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शिक्षा
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दिल्ली चुनाव: स्कूली शिक्षा का मुद्दा किसे जीत दिलाएगा?
दिल्ली के सरकारी स्कूल और शिक्षा व्यवस्था विधानसभा चुनाव में 'हॉट टॉपिक' यानी गरम मुद्दा बने हुए हैं। एक ओर केजरीवाल सरकार रिपोर्ट कार्ड के जरिए बेहतर स्कूली शिक्षा को अपनी ‘यूएसपी’ बताने में लगी हुई तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी इस पर गंभीर सवाल उठा रही है, घोटालों के आरोप लगा रही है। पढ़िए न्यूज़क्लिक की विशेष रिपोर्ट..
सोनिया यादव
05 Feb 2020
दिल्ली चुनाव

आम आदमी पार्टी ने 2015 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बेहतर शिक्षा व्यवस्था का वादा किया था। अब ठीक पांच साल बाद उन वादों और दावों को बीजेपी के सांसद और नेता झूठ बता रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह समेत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शिक्षा रणनीति पर केजरीवाल सरकार को नसीहत दे रहे हैं।

बहरहाल, चुनावी सियासत के बीच दिल्ली के सरकारी स्कूलों वाकई कैसे हैं, ये जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने दौरा किया कुछ सरकारी स्कूलों का और बातचीत की वहां पढ़ने वाले बच्चों, शिक्षकों और उनके अभिवावकों से।

हमने शुरुआत राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय द्वारका से की। ये एक सरकारी स्कूल है साफ- सफाई का आलम देखकर लगता है मानो आप किसी प्राइवेट स्कूल में आए हैं। यहां 'ज़ीरो डस्टबिन' पॉलिसी भी लागू है। इसके अलावा स्कूल का इंफ्रास्ट्रचर भी अच्छा नजर आता है। कक्षाओं में शिक्षक और बच्चें दोनों मौजूद हैं, जिसे देखकर आप बिहार या यूपी के उन सरकारी स्कूलों को कोसने लगेंगे जहां आज भी शिक्षक हाजिरी लगाकर गायब हो जाता है और क्लास बच्चों के हवाले छोड़ दी जाती है।

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यहां पढ़ने वाले अशोक नाम के छात्र ने बताया, 'जब साल भर पहले मैंने यहां दाखिला लिया, तो स्कूल का माहौल मेरे पिछले सरकारी स्कूल से बिल्कुल अलग था। वहां एक क्लास में 65 के करीब बच्चे हुआ करते थे, लेकिन यहां एक क्लास में सिर्फ 30-35 ही बच्चे हैं। इसलिए यहां पढ़ाई भी अच्छे से हो पाती है और टीचर बच्चों पर ज्यादा ध्यान भी देते हैं।'

एक छात्र विकास ने कहा कि हमें एनसीआरटी की किताबों के अलावा स्कूल से स्टडी मेटेरियल भी मिलता है। इसके अलावा स्कूल में लाइब्रेरी भी है, जहां से हम लोग अपनी जरूरत की किताबें ले लेते हैं। टीचर खुद इसमें हमारी मदद करते हैं।

स्कूल की एक टीचर ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया, 'स्कूल में आधुनिक सुविधाएं हैं, जिनसे हम बच्चों को नई तकनीक से पढ़ा सकते हैं। स्कूल में 60 से 70 फीसदी डिजिटलाइजेशन हो गया है। हम स्मार्ट बोर्ड के जरिए पढ़ाते हैं। छात्र अगर पढ़ने में कमजोर हो तो हम एक्सट्रा क्लास लेते हैं। अवसाद या किसी और तरह से मानसिक तौर पर परेशान बच्चों के लिए यहां काउंसलिंग भी होती है।'

दिल्ली चुनाव
चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने आम आदमी पार्टी पर शिक्षा के मामले में झूठ बोलने और लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। इस पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अमित शाह को दिल्ली के सरकारी स्कूलों को देखने की चुनौती दे दी। इसके बाद अमित शाह ने भी पार्टी के सांसदों को स्कूलों के निरीक्षण के लिए भेज दिया। हाल ही में बीजेपी के सांसदों ने दिल्ली के कई स्कूलों का दौरा कर उसकी वीडियो बनाई और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी। सांसदों की वीडियों में दिल्ली के स्कूलों की बदहाल हालत दिखाई दे रही है। इस पर आप की ओर से जवाब भी आया। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इसे झूठा करार देते हुए चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर अमित शाह समेत बीजेपी के कई सांसदों पर कार्रवाई की मांग की।

