NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली के नतीजे तय करेंगे भविष्य की राजनीति
अगर केजरीवाल इस बार भी चुनाव जीत गए तो आम आदमी पार्टी में उनको चुनौती देने वाला कोई नेतृत्व अब बचा नहीं है। इसके बाद वह पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के बरअक्स एक विकल्प के तौर पर बहुत तेजी से उभरेंगे।  
राकेश सिंह
04 Feb 2020
kejriwal

भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। चुनाव प्रचार के शुरू होने के बाद भारतीय जनता पार्टी बहुत कमजोर पड़ती नजर आ रही थी। अब भाजपा ने ढुलमुल मतदाताओं को सांप्रदायिक,जातीय और काफी हद तक क्षेत्रीय ध्रुवीकरण के माध्यम से अपने पाले में खींचने में कुछ सफलता हासिल कर ली है। इसके बावजूद उसकी जीत की संभावनाएं कमजोर हैं। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल यानी उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी भाषी लोगों पर डोरे डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

जिस तरह से दिल्ली के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश के अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को मैदान में उतारा है, वह अभूतपूर्व है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बंगाल और उड़ीसा के कार्यकर्ताओं का हुजूम दिल्ली चुनाव में उतारा जा चुका है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछले एक हफ्ते से जिस तरह से लोगों के दरवाजे-दरवाजे जाकर चुनावी प्रचार अभियान को धार दी है, उससे कहीं न कहीं नतीजों पर जरूर कुछ असर पड़ेगा।

पिछले 50 दिनों से शाहीन बाग में जिस तरह से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के विरोध में धरना चल रहा है, वह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बहुत बड़ा मौका बनकर सामने आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शाहीन बाग धरने को एक सुनियोजित प्रयोग बताया है। इससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी अपने  विकास के मूल आधार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को छोड़ने वाली नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के मंत्री और सांसद जिस तरह से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाने वाले बयान दे रहे हैं, उससे साफ है कि भारतीय जनता पार्टी ने अब अपने असली रंग में चुनाव प्रचार करना शुरू कर दिया है।

आम आदमी पार्टी की छवि भी अब पहले जैसी नहीं रही है। जिस भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आम आदमी पार्टी सत्ता में आई थी, उस पर अब दाग लग चुका है। आम आदमी पार्टी तो अब कुछ चुनावी तिकड़मों में भाजपा से भी आगे निकलती नजर आ रही है। कई विधानसभा क्षेत्रों में तो संसाधन संपन्न भाजपा को भी आप के उम्मीदवारों के खर्च की बराबरी करने में पसीने छूट रहे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस तरह से दिल्ली में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और बिहारी अस्मिता को हवा दे रहे हैं, वह लोगों के लिए आसानी से समझ में नहीं आने वाला है। नीतीश कुमार ने केजरीवाल के ऊपर सीधे हमला बोलते हुए कहा है कि वह बिहार के लोगों का अपमान करते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने चिर-परिचित अंदाज में प्रचार अभियान में लगे हुए हैं। इस चुनाव के बीच ही मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के तारीफ की है। उससे साफ है कि भाजपा के लोग किस तरह से अपने लिए वोट का इंतजाम करने में जुटे हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार यह दांव चला है कि पूर्वांचल का भी कोई व्यक्ति दिल्ली में मुख्यमंत्री हो सकता है। दिल्ली में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के मन में इस संभावना से ही कितना ज्यादा बदलाव हो सकता है, इसे कोई जमीनी आदमी आसानी से महसूस करता है। कहने को तो शीला दीक्षित भी उत्तर प्रदेश की थीं, लेकिन वे जिस संभ्रांत तबके से आती थीं उसके लिए जमीनी पहचान का कोई विशेष महत्व नहीं था।
 
मनोज तिवारी के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़ा दांव खेला है। इस फैक्टर की काट आम आदमी पार्टी के पास नहीं है। आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के अलावा मुख्यमंत्री के लिए किसी और व्यक्ति का नाम सोचा भी नहीं जा सकता है। अगर किसी भी तरह से भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में पूर्वांचल के मतदाताओं को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता हासिल कर ली तो आम आदमी पार्टी का खेल खराब भी हो सकता है।
 
