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कोरोना संकट: नहीं थम रहा मज़दूरों का पलायन, पैदल लौट रहे हैं घर!
केंद्र और राज्य सरकार के तमाम दावों और वादों के बावजूद मज़दूरों का बड़े शहरों से गांवों की तरफ पलायन जारी है। वाराणसी के टेंगरा मोड़ चौराहे पर दिल्ली समेत देश के अन्य हिस्सों से पैदल ही वापस लौट रहे मज़दूरों से न्यूज़क्लिक ने बातचीत की।
रिज़वाना तबस्सुम
07 Apr 2020
मज़दूरों का पलायन

वाराणसी: "गोद में छोटे से बच्चे को लिए हुए, सर पर गठरी रखे, महिला के पैरों में छले पड़े हुए हैं। उसके चेहरे पर काली रात से भी ज्यादा उदासी छाई हुई है। महिला के साथ एक आठ साल की उसकी बेटी है जो अपने हाथ में लिए प्लास्टिक से कुछ खा रही है। जब तक महिला से कुछ पूछ पाते, उसके गोद का बच्चा रोने लगता है, महिला एक तरफ छांव में रुक जाती है, वह अपने सिर से गठरी को उतारते हुए वहीं बैठ जाती है और बच्चे को दूध पिलाने लगती है। बच्चे को दूध पिलाते हुए महिला अपने पैर के जख्मों को देखती और कई दिनों से सूखी उसकी आँखें से आँसू बहने लगते हैं।"

ये माजरा है शनिवार, 04 अप्रैल को वाराणसी के टेंगरा मोड का। महिला का नाम सोमवती है, सोमवती बताती हैं कि, 'चार दिन पहले दिल्ली से निकले हैं। आज पांचवां दिन है। पति कुछ काम से पंजाब चले गए हैं, सब कुछ बंद हो गया है, खाने को नहीं था इसलिए अपने घर शक्ति नगर जा रहे हैं।'

सोमवती दिल्ली में मजदूरी करती हैं। कई सालों से दिल्ली में रहती हैं लेकिन जब सब कुछ बंद हो गया और खाने को नहीं रहा तो पैदल ही अपने घर की ओर चल पड़ी।

सोमवती बताती हैं, 'अभी इलाहाबाद से पैदल आ रहे हैं, उसके पहले एक गाड़ी मिली थी, जो कुछ दूर तक छोड़ दी थी, जहां कोई गाड़ी मिल जा रही है बैठ जा रहे हैं। नहीं तो, पैदल ही चले जा रहे हैं। रात के सफर के बारे में पूछ्ने पर सोमवती खामोश हो जाती हैं और कहती हैं कि, 'बहिन जी! हम गरीब हई, हमनी इंसान कहाँ हई, हमने से सरकार के कउनो मतलब ना हव।'

इतना कहने के बाद सोमवती अपनी बेटी के सिर के बाल देखने लगती हैं, मानों वो उसमें कुछ ढूंढ रही हैं। सोमवती करीब 700 किलोमेटर का सफर कर चुकी हैं, उन्हें अपने घर पहुँचने के लिए अभी लगभग 200 किलोमीटर का सफर और करना है, साधन कुछ भी नहीं है, पैदल जाने के अलावा और कोई उम्मीद भी नहीं है।

टेंगरा मोड़ बाइपास वाराणसी का बॉर्डर है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच 7) है। वाराणसी को इलाहाबाद, कलकत्ता, शक्तिनगर, सोनभद्र, कन्याकुमारी, नागपुर, जबलपुर, कानपुर, मिर्जापुर, लखनऊ, सुल्तानपुर, जौनपुर, गोरखपुर, आजमगढ़, गाजीपुर से जोड़ती है। यहां अब भी पलायन करते हुए मजदूर रास्ते में आते जाते दिख जाएंगे। हालांकि पिछले महीने के मुकाबले अब उनकी संख्या कम है।

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दुनियाभर में महामारी बन चुके कोरोना वायरस का संक्रमण भारत में भी बढ़ता जा रहा है। देश में कोरोना महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले एक दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाया, उसके बाद 24 मार्च को अगले 21 दिनों के लिए पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। अपने विशेष संदेश में प्रधानमंत्री ने खुद कहा कि 'जिन देशों के पास सबसे बेहतर मेडिकल सुविधाएं हैं, वे भी इस वायरस को रोक नहीं सके और इसे कम करने का उपाय केवल सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरी है।'

प्रधानमंत्री ने कहा, 'आधी रात से पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन हो जाएगा, लोगों को 21 दिनों के लिए उनके घरों से बाहर निकलने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और दूसरे देशों के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए 21 दिन आवश्यक हैं।'

लॉकडाउन के बाद बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूरों में अफरा-तफरी फैली और वो मजदूर भूखे प्यासे परिवार के साथ पैदल चल कर अलग-अलग शहरों से अपने गांव की ओर लौटने लगे।

शनिवार को यहाँ से युवाओं का एक झुंड गुजरने लगा। इस झुंड में करीब दस युवक शामिल थे। इनमें से एक सूरज नाम के युवक ने बताया किहम लोग गाजियाबाद से आ रहे हैं, हम लोग राबर्ट्सगंज जाएंगे।

सूरज कहते हैं, 'अब तक के सफर में हम लोग लगभग चार घंटे ट्रक से सफर किए हैं, बाकी पैदल चले हैं।'

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गाजियाबाद में रुकने के सवाल पर उसी झुंड में से सोनू नाम का युवक कहता है, 'हम लोग वहाँ पर मजदूरी करने और कमाने के लिए गए हैं, जब मजदूरी और कमाई नहीं है तो क्यों वहाँ रहें?'