हम दक्षिणी दिल्ली के स्कूलों का हाल जानने के लिए लाजपत नगर के राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय पहुंचे। यहां भी स्कूल का परिसर साफ-सुथरा दिखाई दिया। स्कूल में बच्चों की अच्छी-खासी संख्या देखने को मिली। यहां हमें कई ऐसे बच्चे भी मिले जिनके मां-बाप दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं और जो पिछड़े समुदायों से आते हैं।

दिल्ली चुनाव

पांचवी कक्षा के एक छात्र से जब हमने उसका नाम पूछा तो उसने हमें अंग्रेजी में जवाब दिया, ‘माई नेम इज़ रवि। हमारे पूछने पर कि उसने इंलिश कंहा से सिखी, वो कहता है इसी स्कूल से सिखी है। हमें इंग्लिश में बात करने के लिए कहा जाता है, टीचर भी इंग्लिश में बात करते हैं फिर हिंदी में समझाते हैं।

यहां के बच्चों का कहना है कि उनके स्कूल में पढ़ाई के साथ ही कई अन्य तरह की एक्टिविटीज भी होती हैं जैसे म्यूजिकल कार्यक्रमों के साथ खेल-कूद और जूम्बा जैसी एक्सरसाइज भी करवाई जाती है।

यहां के एक शिक्षक का कहना है कि हमें बच्चों की छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखना होता है। जैसे बच्चे कहीं घर से परेशान तो नहीं है, बच्चा किस परिवार से आता है, उस पर कोई प्रेशर तो नहीं है। हम कोशिश करते हैं कि जो कमजोर बच्चें हैं उन पर अधिक ध्यान दिया जा सके। इसके अलावा स्कूल ड्रेस से लेकर स्टेशनरी तक के पैसे भी स्कूल की ही जिम्मेदारी है। पढ़ाई में अच्छे छात्रों को वजीफ़ा भी अलग से मिलता है।

हमने इन दोनों स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों से भी बात की। उनका साफ तौर पर कहना है कि सरकारी स्कूलों की अच्छी हालात देखकर उन्हें खुशी होती है। समय-समय पर स्कूल से फोन भी आते हैं बच्चों के बारे में बताने के लिए, मिटिंग भी होती है। कुल-मिलाकर अभिभावक सरकारी स्कूली व्यवस्था में बदलाव से संतुष्ट नज़र आए।

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गत सालों में दिल्ली सरकार के बजट पर नज़र डाले तो शिक्षा पर निवेश दोगुने से ज्यादा बढ़ाया गया है। साल 2014-15 के 65.55 अरब रुपये के बनिस्बत अरविंद केजरीवाल की सरकार ने साल 2019-20 में शिक्षा के लिए 151.3 अरब रुपये रखा। हालांकि ये आंकड़ें आप के शिक्षा के क्षेत्र में तीने गुने बढ़ोत्तरी से दूर हैं लेकिन बिहार, यूपी जैसे राज्यों से कहीं ज्यादा हैं जहां शिक्षा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।

बात करें नए स्कूलों के निर्माण की तो भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी पर ये आरोप लगाया है कि साल 2015 में सत्ता में आने के बाद से अरविंद केजरीवाल की सरकार ने एक भी स्कूल नहीं बनवाया है। हालांकि आप अपने वादे के अनुसार दिल्ली में 500 स्कूलों का निर्माण तो नहीं करवा पाई, लेकिन दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण, 2018-19 के अनुसार साल 2015 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 24 हज़ार कमरे थे जबकि अब दिल्ली में स्कूली बच्चों के लिए 32 हज़ार क्लासरूम्स हैं। आम आदमी पार्टी ने अपनी ताज़ा प्रोग्रेस रिपोर्ट में ये बताया है कि वो अब तक 30 नए स्कूल का निर्माण करावा पाई है। इसके साथ ही 30 अन्य स्कूलों का निर्माण कार्य चल रहा है।

