NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
भारत
चितरंजन सिंह  (1952-2020) : उदार-सेकुलर मानवतावादी
इसे भारतीय  वाम राजनीति की गहरी विडंबना कहेंगे कि चितरंजन सिंह -जैसा व्यक्ति, जो लोकप्रिय कम्युनिस्ट नेता बन सकता था और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ा व मज़बूत बना सकता था, मानवाधिकार कार्यकर्ता बन कर रह गया।
अजय सिंह
27 Jun 2020
chitranjan singh
फोटो साभार : सोशल मीडिया

सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) व इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) – जैसे वाम राजनीतिक संगठनों से लंबे समय तक घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे चितरंजन सिंह (14.1.1952- 26.6.2020) की कभी कम्युनिस्ट पहचान हुआ करती थी। लेकिन अपनी ज़िंदगी का उत्तरार्द्ध आते-आते वह सिर्फ़ एक बहुत लोकप्रिय व मिलनसार मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते रहे। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल से जुड़े एक सक्रिय, जुझारू, वाम रुझान वाले नेतृत्वकारी कार्यकर्ता के रूप में उनकी पहचान ही सर्वमान्य हो चली थी। उनकी कम्युनिस्ट पहचान काफ़ी पहले ख़त्म हो चुकी थी।

इसे भारतीय  वाम राजनीति की गहरी विडंबना कहेंगे कि चितरंजन सिंह -जैसा व्यक्ति, जो लोकप्रिय कम्युनिस्ट नेता बन सकता था और ख़ासकर उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ा व मज़बूत बना सकता था, मानवाधिकार कार्यकर्ता बन कर रह गया। एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में उन्हें प्रशिक्षित करने, उभारने व सामने लाने की संभावना को गंवा दिया गया। अब इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है : पार्टी या चितरंजन? या, वे आंतरिक जटिलताएं और अंतर्विरोध, जो कम्युनिस्ट पार्टियों का पीछा नहीं छोड़ते? या, अलगाव (alienation) की वह स्थिति, जिसका शिकार चितंरजन हो चले थे?

उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के अपने गांव मनियर में 26  जून को जब चितरंजन सिंह ने आख़िरी सांस ली, उस वक़्त उनके पुराने संगठनों का शायद ही कोई साथी उनके आसपास रहा होगा। संगठनों से उनका रिश्ता शायद ख़त्म हो चला था। उनके निकट के पारिवारिक सदस्य और नये दौर के उनके कुछ नये साथी ही उनके साथ थे, और यही लोग उनकी देखभाल करते चले आ रहे थे। चितरंजन लंबे समय से बीमार थे—वह अनियंत्रित हाई ब्लड शुगर से पीड़ित थे और उनके गुर्दे भी ख़राब हो चले थे। उनका इलाज चल रहा था, लेकिन उनके अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहे थे। अपनी मौत के कुछ दिन पहले वह गहरी बेहोशी (कोमा) में चले गये थे। यह गहरी बेहोशी उस गहरी हताशा, अलग-थलग पड़ जाने के गहरे दंश को भी व्यक्त कर रही थी, जिसका सामना चितरंजन कर रहे थे।

1970 के दशक में जब नक्सलबाड़ी की लहर ने छात्रों-नौजवानों को अपनी ओर खींचना शुरू किया, तो उसके असर में चितरंजन भी आये। उस समय वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे। अराजक कार्रवाइयों को छोड़ वह सशस्त्र किसान आंदोलन की धारा से जुड़े और सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) के संपर्क में आये। उन दिनों यह पार्टी भूमिगत (अंडरग्राउंड) हुआ करती थी। जब पार्टी ने 1982 में खुला राजनीतिक मंच इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आईपीएफ) बनाने का फैसला किया, तब चितजंरन ने उसके गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

उनके वैचारिक-राजनीतिक दृष्टिकोण में अक्सर ढुलमुलपना, अस्पष्टता, असंगति नज़र आती थी। वह उदार हृदय तो थे, लेकिन उनमें उदारतावाद भी अच्छा-ख़ासा था। बाद के दिनों में वह कम्युनिस्ट बहुत कम उदार-सेकुलर मानवतावादी बहुत ज़्यादा नजर आने लगे थे। चितरंजन को भी यही छवि ज़्यादा भाने लगी थी। उनका स्नेहिल, दोस्ताना व्यवहार उन्हें ख़ासा लोकप्रिय बना रहा था।

चितरंजन का जीवन कई उथल-पुथल व ट्रेजडी से भरा हुआ था। उनकी बेटी ने—वह उनकी एकमात्र संतान थी—आत्महत्या कर ली, जब वह बीस-बाइस साल की थी। इस आघात से चितरंजन कभी नहीं उबर सके। इसके पहले उनकी पत्नी का इंतक़ाल हो चुका था। 1980 का दशक ख़त्म होते-होते उन्होंने सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) की नेता कुमुदिनी पति से शादी कर ली। लेकिन यह शादी ज़्यादा दिन नहीं चली और दोनों का संबंध विच्छेद हो गया। कुमुदिनी ने बाद में पार्टी के महासचिव विनोद मिश्र से शादी कर ली। इस घटना से चितरंजन राजनीतिक रूप से बुझ-से गये। उन्हें लगा कि पार्टी में उनका राजनीतिक जीवन ख़त्म हो चला है। उन्होंने पार्टी से और पार्टी ने उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया।

राजनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिये गये, अलगाव व हताशा में जीने वाले, अपने छोटे भाई पर आश्रित रहे चितरंजन सिंह का यह दुखद अंत कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए कुछ सवाल छोड़ गया है।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Chitranjan Singh
Chitranjan Singh Died
Liberal-Secular-Humanist
Indian Left Politics
Leftist

Related Stories


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..
    03 Apr 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी कुछ ज़रूरी राजनीतिक ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : आग़ा हश्र कश्मीरी की दो ग़ज़लें
    03 Apr 2022
    3 अप्रैल 1879 में जन्मे उर्दू शायर, अफ़सानानिगार और प्लेराइट आग़ा हश्र कश्मीरी की जयंती पर पढ़िये उनकी दो ग़ज़लें...
  • april fools
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    एप्रिल फूल बनाया, हमको गुस्सा नहीं आया
    03 Apr 2022
    अभी परसों ही एक अप्रैल गुजरा है। एप्रिल फूल बनाने का दिन। अभी कुछ साल पहले तक एक अप्रैल के दिन लोगों को बेवकूफ बनाने का काफी प्रचलन था। पर अब लगता है लोगों ने यह एक अप्रैल को फूल बनाने का चक्कर अब
  • ज़ाहिद खान
    कलाकार: ‘आप, उत्पल दत्त के बारे में कम जानते हैं’
    03 Apr 2022
    ‘‘मैं तटस्थ नहीं पक्षधर हूं और मैं राजनीतिक संघर्ष में विश्वास करता हूं। जिस दिन मैं राजनीतिक संघर्ष में हिस्सा लेना बंद कर दूंगा, मैं एक कलाकार के रूप में भी मर जाऊंगा।’’
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    CBI क्यों बनी 'तोता', कैसे हो सकती है आजाद, CJI ने क्यों जताई चिंता
    02 Apr 2022
    दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेन्ट एक्ट-1946 के तहत सन् 1963 में स्थापित सीबीआई और देश की अन्य जांच एजेंसियों को क्यों सरकारी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए? एक सुसंगत लोकतंत्र के लिए इन संस्थाओं का…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License