NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
दिल्ली : सरकार के दावों के विपरीत प्रवासी मज़दूरों को नहीं मिल रहा राशन
एक सवाल जो उठ रहा है वह यह कि इस दौरान क्या कुछ बदला है? मज़दूरों की सुरक्षा के लिए क्या कुछ हुआ? क्या सरकारें मज़दूरों को भरोसा दिला सकी हैं कि वे उनके लिए भी हैं? इन सभी का जवाब आज के हालात देखकर लगता है बिल्कुल नहीं!
मुकुंद झा
01 Jun 2021
दिल्ली : सरकार के दावों के विपरीत प्रवासी मज़दूरों को नहीं मिल रहा राशन

देश एक साल पहले भी कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन और उसके बाद मज़दूरों का दुखद रिवर्स माइग्रेशन को देख चुका था लेकिन एक बार फिर जब इस महामारी ने अप्रैल के महीने में दोबारा आक्रामकता से हमला किया तो हमारी सरकारों की व्यवस्थाएं ध्वस्त होती दिखीं जिसके बाद एकबार फिर दिल्ली सहित देश की अन्य राज्य सरकारों ने अपने अंतिम हथियार के रूप में लॉकडाउन को जनता पर थोपा। लगभग दो माह पूरी बंदी के बाद अब दिल्ली को आंशिक तौर पर खोला जा रहा है, लेकिन स्थितियां अभी सामान्य होने में कितना समय लगेगा कहना मुश्किल है।

पिछले साल हमने देखा था कि कैसे मज़दूर अपनी असुरक्षा के कारण अपने घरों की ओर रवाना हो गए थे क्योंकि सरकारों ने उन्हें अनाथ छोड़ दिया था। इसबार उम्मीद थी कि सरकारें कुछ सीख लेंगी लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा आज भी कमोबेश फिर वही नज़ारा है।

शहरों में आए प्रवासी मज़दूर मजबूर होकर वापस अपने गांव-घरों की तरफ गए और जो रह गए वो अपनी दुर्गति से परेशान हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बार लॉकडाउन के शुरुआती चार सप्ताह में 8 लाख से ज़्यादा प्रवासी मजदूर दिल्ली छोड़ गए।

एक सवाल जो उठ रहा है वह यह कि इस दौरान क्या कुछ बदला है?मज़दूरों की सुरक्षा के लिए क्या कुछ हुआ? क्या सरकारें मज़दूरों को भरोसा दिला सकी हैं कि वे उनके लिए भी हैं? इन सभी का जवाब आज के हालात देखकर लगता है बिल्कुल नहीं!

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 19 अप्रैल को दिल्ली में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा कि दिल्ली के प्रवासी मज़दूर चिंता न करें मै हूँ न! लेकिन मज़दूर लॉकडाउन के महीनों बाद भी केजरीवाल को ढूंढ रहा है और पूछ रहा है कहाँ हो? क्योंकि सरकार ने लॉकडाउन में मज़दूरों की मदद की बात तो दूर एक महीने तक उन्हें राशन का भी आश्वासन तक नहीं दिया।

लॉकडाउन के एक महीने से अधिक बीत जाने के बाद 24 मई को केजरीवाल ने अपनी डेली होने वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि उनकी सरकार उन सभी लोगों को राशन देगी जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। इसके लिए उन्होंने लोगों से पिछली बार की तरह ही ई-कूपन देने का वादा किया। जो अभी तक शुरू भी नहीं हो सका है। कुछ दिनों पूर्व दिल्ली सरकार ने राशन के सेंटर की लिस्ट जारी कर दी लेकिन अभी तक किसी भी प्रवासी मज़दूर को बिना राशन कार्ड के राशन नहीं मिला है। हालाँकि पिछली बार भी से दिल्ली सरकार ने काफ़ी देरी से ही ई-डिस्ट्रिक्ट वेबसाइट पर राशन कार्ड के लिए आवेदन करने का अनुरोध किया था। इस घोषणा के बाद से ही लोगों ने सवाल खड़े किये थे कि इस लॉकडाउन के दौर में मज़दूर कैसे ऑनलाइन अप्लाई करेंगे।

