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भारत
राजनीति
दिल्ली हिंसा : ‘जनाधार’ वाले दल ख़ामोश, ‘बे-आधार’ पीड़ितों की मदद में जुटे!
सीपीएम के साथ ही कई अन्य सामाजिक संगठन सड़कों पर दिख रहे हैं लेकिन कांग्रेस, आप और बीजेपी ये सभी दल गायब दिखे। खुद को हिन्दू हितों की रक्षक कहने वाली बीजेपी हिन्दू पीड़ितों की मदद के लिए भी आगे नहीं आई।
मुकुंद झा
16 Mar 2020
CPM

दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा में कई दिनों तक उत्तर पूर्व दिल्ली का इलाक़ा जलाता रहा है। इन दंगों में अभी तक 53 लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग अभी तक लापता बताए जाते हैं। सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं। बेघर हुए हैं। घर-दुकान सब जल गया है।

इसमें पीड़ित होने वाले दोनों समुदायों के ग़रीब लोग ही हैं। अधिकांश असंगठित क्षेत्र के मजदूर हैं, जिनकी आजीविका और घरों को काफी नुकसान पहुंचा है। लेकिन इसके बावजूद सरकार और उसका तंत्र तो ज़मीन से गायब ही रहा है। इसके साथ ही जब राजनतिक दलों की जरूरत जनता को थी, तो वो भी ज़मीन से नदारद रहे है, जो खुद को जनता का प्रतिनिधि बताते हैं। सत्ताधारी और विपक्षी दोनों दलों ने दुख और सदमे के इस दौर में पीड़ित जनता से दूरी बनाई रखी। लेकिन इस दौर में वाम दल जिनका दिल्ली में उतना जनाधार नहीं बताया जाता जितना कांग्रेस, आप या बीजेपी का है, इसके बाद भी वो दंगे होने के तुरंत बाद से ही सड़कों पर उतरकर पीड़ितों को जिस तरह से मदद कर रहे हैं वो क़ाबिले तारीफ़ है।

यह खुद पीड़ितों का बयान है। जिनतक अभी थोड़ी-बहुत मदद पहुंची है। उनके मुताबिक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के साथ ही कई अन्य समाजिक संगठन उनके पास आए लेकिन कांग्रेस, आप और बीजेपी ये सभी दल गायब दिखे। हैरत है कि खुद को हिन्दू हितो की रक्षक कहने वाली बीजेपी हिन्दू पीड़ितों के मदद के लिए भी आगे नहीं आई। हालांकि ये सभी दल खुद जनता के साथ देने के बड़े बड़े वादे कर रहे हैं लेकिन ज़मीन पर इनकी सक्रियता शून्य दिख रही हैं। सीपीएम ने लोगों की राहत के लिए अपने सभी जनसंगठनों को भी जमीन पर उतारा है। उन्होंने इसके लिए आम जनता से भी सहयोग की अपील की है।

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सीपीएम के नेतृत्व में राहत एवं एकजुटता कमेटी के सदस्य दिल्ली के दंगा-प्रभावित क्षेत्र मुस्तफ़ाबाद, चाँद बाग़, ब्रिजपुरी, करावल नगर, खजुरी खास, कर्दमपुरी, मौजपुर और नुरलाई सहित तमाम प्रभावित परिवारों से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना प्रदान कर रहे हैं और आर्थिक सहायता पहुंचा रहे हैं।

सीपीएम का शीर्ष नेतृत्व भी सड़क पर उतरकर दंगा पीड़ितों की मदद कर रहा है। अभी तक उन्होंने कम से कम 18 परिवारों को जिनके घर में किसी की मौत इस दंगे में हुई है, उन्हें एक लाख रुपये की सहायता राशि दी है। इसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्ष के लोग हैं।  सीपीएम का कहना है कि वो सभी मारे गए लोगों के परिवारों को एक-एक लाख रुपये सहायता राशि देगी।  

फ़ैज़ान, अंकित शर्मा, राहुल सोलंकी, राहुल ठाकुर, प्रेम सिंह, मोनिस और मेहताब सहित 18 लोगो के परिजनों को एक-एक लाख दिए जा चुके हैं।

न्यूज़क्लिक ने इनमें से कई परिवारों से बात की। सभी ने  बातचीत में एक बात स्पष्ट बताई की अभी तक उनसे किसी अन्य राजनीतिक दल के नेता न मिले हैं, न किसी प्रकार की सहयता की है। उन्होंने कहा ये सीपीएम के लोग ही हमारी मदद के लिए आये हैं।  

प्रेम सिंह जो एक रिक्शा चालक थे, वे ब्रिजपुरी में रहते थे। वे अपने पीछे पत्नी और दो बच्चे छोड़ गए हैं। उनकी हत्या भी इस सांप्रदायिक हिंसा में कर दी गई थी। उनकी पत्नी को सीपीएम की तरफ से एक लाख की मदद दी गई। उन्होंने हमसे बातचीत में कहा कि वही (प्रेम सिंह) एक कमाने वाले थे। वे चले गए, अब हमारा कोई भी सहारा नहीं है। हमने उनसे पूछा अभी उनके पास सरकार की तरफ से किसी तरह की मदद आई है? तो उन्होंने कहा न सरकार, न ही किसी राजनीतिक दल  की तरफ से कोई मदद मिली है। केवल लाल झंडे (सीपीएम) वाले आये हैं। उन्होंने मुझे एक लाख का चेक दिया है।  

