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राजनीति
‘डबल इंजन’ सरकार का हाल: पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स में इस साल भी यूपी सबसे नीचे
यह कोई चुनाव पूर्व माहौल बनाने के लिए होने वाला प्रायोजित सर्वे नहीं है, अपितु ISRO के पूर्व चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में काम कर रहे थिंक-टैंक की रिपोर्ट है, जो शासन की गुणवत्ता के आधार पर हर साल देश के सभी राज्यों की एक समेकित सूचकांक के आधार पर ranking करता है।
लाल बहादुर सिंह
10 Nov 2021
‘डबल इंजन’ सरकार का हाल: पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स में इस साल भी यूपी सबसे नीचे

गोदी मीडिया के प्रायोजित प्रचार और सरकारी विज्ञापनों के बल पर योगी-राज के governance का जो गुब्बारा फुलाया जा रहा था, हाल ही में सार्वजनिक हुई बेंगलुरु based संस्था पब्लिक अफेयर्स सेन्टर की  रिपोर्ट ने उसमें पिन चुभो दिया है। रिपोर्ट के अनुसार सुशासन के पैमाने पर देश में इस वर्ष जहां केरल सबसे ऊपर है, वहीं UP सबसे नीचे !

गौरतलब है कि यह कोई चुनाव पूर्व माहौल बनाने के लिए होने वाला प्रायोजित सर्वे नहीं है, अपितु ISRO के पूर्व चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में काम कर रहे थिंक-टैंक की रिपोर्ट है, जो शासन की गुणवत्ता ( governance performance) के आधार पर हर साल देश के सभी राज्यों की एक समेकित सूचकांक ( composite index ) के आधार पर ranking करता है।

इस सूचकांक की गणना समता (Equity ), ग्रोथ,  sustainability के तीन आधारभूत स्तम्भों की कसौटी पर की जाती है। यह सारी गणना केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर ही की जाती है, किसी निजी सर्वे के आंकड़ों के आधार पर नहीं। 

डॉ. कस्तूरीरंगन मोदी जी द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए बनाई गई कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं और अब curriculum frame-work के लिए बनाई कमेटी के अध्यक्ष हैं। जाहिर है इनके ऊपर योगी-मोदी के खिलाफ किसी पक्षपात का आरोप नहीं लगाया जा सकता।

रिपोर्ट के अनुसार Public Affairs Index में इस वर्ष जहां केरल सबसे ऊपर है, वहीं UP सबसे नीचे! केरल इस साल 1.618 अंक के साथ सबसे ऊपर है और यूपी माइनस अंक (-1.418) के साथ सबसे फिसड्डी। 2020 में भी यही हाल था, केरल जहां 1.388 अंक के साथ शिखर पर था, वहीं UP माइनस अंक (-1.461 ) के साथ सबसे नीचे! दरअसल 2016 में UP इस लिस्ट में 12वें स्थान पर था।

 2017 में योगी के सत्ता संभालने के बाद से इसमें लगातार गिरावट होती गयी है, 2017 में 14वां, 2018 में 14वां, 2019 में 17वां, 2020 और 2021 में आखिरी पायदान पर 18वां स्थान पर है।

 

PACPAI2021SR by rafat alam on Scribd

शासन की गुणवत्ता के अध्ययन के लिए जिन indicators को आधार बनाया गया है, उनमें प्रमुख हैं- सामाजिक सुरक्षा, वास्तविक आय, कुपोषण, महिला भागेदारी, झुग्गी झोंपड़ी, बाल मृत्युदर, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, कानून का राज-हत्या, जेल में बिना सजा विचाराधीन कैदी, SC-ST महिलाओं के खिलाफ अपराध, स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण, भ्रष्टाचार, दहेज मृत्यु आदि।

दरअसल इस रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश की जो जमीनी सच्चाई है, जिससे प्रदेश की जनता अपने जीवन में रोज दो-चार है, उसी की पुष्टि की है। 

इस भारी एन्टी-इनकम्बेंसी से निपटने के लिए मोदी जी के UP दौरों की फ्रीक्वेंसी बढ़ती जा रही है, और वे अतिशयोक्तिपूर्ण लफ्फाजी और सफेद झूठ की अपनी चिरपरिचित शैली पर उतर आए हैं। हर बार जब वे आ रहे हैं योगी जी के सुशासन की भूरि भूरि प्रशंसा कर रहे हैं। हाल ही में  हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में परम्परा के विपरीत, एक मुख्यमंत्री से, योगी आदित्यनाथ से राजनीतिक प्रस्ताव पेश करवाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है।

जुलाई में BHU में रैली को सम्बोधित करते हुए मोदी जी ने कहा कि कोविड की दूसरी लहर को योगी जी ने जिस तरह नियंत्रित किया वह अभूतपूर्व है! जिस प्रदेश ने ऑक्सीजन के अभाव में तड़पते, दम तोड़ते लोगों को, गंगा में बहती लाशों को देखा है, वहां प्रदेश के मुखिया की ऐसी अतिशयोक्तिपूर्ण झूठी तारीफ लोगों के जख्म पर नमक छिड़कने से कम नहीं है। 

