NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कोरोना वायरस: विकलांगों के लिए संकट कितना गंभीर है?
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में कोरोना वायरस की सबसे अधिक मार एक अरब विकलांगों पर पड़ी है। विकलांग/दिव्यांग या अशक्त जन पहले से ही गरीबी, हिंसा की उच्च दर, उपेक्षा एवं उत्पीड़न जैसी जिन असमानताओं को सामना कर रहे थे, उसे यह महामारी और बढ़ा रही है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
11 May 2020
 विकलांगों के लिए संकट कितना गंभीर है?
प्रतीकात्मक तस्वीर

दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने पिछले हफ्ते कहा कि दुनिया में कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित लोगों में एक अरब विकलांग (दिव्यांग) भी शामिल हैं। उन्होंने कोविड-19 की रोकथाम एवं उपचार को लेकर विकलांगों को समान मौके उपलब्ध कराने का आह्वान किया।

गुतारेस ने कहा कि यह महामारी इस बात को सामने ला रही है कि किस हद तक लोग हाशिये पर हैं तथा विकलांग जन गरीबी, हिंसा की उच्च दर, उपेक्षा एवं उत्पीड़न जैसी जिन असमानताओं को सामना कर रहे हैं, उसे यह और बढ़ा रही है। उनका वीडियो संदेश संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के साथ जारी किया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब 15 फीसद लोग विकलांग (दिव्यांग) और 46 फीसद लोग 60 साल से अधिक उम्र के हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी वर्तमान में स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जी रहे लोगों के लिए अधिक गंभीर है तथा उनकी मृत्यु की संभावना को बढ़ा रही है।

उन्होंने कहा कि जो विकलांग और बुजुर्ग वृद्धाश्रमों एवं विभिन्न संस्थाओं में रह रहे हैं, अधिक जोखिम की स्थिति में हैं क्योंकि उनके समक्ष स्वास्थ्य देखभाल, साफ-सफाई और एक दूसरे से दूरी संबंधी मुश्किलें पेश हो सकती हैं।

उन्होंने कहा कि कुछ देशों में स्वास्थ्य सेवाओं का वितरण उम्र या गुणवत्ता या जीवन के महत्व की धारणा, जिसका आधार विकलांगता है, जैसे भेदभावों पर आधारित है। गुतारेस ने कहा,‘ हम इसे जारी नहीं रहने दे सकते। हमें इस बात की बिल्कुल गारंटी देनी चाहिए कि इस महामारी के दौरान विकलांगों को स्वास्थ्य देखभाल एवं जीवन रक्षक प्रक्रियाओं का समान अधिकार मिले।’

इस रिपोर्ट में विकलांगों को इस वायरस से संक्रमित होने से बचाने, लॉकडाउन, एक दूसरे से दूरी के प्रभाव से निपटने की रूपरेखा तय की गयी है। रिपेार्ट में व्यापक सहयोग एवं राजनीतिक प्रतिबद्धता का आह्वान किया गया है ताकि विकलांगों को इस संकट से उबरने के लिए तत्काल स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा सेवाओं समेत जरूरी सेवाएं उपलब्ध हों।

क्या है भारत की स्थिति?

आपको बता दें कि 2011 की जनगणना के अनुसार देशभर में करीब 2.68 करोड़ लोग विकलांग हैं। हालांकि विभिन्न राज्यों की तरफ से जारी सार्टिफिकेट इससे काफी ज्यादा हैं। भारतीय सांख्यिकी मंत्रालय के जुलाई, 2018 में किए गए सर्वे के मुताबिक भारत में लगभग 2.2 करोड़ लोग विकलांग हैं। उनमें से करीब 70 फ़ीसदी आबादी गांवों में रहती है। ऐसे में जाहिर है, एक बड़ी आबादी संक्रमण के खतरे और लॉकडाउन की परेशानियों से जूझ रही है।

वहीं, कोरोना संक्रमण के दौरान विकलांगों को दी जाने वाली सहायता पर भी सवाल उठ रहा है। गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन के बीच ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ की घोषणा के दौरान कहा था कि, “बुजुर्ग, विधवा और दिव्यांगों को 1000 रुपये अतिरिक्त दिए जाएंगे। ये अगले तीन महीने के लिए है। इस पहल का फायदा लगभग 3 करोड़ लोगों को होगा।”

