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भारत
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अपनी मर्ज़ी से काम पर नहीं आने वालों की वेतन कटौती कर सकती हैं कंपनियां: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह आदेश उन औद्योगिक क्षेत्रों के लिए है जहां लॉकडाउन नियमों में छूट दी गई है और औद्योगिक गतिविधियां दोबारा शुरू हो गई हैं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
02 May 2020
 बॉम्बे हाईकोर्ट
Image courtesy: Deccan Herald

कोरोना वायरस के चलते लागू प्रतिबंधों से जिन क्षेत्रों को छूट दी गई है, वहां अगर कोई कर्मचारी अपनी मर्ज़ी से काम पर नहीं आता है तो कंपनी उन कर्मचारियों का वेतन काट सकती हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने गुरुवार को यह निर्देश दिया है।

औरंगाबाद बेंच के जस्टिस रवींद्र वी. घुगे पांच मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें 29 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना को चुनौती दी। इसमें कहा गया था कि एम्पलॉयर्स लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए अपने कर्मचारियों को सैलरी दें जिसमें प्रवासी, कॉन्ट्रैक्ट बेसिस मजदूर, पूर्ण मासिक वेतन पाने वाले लोग शामिल हैं।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में लॉकडाउन नियमों में ढील दी है। ऐसे में इन क्षेत्रों मे नियोक्ताओं को उन मजदूरों की मजदूरी काटने की अनुमति मिल गई है जो काम पर नहीं आ सके। इसके साथ ही गृह मंत्रालय द्वारा 29 मार्च को जारी निर्देंश, जिनमें लॉकडाउन की अवधि में कर्मचारियों को पूरी मजदूरी का भुगतान करने को कहा गया था, उसमे किसी भी तरह का हस्तक्षेप करने से हाई कोर्ट ने इनकार किया है।

आपको बता दें कि कोर्ट प्रीतिकट इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड, पूना क्रिश्चियन मेडिकल एसोसिएशन, सीटीआर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, भोगले ऑटोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड और एलाइन कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस केस की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए हुई।

कंपनियों के वकील टीके. प्रभाकरन ने कहा कि चूंकि लॉकडाउन के कारण मैन्यूफैक्चरिंग काम बंद है और कई श्रमिक काम पर आने के इच्छुक नहीं थे, ऐसे में कंपनियां अपने कामगारों को तन्ख्वाह ना देने की छूट मांग रही थीं। मैन्यूफैक्चरर्स ने कहा कि वे न्यूनतम मजदूरी कानून के अनुसार सकल मजदूरी या मजदूरी की न्यूनतम दरों का 50 प्रतिशत, जो भी अधिक हो उसका भुगतान करेंगे।

केंद्र की ओर से पेश वकील डीजी नागोडे और वकील डीआर काले ने राज्य का पक्ष रखते हुए अधिकारियों से निर्देश लेने के लिए समय मांगा। जस्टिस घुगे ने इस तरह के एक मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित बताते हुए गृह मंत्रालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस आर वी घुगे ने कहा  "यह स्पष्ट किया कि चूंकि महाराष्ट्र ने आंशिक रूप से राज्य में कुछ औद्योगिक क्षेत्रों में लॉकडाउन खत्म कर दिया है, इसलिए श्रमिकों से अपेक्षा की जाती है कि वो शिफ्ट के अनुसार रिपोर्ट करें। उन्हें नियोक्ता द्वारा कोरोना वायरस के संक्रमण से पर्याप्त सुरक्षा दी जाएगी। यदि कर्मचारी स्वेच्छा से अनुपस्थित रहते हैं तो प्रबंधन को यह आजादी होगी कि वह उनकी मजदूरी में कटौती करे। हालांकि ऐसी कार्रवाई शुरू करते समय कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। यह उन क्षेत्रों पर भी लागू होगा जहां शायद लॉकडाउन नहीं किया गया है।"

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकार के 29 मार्च के निर्देश पर केंद्र सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है।

(क़ानूनी समाचार बेवसाइट लाइव लॉ के इनपुट के साथ)

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