NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
शिक्षा
अंतरराष्ट्रीय
कोरोना: ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में बहुत पीछे छूटा अफ्रीका
एशिया के कई देशों की तुलना में अफ्रीका महाद्वीप पर शिक्षा की हालत कहीं अधिक खस्ता बताई गई है। पूरे अफ्रीका महाद्वीप में मार्च 2020 से ही स्कूल बंद होने के बाद बच्चों की एक बड़ी संख्या है, जिन्हें किसी भी माध्यम द्वारा शिक्षा हासिल नहीं हुई है।
शिरीष खरे
06 Dec 2021
african School
अफ्रीका महाद्वीप का एक स्कूल ('ह्यूमन राइट्स वॉच' की रिपोर्ट से साभार)

पिछले साल अप्रैल के बाद एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने बुर्किना फासो, कैमरून, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, केन्या, मेडागास्कर, मोरक्को, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और जाम्बिया में छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों तथा शिक्षा अधिकारियों के साथ 57 दूरस्थ साक्षात्कार आयोजित किए थे। इन साक्षात्कारों का उद्देश्य था अफ्रीका महाद्वीप जैसे दुनिया के सबसे गरीब देशों में बच्चों की शिक्षा पर कोरोना महामारी के प्रभाव। जैसी कि आशंका थी, शोध से खुलासा हुआ कि महामारी के कारण स्कूल बंद होने के कारण पहले से मौजूद असमानताओं में अपेक्षा से कहीं अधिक वृद्धि हुई है। इससे यह बात भी स्पष्ट हुई है कि जिन बच्चों को पहले से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से बाहर किए जाने का सबसे अधिक खतरा था, वे सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

एशिया के कई देशों की तुलना में अफ्रीका महाद्वीप पर शिक्षा की हालत कहीं अधिक खस्ता बताई गई है। पूरे अफ्रीका महाद्वीप में मार्च 2020 से ही स्कूल बंद होने के बाद बच्चों की एक बड़ी संख्या है, जिन्हें किसी भी माध्यम द्वारा शिक्षा हासिल नहीं हुई है।

इस बारे में 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में पूर्वी कांगो की रहवासी और एक 9 साल की बच्ची की मां से लिए साक्षात्कार का हवाला दिया है। यह महिला बताती हैं, "मेरी बच्ची पिछले कई महीनों से कुछ भी नहीं पढ़ लिख पा रही है। हम उसकी पढ़ाई के लिए फिर से स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे हैं।" महिला के मुताबिक वह पिछले साल जून से जब कोरोना के कारण स्कूल बंद हो चुके थे, निराशा से जूझ रही हैं, वह सामान्य स्थितियों के बनने तक और इंतजार नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि स्कूल नहीं जा सकने के कारण पहले ही उनकी बच्ची की पढ़ाई छूट चुकी है। वह पूछती हैं, ''हमारे अशिक्षित बच्चों का आगे क्या होगा?"  

साक्षात्कारों की अगली कड़ी में कांगो की ही रहवासी और 16 वर्षीय लुसेंज के नाम की छात्रा बताती है कि पिछले साल जून से स्कूल बंद होने के बाद उसकी कोई पढ़ाई नहीं हुई है और उसे इस बात की चिंता है कि वह आगे अपनी पढ़ाई कैसे जारी रख सकेगी। वह कहती है, ''लॉकडाउन ने मेरा भविष्य खराब कर दिया है।''

इस रिपोर्ट में मेडागास्कर स्थित एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के निदेशक के अनुभव भी साझा किए गए हैं, जो बेघर और अनाथ बच्चों की शिक्षा और वैकल्पिक देखभाल संबंधित सेवाओं से जुड़े हुए हैं, वह बताते हैं, ''कोरोना महामारी में स्कूल बंद के दौरान बेघर और अनाथ बच्चों की शिक्षा को लेकर सरकार द्वारा कोई व्यवस्था तैयार नहीं की गई थी।

अफ्रीका में हालत ज्यादा खराब क्यों?

अफ्रीका महाद्वीप के देशों में शिक्षा की हालत दुनिया के कई दूसरे देशों की तुलना में बदतर बताए जा रहे हैं, तो इसके पीछे कारण यह है कि यहां कोरोना लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन शिक्षा से लेकर शिक्षण के दूसरे विकल्पों को लेकर लगभग न के बराबर काम हुआ है। इसलिए ज्यादातर बच्चों को किसी तरह का और किसी भी माध्यम से शिक्षण हासिल नहीं हो सका है। बड़ी संख्या में बच्चों को अपने शिक्षकों से कोई दिशा निर्देश, प्रतिक्रिया नहीं मिली है। बातचीत में कई बताते हैं कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान उन्हें अपने शिक्षक के साथ एक बार भी बातचीत करने का मौका नहीं मिला।

ये भी पढ़ें: वैश्विक महामारी कोरोना में शिक्षा से जुड़ी इन चर्चित घटनाओं ने खींचा दुनिया का ध्यान

"कोरोना लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई नहीं हो सकी है।'' कांगो में एक महिला शिक्षा अधिकारी ने पूरे अफ्रीका महाद्वीप में कई बच्चों की स्कूली शिक्षा से अनुभवों को साक्षा करते हुए यह बात कही। उनके मुताबिक, ''कुछ बच्चों को प्रिंटेट असाइनमेंट दिए गए थे, हालांकि इनकी संख्या बहुत कम है, इसलिए हम यह तो नहीं कह सकते कि यह सामान्य शिक्षा है।"

