NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी और भाजपा के बीच आपदा को अवसर में बदलने की होड़, पंचायतों की वित्तीय-निधि पर संघर्ष  
कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए पंचायत-चुनाव टलने की स्थिति में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की चौदह हजार से अधिक ग्राम-पंचायतों में निजी प्रशासकों की नियुक्ति का निर्णय लिया है। इस निर्णय के बाद सत्तारूढ़ और विपक्षी दल आमने-सामने आ गए हैं।
शिरीष खरे
21 Jul 2020
उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और भाजपा के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (फाइल फोटो), साभार : सोशल मीडिया

महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल महाविकास अघाड़ी और मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के बीच आपदा को अवसर में बदलने की होड़ चल रही है, इसी के चलते कोरोना संक्रमण की सबसे बुरी मार झेल रहे राज्य में दोनों की सियासी पाले अपनी-अपनी जमीन बचाने और बनाने के खेल में एक बार फिर आमने-सामने हैं। इस बार इनके बीच टकराव की वजह बना है वित्त आयोग द्वारा ग्राम-पंचायतों को जारी वित्तीय ख़ज़ाना। इस वित्तीय ख़ज़ाने का इस्तेमाल करने के लिए दोनों अपने-अपने दांव चल रहे है। क्योंकि, दोनों जानते हैं कि एक बार इस ख़ज़ाने को उन्होंने यदि अपने हाथ में ले लिया तो राज्य के ग्रामीण अंचल में उनकी सत्ता स्थापित होने में बहुत आसानी हो जाएगी।

लिहाजा, जहां सत्ता अपनी ताकत का इस्तेमाल करके इसे हासिल करना चाहती है वहीं विपक्ष भी अपने भारी भरकम संगठन का दबाव डालकर किसी भी कीमत पर इसे अपने कब्जे से निकलने नहीं देना चाहती। इसे लेकर दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप और बहसबाजी तेज होती जा रही है।

दरअसल, कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए पंचायत-चुनाव टलने की स्थिति में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की चौदह हजार से अधिक ग्राम-पंचायतों में निजी प्रशासकों की नियुक्ति का निर्णय लिया है। राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद सत्तारूढ़ और विपक्षी दल आमने-सामने आ गए हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि राज्य वित्त आयोग ने इन चौदह हजार ग्राम-पंचायतों को 6,990 करोड़ रुपये की राशि जारी की हुई है। लिहाजा, गांवों तक पहुंचने वाली इस तिजोरी की चाबी किस दल के प्रतिनिधियों के हाथ लगेगी, कौन-सा दल इस राशि से विकास के काम कराएगा, चुनाव की स्थिति में इन कामों का श्रेय लेते हुए कौन अपने दावे करेगा और इसके बूते कौन ग्राम-पंचायतों पर अपनी सरकार बनाने का प्रयास करेगा, जैसे सवालों के चलते मुंबई से लेकर राज्य के ग्रामीण अंचल तक राजनीति गर्मा गई है।

खुमटमला पंचायत सतारा.jpg

पिछली बार राज्य में हुए ग्राम-पंचायत चुनाव के दौरान सतारा जिले के खुमटमला गांव में आयोजित एक सभा का दृश्य। साभार: सोशल मीडिया 

बता दें कि राज्य में 27,782 ग्राम पंचायतें हैं। इसमें से 14 हजार 314 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल दिसंबर 2020 में समाप्त हो रहा है। लेकिन, कोरोना की स्थिति को देखते हुए चुनाव कराना फिलहाल संभव नहीं लग रहा है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने प्रशासक नियुक्त करने का विकल्प चुना है। लेकिन, राज्य की महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा इन ग्राम पंचायतों में निजी व्यक्तियों को प्रशासक के रूप में नियुक्त करने के निर्णय का मुख्य विपक्षी दल भाजपा को नागवार गुजर रहा है।

भाजपा क्या चाहती है?

