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अमेरिका
चीन पर ट्रंप का अस्थिर रवैया तर्कसंगत है
अमेरिका में कोरोना महामारी के इस वक़्त में बड़े पैमाने पर चीन के लिए नकारात्मक भावनाएं हैं। राष्ट्रपति चुनावों को देखते हुए ट्रंप इन भावनाओं का फ़ायदा उठाना चाहते हैं।
एम. के. भद्रकुमार
05 May 2020
चीन

हाल के हफ़्तों में कोरोना वायरस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कभी चीन का गुणगान करते हैं, तो कभी आलोचना। लगातार बदलते इन बयानों से उपजी पेचीदगी के चलते लोग अचंभे में है। दरअसल इस पेचीदगी को सिर्फ़ ट्रंप ही सुलझा सकते हैं। लेकिन नवंबर में खत्म होने वाले चुनावों के बाद ही ट्रंप ऐसा करने की स्थिति में होंगे।

चीन पर ट्रंप की इस भाषणबाजी के कई मतलब हो सकते हैं। पर इस भाषणबाजी की तीन विशेष व्याख्याएं हो रही हैं। जैसा चीन भी विश्वास दिलाना चाहेगा, प्राथमिक व्याख्या के अनुसार, कोरोना वायरस से निपटने में अपने प्रशासन की नाकामी को छुपाने के लिए ट्रंप चीन की आलोचना कर रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स में 21 अप्रैल को छपी रिपोर्ट में बताया गया है कि राष्ट्रपति को महामारी के बारे में पहले ही चेतावनी दे दी गई थी। लेकिन उनके प्रशासन में अंदरूनी बंटवारे, योजना की कमी और ट्रंप द्वारा अपनी स्वाभाविक बुद्धि पर जरूरत से ज़्यादा भरोसा करने के चलते अमेरिकी प्रतिक्रिया में देरी हो गई। रिपोर्ट में लिखा गया,

''महामारी से निपटने के लिए ज़िम्मेदार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को जनवरी के शुरू में ही अमेरिका में वायरस के फैलाव की इंटेलीजेंस रिपोर्ट मिल गई थी। कुछ ही हफ़्तों में परिषद ने शिकागों जैसे बड़े शहरों में लोगों के घर से काम करने जैसे विकल्पों का सुझाव देना शुरू कर दिया था।''

फरवरी और शुरूआती मार्च में जब आंकड़ों में तेजी आना शुरू हुई थी, तब ट्रंप ने अहम वक़्त खो दिया। 26 फरवरी से 16 मार्च के बीच संक्रमण के मामले 15 से बढ़कर 4,226 हो गए। तबसे अब तक दस लाख से भी ज़्यादा अमेरिकी नागरिक पॉजिटिव पाए गए हैं। प्रशासन का कहना है कि अमेरिका में लाखों दूसरे लोग भी संक्रमित हो सकते हैं। इस दौरान करीब़ 70,000 लोगों ने जान गंवा दी।

अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए ट्रंप प्रशासन के पास सिर्फ़ दोषारोपण ही आखिरी चारा बचा है। मार्च के बीच में ट्रंप ने समझौतावादी नीति अपनाते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के काम की तारीफ़ भी की थी। लेकिन अचानक उन्होंने अपना रुझान बदल दिया और ट्रंप ने कोरोना को 'चाइनीज़ वायरस' के नाम से संबोधित किया।

हांलाकि पास से देखने पर कुछ अलग तस्वीर उबरती है। दरअसल ख़बरों पर पैनी नज़र रखने वाले ट्रंप को दोषारोपण का खेल खेलने की जरूरत नहीं है। 30 अप्रैल को रिलीज़ किए गए ''गैलप पोल'' में उन्हें 49 फ़ीसदी लोगों का समर्थन मिला है। साफ़ है कि उन्हें अब भी अच्छा जनसमर्थन मिल रहा है। क़रीब पचास फ़ीसदी लोगों ने महामारी से निपटने में उनके तरीकों का समर्थन किया है।

ऐसा तब है, जब अमेरिका में बड़े स्तर पर लोगों की नौकरियां गई हैं और खराब़ वित्तीय बाज़ारों की स्थितियों के चलते आने वाले चुनावों के लिए ट्रंप अपने सबसे अहम पक्ष-मजबूत अर्थव्यवस्था का तर्क खो चुके हैं।

