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चीन का ‘स्वास्थ्य रेशम मार्ग’ दक्षिण एशिया में दिखायी पड़ने लगा है
27 जुलाई को अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के विदेश मंत्रियों के साथ हुई एक वर्चुअल बैठक अन्य चीज़ों के बीच बीआरआई को फिर से सक्रिय करने के ख़्याल से बीजिंग की चिकित्सा कूटनीति की तीसरी दिशा बन गयी है।
एम. के. भद्रकुमार
31 Jul 2020
चीन का ‘स्वास्थ्य रेशम मार्ग’ दक्षिण एशिया में दिखायी पड़ने लगा है
विदेशों में तैनाती के लिए तैयार फ़ेस मास्क पहने चीनी चिकित्सा कर्मचारी।

27 जुलाई को चीन, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के विदेश मंत्रियों की एक वर्चुअल बैठक बीजिंग के ‘स्वास्थ्य रेशम मार्ग’ कूटनीति की तीसरी दिशा बन गयी है।

इस घटना पर सिन्हुआ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने इस बात का सामने रखा है कि इन चार देशों को इस क्षेत्र में कोविड-19 से निपटने को लेकर संयुक्त सहयोग तंत्र को आगे बढ़ाकर, महामारी के ख़िलाफ़ और वैक्सीन की लड़ाई में सहयोग बढ़ाकर और इस महामारी के बाद आर्थिक सुधार और विकास में तेज़ी लाकर कोविड-19 के ख़िलाफ़ एकजुटता की सहमति को मज़बूत करना चाहिए।

पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल के विदेश मंत्रियों ने कोविड-19 से लड़ने के लिए चीन के साथ सहयोग को गहरा करने, व्यापार और परिवहन गलियारों को सुनिश्चित करने, इन सभी देशों के लोगों के बीच और व्यापार संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए "स्वास्थ्य रेशम मार्ग और मानवता के लिए साझे भविष्य वाले एक समुदाय का निर्माण करने की अपनी इच्छा जतायी है।"

चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग द्वारा सार्वजनिक रूप से स्वास्थ्य रेशम मार्ग का पहली बार उल्लेख उज्बेकिस्तान में 2016 के भाषण के दौरान किया गया था। बीआरआई की विशाल छतरी के नीचे चीन की कोविड-19 को लेकर संघर्ष की अभिव्यक्ति इसकी शुरुआती क़दम के तौर पर दिखने लगी है।

एशियाई क्षेत्र में यह प्रक्रिया फ़रवरी में ही उस समय शुरू हो गयी थी, जब लाओस की राजधानी वियांग चान में कोरोना वायरस रोग 2019 (कोविड-19) पर विशेष आसियान-चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी। जैसा कि वियांग चान में जारी संयुक्त बयान में दिखायी दिया कि इसका नतीजा उत्साहजनक रहा। 

ख़ास तौर पर चीन और आसियान ने ख़ुद को एक ही स्थिति में पाया और दोनों पक्षों के बीच "संक्रामक और संचारी रोगों के उभरने और फिर से फैलने को रोकने और नियंत्रित करने" में दोनों पक्षों के बीच सहयोग की अनिवार्यता को लेकर और संयुक्त रूप से स्वास्थ्य, सुरक्षा और "सामाजिक-आर्थिक विकास में तेज़ी लाने की राह में आ रही चुनौतियों का सामना करने पर सहमति व्यक्त की गयी। 

आसियान ने "महामारी पर क़ाबू पाने में कामयाबी को लेकर चीन की क्षमताओं में पूर्ण विश्वास" जताया, जबकि चीन ने अपने प्रयासों के एवज़ में "आसियान सदस्य देशों की तरफ़ से मिली सहानुभूति, समर्थन और सहायता" की जमकर सराहना की।

वियांग चान की बैठक में एक कार्य योजना की रूपरेखा तैयार की गयी, जिसमें वित्त मंत्रियों के स्तर पर मई में हुई एक दूसरे बैठक में कुछ और ब्योरे जोड़े गये। आसियन-चीन के आर्थिक मंत्रियों के संयुक्त वक्तव्य में कोविड-19 की रोकथाम और नियंत्रण पर इस क्षेत्र और देशों में सभी स्तरों पर सहयोग को और मज़बूत बनाने...(और) कोविड-19 के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं और टीकों के उत्पादन और दवाओं तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने को लेकर एक समझौते को रेखांकित किया गया।