ऐसे में आपको बता दें कि केंद्र सरकार केवल उन विकलांग लोगों को अतिरिक्त आर्थिक सहायता दे रही है, जो केंद्रीय सूची में शामिल हैं और जिनकी विकलांगता 80 प्रतिशत या उससे अधिक है। यह संख्या सिर्फ 28,000 है। सरकार की इस आधी-अधूरी सीमित सहायता को लेकर विकलांग जनों में गुस्सा है। उनका कहना है कि सरकार ने मदद के नाम पर उनकी आंखों में धूल झोंकने का काम किया है।

यह भी पढ़ें: लॉकडाउन: क्या विकलांगों को राहत पैकेज में केंद्र सरकार ने धोखा दिया है?

इसका मतलब यह हुआ कि इस संकट के समय में भी बड़ी संख्या में विकलांगजन सरकारी सहायता से दूर हैं। ऐसे में जब एक ओर विकलांगजनों को सरकारी सहायता नहीं मिल रही है तो वहीं दूसरी ओर कोरोना के इस संकटकाल में विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाले कई एनजीओ यानी गैरसरकारी संगठनों को गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कोविड-19 संकट से निपटने के लिए उन्हें पहले दिए गए फंड में से अधिकांश को हटा दिया गया है।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड के महासचिव प्रशांत वर्मा का कहना है कि वह अपने कर्मचारियों को पिछले दो महीनों में वित्तीय संकट के कारण सिर्फ 65 प्रतिशत वेतन दे पाए हैं और यदि डोनेशन नहीं मिलता है तो उनके पास अपने 120 स्टाफ मेंबर को इस महीने देने के लिए कुछ भी रुपये नहीं होंगे।

वर्मा ने कहा कि उनका संगठन कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) है, जिसे कई व्यक्तियों व कई कंपनियों से अनुदान प्राप्त होता था, खासकर मार्च के दौरान क्योंकि यह वित्तीय वर्ष का आखिरी महीना होता था। लेकिन इस साल कोई पैसा नहीं मिला। उन्होंने कहा की सारा फंड कोविड-19 की तरफ ट्रांसफर हो गया है।

वहीं पीटीआई से बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता और दिव्यांग मित्र ज्योति संगठन के संस्थापक मधु सिंघल ने कहा कि यह उनके लिए एक बहुत ही नई स्थिति है और अभी इसे एक महीने हो गए हैं लेकिन हमें आने वाले महीनों में और कठिनाई का सामना करना पड़ेगा क्योंकि हम जानते हैं कि कोरोनो वायरस का संकट जल्द खत्म नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हम सीएसआर फंड और सामान्य दान पर निर्भर हैं। पिछले एक महीने में कोई दान नहीं किया गया।

एक और गैरसरकारी संगठन आरुषि के संस्थापक सदस्य अनिल मुदगल ने कहा कि उनके संगठन को भी मिलने वाला फंड पूरी तरह बंद हो गया है। उन्होंने कहा, "हमें नहीं पता कि अगले महीने से क्या होगा। हम तनाव में हैं। हम अलग-अलग तरीकों की तलाश कर रहे हैं। उद्धव फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी चेतन शर्मा ने कहा कि कोरोनोवायरस संकट के कारण कंपनियों का मुनाफा प्रभावित हुआ है और कई ने सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को सीएसआर योगदान देना बंद कर दिया है।

शर्मा ने कहा, हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि खुद को कैसे बनाए रखा जा सकता है। सभी की प्राथमिकता कोरोना वायरस है। हमें कोई फंड नहीं मिल रहा है और मानवीय आधार पर हम अपने कर्मचारियों को जाने के लिए नहीं कह सकते।

गौरतलब है कि ऐसी स्थिति में सरकार को विकलांगजनों की हिफाजत के लिए आगे आना चाहिए। नहीं तो पहले से ही गरीबी, उपेक्षा, उत्पीड़न और सामाजिक अलगाव झेल रहे विकलांगों के सामने भुखमरी का संकट आ जाएगा। दरअसल इन लोगों के साथ जो कुछ हो रहा है, वह हमारे समय की शायद सबसे बड़ी मानव त्रासदी है।

Coronavirus
COVID-19
Disabled People
Antonio Guterres
United nations
Handicapped
Disabled Relief Package
Central Government

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License