है?, क्या ये आने वाले चुनावों की तैयारी है, या…
  • bjp punjab
    डॉ. राजू पाण्डेय
    ‘सुरक्षा संकट’: चुनावों से पहले फिर एक बार…
    10 Jan 2022
    अपने ही देश की जनता को षड्यंत्रकारी शत्रु के रूप में देखने की प्रवृत्ति अलोकप्रिय तानाशाहों का सहज गुण होती है किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री का नहीं।
  • up vidhan sabha
    लाल बहादुर सिंह
    यूपी: कई मायनों में अलग है यह विधानसभा चुनाव, नतीजे तय करेंगे हमारे लोकतंत्र का भविष्य
    10 Jan 2022
    माना जा रहा है कि इन चुनावों के नतीजे राष्ट्रीय स्तर पर नए political alignments को trigger करेंगे। यह चुनाव इस मायने में भी ऐतिहासिक है कि यह देश-दुनिया का पहला चुनाव है जो महामारी के साये में डिजिटल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License