उन्होंने यह भी बताया की उनका तो बैंक में खाता भी नहीं था। अभी किसी ने उनका खाता खुलवाया है।

3 वर्षीय फ़ैज़ान जो कर्दमपुरी में रहते थे। इस हिंसा का शिकार हुए। उनकी मौत की वजह पुलिस की बर्बरता को माना जा रहा है, क्योंकि एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें सुरक्षा बल के जवान, चार नौजवानों को पीटते दिख रहे हैं और राष्ट्रगान गाने पर मज़बूर कर रहे हैं। उन चार नौजवान में एक फ़ैज़ान भी थे।  

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फ़ैज़ान की मां किसतमुन ने बताया कि वही उनके बुढ़ापे का सहारा था। वे एक विधवा हैं। उन्होंने फ़ैज़ान को अकेले ही पाला था। वे कहती हैं, “अब उसकी हत्या कर दी गई। अब मै क्या करूं?” फ़ैज़ान टेलर का काम करता था। वैसे तो उसके 7 भाई-बहन हैं। लेकिन अपनी मां का वही सहारा था। उसके सभी भाई बहन शादीशुदा हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि सभी पार्टी वाले बहुत कुछ बोल रहे हैं लेकिन कोई भी हमारी मदद के लिए नहीं आ रहा है।  दिल्ली सरकार की तरफ से और ये सीपीएम वाले आये हैं। उन्होंने मुझे एक-एक लाख की मदद की है, लेकिन क्या इससे मेरी जिंदगी चल जाएगी?
 
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी भी कई परिवारों से मिले और उन्हें मदद राशि सौंपी। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि जब दंगे हुए उसके तुरंत बाद उन लोगों ने लोगों की मदद के लिए एक राहत कमेटी बनाई और देशभर में लोगों से अपील की और कहा की सब लोग दंगा पीड़ितों की मदद करे। शुरुआत में हमने लोगों को राहत सामग्री पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन फिर हमने देखा कि लोगों को राहत सामग्री से अधिक आर्थिक मदद की ज़रूरत है।

उसके बाद से ही हमने फ़ैसला किया कि हम उन सभी परिवारों को आर्थिक मदद करेंगे जिनके अपनों ने इस सांप्रदायिक हिंसा में अपनी जान गंवाई है। क्योंकि इस हिंसा के शिकार अधिकतर लोग बहुत ही गरीब परिवार से हैं और जिनकी हत्या हुई है वो लोग अपने परिवार के आर्थिक सहारा थे। उनकी मौत के बाद से उनके सामने आर्थिक संकट आ गया है। इसलिए हमने यह निर्णय किया कि हम सभी पीड़ितों की आर्थिक मदद करेंगे।  

सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि हम हर पीड़ित के घर जा जा कर मदद कर रहे हैं। यह पूरा इलाक़ा पिछड़ा है। यहां आर्थिक रूप से कमजोर परिवार रहते हैं। हिंसा में मरने वाले अधिकतर रिक्शा चालक, रेहड़ी-पटरी वाले लोग थे।
सीपीएम दिल्ली सचिव मंडल सदस्य मैमुना मौल्ला ने कहा कि इस पूरे हिंसा ग्रस्त क्षेत्र में हालात बहुत खराब हैं। सभी लोग डरे हुए हैं। उनको मदद की ज़रूरत है जो हम कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हम सरकार की जगह नहीं ले सकते हैं। इसलिए हमारी सरकार से अपील है कि वो पीड़ितों की तत्काल मदद करे और उनके पुनर्वास के कामों को तेज़ करे।    

DYFI  दिल्ली के नेता एकजुटता राहत कमेटी के सदस्य अमन सैनी जो इन दंगो की शुरुआत से राहत कार्य में लगे हुए हैं, उन्होंने कहा कि इन दंगो का सबसे ज्यादा शिकार मजदूर हुए हैं। चाहे मोहम्मद अनवर की बात हो, जो रेहड़ी चलाकर और बकरियों को पालकर अपना जीवन बसर करते थे और झुग्गी में रहते थे, या फिर बात हो आस मोहम्मद और मोनिश की जो कि मजदूरी करके काम चलाते थे और कभी कभी रेहड़ी पर सामान ढोकर अपना जीवन यापन करते थे।

19 साल का नौजवान आकिब अपने पिता के साथ चूड़ियाँ बेचने का काम करता था। आकिब के पिता आज भी अपनी दाढ़ी के चलते बाजार में चूड़ियां बेचने नहीं जा रहे,  कहीं फिर दोबारा नफ़रती हिंसा का शिकार न हो जाएं। लगभग सभी परिवार किराये के मकान में रहते हैं और मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं। सांप्रदायिक हिंसा की मार हमेशा मजदूरों पर पड़ती है। भड़काऊ भाषण देने वाले नेता और धर्म के ठेकेदारों का कभी कुछ भी नहीं बिगड़ता है जिसको हम सबको समझना चाहिए।

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