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भारत
राजनीति
दिल्ली दंगे : चार्जशीट के मुताबिक़, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने ‘प्रतिशोधी’ कार्रवाई को भड़काया
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दिल्ली के दंगों के सिलसिले में 8 जून को चार और आरोप-पत्र दाख़िल कर दिए हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि “देश की छवि ख़राब करने के लिए सीएए के ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक तरीक़े से किए गए विरोध की आड़ में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के इरादे से हिंसा की गई थी।”
तारिक़ अनवर
10 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
दिल्ली दंगे

नई दिल्ली: फ़रवरी के महीने में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में "पक्षपातपूर्ण" जांच के आरोपों से बार-बार इंकार करने के बावजूद, आखिरकार दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी है - जो इस बात का संकेत देती है कि सीएएए विरोधी आंदोलनकारियों के कथित उकसावेपूर्ण कार्यवाही की वजह से हिंदू समूहों में प्रतिशोध की भावना भड़क गई थी। इन आरोपपत्रों से यह संकेत मिलता है कि दंगे 'कार्रवाई और उसके प्रति  प्रतिक्रिया' के सिद्धांत के परिणामस्वरूप हुए, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने 8 जून को दंगों के सिलसिले में चार आरोपपत्र दायर किए, जिसमें स्पष्ट आरोप लगाए गए हैं कि हिंसा “नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक प्रतिरोध की आड़ में देश की छवि को ख़राब करने और सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करने के इरादे से की गई थी।”

जांचकर्ताओ के मुताबिक - पहली अंतिम रिपोर्ट जिसमें हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या के मामले में 17 लोगों को आरोपित किया गया है – कहती है कि सीएए के विरोध की आड़ में दंगे किए गए थे। उन्होंने दावा किया कि यह एक "गहरी साज़िश थी, जिसने सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया"। पुलिस ने आरोप लगाया कि लाल की हत्या के आरोपी - "षड्यंत्रकारियों के बड़े जाल" से संबंध रखते हैं, जो सीएए के बारे में ग़लत सूचना फैला रहे थे।

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चार्जशीट में कहा गया है कि साज़िशकर्ताओं ने सीएए और चक्का जाम (विरोध के रूप में सड़क रोकना) पर ग़लत सूचना फैलाने की दोहरी योजना के कारण व्यवधान पैदा किया, जिससे एक बड़ा सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा। 

चाँद बाग़ के पास मुख्य वज़ीराबाद रोड पर तैनात लाल को 24 फरवरी को कथित तौर पर एक भीड़ ने हमला कर मार दिया था। उसकी गोली मारकर हत्या की गई थी। पुलिस दो वरिष्ठ अधिकारी - शाहदरा के पुलिस उपायुक्त अमित कुमार शर्मा और सहायक पुलिस आयुक्त अनुज कुमार भी हमले में गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

पुलिस ने कथित रूप से एक शाहिद की हत्या के सिलसिले में छह मुसलमानों को आरोपित किया है, एक मारूफ अली और आठ अन्य मुसलमानों की हत्या के लिए छह हिंदुओं को आरोपित किया गया है। निलंबित आम आदमी पार्टी (आप) के नेता ताहिर हुसैन का नाम दूसरी, तीसरी, चौथी अंतिम रपट में है जिसमें उन पर आरोप है कि उन्होने एक अजय गोस्वामी को मारने का कथित रूप से प्रयास किया। 

पुलिस ने अब तक 78 मामलों में 447 लोगों के ख़िलाफ़ 17 आरोपपत्र दायर किए हैं। दंगाइयों का साथ देने और कथित रूप से मुसलमानों को निशाना बनाने के आरोप का जवाब देते हुए, दिल्ली पुलिस ने एक बयान में कहा था कि कुल 447 लोगों में से 205 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और बाकी हिंदू समुदाय से हैं। ब्रेक-अप देते हुए, उन्होने कहा कि अपराध शाखा के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 63 मुस्लिमों और 41 हिंदुओं के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर किए हैं, जबकि स्थानीय पूर्वोत्तर दिल्ली पुलिस ने 142 मुसलमानों और 164 हिंदुओं के ख़िलाफ़ आरोप दाखिल किए हैं।

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ये कोई अलग-थलग चार्जशीट नहीं हैं, जिनमें दिखाया गया है कि मुस्लिमों ने उकसाने के लिए विभाजनकारी नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ उकसावेपूर्ण कार्यवाही की थी और विरोध प्रदर्शन किए जिससे स्थानीय हिंदुओं में प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और राष्ट्रीय राजधानी में सांप्रदायिक अशांति पैदा हो गई थी। जांचकर्ताओं ने हिंसा के संबंध में अब तक दायर गई कुल चार चार्जशीट में इसी कहानी को आगे बढ़ाने की कोशिश की है।

मुसलमानों और हिंदुओं के ख़िलाफ़ दायर चार्जशीट के दो सेटों के बीच यह बहुत ही महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो जांच की दृष्टि को दर्शाता है।

'उकसावा बनाम प्रतिशोध'

