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राजनीति
प्रमोशन में आरक्षण की मांग के साथ सड़कों पर उतरे दलित युवा
एससी-एसटी इम्प्लॉइज़ एसोसिशन के बैनर तले उत्तराखंड के जिला मुख्यालयों पर युवाओं ने आरक्षण ख़त्म करने के विरोध में आवाज़ बुलंद की। इसी के साथ भीम आर्मी के भारत बंद के आह्वान पर भी विरोध प्रदर्शन किया गया।
वर्षा सिंह
24 Feb 2020
sc st employees association dharna in dehradun

आरक्षण दलित वर्ग के लोगों के लिए उस उम्मीद का नाम है जो एक दिन उन्हें समाज के निचले तबके से अन्य ऊंची कही जाने वाली जातियों के साथ बराबरी पर ला सकता है। बराबरी की इस रेखा का एक सिरा अभी बहुत नीचे है। यानी बराबरी अभी कोसों दूर है। रोहित वेमुला को याद कीजिए अपने अंतिम पत्र से जिस नौजवान ने हमारी आत्माओं को झिंझोड़ कर रख दिया। देश की प्रतिष्ठित हैदराबाद यूनिवर्सिटी के होनहार दलित छात्र ने आत्महत्या करने और अपने परिजनों की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाने के लिए माफी मांगी। विज्ञान को प्यार करने वाला नौजवान क्रूर जातीय तंत्र झेल नहीं सका। रोहित जैसे कितने ही युवा हैं जिनके लिए आरक्षण कई गुजरी पीढ़ियों की ज्यादती को पाटने का एक ज़रिया है।

एससी-एसटी इम्प्लॉइज़ एसोसिशन ने की विरोध की आवाज़ बुलंद

प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था बनाए रखने की मांग के साथ रविवार को दलित समाज ने देहरादून के पैवेलियन ग्राउंड में सांकेतिक धरना दिया। एससी-एसटी इम्प्लॉइज़ एसोसिशन के बैनर तले राज्य के जिला मुख्यालयों पर इन युवाओं ने विरोध की आवाज़ बुलंद की।

एसोसिएशन की मांग है कि इंदु कुमार कमेटी और जस्टिस इरशाद हुसैन आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक कर उसका परीक्षण किया जाए। उस रिपोर्ट के अनुसार एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व पूरा न होने की स्थिति में तत्काल कानून बनाकर प्रमोशन बहाल किया जाए। इसके साथ ही एसोसिएशन सीधी भर्ती में रोस्टर की समीक्षा के लिए गठित मदन कौशिक समिति की रिपोर्ट न आने तक वर्ष 2001 में निर्धारित रोस्टर के आधार पर सीधी भर्ती की मांग कर रहा है। एसोसिएशन ने अपनी सात सूत्रीय मांगों से संबंधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम जारी किया।

bheem army protest in dehradun2.jpeg

भीम आर्मी का नीला कारवां देहरादून में बढ़ा

एससी-एसटी इम्प्लाइज एसोसिशन के साथ रविवार को भीम आर्मी के भारत बंद के आह्वान पर भी देहरादून में दलित युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया। भीम आर्मी की उत्तराखंड इकाई के प्रदेश अध्यक्ष महक सिंह कहते हैं कि नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करना संविधान विरोधी है। भारतीय समाज में समानता आने तक ये प्रक्रिया सतत रहनी चाहिए। भीम आर्मी एकता मिशन ने एससी, एसटी और ओबीसी को मिलने वाले पदोन्नति में आरक्षण को जारी रखने की मांग की। इसके साथ ही नागरिकता संशोधन कानून को भी वापस लेने की मांग की गई। भीम आर्मी के मीडिया प्रभारी सुशील गौतम कहते हैं कि देहरादून की सड़कों पर उतरा नीला कारवां रुकने वाला नहीं है। हम संविधान के अनुसार चलने वाले लोग हैं। अपने हक की मांग कर रहे हैं।

इससे पहले 20 फरवरी को सामान्य और ओबीसी वर्ग के कर्मचारियों ने भी देहरादून में आरक्षण समाप्त करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। वे प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने की मांग कर रहे थे।

प्रमोशन में आरक्षण का फ़ैसला, एक लंबी कानूनी लड़ाई

प्रमोशन में आरक्षण को लेकर राज्य ही नहीं देशभर में लंबी कानूनी प्रक्रिया चल रही है।

वर्ष 2012 में इंदु कुमार समिति के साथ ही, वर्ष 2013 में जस्टिस इरशाद हुसैन आयोग ने भी राज्य में एससी-एसटी समुदाय के लोगों के पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व, प्रशासनिक दक्षता को लेकर तैयार की थी। लेकिन जस्टिस इरशाद हुसैन आयोग की रिपोर्ट सरकारी फाइलों में बंद हो कर रह गई और आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है। प्रमोशन में आरक्षण से जुड़े किसी भी फैसले के लिए राज्य सरकार को इस रिपोर्ट का भी अध्ययन करना होगा।

2006 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला था कि एससी-एसटी समुदाय के पिछड़ेपन, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और कुल प्रशासनिक कार्यक्षमता के आधार पर प्रमोशन में आरक्षण का फ़ैसला लिया जाएगा।