सरकार भले ही यह दावा कर ले कि वो लाखों लोगों को राशन देगी लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि मज़दूर राशन पाने के लिए भटक रहा है और उसे राशन नहीं मिल रहा है। इस वजह से कई लोगों के सामने दो वक़्त के भोजन का भी संकट आ गया है। आप सरकार के दावों का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि ऑनलाइन साईट जहाँ रजिस्ट्रेशन होना है वो पिछले कई दिनों से काम नहीं कर रही है। पिछली बार सरकार ने एक पोर्टल को चालू किया। लेकिन लोगो का कहना है कि ये भी अब काम नहीं कर रहा है। हालाँकि सरकार ने अपने नोटिफिकेशन जो हाल ही में जारी हुआ है उसमे कहा है वो रजिस्ट्रेशन अब राशन केंद्र पर ही होगा। लेकिन सवाल है राशन कब मिलेगा क्योंकि आप सोचिए जिन मज़दूरों को महीने भर से अधिक से काम नहीं मिल रहा है वो आपना गुजर बसर कैसे कर रहे होंगे।

हालाँकि केजरीवाल सरकार ने निर्माण मज़दूरों के लिए उनके वेलफेयर बोर्ड से 5000 रुपये की मासिक मदद दी है। इसी तरह ऑटो और टैक्सी चालकों को भी सरकार ने पांच-पांच हज़ार की मदद दी है। परन्तु यह राशि ख़ुद में ही काफ़ी कम है और दिल्ली जैसे शहर में निर्माण मज़दूर यूनियनों के दावे के मुताबिक़ 60% मज़दूरों का तो रजिस्ट्रेशन ही नहीं हुआ है। इसी तरह उन ऑटो और टैक्सी चालकों को मदद मिलेगी जिनके पास अपनी गाड़ी या बैच है परन्तु हम सब जानते हैं दिल्ली शहर में हज़ारों की तादाद में वैसे चालक है जो किराए की गाड़ियां लोकल इलाकों में चलाते हैं जिनके पास किसी तरह का कोई पेपर नहीं होता है।

"मैं पिछले कई दिनों से अपना राशन कार्ड बनवाने के लिए भटक रहा हूँ और लोगों से पूछ रहा हूँ लेकिन सब कहते हैं कि अभी सरकार ने राशन कार्ड बनाना शुरू ही नहीं किया है। अब मेरे पास राशन ख़त्म हो गया है। पिछले साल तो कुछ पड़ोसी और अन्य लोगों ने मदद की थी तब जाकर मैं और मेरा परिवार खाना खा रहा था। लेकिन इस बार तो कोई लोग या संस्था भी मदद नहीं कर रही है।"

ये कहना है बृजेश उर्फ़ कृष्णा टेलर का जो कि दिल्ली में सिलाई का काम करते हैं। उनकी अपनी एक दुकान सोनिया विहार में है लेकिन इस लॉकडाउन में उनका काम पूरी तरह से बंद पड़ गया है। जब से दिल्ली सरकार ने घोषणा की तबसे ही ये लगातार कोशिश कर रहे हैं। लेकिन कार्ड नहीं बन पा रहा है।

बृजेश कहते हैं, "मेरे परिवार में दो छोटे बच्चे हैं जिनमें से एक तीन साल की बिटिया है जो दूध पीती है जो मै कई सप्ताह से नहीं दे पा रहा हूँ। मेरे पास कोई पैसा नहीं बचा है और कोई दुकानदार उधार देने के लिए तैयार नहीं है।" वो कहते हैं, "यह सब देखकर लगता है हम लोगों के जीने-मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।"

ये किसी एक बृजेश की बात नहीं है। दिल्ली में ऐसे लोगों की संख्या हज़ारों में है जो परेशान हैं। ऐसे ही मुस्तफ़ाबाद के सुल्तान हैं जिन्होंने बताया, " पिछले डेढ़-दो साल से उन लोगों की जिंदगी नर्क हो गई है। पहले दिल्ली दंगे और उसके बाद से कोरोना महामारी ने सारा कामकाज़ बंद कर दिया है। कुछ महीने पहले लग रहा था कि सबकुछ सामान्य हो रहा है लेकिन एकबार फिर बीमारी आई और हमें दोबारा किसी और के सहारे की ज़रूरत पड़ रही है लेकिन दूसरा कोई कितना ही मदद करेगा जब सरकार ही कुछ नहीं कर रही है।"

इसी तरह एक और मज़दूर देव हैं जो दिल्ली और एनसीआर में रैक फिटिंग का काम करते हैं। उन्होंने भी कहा, "सरकार को हम लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि पिछले 50 दिनों से हम बिना काम के हैं और हम दिहाड़ी पर काम करने वाले है। पूरे परिवार में एक मैं ही कमाने वाला हूँ किस तरह जिंदगी चल रही है मै कैसे बताऊँ?" वो निराशा भरे स्वर में कहते है, "सरकार ड्राइवर या राज मिस्त्री को ही मज़दूर मानती है, हम क्या अफसर है। उन्हें हमारी भी मदद करनी चाहिए।"

