NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
भाजपा अभी तक राजद्रोह क़ानून का इस्तेमाल 233 बार कर चुकी है
हनी बाबू पर औपनिवेशिक युग के क़ानून देशद्रोह को थोप दिया गया है जिसे मोदी सरकार 2014 से 2018 के बीच 233 बार इस्तेमाल कर चुकी है।
सूहीत के सेन 
05 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
राजद्रोह

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भीमा कोरेगांव से संबंधित मामलों के सिलसिले में 28 जुलाई को दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू एमटी को गिरफ्तार कर लिया और इस सिलसिले में गिरफ्तार होने वाले वे 12 वें व्यक्ति हैं।

इस मामले की याद को फिर से ताज़ा करने से देश की सत्ता के चरित्र के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तर्क देने में मदद मिलेगी और पता चलेगा कि इनका सत्ता में होना कितना अफसोसजनक है। 31 दिसंबर 2017 को पुणे में कोरेगाँव की एतिहासिक लड़ाई (पेशवाओं से) का जश्न मनाने के लिए एल्गर परिषद नामक संस्था ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस लड़ाई में महार रेजिमेंट जिसने ब्रिटिश रेजिमेंट की सहायता से पेशवाओं की सेना को हराने के लिए की थी, और पेशवा को हराकर मराठा साम्राज्य की बागडोर 1 जनवरी 1818 को संभाली थी।

इस कार्यक्रम में दलित सशक्तीकरण के समर्थन में दलित उत्पीड़न, जाति व्यवस्था के खिलाफ तथा हिंदुत्व संगठनों द्वारा भड़काई जा रही सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ सांस्कृतिक प्रदर्शन और भाषण दिए गए थे, जो एक दुखद घटना के साथ समाप्त हुआ। यह बड़ा कार्यक्रम महाराष्ट्र के इलाकों से होकर गुजरने वाले दो मार्चों के बाद हुआ था, और पुणे के बड़े आयोजन में शामिल हुए थे, जहां सार्वजनिक सभा हुईं। एल्गर परिषद के आयोजकों में से एक बॉम्बे उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीजी कोलसे-पाटिल भी थे।

अगले दिन, हजारों की संख्या में दलित लोग भीमा कोरेगांव में लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए शामिल हुए। हिंदुत्व के कार्यकर्ताओं ने सभा पर हमला किया, जिससे कार्यक्रम स्थल पर हिंसा भड़क गई और उसके अगले दिन हिंसा के खिलाफ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए। हिंसा में दो युवकों की मौत हो गई थी, जिनमें से एक कथित तौर पर पुलिस द्वारा पीटे जाने से मरा था।

जांच शुरू में हिंदुत्व कार्यकर्ताओं की भूमिका पर केंद्रित थी। शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक मनोहर भिडे उर्फ संभाजी और गुरुजी तथा तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता और मिलिंद  एकबोटे अन्य हिंदुत्व के कार्यकर्ता के खिलाफ 2 जनवरी को एफआईआर दर्ज की गई। एकबोटे को मार्च में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हे गिरफ्तार तब किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने पुणे पुलिस के खिलाफ सख्त आदेश जारी किया था। कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी रहे भिड़े से कभी पूछताछ नहीं की गई।

बाद में रिपोर्ट किया गया कि पुणे पुलिस द्वारा गठित एक समिति ने 20 जनवरी को अपनी रिपोर्ट में भिडे और एकबोटे को 1 जनवरी 2018 की हिंसा के चक्र के लिए दोषी पाया था। फिर केस में अचानक से एक मोड़ आया जिसमें, हिंसा फैलाने वाले हिंदुत्व के सैनिकों की भूमिका की जांच गंभीरता से नहीं की गई। इसके बजाय, पुणे पुलिस ने भाकपा (माओवादी) की गैर-कानूनी गतिविधियों का इल्ज़ाम लगा कर  दलित और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को फंसाना शुरू कर दिया। मज़ाक की बात यह है कि उनमें से कुछ पर मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

