NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कोरोना से दुनिया भर में आर्थिक संकट की मार, ग़रीब भुखमरी के कगार पर
2017 तक, दुनिया की लगभग 40% आबादी खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों और कम आय के कारण खराब गुणवत्ता वाले आहार का सेवन करने के लिए मजबूर थी। जब स्वास्थ्यवर्द्धक वस्तुएं पहुंच से दूर होती हैं, तो लोगों के लिए कुपोषण और आहार संबंधी बीमारियों जैसे एनीमिया या मधुमेह से बचना असंभव है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
12 Jul 2021
कोरोना से दुनिया भर में आर्थिक संकट की मार, ग़रीब भुखमरी के कगार पर
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

पूरी दुनिया पिछले कुछ वर्षो से कोरोना माहमारी से लड़ रही है, इससे दुनिया की एक बड़ी आबादी मौत के मुहं में समा गई। जबकि पूरी दुनिया एक बड़े आर्थिक संकट से भी जूझ रही है, जिसने बेरोजग़ारी को बढ़ाया है। इसको लेकर कई अध्ययन रिपोर्ट आए, जिसमें बताया गया कि कैसे इस माहमारी ने पूरी दुनिया पर बेरोजग़ारी के बादल छा गए हैं। अब दो ऐसे नए अध्ययन आए जिसमें बताया गया है कि कैसे पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ी है जिससे रोजाना उपभोग वाली जरूरी वस्तुऐं भी नहीं खरीद पा रहे है। वहीं गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले संगठन ‘ऑक्सफैम’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि दुनियाभर में भुखमरी के कारण हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत होती है और बीते एक साल में पूरी दुनिया में अकाल जैसे हालात का सामने करने वाले लोगों की संख्या छह गुना बढ़ गई है। दोनों अध्ययन पर एक नज़र ड़ालते हैं और समझने का प्रयास करते हैं। इस माहमारी के समय में दुनिया कैसे सिर्फ़ स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि गंभीर आर्थिक संकट का भी सामना कर रही है-

विश्व में हर एक मिनट में भुखमरी से 11 लोगों की मौत होती है: ऑक्सफैम

ऑक्सफैम ने ‘दि हंगर वायरस मल्टीप्लाइज’ नाम की रिपोर्ट में कहा कि भुखमरी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक हो गई है। कोविड-19 के कारण दुनिया में हर एक मिनट में करीब सात लोगों की जान जाती है।

ऑक्सफैम अमेरिका के अध्यक्ष एवं सीईओ एब्बी मैक्समैन ने कहा, ‘‘आंकड़े हैरान करने वाले हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये आंकड़े उन लोगों से बने हैं जो अकल्पनीय पीड़ा से गुजर रहे हैं।’’

रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया में करीब 15.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा के भीषण संकट का सामना कर रहे हैं और यह आंकड़ा पिछले वर्ष के आंकड़ों की तुलना में दो करोड़ अधिक है। इनमें से करीब दो तिहाई लोग भुखमरी के शिकार हैं और इसकी वजह है उनके देश में चल रहा सैन्य संघर्ष।

मैक्समैन ने कहा, ‘‘कोविड-19 के आर्थिक दुष्प्रभाव और बेरहम संघर्षों, विकट होते जलवायु संकट ने 5,20,000 से अधिक लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है। वैश्विक महामारी से मुकाबला करने के बजाए परस्पर विरोधी धड़े एक दूसरे से लड़ रहे हैं जिसका असर अंतत: उन लाखों लोगों पर पड़ता है जो पहले ही मौसम संबंधी आपदाओं और आर्थिक झटकों से बेहाल हैं।’’

ऑक्सफैम ने कहा है कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बावजूद विश्व भर में सेनाओं पर होने वाला खर्च महामारी काल में 51 अरब डॉलर बढ़ गया, यह राशि भुखमरी को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को जितने धन की जरूरत है उसके मुकाबले कम से कम छह गुना ज्यादा है।

इस रिपोर्ट में जिन देशों को ‘‘भुखमरी से सर्वाधिक प्रभावित’’ की सूची में रखा है, वे देश हैं अफगानिस्तान, इथियोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन। 

इन सभी देशों में संघर्ष के हालात हैं।

मैक्समैन ने कहा, ‘‘आम नागरिकों को भोजन पानी से वंचित रखकर और उन तक मानवीय राहत नहीं पहुंचने देकर भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। बाजारों पर बम बरसाए जा रहे हों, फसलों और मवेशियों को खत्म किया जा रहा हो, तो लोग सुरक्षित नहीं रह सकते और न ही भोजन तलाश सकते हैं।’’

संगठन ने सरकारों से अनुरोध किया है कि वे संघर्षों को रोकें अन्यथा भुखमरी के हालात विनाशकारी हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में जहां बताया गया है कि दुनिया में कितनी बड़ी आबादी भुखमरी से मर रही है। वहीं दूसरी रिपोर्ट में इनके कारणों को विस्तार से बताया गया है।

दुनिया के तीन अरब लोग पोषक आहार से महरूम

कोविड-19 महामारी के कारण मकई, दूध, बीन्स और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम बेशक बढ़ गए हैं, लेकिन यह सच है कि महामारी से पहले भी दुनिया के लगभग तीन अरब लोग अपने लिए स्वास्थ्यवर्द्धक आहार के सबसे सस्ते विकल्प भी नहीं खरीद पाते थे।

वैश्विक खाद्य मूल्य डेटा के हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि 2017 तक दुनिया की लगभग 40% आबादी खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों और कम आय के कारण खराब गुणवत्ता वाले आहार का सेवन करने के लिए मजबूर थी। जब स्वास्थ्यवर्द्धक वस्तुएं पहुंच से दूर होती हैं, तो लोगों के लिए कुपोषण और आहार संबंधी बीमारियों जैसे एनीमिया या मधुमेह से बचना असंभव है।

