NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोरोना लॉकडाउनः बीमारी की भी पॉलिटिक्स होती है
अपने देश में शासक वर्ग ने इस बीमारी की आड़ में लोकतंत्र पर ही भीषण, बर्बर हमला बोल दिया है और उसे धराशायी कर दिया है। बीमारी तो देर-सबेर चली जायेगी, लेकिन लोकतंत्र अपने उसी रंग-रूप व तेवर में फिर खड़ा हो पायेगा, कहना बहुत मुश्किल है।
अजय सिंह
24 Apr 2020
कोरोना वायरस
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : पत्रिका

बीमारी या महामारी की भी पॉलिटिक्स होती है। और, बीमारी से निपटने के तौर-तरीक़े भी पॉलिटिकल होते हैं। कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) इसका अपवाद नहीं है। अपने देश में शासक वर्ग ने इस बीमारी की आड़ में लोकतंत्र पर ही भीषण, बर्बर हमला बोल दिया है और उसे धराशायी कर दिया है। बीमारी तो देर-सबेर चली जायेगी (अपने भारत में इसे हौआ या आतंक बना दिया गया है), लेकिन लोकतंत्र अपने उसी रंग-रूप व तेवर में फिर खड़ा हो पायेगा, कहना बहुत मुश्किल है। लोकतंत्र को मर्मांतक चोट पहुंचायी गयी है।

कोरोना वायरस बीमारी से निपटने के नाम पर—इसे ‘युद्ध’ का नाम दिया गया है और सारा विमर्श सैनिक शब्दावली में हो रहा है—तानाशाही, बर्बरता, इस्लामोफोबिया और निरंकुश सर्वसत्तावाद को मुखर व प्रभावशाली मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग ने थाली व ताली बजा कर समर्थन दे दिया है। ध्यान दीजियेगा कि यह मध्यम वर्ग/उच्च मध्यम वर्ग जाति व्यवस्था-वर्ण व्यवस्था में आम तौर पर ‘ऊंची’ जातियों के समूह से आता है। अर्थ तंत्र, सत्ता तंत्र और चेतना तंत्र पर इसी वर्ग का कब्ज़ा है।

यह खाया-पिया-अघाया हुआ वर्ग ही इस बीमारी से सबसे ज़्यादा डरा और घबराया हुआ है। बीमारी से लड़ने के नाम पर वह लोकतंत्र-विरोधी व स्वतंत्रता-विरोधी विमर्श (डिस्कोर्स) का चैंपियन बन गया है। वह जैसे कह रहा है कि हमें निरंकुश शासक व तानाशाह चाहिए! उसने इस विमर्श को बड़े पैमाने पर सामाजिक स्वीकृति दिला दी है। लगभग समूचा राजनीतिक विपक्ष इसी शब्दावली में बात कर रहा है—उसने कोरोना सैन्यवाद के आगे समर्पण कर दिया है। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘क़ामयाबी’ है।

वैकल्पिक बहस, विरोध का स्वर, भिन्न विचार, प्रति-आख्यान (काउंटर नैरेटिव), असुविधाजनक सवाल, असहमति, संदेह, विवेक—सबको ‘राष्ट्रहित’ की वेदी पर न्योछावर कर दिया गया है। समूचा विमर्श एक व्यक्ति-केंद्रित, एक राजनीतिक पार्टी-केंद्रित, एक विचार-केंद्रित बना हुआ है। यह चीज़ सामान्य परिघटना बना दी गयी है।

इस मध्य वर्ग / उच्च मध्य वर्ग को सिर्फ़ अपनी चिंता है। उसे उन करोड़ों-करोड़ ग़रीब लोगों की रत्ती भर चिंता नहीं, जिनके लिए कोरोना लॉकडाउन भयानक विपत्ति और जीवन विनाशक मुसीबतें लेकर आया है। वह उन्हें (ग़रीब लोगों को) ‘आवश्यक बुराई’, ‘सारी मुसीबतों की जड़’ और भिखारी के तौर पर देखता है। वह उन पर भरोसा करने, उनके साथ संवाद करने, उनकी राय व विचार जानने का धुर विरोधी है। वह उन्हें नागरिक नहीं समझता। चूंकि ग़रीबों के बग़ैर अमीरज़ादों की जिंदगी नहीं चल सकती (याद कीजिये आनंद पटवर्धन की ज़बर्दस्त फ़िल्म ‘बंबई हमारा शहर’), इसलिए ग़रीबों को ज़िंदा रखने के लिए खाना-खुराकी दे दी जाती है। इस अघोषित शर्त के साथ कि ग़रीब हमेशा ग़रीब बना रहे। और यह सब ‘जनता की भलाई’ और ‘देश की भलाई’ के नाम पर किया जाता है।