इसलिए चीन पर ट्रंप के बदले व्यवहार की दो दूसरी व्याख्याओं को बल मिलता है। ट्रंप, महामारी के बीच अमेरिकी जनता में चीन के लिए पनप रहे नकारात्मक मूड़ को भांप चुके हैं। मार्च में किए गए प्यू रिसर्च के एक सर्वे के मुताबिक़, दो तिहाई अमेरिकी नागरिकों का चीन के लिए प्रतिकूल रवैया हो चुका है। 2005 में प्यू ने इस तरह की रिसर्च शुरू की थी। यह तबसे अमेरिका में चीन की सबसे ज़्यादा नकारात्मक रेटिंग है। 2017 में ट्रंप प्रशासन की शुरूआत के बाद यह नकारात्मक रेटिंग अब तक 20 फ़ीसदी बढ़ चुकी है।

दिलचस्प बात है कि पिछले 12 सालों में आज के दौर में सबसे ज़्यादा अमेरिकी अपने देश को प्रतिनिधिक आर्थिक शक्ति मान रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि सैन्य मामलों में अमेरिका दुनिया का सबसे अग्रणी देश है और चीन के बजाए, दुनिया के लिए अमेरिकी प्रतिनिधित्व ज़्यादा बेहतर है। प्यू रिसर्च में सिर्फ़ एक चौथाई लोगों में चीन के लिए सकारात्मक रवैया पाया गया।

अहम बात यह है कि अलग-अलग जनसांख्यिकीय समूहों में चीन के लिए नकारात्मक रवैया बरकरार है। मोटे तौर पर डेमोक्रेटिक समर्थक और डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ रूझान रखने वाले निर्दलीय लोगो में 10 में से 6 लोगों में चीन को लेकर नकारात्मक धारणा है। वहीं रिपब्लिकन समर्थक और रिपब्लिकन पार्टी की ओर रुझान रखने वाले निर्दलीय लोगों में 10 में से 7 के चीन के लिए प्रतिकूल विचार हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि ट्रंप अमेरिकी लोगों से सिर्फ़ साझा विचार ही नहीं रखते, बल्कि अब वो जनभावनाओं की लहर पर सवार होने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें एक दूसरा पहलू भी है। नवंबर में होने वाले चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से जो बिडेन संभावित प्रत्याशी हैं। ट्रंप बिडेन को ''स्लीपी जो'' और ''बीजिंग बिडेन'' संबोधित करते रहे हैं। ट्रंप लोगों को विश्वास दिलाने की कोशिश करेंगे कि बिडेन ''क्रेजी बार्नी'' के साथी हैं, जिनकी चीन से निकटता उन्हें राष्ट्रपति चुनावों के लिए अयोग्य बनाती है।

दोबारा चुनाव जीतने कि लिए ट्रंप का मजबूत अर्थव्यवस्था का दावा हवा हो चुका है। अब ट्रंप और उनकी टीम एक नई रणनीति पर काम कर रही है। यह लोग अपने विरोधियों को एक पुराने भूराजनीतिक दुश्मन का साथी बताकर उसकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रंप ने 19 अप्रैल को ट्वीट करते हुए कहा, ''चीन 'स्लीपी जो' के जीतने के लिए बेताब है। बिडेन चीन के लिए आसान होंगे और उनके पसंदीदा प्रत्याशी हैं!'' अप्रैल की शुरूआत में ट्रंप के एक ई-मेल कैंपेन से भी इसकी झलक मिलती है। उसमें कहा गया- ''मैं चीन पर कड़क हूं और 'स्लीपी जो बिडेन' चीन के लिए नरम।''

ऐसा कर ट्रंप लोगों का ध्यान कोरोना महामारी पर प्रशासन की ख़राब प्रतिक्रिया से हटा रहे हैं। वो ''बीजिंग बिडेन'' पर व्यक्तिगत हमले करने के लिए, अमेरिका में पनप रही चीन विरोधी भावनाओं का फायदा उठा रहे हैं।

अमेरिका की चुनावी राजनीति अनुशासनविहीन होती है, उसमें किसी विरोधी प्रत्याशी को कैंपेन की शुरूआत में ही नकारात्मक तौर परिभाषित करना आम है। 2004 में जॉर्ज बुश ने जॉन कैरी और 2012 में बराक ओबामा ने मिट रोमनी के खिलाफ़ ऐसे ही तरीके अपनाए थे। ट्रंप ने अनुमान लगाया है कि एक जाने-माने पूर्व राष्ट्रपति और मिलनसार यथार्थवादी के तौर पर पहचाने जाने वाले जो बिडेन के खिलाफ़ माहौल बनाने का यह सही मौका है।

