NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विज्ञान
अंतरराष्ट्रीय
पिछले 6.6 करोड़ वर्षों के जलवायु अध्ययन से पता चलता है कि धरती के तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है
इस अध्ययन में यह निष्कर्ष निकलकर आया है कि धरती की बदलती कक्षा से उत्पन्न होने वाले बदलावों की तुलना में मानव निर्मित जलवायु परिवर्तनों ने व्यापक स्तर पर बदलाव को आकार दिया है।
संदीपन तालुकदार
16 Sep 2020
धरती

प्राकृतिक संसार में काल-चक्र उसके अंतर्निहित हिस्से के तौर पर मौजूद है। इसे सिर्फ दिन-रात, जाड़ा-गर्मी वाले प्राकृतिक संसार के काल-चक्र तक ही सीमित करने नहीं देख सकते, बल्कि यह धरती की जलवायुवीय पारिस्थितियों तक फैली हुई है। पिछले कई लाखों वर्षों के दौरान यह गृह अपनी जलवायुवीय परिस्थितियों में इस प्रकार के काल-चक्रों वाले बदलावों से गुजरता आ रहा है। साइंस  पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात की जानकारी मुहैया कराई है कि किस प्रकार से पृथ्वी की जलवायु पिछले 6.6 करोड़ वर्षों के दौरान विभिन्न परिवर्तनों के दौर से गुजरी है। 

इस शोध में समूचे नूतनजीव महाकल्प युग (सेनोज़ोइक युग) के दौरान पृथ्वी के जलवायु के विस्तृत विवरण को शामिल किया गया है, जोकि 6.6 करोड़ वर्षों का विशाल काल खण्ड है, जिसकी शुरुआत डायनासोरों के विलुप्तप्राय होने से आरंभ होकर वर्तमान काल में मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन तक फैला हुआ है। शोधकर्ताओं ने इस समूचे कालखण्ड को चार श्रेणियों- वार्महाउस, हॉटहाउस, कूलहाउस एवं आइसहाउस में विभाजित करके दर्शाया है। इनमें से प्रत्येक चारों श्रेणियों के गृह के कक्षा में बदलाव, ग्रीनहाउस गैस के स्तर एवं ध्रुवीय बर्फ की परतों की मात्रा पर विशिष्ट जलवायुवीय स्थितियाँ बनी हुई थीं।  

इसमें सबसे चिंताजनक तथ्य यह देखने को मिला है कि वर्तमान कालखंड में मानव प्रेरित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के चलते वैश्विक तापमान में इतने व्यापक स्तर तक बढ़ोत्तरी देखने को मिली है, जितना कि पिछले कई लाखों वर्षों में देखने को नहीं मिला था। अध्ययन ने अपने निष्कर्षों में पृथ्वी की बदलती कक्षा के चलते होने वाले प्राकृतिक बदलावों की तुलना में मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन को कहीं अधिक व्यापक स्तर पर प्रभावित करने वाला बताया है।

इस अध्ययन का आधार गहरे समुद्री आवधिकता के अध्ययन से जुड़ा है। ये अति सूक्ष्म गहरे समुद्री अमीबा हैं। आज से तकरीबन 6.6 करोड़ साल पहले एक विशाल एस्टेरोइड पृथ्वी से जा टकराया था, और इस टकराहट से इतनी भारी मात्रा में उर्जा पैदा हुई थी कि इसके बारे में कतिपय अनुमानों में कहा जाता है कि यह हजारों आणविक बमों के एकसाथ विस्फोट के बराबर रहा होगा। इसके परिणामस्वरूप जो राख, धूल और चट्टानों के हवा में वाष्पीकृत हो जाने के कारण समूचा आसमान इस कदर गुबार से ढक गया था कि सूर्य की किरणें तक इसे पार नहीं पा रही थीं। इसके चलते नाना प्रकार के पौधों और जानवरों के सामूहिक लुप्तप्राय होने का नुकसान झेलना पड़ा, जिसमें डायनासोर भी शामिल थे। लेकिन इस सबके बावजूद पादछिद्र गण की प्रक्रिया गहरे समुद्री में निरंतर जारी रही और उन्होंने पुनर्जनन और कॉलोनाईजिंग की प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखा। ये नन्हें गहरे समुद्री अमीबा एक मजबूत कवच का निर्माण गहरे समुद्र के भीतर उपलब्ध कैल्शियम और अन्य खनिजों से करते हैं। जब अमीबा की म्रत्यु हो जाती थी तो उनसे गहरे समुद्री तलछट का निर्माण हुआ और इन जीवाश्म कवचों में गृह के प्राचीन इतिहास को भी उन्होंने संरक्षित करके रखने का काम किया। 