ये तो थी मज़दूरों की व्यथा अब सरकार के दावे भी सुन लीजिए वो कह रही है कि दिल्ली में 70 लाख लोगों को राशन दे रही है। लेकिन इस महामारी के समय जब राशन लोगों को एडवांस मिलना चाहिए था उस महीने कार्डधारियो को भी 15 मई के बाद ही मिलना शुरू हुआ। कई जगह तो इससे भी अधिक देरी हुई। इसके साथ ही सरकार ने कहा है कि वो दिल्ली में बिना राशन कार्ड वाले लाखों लोगों को राशन देगी लेकिन एकबार फिर सवाल उठता है कैसे देगी? इसकी स्पष्ट जानकारी मज़दूरों के पास नहीं है और बड़ा सवाल कब देगी क्योंकि दिल्ली में संपूर्ण लॉकडाउन लगे काफ़ी समय हो गया है और कल यानि सोमवार से तो कुछ ढील भी दी जा रही है।

हमने भी इसकी जाँच करने की कोशिश की पहले तो इसमें साफ नहीं किया गया है कि उन मज़दूरों का क्या होगा जिनके पास आधार या दिल्ली का कोई प्रमाण पत्र नहीं है जोकि राशन कार्ड अप्लाई करने के लिए आवश्यक है। हमने इस पर कई अधिकारियो से बात की पर उन्होंने भी कुछ नहीं बताया की उनका क्या होगा?

ये सभी बातें सरकार को घोषणा करने से पहले ही सोचनी चाहिए थी। लेकिन लगता है कि सरकार ने हड़बड़ी में यह घोषणा कर दी क्योंकि इतनी देर से एलान ही हुआ और दूसरा सरकार के पास पिछले साल का अनुभव और उदाहरण भी था। यहाँ तक अदालत ने भी दिल्ली सरकार और केंद्र से प्रवासी मज़दूरों को आर्थिक मदद और सूखा राशन के साथ ही पके भोजन की व्यवस्था करने को कहा था। इसके बावजूद सरकार के पास इसका कोई ब्लू प्रिंट नहीं था जो दिखाता है कि सरकार और मुख्यमंत्री प्रेस कॉन्फ्रेंस में तो मज़दूरों की चिंता करते हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका पूरा तंत्र मज़दूरों की मदद करने में विफल हो रहा है।

इसी भी देखें: ग्राउंड रिपोर्ट : बेपरवाह PM-CM, भारतीय नागरिकों को भूख से मरने के लिए बेसहारा छोड़ा

Delhi
Migrant workers
Lockdown
Arvind Kejriwal
AAP
Ration distribution
COVID-19

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • modi
    अनिल जैन
    खरी-खरी: मोदी बोलते वक्त भूल जाते हैं कि वे प्रधानमंत्री भी हैं!
    22 Feb 2022
    दरअसल प्रधानमंत्री के ये निम्न स्तरीय बयान एक तरह से उनकी बौखलाहट की झलक दिखा रहे हैं। उन्हें एहसास हो गया है कि पांचों राज्यों में जनता उनकी पार्टी को बुरी तरह नकार रही है।
  • Rajasthan
    सोनिया यादव
    राजस्थान: अलग कृषि बजट किसानों के संघर्ष की जीत है या फिर चुनावी हथियार?
    22 Feb 2022
    किसानों पर कर्ज़ का बढ़ता बोझ और उसकी वसूली के लिए बैंकों का नोटिस, जमीनों की नीलामी इस वक्त राज्य में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में गहलोत सरकार 2023 केे विधानसभा चुनावों को देखते हुए कोई जोखिम…
  • up elections
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव, चौथा चरण: केंद्रीय मंत्री समेत दांव पर कई नेताओं की प्रतिष्ठा
    22 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश चुनाव के चौथे चरण में 624 प्रत्याशियों का भाग्य तय होगा, साथ ही भारतीय जनता पार्टी समेत समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। एक ओर जहां भाजपा अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहेगी,…
  • uttar pradesh
    एम.ओबैद
    यूपी चुनाव : योगी काल में नहीं थमा 'इलाज के अभाव में मौत' का सिलसिला
    22 Feb 2022
    पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि "वर्तमान में प्रदेश में चिकित्सा सुविधा बेहद नाज़ुक और कमज़ोर है। यह आम दिनों में भी जनता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त…
  • covid
    टी ललिता
    महामारी के मद्देनजर कामगार वर्ग की ज़रूरतों के अनुरूप शहरों की योजना में बदलाव की आवश्यकता  
    22 Feb 2022
    दूसरे कोविड-19 लहर के दौरान सरकार के कुप्रबंधन ने शहरी नियोजन की खामियों को उजागर करके रख दिया है, जिसने हमेशा ही श्रमिकों की जरूरतों की अनदेखी की है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License