NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
कोरोना का क़हर अब गाँवों की तरफ़!
जब बड़े-बड़े शहरों में कोरोना रोज़ाना सैकड़ों जानें लील रहा है, तो गाँवों के बारे में सोच कर ही डर लगने लगता है। जहाँ न अस्पताल हैं न डॉक्टर और न ही कोई सप्लाई चेन।
शंभूनाथ शुक्ल
09 May 2021
कोरोना का क़हर अब गाँवों की तरफ़!
Image courtesy : India Today

दुरौली कानपुर नगर ज़िले का एक गांव है। एक ऐसा गाँव जो कानपुर नगर और देहात की सीमा पर स्थित है। यानी न उसे नगर की सुविधा मिलती है, न देहात की। इस गाँव के लोग कोई मुंबई, दिल्ली या सूरत, बंगलुरु में नौकरी नहीं करते बल्कि अधिक से अधिक कानपुर शहर ज़िले तक ही उनकी पहुँच है और वहीं नौकरी में हैं, जो यहाँ से कुल 40 किमी दूर है। पिछले दिनों जब गेहूं की फसल का सौदा करने शहरी आढ़ती यहाँ आए तो वे यहाँ भी कोरोना बाँट गए। गाँव में तीन लोग तो जान गँवा चुके हैं और हर तीसरे घर में कोई न कोई बीमार है। गाँव में न कोई डॉक्टर है, न कोई कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर और न ही आसपास कोई बड़ा अस्पताल। जो भी बीमार पड़े उसे कानपुर शहर ले जाना पड़ेगा। जो बहुत मुश्किल काम है। और यह संकट कोई दुरौली का नहीं है, पास के सरगवाँ, पारा, रठिगाँव, अकबरपुर झबैया आदि अनेक गाँवों का है।

शहर में अस्पताल भरे हुए हैं और तहसील घाटमपुर यहाँ से 16 किमी है तथा उसके लिए भी न सड़क न आवागमन का कोई साधन।

जब प्रदेश की औद्योगिक और व्यापारिक राजधानी कानपुर से सटे गाँवों का यह हाल है तो दूर की बात क्या की जाए! पिछले चार वर्षों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के औद्योगिक विकास की बात तो खूब करते रहे लेकिन ज़मीन पर कहीं कुछ नहीं दिख रहा है। चिकित्सा, स्वास्थ्य और शिक्षा का बुनियादी ढाँचा ही चरमराया हुआ है। जबकि औद्योगिक और व्यापारिक विकास तब ही सम्भव है जब उस क्षेत्र में आवागमन के साधन सुगम हों, क़ानून-व्यवस्था दुरुस्त हो तथा स्वास्थ्य व शिक्षा के माकूल इंतज़ाम हों। इनमें से कोई भी चेन टूटी तो विकास बस हवा-हवाई बन कर रह जाएगा।

अब जो एक बड़ा ख़तरा सामने दिख रहा है, वह यह कि कोरोना का प्रसार जब गाँवों में तेज होगा तो क्या होगा? सरकार तो हाथ खड़े कर देगी और बयान आ जाएगा कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और राज्य सरकार के मुखिया कह देंगे कि गाँव स्थानीय निकाय में आते हैं, ज़िला पंचायत अध्यक्ष जानें फिर खंड पंचायत होगी और उसके बाद ग्राम प्रधान। प्रधान बेचारे को मिड डे मील अपने घर लाने तथा ग्राम सभा की ज़मीन क़ब्ज़ाने से फ़ुरसत नहीं है। सत्ता के अधिकारों का पूर्ण केंद्रीकरण और फिर दायित्त्वों से दूरी बरत लेना, यह आज की सरकार की समझ है। इसलिए गाँवों के लोग किससे उम्मीद करेंगे। देश में छह लाख से ऊपर गाँव हैं। इनमें से अधिकतर उत्तर प्रदेश और बिहार में हैं। इसकी दो वजहें हैं। एक तो यहाँ आबादी का घनत्व बहुत ज़्यादा है, दूसरे रोज़गार के लिए पलायन भी यहीं से हुआ है। क्योंकि यहाँ अद्योगिकीकरण शून्य है।

