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कोविड-19
स्वास्थ्य
कोरोना के बदलते हुए चेहरे कितने खतरनाक? 
कोरोना के वैरियंट का मतलब क्या है? स्ट्रेन का मतलब क्या है? इन पर वैक्सीन का क्या असर होगा? कैसे पता चलेगा कि यह कितने जानलेवा हैं?
अजय कुमार
15 Apr 2021
कोरोना के बदलते हुए चेहरे कितने खतरनाक? 

कहीं-कहीं से यह भी आवाज सुनने में आ रही है कि कोरोना के नए वैरियंट आए हैं। इन्हीं की वजह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। कोई अफ्रीका से आए वैरियंट का नाम ले रहा है तो कोई ब्राजील से आए वैरियंट का। चलिए यह समझने की कोशिश करते हैं कि आखिरकर यह वैरीअंट का मतलब क्या है? स्ट्रेन का मतलब क्या है? क्या इन्हीं की वजह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं? या यह महज एक तरह का अटकल है और कुछ भी नहीं?

कोविड -19 एक बीमारी का नाम है। जो कोरोनावायरस परिवार के SARS-COV-2 वायरस से फैल रहा है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यह प्रोटीन में लिपटी हुई बुरी खबर की तरह होता है। प्रोटीन यानी वायरस की ऊपरी खोल और बुरी खबर यानी वायरस का जेनेटिक मेटेरियल जो सिंगल आरएनए मॉलिक्यूल से बना होता है। 

प्रोटीन के सहारे वायरस शरीर में घुसता है। सिंगल आर एन ए मॉलिक्यूल से बने जेनेटिक मैटेरियल में वह सारी सूचनाएं होती हैं जिसके जरिए वायरस शरीर के किसी कोशिका से जुड़कर अपनी ही तरह के लाखों और वायरस बनाता है।

जब एक वायरस किसी जीवित कोशिका से जुड़ता है तो उसे संक्रमित करता है। वायरस में मौजूद जेनेटिक मैटेरियल से मिली सूचनाएं नए प्रोटीन बनाती हैं। यही प्रोटीन आगे चलकर फिर वायरस में तब्दील हो जाता है। इस तरह से अलग-अलग वायरस बनते रहते हैं। और इन सब में कुछ न कुछ अंतर होता है। यही प्रक्रिया हर बार दोहराई जाती है। 

जब कोशिकाएं संक्रमित होती हैं तो कोशिकाओं के द्वारा ही वायरस से लड़ने के लिए मजबूत इम्यून सिस्टम तैयार किया जाता है। रक्त कोशिकाएं एंटीबॉडी बनाती हैं और दूसरी तरह की कोशिकाएं संक्रमित कोशिकाओं पर सीधे हमला करती हैं और उन्हें जड़ से उखाड़ने में लग जाती हैं। 

यही सब आपस में मिलकर शरीर में एक मजबूत इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा तंत्र का विकास करते हैं। जो भविष्य में भी पहले  कोशिकाओं को संक्रमित कर चुके वायरस के फिर से आने पर उनसे लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। 

जब वायरस की कॉपी बन रही होती है तो कभी कभार जब वायरस की कॉपी अपने ओरिजिनल कॉपी से बहुत अलग बन जाती है तो इसे ही म्यूटेशन कहा जाता है। तब फिर से एंटीबॉडी से लेकर इम्यून सिस्टम बनाने की सभी शर्तें बदल जाती हैं। पहले से अर्जित की गई इम्यून सिस्टम से अलग इम्यून सिस्टम की जरूरत आन पड़ती है। 