8 जून 2018 को दंगा भड़काने के आरोप में एल्गर परिषद और भीमा कोरेगांव मामलों में गिरफ्तार किए गए 12 लोगों में सुरेंद्र गडलिंग, रोना विल्सन, शोमा सेन, सुधीर धवले और महेश राउत को दंगा भड़काने के आरोप में 8 जून 2018 को गिरफ्तार किया गया, और वरवारा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को 28 अगस्त 2018 को देश के कौने-कौने से भोर में उठा लिया गया था। एक घंटी बजती है और आनंद तेलतुंबडे को 3 फरवरी 2019 को गिरफ्तार कर लिया जाता है, उसी दिन उन्हे रिहा किया जाता है और इस साल 16 मार्च को फिर से गिरफ्तार कर लिया जाता है।  जैसा कि उल्लेख किया गया है, हनी बाबू को पिछले सप्ताह हिरासत में लिया गया है। वे सभी कार्यकर्ता हैं और उनमें से कुछ वकील और शिक्षाविद भी हैं।

रविवार को, एनआईए की एक टीम ने बाबू के फ्लैट की तलाशी ली और उनके दस्तावेजों, पर्चे और कंप्यूटर डिस्क तथा पेन ड्राइव अपने साथ ले गए। एजेंसी द्वारा बाबू के खिलाफ लगाए गए कई "आरोपों" में से उन पर आरोप है कि उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक जीएन साईबाबा जो एक माओवादी नेता है की रिहाई के लिए दबाव बनाने के लिए बनी समिति के तहत आर्थिक फंड इकट्ठा करने की पहल की थी ताकि साईबाबा को जेल से रिहा कराया जा सके, जो वर्तमान में सेवारत है माओवादी संबंध के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इस बात का अनुमान या आक्षेप लगाना कि ये आपराधिक गतिविधियां सच हैं, पूरी तरह से वर्तमान शासन के मनमाने और सत्तावादी चरित्र को दर्शाता है।

कई अन्य चीजों के बीच जो अभी एक अधूरी गाथा है, वह यह कि नवंबर 2019 में महाराष्ट्र में मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद और कथित रूप से इन मामलों को छोड़ने पर विचार शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने राज्य पुलिस से सभी मामलों को एन.आई.ए. के हवाले कर दिया।  

इस पृष्ठभूमि में जाने का मकसद यह था कि इस बात को समझाया जा सके कि कैसे मौजूदा सत्तासीन ताक़त अपनी आपराधिक हरकतों को छिपाने का काम कर रही है, जबकि वह उन लोगों को आरोपित कर रही है जिनकी गतिविधियों और वैचारिक स्टैंड बहिष्कारवादी और बहुमतवादी हिंदुत्व, अंधकारवादी विचार की अधिनायकवादी विचारधारा के खिलाफ है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी कार्यकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप भारतीय दंड संहिता या गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के देशद्रोही प्रावधानों के तहत थोपे गए हैं।

यह जांचना चाहिए कि क्या भीमा कोरेगांव मामला एक विसंगति है। स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं है। सत्ता में बैठी विचारधारा का एक स्पष्ट पैटर्न है। इस साल के शुरू में हुए दिल्ली के दंगों को लें। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों, विशेष रूप से कपिल मिश्रा ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जो दिल्ली विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गए थे, और संघ परिवार के अन्य सदस्यों मे भी ऐसा ही किया था।

फिर भी, दिल्ली पुलिस के 2014 के बाद के रिकॉर्ड को देखें, पुलिस ने उनके और उनके साथियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इसके विपरीत, पुलिस अपनी ऊर्जा अब तक मुख्य रूप से युवा मुस्लिम पुरुषों को गिरफ्तार कर खर्च कर रही है। वास्तव में यह कोई रहस्य नहीं है कि मुस्लिम समुदाय, जिसने मौत का तांडव देखा, घरों, व्यवसायों और इबादत स्थलों को उजड़ते देखा और सब कुछ खो दिया, जब उन पर दंगे बरपा हो रहे थे तो पुलिस मुक बन तमाशा देखती रही या मुस्लिम के खिलाफ हमलों में भाग लेती रही।