हालांकि, कोरोना संकट के दौर में चुनाव-आयोग ने राज्य सरकार के निर्णय को मान लिया है। लेकिन, इस बारे में भाजपा समर्थक प्रतिनिधियों की आशंका है कि इस निर्णय की आड़ में सत्तारूढ़ दल अपने कार्यकर्ताओ को ग्राम-पंचायतों में प्रशासक बना देंगे। यदि ऐसा हुआ तो राज्य में आधे से अधिक ग्राम-पंचायतों पर सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं का नियंत्रण हो जाएगा।

वहीं, राज्य सरकार के इस निर्णय का अखिल भारतीय सरपंच परिषद ने भी विरोध किया है। परिषद की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इससे लोकतांत्रिक परंपरा को ठेस पहुंचेगी। लेकिन, मुख्य विपक्षी दल भाजपा पर इसे सियासी चश्मे से देखने का आरोप लग रहा है।

इस बारे में राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री हसन मुश्रिफ का कहना है कि चौदह हजार से अधिक प्रशासनिकों की नियुक्ति प्रभारी मंत्रियों द्वारा की जाएंगी। वहीं, इस पूरी प्रक्रिया में जिला स्तर के किसी अधिकारी को भी नियुक्त नहीं किया जाएगा। हालांकि, प्रशासनिकों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान लागू किया जाएगा।

दूसरी तरफ, भाजपा नेतृत्व भी इस पूरे मामले में  अपना नफा-नुकसान देख रहा है। वह राज्य सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए इस मुद्दे को न्यायालय में ले जाने की चेतावनी तक रहा है, लेकिन साथ ही यह मांग भी कर रहा है कि सरपंचों को प्रशासक बनाया जाए या उनका कार्यकाल बढ़ाया जाए।

असल में उसकी इस मांग के पीछे वजह यह है कि राज्य के ज्यादातर ग्राम-पंचायतों में सरपंच के तौर पर उसके प्रतिनिधियों का कब्जा बना हुआ है और वह इस कब्जे को आसानी से खोना नहीं चाहती है।

इसलिए, यदि उसकी मांग के अनुसार मौजूदा सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया जाता है या अनिश्चित काल के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया जाता है तो स्वाभाविक तौर पर पार्टी को इसका फायदा होगा और वित्त आयोग की राशि को वह अपनी तरह से उपयोग करके चुनाव के दौरान मजबूत स्थिति में रहेगी। इसलिए, भाजपा के नेता सुधीर मुनगंटीवार राज्य सरकार से बार-बार यह सवाल पूछ रहे हैं कि मौजूदा सरपंचों को प्रशासक नियुक्त क्यों नहीं किया जा सकता है।

ताकि सरकार के पास रहे चाबी 

दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी दल जानते हैं कि कोरोना काल में यदि चुनाव नहीं होने की स्थिति में भाजपा की मांग के अनुसार ग्राम-पंचायत के सारे अधिकार मौजूदा सरपंचों के हाथों में ही बरकरार रखे गए तो स्वाभाविक रूप से भाजपा इसका फायदा उठाएगी और वित्त आयोग द्वारा जारी करोड़ों की राशि का बड़ा हिस्सा प्रतिद्वंदी पार्टी के समर्थकों के पास पहुंच जाएगा। वे ग्राम विकास के कार्यों में इसका उपयोग करके कई जिलों में अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं। इसका खामियाजा अन्य दलों को भुगतना पड़ेगा। इसलिए, उसने भाजपा की मांग की विपरीत एक अलग विकल्प दिया है।

यही वजह है कि महाविकास अघाड़ी दल और भाजपा आपदा और महामारी के इस दौर को अवसर में बदलने के लिए अपनी-अपनी चाल चल रहे हैं, लिहाजा ग्रामीण महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों प्रमुख राजनीतिक ताकतों के बीच संघर्ष और टकराव बढ़ता जा रहा है।

बता दें कि इस वर्ष जून के अंतिम सप्ताह और जुलाई के मध्य में राज्य की 27,782 ग्राम-पंचायतों, जिला परिषदों और पंचायत समितियों को दो किस्तों में कुल 2,914 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। महाराष्ट्र को स्थानीय निकायों के लिए 15वें वित्त आयोग से 6,990 करोड़ रूपए की राशि मंजूर की गई है। इसमें से 10 फीसदी फंड जिला-परिषदों, 10 फीसदी फंड पंचायत-समितियों और सबसे अधिक 80 फीसदी फंड ग्राम-पंचायतों के लिए हैं।