अगस्त में उन्होंने केंद्र सरकार की गरीबों को सस्ता अनाज देने की योजना को लागू करने के लिए योगी की पीठ ठोंकी। कभी मनरेगा को पिछली सरकार की असफलता का भव्य स्मारक बताने वाले मोदीजी को देश को यह भी बताना चाहिए कि देश में 80 करोड़ और UP में 15 करोड़ लोगों को इस हालत में पहुंचाने के लिए कौन जिम्मेदार है कि उन्हें सरकार के दिये हुए 5 किलो अनाज की खैरात का मोहताज होना पड़ रहा है और क्या इस भयावह बेकारी और महंगाई के दौर में इस खैरात से किसी का जीवन चलने वाला है ।

सितंबर में योगीजी की चाकचौबंद कानून-व्यवस्था की तारीफ करते हुए मोदी ने कहा कि UP में अब अपराधी अपराध करने के पहले दो बार सोचते हैं। उसके बाद अमित शाह ने उत्तरप्रदेश की जनता को जैसे मुंह चिढ़ाते हुए लखीमपुर किसान-हत्याकांड के मुख्य सूत्रधार गृहराज्यमंत्री अजय टेनी को अपने बगल में खड़ाकर बड़े नाटकीय अंदाज़ में अभिनय करते हुए कहा कि दूरबीन लेकर ढूढ़ने पर भी UP में अब कोई बाहुबली नही दिखता !

यह हास्यास्पद है। सच तो यह है कि योगी जी के 5 साल के पुलिस-राज के और सारे कारनामों को छोड़ भी दिया जाय तो अकेले लखीमपुर कांड उनके " सुशासन " और  "कानून के राज " की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है। पहले मोदी जी के मंत्री के बेटे द्वारा किसानों की बर्बर हत्या और फिर हत्यारों को बचाने की योगी सरकार की बेशर्म कोशिश-इस पर स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए जो बेहद सख्त टिप्पणियां की हैं, उन्होंने योगी सरकार को पूरी तरह नंगा कर दिया है। हकीकत यह है कि सर्वोच्च न्यायालय और किसान-आंदोलन का दबाव न होता तो मंत्रीपुत्र को योगी सरकार गिरफ्तार भी न करती। 8 अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय ने किसानों की हत्या के सबूत छिपाने के भाजपा सरकार के प्रयासों का संज्ञान लेते हुए बिना लाग-लपेट कहा कि सरकार एक हत्यारोपी को बचा रही है ! UP सरकार की जांच पर अविश्वास व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज से जांच का संकेत दिया।

क्या संविधान के सर्वोच्च custodian की ओर से इस असाधारण टिप्पणी के बाद सरकार का शासन करने का नैतिक प्राधिकार बच रहता है  .

जनता के वर्तमान जीवन के मूलभूत सवालों पर बाजी हार चुके योगी अब अतीत के प्रेत जगाने में लगे हैं- जिन्ना से लेकर लगभग एक दशक पहले हुए मुजफ्फरनगर दंगों तक। 8 अक्टूबर को कैराना में उन्होंने वहां 2014-16 के बीच हुए कथित पलायन का सवाल उठाया और " पीड़ितों " को  मुआवजा देने की घोषणा की, पाखंड देखिए कि इसकी याद उन्हें पूरा कार्यकाल बीत जाने के बाद तब आयी है जब चुनाव सर पर आ गए हैं। एक बार फिर, संवैधानिक पद पर बैठे होने के बावजूद साम्प्रदायिक उन्माद उभारने के लिए उन्होंने संविधान-विरोधी वक्तव्य दिया,  "व्यापारियों को गोली मारने वाले अपराधियों को परलोक भेज दिया जाएगा।" 

लेकिन जिंदगी के जलते सवाल अब इतने भारी पड़ रहे हैं और संघ-भाजपा के विभाजनकारी खेल को जनता अब इतनी अच्छी तरह समझ चुकी है कि इन खोखले भावनात्मक सवालों से अब उबाल की बात तो छोड़ दीजिए, कोई जुम्बिश भी नही हो रही। 

विडम्बना देखिए कि जिस समय योगी अपराधियों के खिलाफ यह शेखी बघार रहे थे उसी समय प्रतापगढ़ में अपराधियों ने एक आईएएस अधिकारी के भाई को गोलियों से भून दिया। अपराध के ख़िलाफ़ जब भी राज्य साम्प्रदायिक व जातिगत आधार पर selective कार्रवाइयां करेगा, उसका यही अंजाम होगा, पूरे प्रदेश में शासन-सत्ता से जुड़े दबंगों-अपराधियों तथा निरंकुश पुलिस के जुए तले जनता पिस रही है।