दुनिया की कुल 7.9 अरब आबादी में से शेष 60% लोग स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन के लिए सामग्री का खर्च उठा पाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे हमेशा स्वस्थ आहार खाते हैं। खाना पकाने में लगने वाला समय और कठिनाई, साथ ही साथ अन्य खाद्य पदार्थों का विज्ञापन और विपणन, कई लोगों को आश्चर्यजनक रूप से अस्वास्थ्यकर वस्तुओं का चयन करने के लिए प्रेरित कर सकता है।

वहनीयता और अस्वास्थ्यकर आहार के अन्य कारणों के बीच अंतर करना बेहतर परिणामों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसे हमने टफ्ट्स विश्वविद्यालय में पोषण के लिए खाद्य मूल्य नामक एक शोध परियोजना द्वारा संभव बनाया है।

विश्व बैंक विकास डेटा समूह और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के सहयोग से चलाई गई यह परियोजना अर्थशास्त्र को पोषण से जोड़ते हुए एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है कि कैसे कृषि और खाद्य वितरण मानव स्वास्थ्य आवश्यकताओं से संबंधित हैं।

विश्व स्तर पर आहार की लागत को मापने के लिए हमारी परियोजना ने 174 देशों में लगभग 800 लोकप्रिय खाद्य पदार्थों के लिए विश्व बैंक मूल्य डेटा को उन वस्तुओं की पोषण संरचना से जोड़ा है। प्रत्येक वस्तु की कीमतों और पोषण मूल्यों का उपयोग करते हुए, हमने राष्ट्रीय आहार संबंधी दिशानिर्देशों और आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने के सबसे कम खर्चीले तरीके की गणना की।

सामर्थ्य के लिए, आहार मूल्यों के लिए हमने विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार आय वितरण और आम तौर पर भोजन पर खर्च की जाने वाली राशि की तुलना की। इससे यह पता चला कि अमेरिका में लगभग हर व्यक्ति स्वस्थ भोजन के लिए पर्याप्त सामग्री खरीद सकता है, जैसे कि चावल और बीन्स, फ्रोजन पालक और डिब्बाबंद टूना, ब्रेड और पीनट बटर और दूध। लेकिन अफ्रीका और दक्षिण एशिया में अधिकांश लोग स्वस्थ आहार के लिए इन खाद्य पदार्थों को हासिल नहीं कर पाते, भले ही वे अपनी पूरी उपलब्ध आय खर्च करने को तैयार हों।

खाद्य पदार्थों की कीमतें ऊपर-नीचे होती रहती हैं, लेकिन फल और सब्जियां, मेवे, डेयरी उत्पाद और मछली जैसे कई स्वस्थ खाद्य पदार्थ तेल और चीनी और अन्य संबद्ध पदार्थों की तुलना में लगातार अधिक महंगे होते हैं। स्वस्थ खाद्य पदार्थों की ऊंची लागत अक्सर गरीबों को कम महंगी चीजें खाने या भूखे रहने के लिए मजबूर करती है।

क्या किया जा सकता है?

देश उच्च वेतन वाली अधिक नौकरियां पैदा करके और कम आय वाले लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करके सभी के लिए स्वस्थ आहार लेना संभव बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका के पास पूरक पोषण सहायता कार्यक्रम या एसएनएपी है, जो कम आय वाले अमेरिकियों को उनकी जरूरत का कुछ भोजन खरीदने में मदद करता है। इस प्रकार के सुरक्षा संबंधी कार्यक्रम खाद्य असुरक्षा को कम करते हैं, मंदी के दौरान नौकरियों की रक्षा करते हैं और बाल विकास के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

उच्च आय और सबसे गरीब वर्ग के लिए खाद्य सुरक्षा से परे, खाद्य उत्पादन और वितरण में सुधार के लिए नई तकनीक और बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश के माध्यम से सभी के लिए खाद्य कीमतों को कम किया जा सकता है। जब नई प्रौद्योगिकियां और अन्य परिवर्तन स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं तो खाद्य बाजारों में कृषि नवाचार और निवेश जीवन बचा सकते हैं और आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।

हमारा मानना है कि हमारे खाद्य आहार आंकड़े, जो वैश्विक कृषि नीतियों पर प्रकाश डालने के लिए तैयार किए गए हैं, लोगों को विश्व खाद्य स्थिति में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। वैश्विक खाद्य कीमतों की निगरानी के पिछले प्रयास कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार से जुड़ी कृषि वस्तुओं पर नज़र रखने, अकाल के जोखिम वाले स्थानों की निगरानी की स्थिति या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर नज़र रखने पर केंद्रित थे। स्थानीय रूप से उपलब्ध वस्तुओं का उपयोग करके स्वस्थ आहार की लागत को मापना स्वस्थ खाद्य पदार्थों की उपभोक्ता कीमतों पर ध्यान केंद्रित करता है जो कम आय वाले लोग खरीद सकते हैं, बशर्तें वे वस्तुएं सस्ती हों।

बेहतर डेटा के साथ, सरकारें और विकास एजेंसियां अपने देशों को वहां तक पहुंचा सकती हैं जहां वे जाना चाहती हैं, जहां एक दिन दुनिया भर में सभी के लिए स्वस्थ आहार का उपभोग करना संभव होगा।

(समाचार एजेंसी भाष इनपुट के साथ )

Coronavirus
COVID-19
Pandemic Coronavirus
Global Pandemic
Global Hunger
poverty
Hunger Crisis

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License