हालत यह हो गयी है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाख़िल कर मांग की गयी है कि देशव्यापी लॉकडाउन लागू कराने के लिए सेना को तैनात करने का हुक़्म दिया जाये। यानी, अब सेना को सड़क-गली-कूचे में उतारने की बात चल रही है। कश्मीर तो पिछले तीस सालों से सेना के हवाले है और वहां स्थायी कर्फ़्यू/ स्थायी लॉकडाउन सामान्य चीज़ बना दी गयी है। क्या बाक़ी देश को भी ‘कश्मीर की राह’ पर चलाने की तैयारी है? कोरोना लॉकडाउन ने शासक वर्ग को सुनहरा मौक़ा दे दिया है। समूचा देश क़ैदख़ाना बना दिया गया है। कहा जा रहा है कि अब यही सामान्य चलन है, इसे चुपचाप स्वीकार कर लीजिये।

आइये, अपने देश में कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) से जुड़े सरकारी आंकड़ों पर निगाह डालें और कुछ असुविधाजनक सवाल पेश करें।

इस बीमारी को रोकने के नाम पर 25 मार्च 2020 से देशव्यापी लॉकडाउन (देश बंद-घर बंद-जनता बंद) लागू किया गया। उस दिन तक देश में इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या 425 के आसपास थी और मरनेवालों की संख्या इनी-गिनी थी। 22 अप्रैल 2020 तक—लॉकडाउन अभी लागू है—मरीजों की संख्या 21,355 और मरनेवालों की संख्या 683 तक जा पहुंची है। साफ़ दिखायी दे रहा है कि लॉकडाउन से कोई फ़ायदा नहीं हुआ; उलटे, लॉकडाउन के दौरान मरीजों व मरनेवालों की संख्या में कई गुना बढ़त हुई। जो लोग लॉकडाउन की अनगिनत महिमा गिना रहे हैं, उन्हें इस पर सोचना चाहिए। लॉकडाउन शासक वर्ग के राजनीतिक मक़सद को पूरा करने के लिए लागू किया गया है।

कुछ दिन पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश के कुल 760 से ज़्यादा ज़िलों में से 400 ज़िले इस बीमारी से अछूते हैं और वहां यह बीमारी मौजूद नहीं है। सवाल है- जब देश के कुल ज़िलों में से आधे से ज़्यादा ज़िले इस बीमारी से बाहर हैं, तो फिर पूरे देश में लॉकडाउन लागू करने का क्या औचित्य था या है?

अपने देश में कोरोना वायरस बीमारी को महामारी क़तई नहीं कहा जा सकता। यह बीमारी है, सावधानी व बचाव ज़रूरी है। लेकिन इसे लेकर जिस तरह का चरम ख़ौफ़ व घबराहट पैदा की गयी है, जिस तरह से सामाजिक अलगाव, भेदभाव, छुआछूत, क्रूरता व हिंसा को बढ़ावा दिया गया है, उसके पीछे शासक वर्ग का निश्चित राजनीतिक एजंडा है। वह है: निरंकुश सर्वसत्तावाद और तानाशाही को सामाजिक स्वीकृति दिलाना, इसे आम चलन का हिस्सा बना देना। देश को पुलिस राज्य में ऐसे ही नहीं बदल दिया गया है।

टीबी (तपेदिक) और डायरिया (अतिसार) ऐसी बीमारियां हैं, जिन्हें अपने देश में महामारी कहा जा सकता है। इनसे हर साल लाखों हिंदुस्तानी मरते हैं। इनका कारगर इलाज मौजूद है, लेकिन उस तक लोगों की—ख़ासकर ग़रीबों की—पहुंच नहीं है। मरनेवालों में 80 प्रतिशत से ज़्यादा लोग ग़रीब या अति निम्न आय वर्ग के लोग होते हैं। उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है। चूंकि ये बीमारियां ‘ग़रीबों की बीमारियां’ हैं, इसलिए इन पर सत्ता विमर्श का फ़ोकस नहीं, चीख-पुकार नहीं, ‘जनता कर्फ्यू’ नहीं, लॉकडाउन नहीं। ये बीमारियां ग़रीबी, भूख व सामाजिक-आर्थिक असमानता से गहरे रूप से जुड़ी हैं।

टीबी से अपने देश में हर रोज़ 1200 से ऊपर लोग मरते हैं—हर साल 4 लाख 50 हज़ार लोग इस बीमारी से मर जाते हैं। इनकी जिंदगियां बचायी जा सकती हैं। डायरिया से अपने देश में हर रोज़ क़रीब 2000 लोग मरते हैं। साल में कितने, यह आप ख़ुद जोड़ लीजिये।

बीमारियों का भी वर्ग चरित्र होता है पार्टनर!

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Corona Crisis
Corona politics
Coronavirus Epidemic
Religion Politics
democracy
Aisi Taisi Democracy
Disease Politics
Anti-democracy

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License