भारतीय जनता पार्टी ने गली-गली में लोगों की क्षेत्रीय और जातीय पहचान को इस बार खंगाला है। उनको भावनात्मक रूप से अपने पक्ष में मोड़ने के लिए जिस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान से स्थानीय नेताओं को जिलेवार ढंग से डोर टू डोर कैंपेन के लिए हिदायतें और सुविधाएं दी गईं हैं, वह अपने आप में अभूतपूर्व है। पूरे भारतीय जनता पार्टी का संगठन इस समय दिल्ली में ही केंद्रित है।

अपने नेताओं की प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इस समय रात-दिन एक कर चुके हैं। वह समर्पण इस बार आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में नहीं दिखाई दे रहा है। आम आदमी पार्टी ने जिन 15 विधायकों के टिकट काटे हैं, उनमें से कई तो खुले खुले तौर बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी में टिकट वितरण के बाद जो असंतोष फैला था, उसे काफी हद तक खत्म किया जा चुका है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ क्षेत्रीय और जातीय ध्रुवीकरण ने मिलकर अगर अपना रंग दिखाया नतीजे चौंकाने वाले भी हो सकते हैं।

आखिरकार एक ऐसे राज्य के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी साख को दांव पर लगाने का फैसला क्यों किया है, जो पूर्ण राज्य भी नहीं है? ठीक इसी तरह ये बात भी भाजपा आज तक नहीं समझ पायी है कि जब नगर निगम और लोकसभा के चुनाव में वह आम आदमी पार्टी को पीछे छोड़ सकती है तो ऐसा क्या कारण है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी उसके सामने इतनी भारी चुनौती पेश कर रही है?

चुनावी हार भाजपा के लिए कोई नई बात नहीं है। एक क्रम से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब की हार के बावजूद भाजपा केंद्र में वापसी करने में सफल रही है। भाजपा को अब तक जिन राज्यों में चुनावी हार मिली है उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्री या तो कांग्रेसी राजघराने की कठपुतलियों की हैसियत के हैं या फिर वे भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा नेतृत्व के सामने कोई चुनौती पेश करने की क्षमता नहीं रखते हैं। जबकि केजरीवाल एक ऐसे मुख्यमंत्री है जिसमें संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं। केजरीवाल की सबसे बड़ी खूबी एक समर्थ व्यक्ति होना है। इसीलिए भाजपा केजरीवाल को भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती समझ रही है। वह चाहती है कि इस चुनौती को दिल्ली में ही खत्म कर दिया जाए।

भारतीय जनता पार्टी यह भी परखना चाहती है कि दिल्ली जैसे सजग और जागरूक मतदाताओं के बीच पिछले 6 महीने के ताबड़तोड़ राष्ट्रवादी कानूनों को लागू करने से क्या असर पड़ा है? क्या जनता धारा 370, राममंदिर और सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर वोट देगी या अपनी रोजी-रोटी और जीवन की जरूरी सुविधाओं को उपलब्ध कराने वाली राजनीति को पसंद करेगी? इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विजयी हुई तो फिर उसे पूरे देश में इसी ढर्रे पर चुनाव प्रचार का एक फॉर्मूला मिल जाएगा। अगर दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की विजय हुई तो इससे विपक्ष के मंसूबे काफी हद तक कमजोर हो जाएंगे।

भारतीय जनता पार्टी अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी दिल्ली में सफल नहीं हुई तो फिर उसे अपनी रणनीति में कुछ बदलाव अवश्य करने होंगे। भारतीय जनता पार्टी अपने इस इरादे में विफल हो गई तो फिर केजरीवाल को रोकने के लिए आगे भाजपा को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। गृह मंत्री अमित शाह को भी लगता है कि केजरीवाल को यदि नहीं हराया गया तो भविष्य में वे उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
 
भारतीय जनता पार्टी अगर अपने मंसूबे में सफल होती है तो केजरीवाल फिर से पूरे देश में घूमने और धरना-प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे। लेकिन उनकी साख को धक्का लगेगा और उनकी विपक्ष के विकल्प के तौर पर उभरने की संभावना खत्म हो जाएगी। अगर केजरीवाल इस बार भी चुनाव जीत गए तो आम आदमी पार्टी में उनको चुनौती देने वाला कोई नेतृत्व अब बचा नहीं है। इसके बाद वह पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के बरअक्स एक विकल्प के तौर पर बहुत तेजी से उभरेंगे।  

delhi election
Delhi Assembly 2020
Arvind Kejriwal
AAP
manoj tiwari
BJP
Narendra modi
Amit Shah
Congress
Shaheen Bagh
CAA
Delhi Politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License