NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
अपराध
उत्पीड़न
नज़रिया
भारत
राजनीति
हाथरस, कठुआ, खैरलांजी, कुनन पोशपोरा और...
दलित व मुस्लिम महिलाओं पर होने वाली ख़ौफ़नाक यौन हिंसा को सामान्य चलन बना दिया गया है और उसे सामाजिक-राजनीतिक स्वीकृति दिला दी गयी है।
अजय सिंह
31 Oct 2020
हाथरस
Image courtesy: Twitter

अंगरेज़ी उपन्यासकार और कवि मीना कंदासामी ने हाथरस सामूहिक बलात्कार की घटना से क्षुब्ध होकर जब ‘रेप नेशन’ (बलात्कार राष्ट्र) शीर्षक कविता लिखी, तो उसमें उन्होंने यही कहना चाहा कि भारत ख़ासकर दलित महिलाओं के साथ बलात्कार को संरक्षण देने वाला और उसे जायज ठहराने वला देश बन गया है। उन्होंने लिखा कि हमारे देश में हमेशा बलात्कार की पीड़ित को ही दोषी ठहराया जाता है, बलात्कारियों को पुलिस व राजनीतिक सत्ता की शह मिलती है, प्रेस जाति के ज़हर को अनदेखा करता रहता है, और ‘यह पहले भी हुआ है, यह आगे भी होगा।’

अब अगर आप हाथरस (सितंबर 2020), कठुआ (जनवरी 2018), खैरलांजी (सितंबर 2006) और कुनन पोशपोरा (फ़रवरी 1991) में सामूहिक बलात्कार-हत्या-बर्बर अत्याचार की घटनाओं को देखें, तो लगेगा कि मीना कंदासामी की यह कविता पंक्ति—‘यह पहले भी हुआ है, यह आगे भी होगा’—जैसे ख़ून से सनी सच्चाई को हमारे सामने रख रही हैं।

ख़ासकर दलित व मुस्लिम महिलाओं पर होने वाली ख़ौफ़नाक यौन हिंसा को सामान्य चलन बना दिया गया है और उसे सामाजिक-राजनीतिक स्वीकृति दिला दी गयी है। यही नहीं, यौन हिंसा की शिकार महिलाओं को ही—अगर वे ग़रीब व वंचित तबकों से आती हैं या दलित-मुस्लिम पृष्ठभूमि से हैं—दोषी ठहराने का रिवाज चल पड़ा है। यह एक प्रकार से शासन का क़ानून (लॉ ऑफ रूल) बन गया है। मौजूदा हिंदुत्व फ़ासीवादी निज़ाम में यही देखने को मिल रहा है।

अब बलात्कारियों के समर्थन में खुलेआम तिरंगा झंडा यात्राएं निकाली जाती हैं, जिनमें सरकार के मंत्री व राजनीतिक नेता शिरकत करते हैं। बलात्कारियों का बचाव करने के लिए कमेटियां बनती हैं, पंचायतें व सभाएं की जाती हैं, और यौन हिंसा की शिकार महिलाओं व उनके परिवारों को झूठा साबित करने, नीचा दिखाने, अपमानित करने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया जाता है। यह सब सरकार व पुलिस की शह पर, उसकी देखरेख में होता है।

राजनीतिक ढांचा ऊंचे/प्रभावशाली जाति समूहों और वर्ग समूहों के पक्ष में खड़ा रहता है। इस राजनीतिक ढांचे के अंदर निचली/दलित जातियों और मुसलमानों के प्रति गहरी नफ़रत भरी हुई है। इसकी फ़ितरत में महिला-द्वेष समाया हुआ है। यह ढांचा अंदर से हिंदू राष्ट्र सिद्धांत से संचालित होता है, और मनुस्मृति इसका दार्शनिक आधार है। दिखावा करने के लिए ज़रूर वह भारत के संविधान के नाम पर शपथ लेता है।

हाथरस (उत्तर प्रदेश) में 19 साल की एक दलित लड़की के साथ ऊंची जाति के चार लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया, बर्बर तरीके से उसका अंगभंग किया, जिससे बाद मे लड़की की मौत हो गयी। कठुआ (जम्मू-कश्मीर) में आठ साल की एक मुस्लिम बच्ची के साथ दबंग जातियों के कई लोगों ने एक मंदिर में कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया और बाद में वीभत्स तरीक़े से उसकी हत्या कर दी। खैरलांजी (महाराष्ट्र) में एक दलित महिला और उसकी नौजवान बेटी को एक ताक़तवर पिछड़ी जाति (ओबीसी) के लोगों ने गांव में नंगा कर घुमाया, उन दोनों के साथ खुलेआम सामूहिक बलात्कार किया गया, और बाद में बहुत बर्बर ढंग से दोनों की हत्या कर दी गयी। महिला के दोनों नौजवान बेटों को भी बड़ी निर्ममता से मार डाला गया।