एक अन्य युवक कहता है कि, 'ये बंदी कब तक चलेगा? पता नहीं, कब काम शुरू होगा? पता नहीं, हम मजदूरों का क्या होगा? पता नहीं, हमें कोई काम मिलेगा या नहीं? पता नहीं। जब मोदी जी को सब बंद करना था तो पहले बता देते कि बंद करने वाले हैं हम लोग अपने घर चले जाते, लेकिन नहीं, उनको तो नेतागिरी सूझी है, कहते हैं कि हम सबको सम्मान देंगे, यही सम्मान दे रहे हैं, हम लोगों को सड़क पर ला दिए हैं।'

वाराणसी के बॉर्डर टेंगरा मोड़ पर आने जाने वालों के लिए यहाँ के निवासी इब्राहिम अली खाना बाँट रहे हैं, खान नहीं खाने वालों और व्रत रखे हुए लोगों के लिए फल रखे हुए हैं। इसके अलावा इब्राहिम, चाय और बिस्किट भी रखे हुए हैं, ताकि कोई भी भूखा ना रहे, जिसे जो भी खाना हो खा ले। यहाँ पर नगर निगम ने पानी का टैंकर भी रख दिया है ताकि लोग प्यासे ना रहें।

इब्राहिम कहते हैं, 'हम यहाँ पर कई दिन देखे कि लोग भूखे प्यासे पैदल जा रहे हैं तो मैं मेरी तरफ से जो हो पाया वो इंतजाम करने लगा। यहाँ से हर रोज करीब 400-500 लोग गुजरते हैं, कुछ लोग पैदल, कुछ लोग साइकिल से, कुछ लोग ट्राली से तो कभी कुछ लोग ट्रक पर बैठकर भी जाते है।'

इब्राहिम आगे कहते हैं, 'हर रोज एक बड़े से भगोने में काबुली खिचड़ी लेकर आते हैं, जितने भी लोग आते हैं उन्हें देते रहते हैं।'

इब्राहिम के छोटे भाई फहद बताते हैं, 'कई बार जब ढेर सारे लोग इकट्ठे आ जाते हैं तो पुलिस वाले भी लोगों को खाना बांटने में हमारी मदद करते हैं।'

थोड़ी देर बाद पीठ पर बैग टाँगे दो युवक पानी के टैंकर के पास आकर रुकते हैं। अपने बैग से बोतल निकालते हुए एक 25 साल का युवक जिसका नाम अर्जुन है कहता है कि, 'हम लोग भागलपुर से आ रहे हैं, अभी वहाँ से पैदल ही आ रहे हैं, अभी हम लोगों को ओबरा के पास जाना है।'

अर्जुन के साथी संजय कहते हैं, 'अभी शायद दो दिन और हमें हमारे घर पहुँचने में लग जाये। अगर कोई साधन मिल गया तो जल्दी पहुँच जाएंगे, नहीं तो पैदल पहुंचेंगे।'

भागलपुर से वापस लौटने के बारे में पूछने पर अर्जुन कहते हैं कि, 'हमें मालूम है कि ये सब कुछ देश के भले के लिए किया गया है लेकिन कोई एक इंसान है इस देश में, जो ये कह दे कि हम जैसे मजदूरों के साथ भला किया गया है।'

खुद मोदी जी कहें कि, 'उन्होने हमारे लिए ठीक किया है। सरकार को फैसला लेने से पहले कम से कम एक बार तो हमारे बारे में सोचना चाहिए था, हम जैसे दूसरे शहर में रहने वाले लोगों के लिए कोई इंतजाम करना चाहिए था।'

संजय कहते हैं कि, 'ये सरकार गरीब और मजदूरों की सरकार नहीं है, इसे मतलब ही नहीं है कि गरीब मर रहा है या ज़िंदा है, उन्हें बस अपने सहूलियत से मतलब है। उन्हें लगा कि बंद कर देना चाहिए तो बंद कर दिया क्योंकि ये लोग हम जैसे लोगों को इंसान समझते ही नहीं।'

मोदी जी के बारे में बोलते हुए संजय कहते हैं कि, 'बहुत मन की बात करते हैं मोदी जी, उन्हें नहीं मालूम कि मन क्या होता है, देश में शायद ही कोई मजदूर होगा, जिसके मन में मोदी जी होंगे या उसके मन की बात समझते होंगे। मोदी जी सिर्फ अपने मन की बात करते हैं और हमपर थोपते हैं।'  

निर्माण कार्यों में लगे मजदूर, रेहड़ी-पटरी और खोमचे वाले और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग है जो अपने गाँव से दूर किसी दूसरे शहर में कमाने के लिए चला गया लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मजदूर वापस अपने गाँव की तरफ लौटने को मजबूर हो गए।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अपने घर की ओर पैदल चल रहे 27 मार्च से 30 मार्च तक करीब 20 मजदूरों की मौत हो गई है जिसमें मध्य प्रदेश में 1, राजस्थान में 4, यूपी में 5, कर्नाटक में 8 और गुजरात में 1 प्रवासी मजदूरों की मौत हुई है।

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