उत्तर प्रदेश में कानपुर भी अब कारख़ानों का शहर नहीं बल्कि ट्रेडर्स सिटी बन कर रह गया है। लोग आए, माल ख़रीदा और चलते बने। ऐसी स्थिति में न तो यहाँ उद्योग पनपे न उसके अनुकूल बुनियादी ढाँचा। अखिलेश, मायावती और मुलायम सरकारों ने भले ही अपने ग्राम-प्रेम के चलते अपने गाँवों का काया-कल्प किया लेकिन इसी बहाने उन्होंने आसपास के इलाक़े को भी चमन कर दिया। इटावा में सैफयी, कन्नौज में तिर्वा और बुंदेलखंड में बाँदा मेडिकल कॉलेज खुलवाए इसलिए वहाँ के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ मिलीं। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में एम्स ले भी आए, लेकिन वहाँ अभी कोई सुविधा नहीं है। ऐसी स्थिति में लोग बस कवाल टाउन (KAVAL) अर्थात् कानपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद और लखनऊ के भरोसे रहेंगे। जो अपर्याप्त हैं।

छोटा-सा राज्य है झारखंड, लेकिन जब पिछले महीने मार्च में मैं वहाँ के जंगलों और गाँवों में एक सप्ताह रुका तो आश्चर्य हुआ कि वहाँ के लोग यूपी, बिहार के लोगों की तुलना में अधिक जागरूक हैं। इसकी वजह थी, वहाँ अंग्रेज़ी शिक्षा, विज्ञान और अस्पतालों का क्षिप्र प्रसार। इसलिए मैंने देखा कि वहाँ के आदिवासी लोग भी मॉस्क लगाए थे तथा वे स्वतः एक दूरी बनाए थे। इसके विपरीत मैं दिसंबर महीने कानपुर शहर गया था। वह शादियों का सीजन था। हर गली-मोहल्लों में बने बारात-घर फुल थे और भीड़ टूटी पड़ रही थी। किसी ने भी मॉस्क नहीं लगा रखा था। मैं एक शादी में मॉस्क लगा कर गया, तो मुझे लोग “ओ अंग्रेज!” के सम्बोधन से पुकार रहे थे। यही स्थिति मैंने कानपुर के गाँवों में भी देखी। और हो भी क्यों ना! जब देव दीपावली में अयोध्या एवं वाराणसी में भारी भीड़ उमड़ी तब उसे नहीं रोका गया तो आपका यह नैतिक दायित्त्व नहीं बनता कि आप लोगों को  मॉस्क लगाने या सोशल डिस्टैंसिंग बरतने का आग्रह करें।

प्रश्न यह उठता है कि वे सारे प्रांत जो हिंदी हार्टलैंड से दूर हैं या राजधानी दिल्ली के सीधे टच में नहीं हैं, वहाँ के गाँवों का खूब विकास हुआ है। तमिलनाडु और केरल इसके उदाहरण हैं। तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश भी। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जाति और मज़हब से दूर सारा ज़ोर विकास पर दिया। वे कोई धर्म से विरत नहीं हैं। धर्म की जड़ें उनके यहाँ मज़बूत हैं। अलबत्ता धर्म का दिखावा नहीं है, उन्माद नहीं है, असहिष्णुता नहीं है। यही कारण है कि वहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और नगरीय सुविधाओं का जाल गाँवों तक पहुँचा।

आज भारत की दुनियाँ भर में थू-थू हो रही है। अब तो ख़ुद भाजपाई भी मान रहे हैं कि नरेंद्र मोदी न तो विदेश नीति में सफल हो पाए न स्वदेश नीति में। कोरोना को क़ाबू कर नहीं पाए और अमेरिका, रूस, चीन किसी को भी साध नहीं पाए। किसी का भी भरोसा नहीं जीत पाए। इसीलिए भूटान और नेपाल जैसे देश भी भारत को मदद करने का संकेत दे रहे हैं। सवा सौ करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाला देश इस तरह लचर हो जाए, यह एक अजूबा ही है। यह माना जा सकता है कि कोरोना एक विश्व-व्यापी महामारी है। किंतु इस पर क़ाबू पाने के जो उपक्रम किए जाने थे, वे कहीं नहीं दिखे। न मॉस्क लगाने के समुचित दिशा-निर्देश जारी हुए न लॉकडाउन को लेकर कोई एक पॉलिसी बनी। इसी का नतीजा है कि कोरोना आज बेक़ाबू हो रहा है। मज़े की बात कि प्रधानमंत्री अब इसे राज्यों का विषय बता रहे हैं। प्रश्न उठता है कि तब इन्होंने क्यों 22 मार्च 2020 को इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया और पीएम केयर फंड की स्थापना की? क्यों नहीं सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को बुलाकर एक बैठक की? ताकि सर्व-सम्मति बन सके। अब जब हालात क़ाबू से बाहर हो गए हैं, तब कैसे इस मामले को राज्यों का बता कर हाथ खींच लिए जाएँ?