चुकी वायरस कई शरीर में फैलते हैं। उनकी लाखों कॉपियां बनती हैं। तो म्यूटेशन भी स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती है। और उसके अनुसार इम्यून सिस्टम भी खुद को ढाल लेता है। लेकिन कभी-कभार ऐसा होता है कि म्यूटेशन हो जाता है लेकिन इम्यून सिस्टम खुद को उस तरह से ढाल नहीं पाता। संक्रमण की वजह से संक्रमण गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है। शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम उस पर काम नहीं करता। इसी तरह से कोरोना के नए वेरिएंट पनपते हैं। जो वैरीअंट थोड़े बहुत अलगाव के साथ एक ही तरह के गुणों वाले होते हैं, उनकी बनी हुई कैटेगरी वायरस का स्ट्रेन कहलाती है।

वुहान से निकला पहला वायरस चीनी स्ट्रेन के तौर पर जाना जाता है। यही पूरी दुनिया भर में फैल गया। जहां पर इस वायरस में अलगाव आता चला गया, वैरीअंट से स्ट्रेन बनने लगे तो वैसे ही उनका नामकरण भी होने लगा। जैसे दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन, ब्राजील का स्ट्रेन और हाल फिलहाल भारत का देशी स्ट्रेन।

अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल का कहना है कि कोरोना के स्ट्रेन चिंता का कारण हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यह हमारे इम्यून सिस्टम को भेद देते हैं। जो टीके बने हैं, वह म्यूटेशन के जरिए नए बन रहे स्ट्रेनों को ध्यान में रखकर नहीं बनाया जाए हैं। इसलिए यह चिंता की बात है। दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और नए उभरते भारत के स्ट्रेन में यह देखने को मिल रहा है। 

 वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल फिलहाल कोरोना के जो मामले बढ़ रहे हैं इनमें उन्हीं स्ट्रेनो की बड़ी भूमिका है, जिनकी वजह से पहले कोरोना फैला था। कोरोना के बदले हुए स्ट्रेनों के वजह से क्या प्रभाव पड़ रहा है? इस पर पुख्ता तरीके से डाटा नहीं आए हैं पुख्ता तरीका से डाटा आने के बाद यह पता चलेगा कि कोरोना के बदल रहे स्ट्रेनो का क्या प्रभाव पड़ रहा है? इसलिए कोरोना की अगली चाल समझने के लिए पुख्ता तरीके की डाटा की बहुत जरूरत है। डेटा होगा तभी हम परेशानी का सही आकलन लगा कर उससे सामना करने की सही रणनीति बना पाएंगे।लेकिन सबसे अच्छी स्थिति वही होगी जब इन स्ट्रेनो का असर कम देखने को मिले।

जानकारों की राय है कि भले ऐसे देखने को मिल रहा हो कि नए वेरिएंट के आगे टीके विवश हो जा रहे हैं लेकिन ज्यादातर सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे हाथों में ही है। अगले एक साल तक इन सभी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है कि कोरोना अपना रूप किस तरह से बदल रहा है। इससे जुड़े डाटा को रखने की जरूरत है। ढिलाई नहीं देनी है, जितना हो सके उतना सतर्कता बरतना है।

अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गौतम मेनन कहते है कि SARS-CoV-2 वायरस बिल्कुल वैसा ही कर रहा है जैसे वायरस करते हैं, कुछ ज्यादा नहीं और कुछ कम नहीं। इसकी इंसानों से कोई कोई विशेष दुश्मनी नहीं है। जिस तरह से कोरोाना के रूपों में परिवर्तन हो रहा है वहीं पृथ्वी पर विकास की प्रक्रिया है, अंततः  इस ग्रह पर जीवन की विविधता के लिए विकास की यही प्रक्रिया  जिम्मेदार है।

अगर हम अभी प्रकृति के साथ साहचर्य और सामंजस्य बिठाकर नहीं जिएंगे और यही समझेंगे कि चमगादड़ से लेकर पेड़-पौधे सब पर केवल इंसानों का हक है। इंसान जैसे चाहे वैसे इस पृथ्वी को चला सकता है तो हमें अगले महामारी के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

(वायरस की जटिल बातों को सरल करने की वजह से भले तकनीकी तौर पर कमजोर लगे लेकिन उनका अर्थ वही है)

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