कांगों में मिडिल स्कूल की एक छात्रा बताती है कि उसे नए निर्देशों की प्रतीक्षा करते हुए अपने नोट्स को नियमित रूप से पढ़ने के लिए कहा गया था। पहले तो उसे लगा कि स्कूल जल्दी फिर से शुरू होगा, इसलिए उसने अपने नोट्स पढ़े ही नहीं और फिर जब उसने देखा कि यह महामारी अनिश्चितकालीन है, तो उसने नोट्स पढ़ने शुरु किए, लेकिन तब उसे लगा कि वह बहुत पीछे हो गई है और कई चैप्टर उसे समझ ही नहीं आ रहे हैं, जबकि वह स्कूल में होती तो शिक्षक या सहपाठी उसकी मदद कर देते।

किंशासा में 13 साल के चेकिना एम अपने तजुर्बे साझा करते हुए बताते हैं कि स्कूल बंद होने पर उसे एक पाठ्य-पुस्तक दी गई थी, लेकिन बाद में उसका अपने शिक्षकों से कोई संपर्क नहीं हो सका। वह कहता है, ''मैं बस अपना पुराना सिलेबस ही याद करता रहता हूं, मुझे घर पर अकेले गणित के सवाल हल करने में बड़ी मुश्किल आ रही है।"

शिक्षण का कोई कार्य हुआ ही नहीं है

जाम्बिया में 15 साल की नताली एल बताती है कि स्कूल बंद होने से ठीक पहले उसकी प्रिंसिपल ने उससे कहा था कि बच्चों को खुद पढ़ना पड़ेगा। नताली के पास किताबें हैं, जिन्हें शिक्षकों की मदद के बिना समझना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। वह कहती है, ''अमीर देशों में ऑनलाइन शिक्षा तो है, जाम्बिया में यह भी नसीब नहीं।''

'ह्यूमन राइट्स वॉच' की रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप के मध्य में स्थित देशों के शिक्षकों और बच्चों के अभिभावकों ने बताया है कि जून 2020 से स्कूल बंद होने के बाद शिक्षण का कोई कार्य हुआ ही नहीं है। हालांकि, बंगुई में 6 साल की एक बच्ची की मां बताती है कि वह अपनी बेटी को अभ्यास कराने की कोशिश करती हैं। इसके लिए वह सप्ताह में तीन बार रेडियो पर कक्षाएं भी सुनती हैं, लेकिन यह एक ऐसा कार्यक्रम है जो हर कक्षा के स्तर को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया है। इससे पढ़ाई करानी और भी अधिक जटिल हो गई है। इसी तरह, केन्या में 14 साल की डेका ए. कहती हैं, ''मेरा स्कूल महीने में दो बार व्हाट्सएप के जरिए परिजनों को रिवीजन पेपर भेजता है, लेकिन शिक्षक हमारे साथ सीधे संवाद नहीं कर रहे हैं।''

कई छात्रों ने साक्षात्कार के दौरान तनाव, चिंता, अलगाव और अवसाद की भावनाओं को साझा किया है, जिसे उन्होंने अपने स्कूल समुदाय के साथ संपर्क की कमी से जोड़ा है। जैसे कि केन्या में 17 साल की छात्रा मकेना एम. कहती हैं ''जब मुझे अकेले पढ़ाई करनी पड़ती है तो यह बहुत तनावपूर्ण होता है. इससे मेरी उदासी बढ़ती जा रही है।''

बड़ी आबादी तक नहीं पहुंची बिजली

इसके अलावा, कई अभिभावक स्कूल बंद होने के दौरान अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने की कोशिश से जुड़ी लागतों के बोझ तले दबे हुए हैं। कैमरून में चार बच्चों के एक पिता कहते हैं, ''कैमरून में प्राथमिक स्कूल तक की शिक्षा मुफ्त मानी जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है। हमें अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल की शिक्षा दिलाने के लिए पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। स्कूल ब्लैकमेल कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यदि अभिभावक अपने पिछले वर्ष की बकाया फीस नहीं देते हैं, तो वे अगले शैक्षिक वर्ष के लिए बच्चे का फिर से नामांकन नहीं कर सकेंगे।"

वहीं, केन्या के गरिसा में एक 16 साल की छात्रा बताती है कि रेडियो पर पाठ पढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन हालत यह है कि रेडियो उपकरण तक उसके पास नहीं है। ऐसी घोर गरीबी के कारण तो शिक्षा में भेदभाव ही बढ़ेगा। इसी तरह, इसी के नजदीक के दूसरे क्षेत्र के एक शिक्षक बताते हैं कि शिक्षा मंत्रालय ने टेलीविजन पाठ्यक्रम आयोजित किए थे, लेकिन जिस शहर में वे रहते हैं, वहां लगभग दस लाख लोगों की आबादी पूरी तरह से बिजली से डिस्कनेक्ट है।

दूसरी तरफ, बुर्किना फासो में एक शिक्षक चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, ''बहुत सारे बच्चे अब स्कूल नहीं लौटेंगे, क्योंकि वे पसंद करेंगे अपने माता-पिता को खेती करने में मदद करना, ताकि वे और उनके परिजन कुछ खा सकें और जिंदा रह सकें।''

इसके अलावा, अफ्रीका महाद्वीप के कुछ इलाकों में सशस्त्र संघर्ष चलने से भी वहां की शैक्षणिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। जैसे कि केन्या के गरिसा में रहने वाली 16 साल की ताइशा एस. कहती हैं, ''हमारे पास सीखने की कोई पहुंच नहीं है, यह स्थिति कोविड के साथ शुरू नहीं हुई थी, इससे पहले हमने तीन सप्ताह तक कोई पाठ नहीं पढ़ा था, क्योंकि आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि के कारण बहुत सारे शिक्षक उत्तर पूर्वी प्रांत की तरफ भाग गए थे।''

(शिरीष खरे पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

COVID-19
africa
Education in Africa
education crisis
Pandemic and Education
Poor countries

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License