छह हफ़्ते बाद, एक और चीनी पहल दिखायी दी, जिसे चीन-मध्य एशिया के विदेश मंत्रियों की बैठक 'चीन+मध्य एशिया' या 'C + C5' के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें बीआरआई पर ध्यान केंद्रित किया गया और कोविड-19 से निपटने के "संयुक्त प्रयास" पर ज़ोर दिया गया। दक्षिण-पूर्व एशियाई और मध्य एशियाई घटकों के मुक़ाबले 27 जुलाई को चीन और तीन दक्षिण एशियाई देशों की आयोजित बैठक अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण मामले को लेकर रही।

दक्षिण पूर्व एशियाई, मध्य एशियाई और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में चीन की प्राथमिकतायें बदलती रहती हैं। दक्षिणपूर्वी एशिया ने बाक़ी अन्य इन दोनों ही क्षेत्रों के मुक़ाबले इस महामारी के बाद की नयी स्थिति में प्रवेश करने को लेकर बढ़त बना ली है।

हालांकि इस महामारी ने दुनिया भर की सरकारों को अपनी सीमाओं को बंद रखने और आर्थिक गतिविधियों को ठप्प कर लेने के लिए मजबूर कर दिया है, लेकिन आसियान, चीन के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में सामने आया है। व्यापार में यह बढ़ोत्तरी चीन के साथ इस क्षेत्र की अटूट आपूर्ति श्रृंखला और दक्षिण-पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को चीन के साथ जुड़ने वाले सम्बन्धों की मज़बूती की गवाही देती है।

यह वैश्वीकरण पर आमतौर पर समझे जाने वाले गुणा गणित से एक अलग मामला है। आसियान देश भव्य भू-राजनीतिक आख्यानों की दुनिया में तो नहीं आते हैं, लेकिन, आज एक दूसरे के साथ चलकर पुनर्विकास की धारणा की जो नयी स्थिति बन रही है,उसे इस बात से समझा जा सकता है कि अमेरिका  चीन की आधिपत्य वाली वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता को समाप्त करने और "आत्मनिर्भरता" आदि की बात कर रहा है,लेकिन आसियान देश कोविड-19 संकट के शुरू से ही चीन के साथ सहयोग करने में तेज़ी दिखाती रही है।

जब अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे अर्ध-सहयोगियों के साथ मिलकर संक्रमण के शुरुआती दिनों में चीन-विरोधी भावनाओं का विष-वमन किया था, तो आसियान देशों ने वुहान से आ रही परेशान कर देने वाली ख़बरों को लेकर बीजिंग के लिए करुणा, एकजुटता और अटूट समर्थन का इज़हार किया था।

चीन-आसियान,दोनों की समग्र प्रतिक्रिया के ये कई स्तर संकट के समय में एक दूसरे के साथ की ज़रूरत और होने वाले फ़ायदे, दोनों को दर्शाते हैं। इस स्थिति को साफ़ करने के लिए ली कुआन येव स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर में प्रोफ़ेसर और विश्व घटनाक्रम के विषयों की विशेषज्ञ माने जाने वाली मरीना कैनेटी की बातों को यहां उद्धृत किया जा सकता है, जिसमें वे कहती हैं-

“कोविड-19 महामारी की वजह से जो भू-राजनीतिक और आर्थिक दबाव पड़ा है,दरअस्ल यह नयी स्थिति दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में अब चीन के साथ नये प्रकार के सम्बन्धों को सक्रिय रूप से आकार देने का एक अनूठा अवसर है: पहली बात कि यह निर्भरता पर आधारित नहीं है, बल्कि चीन की प्रस्तावित पारस्परिकता की भाषा के मुताबिक़ परस्पर लाभ उठाने पर आधारित है। बेशक, चीन को समान शर्तों पर साथ ले आना कभी से आसान काम नहीं रहा है। मगर, जिस तरह से बीजिंग ने कोविड-19 के बाद की दुनिया में बहुपक्षवाद का प्रमुख प्रस्तावक बनने का प्रयास किया है, उस लिहाज से इस पारस्परिकता के मापदंडों और नियमों को केवल चीन द्वारा ही आकार देने की ज़रूरत नहीं रह गयी है। यहां, बीजिंग के अपने क्षेत्रीय भागीदारों के साथ जुड़ने की क्षमता एक साझा भविष्य के साथ एक समुदाय बनाने को लेकर "ज़ोर-शोर से सामने रखे जाने वाले विज़न" की संभावनाओं और सीमाओं के लिटमस टेस्ट के तौर पर काम कर सकती है।”