वर्ष 2012 इंदु कुमार समिति की रिपोर्ट के मुताबिक एससी-एसटी वर्ग की सरकारी नौकरियों में श्रेणी क में 11.5 प्रतिशत, श्रेणी ख में 12.5 प्रतिशत और श्रेणी ग में 13.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।

5 सितंबर 2012 को उत्तराखंड सरकार (तब कांग्रेस की ओर से विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री थे) ने प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने का फैसला लिया।

वर्ष 2013 में जस्टिस इरशाद हुसैन आयोग समिति का गठन किया गया, जिसे एससी-एसटी प्रतिनिधित्व को लेकर 6 महीने में रिपोर्ट देनी थी।

इस दौरान राज्य में कांग्रेस सरकार सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा सरकार ने इस समिति की रिपोर्ट फाइलों में बंद कर दी। उसे सार्वजनिक नहीं किया गया।

इसके बाद, 26 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण को लेकर जो फ़ैसला दिया, उसमें क्वांटिफाई डाटा (एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व, पिछड़ेपन से जुड़े आंकड़ों) की बात खत्म कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, ज्ञानचंद ने प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था बहाल करने के लिए नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। य़ाचिकाकर्ता ने कहा कि उत्तराखंड सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करता है।

एक अप्रैल 2019 को नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण दिये जाने का फ़ैसला दिया। जिसके बाद उत्तराखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।

8 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण का फैसला राज्य सरकार पर छोड़ा। साथ ही ये भी कहा कि राज्य में एससी-एसटी की स्थिति के आधार पर सरकार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

उत्तराखंड में आधिकारिक तौर पर 11 सितंबर 2019 को प्रमोशन पर रोक लगाई गई। हालांकि एक अप्रैल 2019 को नैनीताल हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद से ही अनौपचारिक तर पर प्रमोशन रोक दिए गए थे। यानी करीब 11 महीनों से राज्य में सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन रुके हुए हैं। वर्ष 2012 में कांग्रेस की बहुगुणा सरकार ने प्रमोशन से आरक्षण हटाने का फ़ैसला लिया था।

प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कानून समझ रही राज्य सरकार

पिछले वर्ष नैनीताल हाईकोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण का मामला जाने के बाद से ही राज्य में प्रमोशन रुके हुए हैं। नैनीताल हाईकोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वाली उत्तराखंड सरकार भी राजनीतिक पसोपेश की स्थिति में है। राजनीतिक दलों के लिए सारा मसला वोट बैंक का है। भाजपा के मीडिया प्रभारी डॉ. देवेंद्र भसीन कहते हैं कि सरकार अब भी उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मंथन कर रही है। वह कहते हैं कि समाज में आपस में टकराव नहीं होना चाहिए।

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सरकारी नौकरी में एससी-एसटी के प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर वह कहते हैं कि नियुक्तियों में आरक्षण पहले से है। प्रमोशन में आरक्षण अलग मसला है। वह 2012 में राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस की सरकार को कठघरे में लाना चाहते हैं, जब विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री रहते हुए प्रमोशन से आरक्षण हटाया था। देवेंद्र कहते हैं कि फिलहाल सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और संवैधानिक व्यवस्थाओं का विधिक अध्ययन कर रही है। जो उचित निर्णय होगा वही लिया जाएगा।

राज्य में दलित आबादी के आंकड़े और दलित वोट बैंक की स्थिति

वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक राज्य की कुल आबादी 8,489,349 है। इसमें से 1,517,186 लोग एससी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, जो राज्य की कुल आबादी का 17.9 प्रतिशत है। इसके साथ ही राज्य में एससी आबादी में वर्ष 1991-2001 के बीच 23.2 प्रतिशत की गिरावट दर देखी गई। करीब 82.8 प्रतिशत दलित गांवों में रहते हैं। एससी जातियों में लैंगिक अनुपात 943 है जो कि राष्ट्रीय औसत 936 से अधिक है। इसी में से शिल्पकार जातियों में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या अधिक है।

बाजगी जाति का लैंगिक अनुपात 974 है जो अन्य एससी जातियों की तुलना में अधिक है। 2001 के ही आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में 63.4 प्रतिशत दलित आबादी शिक्षित है जो कि राष्ट्रीय स्तर पर दलित आबादी की साक्षरता दर (54.7 प्रतिशत) से अधिक है। हालांकि लड़के और लड़कियों की साक्षरता दर में बड़ा अंतर है। पुरुष साक्षरता दर 77.3 प्रतिशत और स्त्री साक्षरता दर 48.7 प्रतिशत है। ज्यादातर एससी समुदाय के लोग 45.9 प्रतिशत कृषि कार्यों से जुड़े हुए हैं। जिसमें से कृषि मज़दूर 12.3 प्रतिशत हैं।

ये आंकड़े तस्दीक करते हैं कि दलित चेतना शिक्षा को लेकर बेहद जागरुक है। लैंगिक अनुपात बताता है कि दलित वर्ग बेटियों के जन्म को भार नहीं समझता। लेकिन बेटियों की शिक्षा के मामले में ये जरूर चूक रहा है।

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