कुनन पोशपोरा (कुपवाड़ा, जम्मू-कश्मीर) में भारतीय सेना की चौथी राजपुताना राइफ़ल्स की एक टुकड़ी ने, जिसमें क़रीब 300 फ़ौजी शामिल थे, कई मुस्लिम महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया। इन महिलाओं की संख्या 50 से 100 के बीच बतायी जाती है। इन महिलाओं के परिवारों के क़रीब 200 पुरुष सदस्यों को सेना ने अमानवीय यातनाएं दीं। यह भयानक अपराध करनेवाले फ़ौजियों को आज तक सज़ा नहीं हुई। क्योंकि केंद्र सरकार नहीं चाहती कि उन्हें सज़ा मिले।

इन सभी घटनाओं में राजनीतिक सत्ता बलात्कारियों के पक्ष में किसी-न-किसी रूप में खड़ी दिखायी दी। वह या तो इन घटनाओं को नकारने/झुठलाने में लगी रही, या फिर महिलाओं और उनके परिवारवालों को ही इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार बताती रही। ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक नज़रिया बलात्कार संस्कृति को वैधता प्रदान करने में लगा है। इसे राजनीतिक सत्ता का पूरा संरक्षण मिला हुआ है।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Dalit Women
Muslim women
crime against women
violence against minorities
crimes against women
exploitation of women
Hathras
Kathua
Khairlanji
Kunan
Poshpora

Related Stories

न्याय के लिए दलित महिलाओं ने खटखटाया राजधानी का दरवाज़ा

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल

पड़ताल: जौनपुर में 3 दलित लड़कियों की मौत बनी मिस्ट्री, पुलिस, प्रशासन और सरकार सभी कठघरे में

ग्राउंड रिपोर्टः आजमगढ़ में दलित बच्ची से रेप की घटना को दबाने में लगा पुलिसिया सिस्टम, न्याय के लिए भटकता परिवार 

दलित लड़कियों-महिलाओं के लिए सुरक्षा और इंसाफ़ की पुकार

एनसीआरबी: कोविड-19 उल्लंघन के कारण अपराध दर में 28% वृद्धि, एससी /एसटी के ख़िलाफ़ अपराध में 9% इज़ाफ़ा

बिजनौर: क्या राष्ट्रीय स्तर की होनहार खिलाड़ी को चुकानी पड़ी दलित-महिला होने की क़ीमत?

200 हल्ला हो: अत्याचार के ख़िलाफ़ दलित महिलाओं का हल्ला बोल

शर्मनाक: दिल्ली में दोहराया गया हाथरस, सन्नाटा क्यों?

शर्मनाक: अवैध संबंध के आरोप में पति, गांव वालों ने आदिवासी महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया


बाकी खबरें

  • रवि शंकर दुबे
    दिल्ली और पंजाब के बाद, क्या हिमाचल विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाएगी AAP?
    09 Apr 2022
    इस साल के आखिर तक हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो प्रदेश में आप की एंट्री ने माहौल ज़रा गर्म कर दिया है, हालांकि भाजपा ने भी आप को एक ज़ोरदार झटका दिया 
  • जोश क्लेम, यूजीन सिमोनोव
    जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 
    09 Apr 2022
    जलविद्युत परियोजना विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने में न केवल विफल है, बल्कि यह उन देशों में मीथेन गैस की खास मात्रा का उत्सर्जन करते हुए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट को बढ़ा देता है। 
  • Abhay Kumar Dubey
    न्यूज़क्लिक टीम
    हिंदुत्व की गोलबंदी बनाम सामाजिक न्याय की गोलबंदी
    09 Apr 2022
    पिछले तीन दशकों में जातिगत अस्मिता और धर्मगत अस्मिता के इर्द गिर्द नाचती उत्तर भारत की राजनीति किस तरह से बदल रही है? सामाजिक न्याय की राजनीति का क्या हाल है?
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहारः प्राइवेट स्कूलों और प्राइवेट आईटीआई में शिक्षा महंगी, अभिभावकों को ख़र्च करने होंगे ज़्यादा पैसे
    09 Apr 2022
    एक तरफ लोगों को जहां बढ़ती महंगाई के चलते रोज़मर्रा की बुनियादी ज़रूरतों के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भी अब ज़्यादा से ज़्यादा पैसे खर्च…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: इमरान को हिन्दुस्तान पसंद है...
    09 Apr 2022
    अविश्वास प्रस्ताव से एक दिन पहले देश के नाम अपने संबोधन में इमरान ख़ान ने दो-तीन बार भारत की तारीफ़ की। हालांकि इसमें भी उन्होंने सच और झूठ का घालमेल किया, ताकि उनका हित सध सके। लेकिन यह दिलचस्प है…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License