योगी सरकार के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी को भांपते हुए ही लखनऊ की अपनी रैली में अमित शाह ने योगी के किसी कारनामे की बजाय उन्हें इसलिए जिताने की अपील की ताकि 24 में मोदी जी जीत सकें! उन्हें शायद अभी भी यह लगता है कि मोदी जी की दुहाई दे कर UP में वोट बटोरा जा सकता है। इसीलिए सुनते हैं UP में कार्पेट बॉम्बिंग की तैयारी है, कुछ-कुछ बंगाल चुनाव की तर्ज पर, उससे भी लगभग दोगुनी, मोदी की 50 के आसपास रैलियाँ UP में होने जा रही हैं। ( इसी के आसपास अमित शाह की ! ) ।

पर इसका अंजाम भी  कुछ-कुछ बंगाल जैसा ही होता दिख रहा है।

सच्चाई यह है कि भाजपा की डबल इंजन की सरकार को इस चुनाव में डबल एन्टी-इनकम्बेंसी का सामना करना है।

वस्तुतः आज मोदी के खिलाफ पूरे देश में भारी नाराजगी है, जिसकी एक झलक उपचुनावों में भी दिखी है। इसका ही नतीजा प. बंगाल का चुनाव-परिणाम था, जहां अपनी सारी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर भी मोदी चुनाव नहीं जिता सके थे। मोदी के खिलाफ यह नाराजगी योगी से अधिक नहीं तो उससे कम भी नहीं है। UP चुनाव के जो तीन सबसे बड़े मुद्दे हैं- महंगाई, बेरोजगारी और किसान-आंदोलन, ये तीनों ही राष्ट्रीय मुद्दे हैं, जनता इस बात को अच्छी तरह समझ रही है कि इन तीनों के लिए मोदी और उनकी नीतियां जिम्मेदार हैं। कारपोरेट को अकूत फायदा पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय सम्पदा की लूट और जनता के दरिद्रीकरण की मोदी सरकार की आर्थिक-नीतियों, नोटबन्दी, GST, कृषि कानून, लेबर कोड ने मिलकर ही तबाही का आज का मंजर रचा है, इनमें योगी के विकास-विरोधी साम्प्रदायिक, पुलिस-राज ने कोढ़ में खाज का काम किया है। सच तो यह है कि पुरानी सरकार के कामों का शिलान्यास/उद्घाटन करने, नाम बदलने और केंद्र की populist योजनाओं से इतर योगी सरकार ने विकास/जनकल्याण का एक भी नया काम नहीं किया है।

यह उम्मीद करना कि 2024 में मोदी को जिताने के लिए, मोदी के नाम पर जनता योगी को  जिता देगी, खामख्याली है। सच यह है कि आज जनता दोनों को हराना चाहती है। मोदी के प्रति अब कोई pro-इनकम्बेंसी नहीं बची है जो योगी-विरोधी anti-इनकम्बेंसी की काट कर सके, अधिक सम्भावना यह है कि दो-दो anti-इनकम्बेंसी जुड़ जाएं और भाजपा का पूरी तरह सफाया हो जाय। वह समय तो बहुत पीछे छूट ही गया है, जब राज्य के वोट भी मोदी के नाम पर पड़ते थे, वह समय भी बीत गया है जब वोटर विधान-सभा में भाजपा के लिए भले वोट नहीं करता था, लेकिन केंद्र के लिए मोदी ही उसके choice होते थे। अब जनता केंद्र से मोदी को वैसे ही हटाना चाहती है जैसे राज्यों से भाजपा को। इंडिया टुडे के दो महीने पूर्व के Mood Of The Nation सर्वे में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है जिसके अनुसार योगी की लोकप्रियता तो 49% से गिरकर 29% पहुँच ही गयी, मोदी की लोकप्रियता भी साल भर में 66% से गिरकर 24% ही बची है।

आज उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार के खिलाफ चौतरफा असंतोष की भारी under-current  है, जो चुनाव नजदीक आते-आते सुनामी में तब्दील हो सकती है। जनता के दबे हुए गुस्से का ज्वालामुखी फूटने वाला है, उसका लावा इस सरकार को बहा कर ले जाएगा।

जरूरत इस बात की है कि जनता के सरकार विरोधी गुस्से को संगठित राजनीतिक स्वर मिले। वे तमाम ताकतें जो भाजपा को हराना चाहती हैं, उन सब के बीच प्रत्यक्ष या परोक्ष,  tactical adjustment हो, जिससे भाजपा की ताकत क्षीण हो और भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण हो। 

जनता के अंदर नई उम्मीद और विश्वास जगाकर, एक ताकतवर एवं लोकप्रिय जन-अभियान द्वारा चुनाव को जनान्दोलन में तब्दील कर ही संघ-भाजपा की विराट चुनाव-मशीनरी, कारपोरेट-मीडिया- सत्ता की ताकत और तिकड़मों को शिकस्त दी जा सकती है और जनता की बदलाव की आकांक्षा फलीभूत हो सकती है।

यह तभी सम्भव है जब विपक्ष जनता के सभी तबकों, विशेषकर किसानों-मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं, उत्पीड़ित समुदायों के concerns को address करे और वैकल्पिक नीतिगत ढांचे और कार्यक्रम के साथ सामने आए। 

क्या विपक्ष इतिहास की इस मांग पर खरा उतरेगा ?

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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