दो व्यक्तियों की हत्या के मामलों में, अकील अहमद (प्राथमिकी संख्या 36) और मुशर्रफ (प्राथमिकी संख्या 38) में, जांचकर्ताओं ने कहा कि, “घटना के दोनों स्थानों को किसी भी सीसीटीवी कैमरे से कवर नहीं किया गया था। पुलिस के स्रोत से मिली जानकारी के आधार पर पता चला कि 24 फरवरी, 2020 को हुए दंगे जिसमें मुस्लिम भीड़ ने बड़े पैमाने पर दंगे किए थे, और जिसमें बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान हुआ था और हिंदूओं की संपत्ति का नुकसान भी हुआ था इसकी प्रतिक्रिया में कुछ हिंदू पुरुषों ने 25 और 26 फरवरी, 2020 को आपस में हाथ मिलाया था। समूह की पहचान की गई और समूह के कुछ सदस्यों को उठाया गया। पूछताछ के दौरान पता चला कि 25 और 26 फरवरी, 2020 को एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया था। इस समूह के 125 सदस्य थे। व्हाट्सएप ग्रुप में कई सदस्य शांत सदस्य थे। इसके बाद, चश्मदीद गवाहों की पहचान की गई और उनकी जांच की गई। मौखिक साक्ष्य और व्हाट्सएप ग्रुप में चली चर्चा के आधार पर अपराधियों की पहचान की गई थी।"

अहमद, जो एक पेंटर और कार मैकेनिक था, को भागीरथी विहार में जल बोर्ड की पुलिया के पास दंगाइयों ने मार डाला, जबकि ऑटो चालक मुशर्रफ को सी ब्लॉक भागीरथी विहार में नाले में फेंकने से पहले पीट-पीटकर मार डाला था।

हालांकि पुलिस ने अहमद की हत्या के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार किया है, उन्होंने मुशर्रफ़ की हत्या के लिए नौ अन्य लोगों को हिरासत में लिया है। जांचकर्ताओं का मानना है कि ये सब पिछले दिनों मुसलमानों द्वारा किए गए कथित दंगों में हुई हिंदुओं की हत्याओं के प्रति "प्रतिक्रियाएं" थीं।

'साज़िश' की कहानी

दोनों जांच में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की भूमिका और दंगों में हिंदुओं द्वारा की गई हत्या ध्यान देने योग्य है, क्योंकि वह साज़िश का मुख्य कोण बताया गया है, जो नागरिकता-विरोधी क़ानून के कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दायर चार्जशीट में स्पष्ट है। यह साज़िश पूरी तरह से दूसरे पक्ष में शामिल चार्जशीट में गायब है।

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दिलचस्प बात यह है कि हिंदू समुदाय से शामिल आरोपी की दोनों चार्जशीट में व्हाट्सएप समूहों के गठन पर ध्यान केंद्रित किया है। एफआईआर 35 और 37 में दायर आरोप पत्र, जो दो भाइयों अमीर अली और हाशिम अली की हत्या से संबंधित हैं, व्हाट्सएप समूहों का समान संदर्भ देते हैं।

“इन मामलों की जांच के दौरान, यह पाया गया कि जब दंगे अपने चरम पर थे, यानि 25 फरवरी और 26 फरवरी, 2020 की रात में एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया, जिसमें 125 सदस्य बने थे। इस व्हाट्सएप ग्रुप के दो सक्रिय सदस्यों का पता लगाया गया जो बाद में जांच में शामिल हो गए। जांच के दौरान, उनके मोबाइल फोन को स्कैन किया गया और 25 फरवरी को बनाए गए विशिष्ट व्हाट्सएप ग्रुप की भी पहचान की गई। आगे की जांच के दौरान पता चला कि समूह के कुछ सदस्य केवल चर्चा कर रहे थी या संदेश भेज या प्राप्त कर रहे थे, लेकिन कुछ सदस्य सक्रिय रूप से दंगों में शामिल थे, ”पुलिस ने उस उक्त बातें उस आरोपपत्र में कही जिसमें दो भाइयों की हत्या शामिल है।

पुलिस ने दावा किया है कि "बदला" लेने की भावना और "प्रतिशोध" लेना इन समूहों के कुछ संदेशों के प्रमुख तत्व थे।

हालांकि, जाफ़राबाद मामले में, जहां पुलिस ने दावा किया कि एक सड़क रोककर दंगे फैलाए गए थे, उस वक़्त एक व्हाट्सएप संदेश महिलाओं को यह सलाह दे रहा था कि साम्प्रदायिक दंगों के दौरान उन्हे  क्या करना चाहिए, इस व्हाट्सएप की कुछ महिला कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने दंगों की साज़िश करने का आरोप लगाया है। एक अभियुक्त के मोबाइल पर पाए गए इस संदेश में उन कदमों की सूची दी गई है जो कदम महिलाएं अपने और अपने घरों की रक्षा के लिए उठा सकती हैं।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और शस्त्र अधिनियम की गंभीर धाराओं के अलावा, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के अधिकांश हिस्से के ख़िलाफ़ कड़े आतंकवाद-विरोधी क़ानून ‘ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)’ के तहत मुक़दमे दर्ज किए हैं; हालाँकि, भारतीय दंड संहिता की धाराओं का इस्तेमाल केवल उन लोगों के ख़िलाफ़ किया गया है जो "प्रतिशोध" की भावना से दंगों में शामिल हुए थे।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Delhi Riots: Provocation by Anti-CAA Protesters Triggered ‘Retaliation’, Allege Chargesheets

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Minority Discrimination
Arrests of Activists

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