वैज्ञानिक कई दशकों से इन जीवाश्मों के माध्यम से धरती के प्राचीन जलवायुवीय पारिस्थितिकी को समझने के लिए उपयोग में ला रहे हैं ताकि इसके जरिये समुद्री तापमान, कार्बन फुटप्रिंट के साथ-साथ कई अन्य खनिजों के बनावट के बारे में महत्वपूर्ण सुराग हासिल किये जा सकें। साइंस में प्रकाशित इस वर्तमान अध्ययन ने भी इन पादछिद्रगण जीवाश्मों को इस्तेमाल में लाया है और ऐसे हजारों नमूनों के रासायनिक तत्वों के विश्लेषण कर अभी तक के धरती की प्राचीन जलवायु के बारे में सबसे विस्तृत विश्लेषण को उजागर करने का काम किया है। यह अध्ययन दशकों से गहरे समुद्र में ड्रिलिंग का नतीजा हैं, और निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए उन्हें संकलित किया गया है।

नीचे दिए गए चार्ट में टेढ़े-मेढ़े पैटर्न के जरिये विभिन्न काल-खण्डों में जलवायुवीय स्थितियों की चार श्रेणियों की सीमाओं का पता लगाया जा सकता है, जैसा कि लेखकों द्वारा इसकी गणना की गई है।

live science_0.jpg

फ़ोटो सौजन्य : लाइवसाइंस.कॉम 

यह तालिका एक चोटी को दर्शाते हुए समाप्त होती है, जो मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान रफ्तार को दर्शाती है। शोधकर्ताओं ने इस बारे में निष्कर्ष निकाला है कि मौजूदा ग्लोबल वार्मिंग की प्रवत्ति किसी भी अन्य प्राकृतिक जलवायुवीय उतार-चढ़ाव से अधिक है जो कि समूचे सेनोज़ोइक काल में कभी भी इतनी बड़ी मात्रा में देखने को नहीं मिली है। इसके भीतर गृह को हॉटहाउस स्थिति में ले जाने की क्षमता मौजूद है। 

इस अध्ययन के सह-लेखक जेम्स ज़ाचोस जो कैलिफोर्निया विश्विद्यालय में अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस के प्रोफेसर हैं, ने अपने एक बयान में कहा है “अब जाकर हम प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता के बारे में पता लगाने में सफल हो सके हैं। इसके माध्यम से हम इस बारे में पता लगा सकते हैं कि अनुमानित मानवजन्य वार्मिंग इससे कितनी अधिक हो सकती है। द इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के 2300 तक के लिए किये गए अनुमानों में 'बिजनेस-एज़-ए-नॉर्मल' परिदृश्य में संभावित तौर पर वैश्विक तापमान इस स्तर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसे इस ग्रह ने पिछले 5 करोड़ वर्षों तक में नहीं देखा होगा।"

उस युग की लंबी जलवायु परिस्थितियों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने गहरे समुद्री तलछट में मौजूद जीवाश्म फोर्म कवच का विश्लेषण किया। विशेष तौर पर तलछट कवचों में कार्बोन एवं ऑक्सीजन आइसोटोप के अनुपात के विश्लेषण को लेकर। भूतकाल की जलवायुवीय परिस्थितियों के बारे में इस अनुपात के ख़ास मायने हैं। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन 18 और ऑक्सीजन 16 आइसोटोप से जब फोरम कवच निर्मित हो रहा था तो इसके जरिये उस दौरान चारों तरफ मौजूद पानी की उष्णता का पता चलता है। यदि अनुपात अधिक है तो इसका अर्थ हुआ पानी ठंडा था। इसी तरह कार्बन 13 और कार्बन 12 आइसोटोप के अनुपात से रोगाणुओं की खपत के लिए कार्बन के तौर पर मौजूद ओर्गानिक मात्रा का पता चलता है। यदि इसका अनुपात अधिक है, तो इसका अर्थ है वातावरण में अधिक मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की मौजूदगी बनी हुई है। 

