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राजनीति
दिल्ली चुनाव : कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के हितों की चिंता किस पार्टी को है?
दिल्ली में चुनाव प्रचार अपने चरम है। ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की जॉब सेफ्टी का मसला चुनावों में उठ रहा है। आप, कांग्रेस और बीजेपी समेत ज्यादातर बड़े राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में इसे लेकर तमाम वादे किए हैं।
मुकुंद झा, रौनक छाबड़ा
06 Feb 2020
delhi election

'ठेका मजदूर या कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी होने का सीधा-सीधा मतलब है कि आपको मजदूरों को उन सभी अधिकारों से वंचित किया जाना, जो श्रमिक होने के नाते आपके हक हैं। पूंजीपति वर्ग अपने मुनाफे की हवस को पूरा करने के लिये बहुत कम वेतन पर काम करवाना चाहता है। इसके लिये पूंजीपति वर्ग सब प्रकार की सामाजिक सुरक्षा को, जो मजदूरों का हक है, उसे हड़प लेना चाहता है। अब इस व्यवस्था में हमारी सरकारें भी उतर आई हैं। आज सरकारी कर्मचारियों को नियमित नियुक्त के बजाय कॉन्ट्रैक्ट पर रखने की व्यवस्था बन गई है। चुनाव के समय सभी दल इसे लेकर वादे करते हैं लेकिन सरकार में आने के बाद हम कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को भूल जाते हैं।' ये कहना है कैट्स एंबुलेंस में ठेके पर काम करने वाले जीतेंद्र का। आगामी दिल्ली चुनाव में ठेका मजदूर का मसले पर जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि यह मुद्दा जीत या हार तय करने वाला है।

गौरतलब है कि देश में मज़दूर और मालिक के बीच संबंधों को बीजेपी ने पिछले कुछ वर्षों में अपने शासन के तहत बदला है। इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने यह सब किसके लिए किया है? मालिकों के लिए रास्ता आसान करने और मज़दूरों को शोषण को बढ़ाने के लिए सरकार ने अल्पावधि यानि फ़िक्स टर्म मज़दूरी को मान्यता दी, इसके आने के बाद मालिक स्थाई काम के लिए भी अल्पावधि मज़दूर को रख सकता है।

पहले यह सिर्फ कपड़ा उद्योग के लिए था जिसे बाद में अन्य उद्योगों के लिए भी लागू कर दिया गया। हालांकि मज़दूरों का ठेके पर रखने की शुरुआत 1991 में ही हो गई थी। परन्तु मोदी सरकार आने के बाद इसमें और तेज़ी आई है। इसका परिणाम यह हुआ कि मज़दूर का शोषण और बढ़ा है और आज वो मालिक के चंगुल में इस तरह फंसा है कि वो अपने अधिकारों की बात नहीं कर सकते हैं। आसान भाषा में कहे तो मालिक के हाथों की कठपुतली बन चुके हैं।

ठेके पर मजदूर रखने की प्रथा की खिलाफत लगभग सभी ट्रेड यूनियन और मजदूर संगठनों ने किया हैं। राजनीतिक रूप से इस पर बात करें तो दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि स्थाई स्वरूप के काम करने वाले सभी मजदूरों को नियमित किया जाएगा।

लेकिन पांच तक शासन करने वाले केजरीवाल की अगुवाई वाली सरकार की बात करें तो अन्य क्षेत्रों में तो काम किये लेकिन मजदूरों के सवाल पर उसने भी चुप्पी रही है। अपने इस वादे को पूरा करने में विफल रही। इससे भी बुरी बात यह है कि सरकार ने इसे आगे बढ़ाने की मांग की। हम अगर दिल्ली में सिर्फ सरकारी विभागों की बात करें तो उसमे केंद्र, दिल्ली सरकार या फिर निगम में सभी जगहों पर ठेकाकरण बढ़ रहा है। इससे मज़दूरों का शोषण भी बढ़ा है। लेकिन इस पूरे चुनाव में कोई भी दल इस पर ज्यादा बात नहीं कर रहा है।