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अगर बात सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पासिंग पर्सेंटेज़ यानी कितने बच्चे पास हो रहे हैं उसकी करें, तो पिछले साल दिल्ली के सरकारी स्कूलों का पासिंग रेट प्राइवेट स्कूलों की तुलना में बेहतर था। सरकारी स्कूलों के मामले में ये आंकड़ा 94 फीसदी था जबकि प्राइवेट स्कूलों के मामले में 90.6 फीसदी ही रहा।

हालांकि दसवीं क्लास के नतीज़े इसके उलट हैं साल 2018 और 2019 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों से केवल 70% और 72% बच्चे ही पास हो पाए थे जबकि 2017 में 92% बच्चे पास हुए थे। जबकि  प्राइवेट स्कूलों में साल 2018 में 89 फ़ीसदी बच्चे पास हुए और साल 2019 में 94 फ़ीसदी बच्चे सफल रहे।

इस विपक्ष दिल्ली सरकार पर हमलावर है तो वहीं आम आदमी पार्टी का कहना है कि इसकी वजह सालों से चली आ रही वो नीति थी जिसमें स्कूलों से ये कहा गया था कि वे फेल हो जाने वाले बच्चों को दोबारा मौका न दें। साल 2016 में दिल्ली सरकार ने ड्रॉप आउट रेट सुधारने के लिए योजना रखी थी। इसके बाद आप का दावा है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या में सुधार हुआ है।

विपक्ष की ओर से कई बार दिल्ली में शिक्षकों की वैकेंसी पर भी सवाल उठाए गए हैं, इस पर आम आदमी पार्टी की कालकाजी से प्रत्याशी आतिशी का कहना है, ‘नियमित टीचर की भर्ती के लिए काम भी साथ में चल रहा है, साथ ही हम गेस्ट टीचर से हम शिक्षकों की कमी को पूरा कर रहे हैं। स्कूल के टीचरों को अच्छी ट्रेनिंग देने पर फोकस कर रहे हैं, जिससे वो बेहतर तरीके से बच्चों को पढ़ा सकें। कई टीचरों की ट्रेनिंग दिल्ली से बाहर ले जा कर करवाई गई, स्कूल के प्रिंसिपल्स को भी कैंब्रिज, हॉवर्ड, फिनलैंड और आईआईएम अहमदाबाद जैसी जगह पर भेजा गया, ट्रेनिंग दिलवाई गई।

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वोटरों को लुभाने के मद्देनज़र तीनों प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में शिक्षा के क्षेत्र को बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया है। आम आदमी पार्टी ने विश्वस्तरीय शिक्षा व्यवस्था, स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम सहित स्कूली शिक्षा पूरी कर चुके बच्चों को अंग्रेजी और सॉफ्ट स्किल की क्लासेस का वादा किया है तो वहीं बीजेपी ने 10 नए कॉलेज और 200 नए स्कूल बनाने के साथ हर साल शिक्षा के बजट में 10 फीसदी बढ़ोत्तरी का उल्लेख किया है। क्रांगेस ने नर्सरी से पीएचडी तक मुफ्त शिक्षा, कम से कम 10 नए विश्वस्तरीय कॉलेज, ईडब्लूएस छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अलग से ट्यूशन आदि का दावा किया है।

गौरतलब है कि बीजेपी भले ही आप की शिक्षा नीति को झूठ करार दे रही हो लेकिन दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था देश के कई दूसरे राज्यों से बेहतर है। साल 2019 में 12वीं के परीक्षा पास आउट रेट की बात करें तो पूरे देश में दिल्ली तीसरे नंबर पर था। इससे पहले तिरुवनंतरपुरम और चेन्नई थे। 2019 में शिक्षा से जुड़े पोर्टल एजुकेशन वर्ल्ड ने 'इंडियन स्कूल रैंकिंग 2०19' में टॉप 10 में दिल्ली के 3 सरकारी स्कूलों को जगह दी थी, इसके अलावा देश-विदेश में दिल्ली के शिक्षा मॉडल की चर्चा है। नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी समेत कई बड़ी हस्तियों ने इसकी तारीफ की है।

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