प्रधानमंत्री को शुरू से ही जिस तरह की सजगता दिखानी थी, वह उन्होंने नहीं दिखाई। वे अपने भरोसेमंद अफ़सरों से ही राय-मशविरा करते रहे। उन्होंने अपनी ही पार्टी के समझदार नेताओं, मार्गदर्शक मंडल के सदस्यों से भी बात नहीं की। वे बस चुनावी मूड में रहे। पहले तो वे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीत के लिए आह्वान करते रहे और उसके बाद बंगाल फ़तेह करने के लिए। दोनों ही जगह प्रधानमंत्री को मुँह की खानी पड़ी। ट्रंप तो अपनी करनी के कारण गए ही बंगाल में ममता ने बीजेपी के ग़ुब्बारे की हवा निकाल दी। यही कारण है आज विश्व मीडिया में मोदी जी और भारत की छवि बहुत ख़राब हो गई है। अमेरिका, कनाडा और योरोप में रह रहे भारतीयों को लोग हिक़ारत से देखने लगे हैं। ज़ाहिर है प्रधानमंत्री विदेश नीति और देश के अंदर कोरोना पर क़ाबू पाने में बुरी तरह नाकाम रहे। ऐसी स्थिति में कोरोना जब गाँवों तक पहुँच गया तब कैसे इसके प्रसार को रोका जा सकेगा। जब बड़े-बड़े शहरों में कोरोना रोज़ाना सैकड़ों जानें लील रहा है, तो गाँवों के बारे में सोच कर ही डर लगने लगता है। जहाँ न अस्पताल हैं न डॉक्टर और न ही कोई सप्लाई चेन। ऊपर से महंगाई के चलते भूख की मार का भी अंदेशा पक्का है। लेकिन लगता नहीं कि मोदी सरकार अभी भी गम्भीर है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

COVID-19
Coronavirus
Corona in Rural Area
UttarPradesh
Rural india
Modi government
Narendra modi

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • food
    रश्मि सहगल
    अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?
    18 May 2022
    कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है कि आज पहले की तरह ही कमोडिटी ट्रेडिंग, बड़े पैमाने पर सट्टेबाज़ी और व्यापार की अनुचित शर्तें ही खाद्य पदार्थों की बढ़ती क़ीमतों के पीछे की वजह हैं।
  • hardik patel
    भाषा
    हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दिया
    18 May 2022
    उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए त्यागपत्र को ट्विटर पर साझा कर यह जानकारी दी कि उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
  • perarivalan
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया
    18 May 2022
    उम्रकैद की सज़ा काट रहे पेरारिवलन, पिछले 31 सालों से जेल में बंद हैं। कोर्ट के इस आदेश के बाद उनको कभी भी रिहा किया जा सकता है। 
  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना मामलों में 17 फ़ीसदी की वृद्धि
    18 May 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 17 फ़ीसदी मामलों की बढ़ोतरी हुई है | स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में 24 घंटो में कोरोना के 1,829 नए मामले सामने आए हैं|
  • RATION CARD
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    योगी सरकार द्वारा ‘अपात्र लोगों’ को राशन कार्ड वापस करने के आदेश के बाद यूपी के ग्रामीण हिस्से में बढ़ी नाराज़गी
    18 May 2022
    लखनऊ: ऐसा माना जाता है कि हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत के पीछे मुफ्त राशन वित
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License