दिल्ली जल बोर्ड

दिल्ली जल बोर्ड जो की दिल्ली सरकार का खुद का विभाग उसमे भी कर्मचारियों के शोषण में बढ़ोतरी हुई है। आपको बता दें दिल्ली जल बोर्ड का गठन 1998 में हुआ था। इससे पहले दिल्ली में जल वितरण का काम नगर निगम के तहत किया जाता था। इसमें पहले सभी कर्मचारी स्थाई नौकरी वाले थे लेकिन पिछले कुछ सालों यहां ठेकाकरण बढ़ रहा है। दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी यूनियन के महासचिव अशोक ने बताया, 'दिल्ली जल बोर्ड में पिछले कई सालों से कोई भी भर्ती नहीं हुई हैं। इस विभाग के लिए अंतिम बड़ी भर्ती जल बोर्ड के गठन से पहले 1989 में हुई थी। जबकि इस दौरान भारी संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत हुए हैं। उनकी जगह जितने भी नए कर्मचारी आये वो या तो ठेके पर हैं या आउटसोर्स हैं।'
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उन्होंने बताया कि जल बोर्ड में काम करने वाले ठेका कर्मचरियों को सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा तो दूर की बात उन्हें न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता हैं। ठेकेदार मजदूरों के लिए निर्धरित वेतन में से एक हिस्सा खुद ले लेता है।

अशोक बताते हैं, 'एक ही काम को करने के लिए जहां नियमित मजदूर को 30 से 40 हजार रुपये मिलते हैं उसी काम को एक ठेका कर्मचारी से 10 हजार रुपये पर कराया जाता है। इसके साथ ही कई ऐसे काम जो खतरनाक होते हैं वो भी उनसे बिना किसी सुरक्षा उपकरण के कराए जाते हैं। जैसे सीवर में उन्हें बिना किसी सुरक्षा के उतार दिया जाता है और वो इसके लिए मना भी नहीं कर सकते। अगर वो ऐसा करते हैं तो उन्हें नौकरी से हटा दिया जाता है।'

दिल्ली जल बोर्ड के चेयरमैन ख़ुद दिल्ली के मुखिया केजरीवाल हैं। उसी विभाग के सीवरों की सफाई और अन्य कामों के दौरान लगातार मजदूरों की मौत हो रही है। लेकिन इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है।

दिल्ली की एंबुलेंस सेवा

दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की आपातकालीन व्यवस्था के लिए एंबुलेंस CATS द्वारा चलाई जाती थी। दिल्ली में यह पहले दिल्ली सरकार और CATS द्वारा चल रही थी लेकिन अचानक 2016 में एक निजी कम्पनी को इसका ठेका दे दिया गया। कैट्स कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष का कहना है कि निजी कंपनी के आने के बाद से ही समस्याओं ने अपने पांव पसार लिए। इससे पहले भी ये कर्मचारी संविदा पर ही थे लेकिन वो सीधे CATS के अंडर में थे। अब इनके बीच एक और बिचौलिया आ गया। कर्मचारियों को जो वेतन मिलता था वो और कम हो गया।
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केन्द्रीय भंडारण निगम

केन्द्रीय भंडारण निगम (सीडब्लूसी) केंद्र सरकार के अधीन है। दिल्ली के पटपड़गंज औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है, इसमें तकरीबन 350 लोग काम करते हैं।

सीडब्लूसी में काम करने वाले मजदूर बरसाती ने बताया, “पिछले 25 वर्ष से हम इस निगम में काम कर रहे हैं परन्तु अभी तक हमें कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला है। न हमें कोई छुट्टी मिलती है। यहाँ तक कि हमें किसी त्योहार की भी छुट्टी नहीं मिलती, जबकि सभी सरकारी और निजी निगम के कर्मचारियों कि छुट्टी होती है परन्तु हमारे वेतन में से उस दिन का वेतन काट लिया जाता है।”
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वो ये भी कहते हैं कि उन लोगों को जो वेतन मिलता है वो कई बार कई महीनों तक नहीं मिलता है। जिस कारण मज़दूर अपने जरूरी काम नहीं कर पाते हैं। इस निगम में काम करने वाली महिला सफाई कर्मचारी निशा ने बताया कि उन्हें दिन भर काम करने के एवज में मात्र साढ़े पांच हज़ार रुपये मिलते हैं जो केंद्र द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन 18 हज़ार से बहुत कम है।

एक अन्य कर्मचारी मसाते जो यहां 20 सालों से काम कर रहे हैं वो कहते हैं कि आज तक उन्हें दिहाड़ी मजदूर की तरह रखा जाता है। पीएफ और ईएसआई का लाभ भी नहीं मिलता है, जबकि सबके पैसे काट लिए जाते हैं।

हेल्थ विभाग

इसके अलावा दिल्ली में हेल्थ विभाग में काम करने कर्मचारी, चाहे वो केंद्र सरकार के अस्पताल राम मनोहर लोहिया, कलावती अस्पताल हो, या फिर दिल्ली सरकार के अस्पताल जीटीबी हो या फिर निगम का हिंदूराव अस्पताल सभी में ठेका कर्मचारी भारी संख्या में हैं। इन सभी जगहों पर कर्मचारियों के सामजिक और आर्थिक सुरक्षा के सवालों को अनदेखा किया जाता है।