इसलिए अब दोनों तरफ से अपने चुनावी प्रचार में खुद को चीन पर कठोर बताने की होड़ लग गई है। ट्रंप कैंपेन की ओर से अप्रैल की शुरूआत में एक विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें चीन पर दिए गए बिडेन के एक पुराने बयान की निंदा की गई। इसमें दावा किया गया कि ''40 सालों से बिडेन चीन के बारे में गलत थे।'' यहां तक कि BeijingBiden.com नाम की एक वेबसाईट भी बन गई, जो बिडेन की कथित ''चीनी निकटता'' पर आधारित दिखाई पड़ती है।

जवाब में बिडेन कैंपे ने भी तीखा कैंपेन चालू किया। इसके तहत महामारी को लेकर चीन की प्रतिक्रिया को शुरू में ट्रंप द्वारा ज़िम्मेदार न ठहराने का आरोप लगाया गया। इसमें कहा गया कि जब कोरोना वायरस फैल रहा था, तब राष्ट्रपति ''कार्रवाई करने में नाकाम'' रहे। इसमें जिनपिंग की तारीफ़ करते हुए ट्रंप को दिखाया गया और कहा गया कि राष्ट्रपति ने ''चीन पर विश्वास'' किया है।

हांलाकि ट्रंप एक सीमा का भी ख़याल रख रहे हैं। बात यह है कि नवंबर में होने वाले चुनावों में चीन के पास कई कार्ड हैं। इस वक़्त चीन के पास वैश्विक स्वास्थ्य आपूर्ति पर बड़ा नियंत्रण है। अमेरिकी अस्पतालों की जरूरतों वाले मास्क और प्रोटेक्टिव गियर की आपूर्ति के बड़े हिस्से पर चीन का दबदबा है। अगर चीन ने पहले वैक्सीन बना लिया, तो यह बहुत ताकतवर विकल्प हो जाएगा, जिससे उसकी दुनिया में स्थिति बहुत मजबूत हो जाएगी। जैसा टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया, ''उस स्थिति में चीन को लाखों अमेरिकी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव बनाने की ताकत मिल जाएगी।''

ऊपर से ट्रंप को इस भाषणबाजी का ''चीन से चल रही व्यापारिक बातचीत'' पर प्रभाव भी भांपना होगा। जनवरी में किए गए अंतरिम व्यापारिक समझौते के तहत चीन, अमेरिका से अगले दो सालों में 200 बिलियन डॉलर का माल खरीद ही लेगा, इस बारे में अभी कुछ भी साफ नहीं हो पाया है।

यह तय है कि कोरोना वायरस द्वारा लाई गई आर्थिक मंदी से दूसरे देशों की तुलना में चीन पहले उबर जाएगा। इसके उलट अमेरिका को अभी लंबा रास्ता तय करना है। उसे अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए एशिया में होने वाली आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर रहना होगा, जहां बिना किसी संशय के चीन केंद्र में है। यहीं बीजिंग के साथ जनवरी में किया गया व्यापारिक समझौता अहम हो जाता है।

इसलिए CNN की हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रंप का चीन से एक और बैर मोल लेने के लिए यही बहुत खराब़ वक़्त है। इस रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों की चेतावनी को शामिल किया गया, जिनके मुताबिक़, स्वास्थ्य संकट में चीन की भूमिका पर की गई प्रतिबंधात्मक कार्रवाई उल्टी पड़ सकती है, जिससे मौजूदा मंदी, भयावह आर्थिक मंदी में बदल जाएगी।'' इससे अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान होगा। इसलिए कोई अचंभा नहीं होना चाहिए कि ट्रंप चीन पर दिए गए अपने सार्वजनिक बयानों पर कायम नहीं रह पाते हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Why Trump’s Vacillation on China is Well-Grounded

COVID-19
China COVID-19
Chinese response to COVID-19
Donald Trump
Trump and Coronavirus
us presidential elections
Trump and China
US and China
Donald Trump calling Coronavirus Chinese Virus
Xi Jingping
Coronavirus and Racism

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