इसकी तुलना में, जिस बात को लेकर मध्य एशियाई देशों को तलाश रही है, वह है- इस मैदान में चीनी आर्थिक महाशक्ति की वापसी। वे वस्तुओं की क़ीमतों में मंदी, प्रवासी मज़दूरों (आमतौर पर जो उस रूस में रहते हैं, जो ख़ुद ही प्रमुख कोविड-19 प्रकोप और तेल की क़ीमतों में गिरावट की दोहरी मार से हलकान है) की तरफ़ से भेजे जाने वाली रक़म में भारी गिरावट और चीन में एक समग्र आर्थिक मंदी के संयुक्त दबाव से लड़खड़ा रहे हैं।

भौगोलिक प्रतिकूलता की वजह से मध्य एशियाई देशों का आर्थिक भविष्य चीन से जुड़ा हुआ है। इस तरह से बीआरआई की वापसी के लिए इस मैदान में एक ऊर्वर ज़मीन पहले से मौजूद है। शायद चीन की प्रभावशाली अर्थव्यवस्था की पुनर्वापसी इसे मुमकिन बना दे।

जैसा कि मध्य एशिया के एक जाने माने जानकार, रैफ़ेलो पंतुची ने हाल ही में कहा है, "चीन की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने बीजिंग के विचार और स्थानीय आर्थिक भाग्य, दोनों को ही इस क्षेत्र के साथ मिला दिया है। इसका मतलब है यह कि वृहत् बीआरआई ही इस आर्थिक मंदी का सही जवाब है।”

दूसरी ओर, यह बात बीजिंग के ध्यान से नहीं उतर पाया है कि अमेरिकी कूटनीति ने हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान के सिलसिले में मध्य एशियाई क्षेत्र में चल रहे खेल के आख़िरी चरण में अपनी चाल बदल ली है, जिससे इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर एक नयी व्यूह रचना आकार लेने लगी है। दो दशक पुराना अफ़ग़ान युद्ध अपने अंत की ओर है,लेकिन मज़बूत ख़ुफ़िया क्षमताओं वाली एक थोड़ी कम अमेरिकी सैन्य उपस्थिति आने वाले दिनों में झिंजियांग के दरवाज़े पर ज़रूर दिखायी देगी।

इस प्रकार, 16 जुलाई को C + C5 की बैठक में अपने भाषण में चीनी स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री,वांग यी ने अपने मध्य एशियाई सहयोगियों को सम्बोधित करते हुए कहा," कोविड-19 के ख़िलाफ़ अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ायें, कुछ देशों की तरफ़ से अपने स्वार्थी हितों के कारण इस वायरस को कलंकित किये जाने और ठप्पा लगाये जाने की कोशिशों का सख़्त विरोध करें, और वैश्विक कोविड -19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में उचित भूमिका निभाने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का साथ दें।”

किसी दूसरी जगह वांग ने मध्य एशियाई देशों का आह्वान करते हुए कहा,"बहुपक्षीय समन्वय को मज़बूत करें और निष्पक्षता और न्याय का समर्थन करें"। उन्होंने आगे कहा,

“बहुपक्षवाद को बनाये रखना, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों की रक्षा करना, संयुक्त राष्ट्र केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की रक्षा करना और एकतरफ़ावाद और धौंस दिखाये जाने का विरोध करना महत्वपूर्ण है। बहुपक्षीय ढांचे के भीतर वैश्विक मंच पर निष्पक्षता और न्याय को बढ़ावा देने वाले सहयोग को मज़बूत किया जाना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय  सम्बन्धों को ज़्यादा से ज़्यादा लोकतांत्रिक बनाया जाना चाहिए। चीन और मध्य एशियाई देशों को संप्रभुता और सुरक्षा और अन्य मुख्य चिंताओं के बारे में एक-दूसरे को मज़बूत समर्थन देना चाहिए और संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को संचालित करने वाले बुनियादी मानदंडों को बरक़रार रखना चाहिए और इन छह देशों के वैध अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।”