कलावती हॉस्पिटल में काम करने वाले ठेका मज़दूर और ठेका मज़दूरों के यूनियन के महासचिव सेवक राम ने बताया कि इस पूरे अस्पताल में सौ से अधिक मज़दूर काम करते हैं। उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। उन्हें आज भी 10, 590 रुपये वेतन दिया जाता है जबकि दिल्ली में न्यूनतम वेतन 14 हज़ार से ज्यादा है। इसके साथ ही उन्हें कोई भी अन्य सुरक्षा नहीं दी जाती है।

शिक्षा विभाग

दिल्ली में शिक्षा केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और निगम तीनों के कार्यक्षेत्र में हैं। दिल्ली मुख्यत देखें तो प्राइमरी शिक्षा की जिम्मेदारी निगम की है तो उसके आगे की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है और केंद्र मुख्यत उच्चतम शिक्षा के लिए काम कर रहा है। इन सभी में शिक्षा देने वाले शिक्षकों का भी खुद का भविष्य सुरक्षित नहीं है। इन तीनों स्तर पर बड़ी संख्या में अस्थाई शिक्षक हैं। नाम अलग अलग है लेकिन उनके शोषण की कहानी एक जैसी है। नगर निगम में तो शिक्षकों के हालत यह है कि उन्हें कई कई महीने वेतन ही नहीं मिलता हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में एडहॉक शिक्षक अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं।

वैसे यह कुछ विभाग या संस्थानों की बात नहीं है। पूरे दिल्ली में लाखों की संख्या में ठेका मज़दूर है। लेकिन इस चुनाव में इनकी समस्या और मुद्दे पूरी तरह गायब हैं। श्रम कानून के मुताबिक स्थायी काम के स्वरूप के लिए अस्थायी मजदूर रखना गैरकानूनी है, लेकिन यह सब हो रहा है और ये कहीं और नहीं सरकारी संस्थानों में हो रहा तो आप निजी की तो बात छोड़े दीजिए।

अभी दिल्ली में चुनाव प्रचार अपने चरम है। ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की जॉब सेफ्टी का मसला बड़ा चुनावी मुद्दा बना हुआ है। आप, कांग्रेस और बीजेपी समेत ज्यादातर बड़े राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में इसे लेकर तमाम वादे किए हैं। लेकिन चुनाव खत्म होते ही ज्यादातर दल इस मसले पर चुप्पी साध लेते हैं।

आपको बता दें कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए आगामी आठ फरवरी को होने मतदान में 14786382 मतदाता चुनाव मैदान में मौजूद कुल 672 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे।मतदान के लिए 2688 मतदान स्थलों पर बने 13750 मतदान केन्द्रों पर 20385 ईवीएम मशीनों की मदद से मतदान होगा।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस सहित छह राष्ट्रीय दलों के अलावा आप एवं अन्य पंजीकृत राज्यस्तरीय पार्टियों के कुल 672 उम्मीदवार (593 पुरुष और 79 महिला) चुनाव मैदान में हैं। इनमें 148 निर्दलीय उम्मीदवार भी शामिल हैं। राष्ट्रीय दलों में भाजपा और कांग्रेस ने 66-66, बसपा ने 68, भाकपा, माकपा ने तीन तीन और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने पांच सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये हैं। राज्य स्तरीय पंजीकृत दलों में आप ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं अन्य पंजीकृत राज्यस्तरीय दलों के 243 उम्मीदवार चुनाव मैदन में हैं।

सर्वाधिक 28 उम्मीदवार नयी दिल्ली विधानसभा सीट से और सबसे कम चार उम्मीदवार पटेल नगर विधानसभा सीट पर हैं। नयी दिल्ली सीट पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आप उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं। दिल्ली में पंजीकृत कुल 14786382 मतदाताओं में 8105236 पुरुष, 6680277 महिला और 869 तृतीय लिंग के मतदाता हैं। सभी मतदाताओं को फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र जारी किये जा चुके हैं। दिल्ली में 498 अनिवासी भारतीय और 11608 सर्विस वोटर भी शामिल हैं।

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा विधानसभा क्षेत्र बल्लीमारान और सबसे बड़ा क्षेत्र नरेला है, जबकि सबसे कम मतदाताओं वाला विधानसभा क्षेत्र चांदनी चौक (125684 मतदाता) और सर्वाधिक मतदाताओं वाला क्षेत्र मटियाला (423682 मतदाता) है। 

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