साथ ही, दिल्ली पुलिस उन मुस्लिम कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही करने में लगी हुई है, जो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम कानून (CAA), 2019 और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर के खिलाफ आंदोलन में शरीक थे, जबकि उन लोगों को छोड़ दिया गया जो लोग दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान आग लगाने वाले भाषण दे रहे थे जिसमें मिश्रा के अलावा खुद वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा के लोकसभा सदस्य परवेश वर्मा जैसे लोग शामिल थे, जिन्होंने दर्शकों को उन पर निशाना साधने को कहा जो ‘गद्दार’ हैं।

2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की भारी जीत के बाद स्पष्ट रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले तेज़ हुए हैं, लेकिन सत्ता में इसके पहले के कार्यकाल के दौरान पार्टी और सरकारों ने केंद्र और राज्यों में हमलों की इस मूहीम को पहले से चलाया हुआ था और गायों के वध और गोमांस के नाम पर मुसलमानों की अंधाधुंध लिंचिंग की गई। हत्यारों के खिलाफ मुकदमा चलाने के बजाय, जिन पर हमले हुए उन्हे ही आरोपित किया गया या सताया गया।

भारत को एक असहिष्णु और विषैले लोकतांत्रिक राज्य में बदलने की भाजपा की कोशिश के रास्ते में हनी बाबू की गिरफ्तारी एक और संकेत है, जिसमें कट्टरपंथी हिंदुत्व की ''मजबूत'' प्रतिवाद की भावना प्रबल होगी। यदि निज़ाम का यही उद्देश्य है, तो स्वायत्त निकायों जैसे कि न्यायपालिका और संवैधानिक प्रावधान के मूल्यों के साथ तोड़फोड़ होगी और लोकतांत्रिक संस्थानों का विघटन जारी रहेगा।

संस्थागत जाँच के अभाव में और राजनीतिक दादागिरी से भारत भी एक पुलिस राज्य की तरह दिखने लगा है। इसका नमूना लीजिए। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार देशद्रोह के मामले को 2014 से 2018 के बीच 233 बार लोगों पर थोपा गया है, जबकि यह औपनिवेशिक युग का  कानून है जिसके बारे में वकीलों और न्यायविदों का कहना है कि इसे क़ानून की किताब को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि एक लोकतांत्रिक राज्य में इसका कोई स्थान नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2014 से राजद्रोह के मामलों पर डेटा एकत्र कर रहा है, लेकिन इसके अनुपालन में तेजी से वृद्धि हुई है। 2019-20 के वर्ष के लिए अभी तक कोई डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन दृढ़ता से कहा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह मामला अभी शांत नहीं हुआ है।

दो लोग, जिन्होने बोनापार्टिस्ट पैंतरेबाज़ी से सत्ता पर कब्जा कर लिया है और एक ऐसा निज़ाम कायम किया है जिसका उद्देश्य राजनीतिक विरोध को दबाना है, इसके माध्यम से दुनिया के "सबसे बड़े लोकतंत्र" को ढहाया जा रहा है और पूरी दुनिया के सामने खराब लीडरशीप, एक-दलीय लोकतंत्र में बदलने की कोशिश की जा रही है। नागरिकों के प्रतिरोध, जैसा कि सीएए विरोधों में समाहित है, और लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष विपक्ष के पुनर्निर्माण के माध्यम से इस घटना को विफल करने के प्रयास करना जाना जरूरी है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

Dissent
free speech
Sedition
Hany Babu arrest
NIA

Related Stories

अपने आदर्शों की ओर लौटने का आह्वान करती स्वतंत्रता आंदोलन की भावना

बॉब डिलन से प्रेरित : "हू किल्ड स्टेन स्वामी?"

जब दिशा रवि और नवदीप कौर पत्रकारिता की एक कक्षा में पहुंचीं

झारखंड: फादर स्टेन स्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ बढ़ते विरोध और सवालों के स्वर!

दिल्ली विश्वविद्यालय: आर्ट्स फैकल्टी में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर एफआईआर


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License