NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सात बिंदुओं से जानिए ‘द क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन बिल’ का क्यों हो रहा है विरोध?
द क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन बिल: पहचान का रिकॉर्ड बनाने के नाम पर नागरिक अधिकारों को कुचलने वाला प्रावधान
अजय कुमार
11 Apr 2022
amit shah

जिसने एक बार जेल की हवा खा ली, जो एक बार किसी अपराध में दोषी बन गया, जो एक बार किसी कानून को तोड़ने के आरोप में गिरफ्तार हो गया- उनकी पहचान का मुक़्क़मल रिकॉर्ड रखने के लिए संसद ने एक कानून पास किया है। इस कानून का नाम है- द क्रिमिनल प्रोसीजर इंडेंटिफिकेशन बिल हिंदी में कहें तो आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक, 2022 पारित कर दिया है। केवल राष्ट्रपति से मुहर लगाना बाकी है। मुहर लगते ही यह बिल कानून में तब्दील हो जायेगा। पहचान का रिकॉर्ड रखने का मकसद यह है कि भावी अपराध की छानबीन में इसका इस्तेमाल किया जा सके। 

इस कानून के तहत प्राधिकृत अधिकारी यानी सरकार द्वारा अधिकारी पहचान के तौर पर उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटोग्राफ, आईरिस और रेटिना स्कैन, फिज़िकल, बेहवियरल एट्रिब्यूट यानी व्यवहारिक लक्षण, बायोलॉजिकल सैंपल और एनालिसिस से जुड़े नमूने इकट्ठा कर सकेगा। इसके साथ सीआरपीसी की धारा 53 या धारा 53 ए के तहत संदर्भित हस्ताक्षर, लिखावट या किसी अन्य व्यवहार संबंधी विशेषताओं को भी इकट्ठा किया जा सकेगा। 

ऐसा नहीं है कि दोषियों और आरोपियों के पहचान इकठ्ठा करने को लेकर इससे पहले कोई कानून नहीं था। कानून था लेकिन वह बहुत पुराना था। साल 1920 का कानून था। उसमे संसोधन की जरूरत थी। सरकार ने संसोधन तो किया लेकिन इस तरह किया कि चारों तरफ इसकी आलोचना हो रही है। आलोचना का पहला बिंदु तो यही है कि जिस कानून में तकरीबन 100 साल बाद संसोधन हो रहा है, उस पर चर्चा के करने के लिए विपक्ष को पूरा समय क्यों नहीं मिला?  विपक्षी सांसदों द्वारा इस बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने के निवेदन को क्यों ख़ारिज कर दिया गया? ऐसी क्या आफत आ गयी कि आनन फानन में इसे पास कर दिया गया।  

दूसरा बिंदु-  यह बिल पुलिस और जेल अथॉरिटी को पहचान के तौर पर उंगलियों के निशान, हथेली के निशान, पैरों के निशान, फोटोग्राफ, आईरिस और रेटिना स्कैन लेने की इजाजत देता है। इसके साथ यह भी कहता है कि सीआरपीसी की धारा 53 या धारा 53 ए के तहत पहचान लेने तरीकों का भी इस्तेमाल कर सकता है। इसमें नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और मनोवैज्ञानिक परिक्षण के सहारे पहचान स्थापित करने से जुड़े तरीके भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तरीकों असंवैधानिक बताया है। मानवीय आजादी, गरिमा और निजता के खिलाफ बताया है। फिर भी इसकी इजाजत दी जा रही है क्यों? सरकार को बिल में साफ़ तौर पर लिखना चाहिए कि उन तरीकों और तकनीकों का इस्तेमाल नहीं होगा जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक घोषित कर दिया है, जो मानवीय आजादी, गरिमा और निजता के खिलाफ जाते हों।

तीसरा बिंदु: इस बिल की भाषा बताती है कि इसमें वे सभी लोग शामिल होंगे जो दोषी हों, जिन्होंने कभी भी किसी तरह का कानून तोड़ है या किसी मामलें में आरोपी है। भारत में तो वह सभी लोग जो सार्वजनिक जीवन से जुड़े हैं, जो आंदोलनों में भाग लेते हैं, जो राजनीतिक कार्यकर्त्ता हैं, उन्होंने अपने जीवन में किसी का कानून का उल्लंघन न किया हो, ऐसा तो मुमकिन नहीं है। धारा 144 का उल्लंघन सबने किया होगा। विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए आलाकामन से आदेश आता है कि शांति व्यवस्था को भंग नहीं किया जाएगा। लेकिन जो न्याय के लिए लड़ रहे हैं, वह अहिंसक तरीके से अपना संघर्ष जारी रखते हैं।  इस नए कानून के चलते इन सभी लोगों की निजता और आजदी में हनन करने की पूरी सम्भावना बनती है।  