एक चीनी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़, “वांग ने कहा कि चीन और मध्य एशियाई देशों के बीच सहयोग में बढ़ोत्तरी पड़ोसियों के बीच आपसी सहयोग का ही एक रूप है। वक्त की मांग का यही सही जवाब है और इससे दोनों पक्षों और बाक़ी दुनिया को भी फ़ायदा है।”

“मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने एक क़रीबी और दोस्ताने पड़ोसी के तौर पर चीन की सराहना की, और उन्होंने अपने मज़बूत राजनीतिक विश्वास और चीन के साथ पारस्परिक रूप से  फ़ायदा पहुंचने वाले सहयोग का लगातार होते विस्तार के बारे में बात की... उन्होंने कोविड-19 के ख़िलाफ़ चीन के निर्णायक, प्रभावी और कामयाब लड़ाई की तारीफ़ की...इन देशों ने चीन की सहायता की भी सराहना की और कोविड-19 के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने को लेकर चीन के साथ काम करने की अपनी इच्छा भी व्यक्त की, उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन की महत्वपूर्ण भूमिका का समर्थन किया और इससे सम्बन्धित मुद्दे के राजनीतिकरण का विरोध किया।”

इस मामले में यह दक्षिण एशियाई समूह देश-चीन प्लस अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल तुलनात्मक तौर पर ज़्यादा अनुकूल हैं। पाकिस्तान बीजिंग का पारंपरिक सहयोगी है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल चीनी पाले में अभी-अभी आये हैं। पाकिस्तान तो बीआरआई का ध्वजवाहक ही है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल को अभी अपनी शुरुआत करनी है।

अफ़ग़ान-पाकिस्तान सम्बन्ध तनावों से भरा हुआ है, जबकि नेपाल एक दूर स्थित पड़ोसी है। ज़ाहिर है, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल भी एक तालमेल वाला उप-क्षेत्र नहीं हैं। बीजिंग इस स्वास्थ्य रेशम मार्ग की इस पहल में बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव को शामिल कर सकता था,लेकिन चीन ने ऐसा नहीं किया।

शायद, बीजिंग का अनुमान था कि भारतीय भी इसे लेकर उत्साहित होंगे। इस मामले में बीजिंग के हित तीन स्तरीय हैं: पहला, यह सुनिश्चित करना कि अमेरिकी अफ़वाहों को फ़ैलने से रोकना और इससे स्थानीय तनाव पैदा नहीं होने देना; दूसरा, बीआरआई पर कोविड-19 के असर को कम करना और बीआरआई की रफ़्तार में आने वाली कमी को सीमित करना; और, तीसरा, इन तीन दक्षिण एशियाई देशों में जहां चीन सार्वभौमिक रूप से लोकप्रिय है, वहां नयी संभावनाओं को खोलने के लिए बीआरआई को मज़बूती देना और फिर से सक्रिय करना, और इसमें कोई शक नहीं कि चिकित्सा कूटनीति में सद्भावना पैदा करने की ज़बरदस्त क्षमता होती है।

अमेरिका के साथ बढ़ते बैर की इस पृष्ठभूमि में चीन के लिए सब कुछ बढ़ते जाने जैसा है। जैसा कि शी ने पिछले साल बीजिंग में बीआरआई पर हस्ताक्षर करने वाले विश्व के नेताओं की एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था, "नदियों का निरंतर प्रवाह समुद्र को गहरा बनाता है।" बीआरआई सहयोग उच्च गुणवत्ता वाले विकास के एक चरण में प्रवेश कर रहा है और चीन इस स्वास्थ्य रेशम मार्ग को वैश्विक आर्थिक सुधार के लिए एक उत्प्रेरक बनाने को लेकर दृढ़ है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

China’s ‘Silk Road of Health’ Appears in South Asia

COVID-19
Coronavirus
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Pakistan
Nepal

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