इसका मतलब है कि पूरे राज्य में 27 हजार से अधिक ग्राम-पंचायतों के लिए पूरे वर्ष में साढ़े चार हजार करोड़ से अधिक राशि उपलब्ध होगी। इनमें से 14 हजार से अधिक ग्राम-पंचायतों का कार्यकाल दिसंबर तक समाप्त हो रहा है। इसलिए, करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपये में से लगभग ढाई हजार करोड़ रुपये उन ग्राम-पंचायतों को मिलेगा जिनका कार्यकाल दिसंबर में समाप्त हो रहा है।

लिहाजा, आधे से अधिक ग्राम-पंचायतों में जब कार्यकाल समाप्त होने को हैं तो ऐसी स्थिति में चुनावी भागदौड़ के समय जिसके पास वित्तीय अधिकार रहेंगे वे और उनके सहयोगी इस निधि से बड़े पैमाने पर विकास कार्यों का दावा करेंगे और गांवों में अपनी सत्ता को बनाए रखने की कोशिश करेंगे। यही कारण है कि एक ओर सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी है जो सत्ता के बूते गांवों की वित्तीय शक्ति को अपने अनुरूप हासिल करने और ग्रासरुट पर अपनी पॉवर बढ़ाने की कवायद कर रहा है।

दूसरी तरफ, भाजपा अपने सियासी ताकत का इस्तेमाल सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाने के लिए कर रही है कि किसी तरह सरपंच को ही प्रशासक नियुक्त कर दिया जाए, ताकि वह मौजूदा सरपंचों की संख्याबल का लाभ उठा सके और लंबे समय तक गांवों के सरकारी साधन-संसाधनों पर अधिकार बनाए रखे। दरअसल, दोनों ही राजनीतिक पक्ष यह जानते हैं कि यदि उन्होंने ग्राम-पंचायतों पर अपना कब्जा जमा लिया तो इसका लाभ उन्हें चुनावी राजनीति में मिलेगा और इससे उनका संगठन व कैडर भी सक्रिय बना रहेगा।

दोनों दे रहे दलील 

इस मामले में दोनों पक्षों के पास अपनी-अपनी दलीले हैं। सरकार की तरफ से ग्रामीण विकास मंत्री हसन मुश्रीफ कहते हैं कि ग्राम पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने या मौजूदा सरपंच को प्रशासक नियुक्त करने में कानूनी समस्या है। इसी तरह, सरकारी कर्मचारियों को प्रशासक बना दिया तो वे कोरोना संक्रमण नियंत्रण करने की जिम्मेदारी को अच्छी तरह से नहीं निभा सकेंगे। ऐसी स्थिति में निजी व्यक्तियों को ही बतौर प्रशासक नियुक्त करना आखिरी और बेहतर विकल्प है, ऐसा हुआ तो ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य चलता रहेगा।

दूसरी तरफ, मुख्य विपक्षी दल भाजपा की ओर से सुधीर मुनगंटीवार का अपना तर्क है। वे कहते हैं कि ग्राम पंचायत में वित्तीय अधिकार सरपंच के रुप में चुने हुए प्रतिनिधियों के पास होने चाहिए। यदि यह संभव नहीं है तो सुरक्षित तरीके से चुनाव की प्रक्रिया सम्पन्न कराने के बारे में विचार किया जाना चाहिए।  लेकिन ग्राम पंचायत के ख़ज़ाने की चाबी किसी भी परिस्थिति में किसी निजी व्यक्ति के पास नहीं जानी चाहिए।

भाजपा राज्य सरकार के इस निर्णय को लेकर आक्रमक होती जा रही है। बीते दिनों राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के नेता देवेंद्र फडणवीस ने इसके विरोध में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा है। पार्टी का कहना है यदि राज्य सरकार अपने निर्णय से पीछे नहीं हटती तो वह जल्द ही न्यायालय में जाएगी।

(शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Maharastra
Uddhav Thackeray
Shiv sena
Devendra Fednavis
BJP
Panchayat election
Gram panchayats

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License