चौथा बिंदु- इस बिल में लिखा है कि पहचान से जुड़ी सूचनाओं को 75 साल तक डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रखा जा सकता है। लॉ इंफोर्स्मेंट एजेंसी अगर मांगे तो राज्य या केंद्रशसित प्रदेश इन सूचनाओं को साझा कर सकती हैं। लॉ इंफोर्स्मेंट एजेंसी को साफ तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है। इसमें कौन शामिल होगा, इस पर नहीं बताया गया है। लॉ इंफोर्स्मेंट एजेंसी का शब्दिक मतलब हुआ कि कोई भी ऐसी एजेंसी जो किसी तरह के कानून को लागू करवाती है। यह इतना बड़ा गोला है जिसमें पंचायत, म्युनिसिपल से लेकर हर तरह की एजेंसियां शामिल हो जाती है, जिनका जुड़ाव किसी कानून से है। तो क्या सरकार यह कहना चाह रही है कि इकठ्ठा किये गए सूचनाओं का इस्तेमाल कोई भी एजेंसी कर सकती है। अगर यह होगा तो सोचिए कि निजता और व्यक्ति की आजादी का यह कितना बड़ा उल्लंघन होगा? 

पांचवा बिंदु- अगर अधिकृत अधिकारी किसी व्यक्ति से पहचान से जुड़ी वह सारी सूचनाएं लेने की कोशिश करे, जिसका सम्बन्ध इस कानून से है तो उसे वह सूचनाएं देनी पड़ेंगी। अगर वह इंकार करता है तो भारतीय दंड संहिता के तहत यह एक आपराधिक कृत्य होगा।  इसका मतलब है कि यह कानून अधिकृत अधिकारी को यह शक्ति देता है कि व्यक्ति की इच्छा के खिलाफ जाकर सूचनाएं इकट्ठा करने का काम करे। यह कई मूल अधिकारों का उल्लंघन है।  नागरिक को मिले अधिकारों का उल्लंघन है। 

छठवां बिंदु- यूरोपियन कोर्ट का मानना है कि फिंगर प्रिंट लेना , बायोलॉजिकल सूचनाएं इकट्ठा करना- इस तरह की कार्यवाहियां  मानवाधिकार के खिलाफ हैं। लेकिन सरकार इस तरफ कानून बनाकर बढ़ रही है। इसका मतलब क्या है?

सातवां बिंदु- अभी तक कोई भी ऐसा वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है जो यह बताया कि फिंगर प्रिंट, आईरिस और रेटिना स्कैन या किसी भी तरह की पहचान से जुडी सूचनाएं सत प्रतिशत सही है। सबकी पहचान से जुड़ी अलग-अलग सूचना सबके लिए अलग अलग हो, ऐसा अभी तक सत्यपित नहीं हुआ है। अमेरिका की रिसर्च एजेंसियों को कहना है कि पहचान के लिए पूरी तरह से इन सूचनाओं पर निर्भर न रहा जाए।

यह सारे वह बिंदु हैं जो यह बताते हैं कि कैसे कानून बनाने के नाम पर इसमें असंवैधानिक पहलुओं को भी जोड़ा गया है। कानून के जरिये नागरिक अधिकारों का उल्लंघन ऐसे ही होता है। पूरे क़ानून में हल्के से अंश ऐसे भी होते है, जिन्हें पकड़कर नागरिक अधिकारों को पूरी तरह से कुचल दिया जाए। मौजूदा समय मे जब सरकारें किताबें और कपड़ें देखकर किसी को दोषी की कैटेगरी में डाल देती हैं तब आप खुद समझिये जब सरकारों के पास किसी व्यक्ति के बारें में धारणा बनाने के लिए नारकों एनालिसिस से लेकर मानसिक आकलन तक सब कुछ होगा तब क्या होगा? वह इन सूचनाओं के जरिये मीडिया में कैसा खेल खेलेंगी?

ये भी पढ़ें: 17वीं लोकसभा की दो सालों की उपलब्धियां: एक भ्रामक दस्तावेज़

Criminal Procedure Identification Bill
Biometric Data
lok sabha
Rajya Sabha
fingerprint
Right to equality
Right to privacy
Code of Criminal Procedure
Amit Shah
Narendra modi
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License