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में खगोलीय विवरणों को भी जगह दी है। ये खगोलीय ज्यामिति अपने में पृथ्वी की कक्षा के बेहद धीमे बदलावों को शामिल करने के साथ-साथ इसके सूर्य के प्रति झुकाव का अध्ययन करते हैं, जिसे मिलनकोविच चक्र के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने इस बात का विश्लेषण किया कि इन बदलावों ने किस प्रकार से विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय पर पड़ने वाली सूरज के प्रकाश को प्रभावित करने का काम किया। उन्होंने पाया कि इन प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण वैश्विक जलवायु में बेहद कम मात्रा में ही बदलाव संभव हो सका होगा। महत्वपूर्ण बात यह देखने को मिली कि विभिन्न अवस्थाओं में छलांग के दौरान, शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रीनहाउस गैस प्रोफाइल में बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिले हैं।

उदाहरण के तौर पर पैलियोसीन-इओसीन अधिकतम उष्णीय काल के तौर पर ज्ञात दौर में, जोकि डायनासोर के विलुप्त होने के लगभग 1 करोड़ वर्ष बाद की अवधि थी, उस दौरान तापमान वृद्धि आज के स्तर से लगभग 16 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक जा चुकी थी। इसका कारण उत्तरी अटलांटिक में ज्वालामुखी विस्फोट से भारी मात्रा में कार्बन के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप  संभव हुआ था। इसके बाद अगले 1 करोड़ सालों के दौरान कार्बन के वायुमंडल से गायब होने के साथ आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ की चादरें बनने लगीं और यह ग्रह अंततः अपने कूलहाउस चरण में प्रवेश कर गया।

आज से तीस लाख साल पहले, हमारा ग्रह उत्तरी गोलार्ध की बर्फ की चादरों से क्षीण चिन्हित होकर आइसहाउस चरण में प्रवेश कर चुका था। और अब हम मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग वाली अवस्था में जी रहे हैं, जो दसियों लाख वर्षों में देखे गए किसी भी प्राकृतिक उतार-चढ़ाव से कहीं बढ़कर है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

 

Climate Study of Past 66 Million Years Reveals Earth’s Temperature Rise as Unprecedented

Cenozoic Era
Dinosaurs Extinction
66 Million Climate Conditions
Foraminifera
Foram Shells
climate change
Earth Climate

Related Stories

संयुक्त राष्ट्र के IPCC ने जलवायु परिवर्तन आपदा को टालने के लिए, अब तक के सबसे कड़े कदमों को उठाने का किया आह्वान 

जलवायु शमन : रिसर्च ने बताया कि वृक्षारोपण मोनोकल्चर प्लांटेशन की तुलना में ज़्यादा फ़ायदेमंद

अगले पांच वर्षों में पिघल सकती हैं अंटार्कटिक बर्फ की चट्टानें, समुद्री जल स्तर को गंभीर ख़तरा

धरती का बढ़ता ताप और धनी देशों का पाखंड

क्या इंसानों को सूर्य से आने वाले प्रकाश की मात्रा में बदलाव करना चाहिए?

अमीरों द्वारा किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन से ख़तरे में "1.5 डिग्री सेल्सियस" का लक्ष्य

जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट : अमीर देशों ने नहीं की ग़रीब देशों की मदद, विस्थापन रोकने पर किये करोड़ों ख़र्च

आईईए रिपोर्ट की चेतावनी, जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए स्वच्छ ऊर्जा निवेश करने में दुनिया बहुत पीछे

जलवायु परिवर्तन से 1 दशक से कम समय में नष्ट हो गए दुनिया के 14% कोरल रीफ़ : अध्ययन

ग्लोबल वार्मिंग के दौरान कई जानवर अपने आकार में बदलाव कर रहे हैं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License