NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली हिंसा जनसुनवाई: पुलिस, सरकार, राजनीतिक दल से लेकर मीडिया सभी सवालों के घेरे में
इस जन अदालत में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों के पीड़ितों और कुछ समाजिक संगठनों के कार्यकर्ता आए और अपने अनुभवों को साझा किया।
मुकुंद झा
17 Mar 2020
Delhi violence public hearing

बीते दिनों दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर दिल्ली में सोमवार, 16 मार्च को कांस्टीट्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हॉल में एक जन अदालत लगाई गई। इस जनसुनवाई को 'दिल्ली नरसंहार पर पीपुल्स ट्रिब्यूनल' का नाम दिया गया।

इस जन अदालत में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों के पीड़ितों और कुछ समाजिक संगठनों के कार्यकर्ता आए और अपने अनुभवों को साझा किया। इसमें वो लोग भी थे जो ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। उन सभी ने दंगों के दौरान और बाद में हुए बदलावों की भयावहता को बयान किया।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर गृहमंत्री की ओर से दिए गए बयानों में आने वाली विरोधाभासी बातों पर भी चर्चा की गई। इसके साथ ही दंगों की कहानी, आघात, भय और अविश्वास, पुलिस और राज्य की भूमिका - हिंसा पर नियंत्रण और रोकथाम में नाकामी, बचाव, राहत और पुनर्वास, दंगों के जवाब में स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका, कानूनी चुनौतियाँ के साथ ही मीडिया की भूमिका को लेकर भी चर्चा की गई।

इस जन सुनवाई का आयोजन अनहद, एलायंस डिफेंडिंग फ्रीडम, अमन बिरादरी, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और मुस्लिम महिला मंच ने किया था। इसमें न्यायमूर्ति आफताब आलम, प्रो. अपूर्वानंद, हर्ष मंदर, पामेला फिलिप, डॉ. सैयदा हमीद और प्रो. तानिका के साथ इस ट्रिब्यूनल में 30 से अधिक दंगा-पीड़ित और कुछ प्रमुख नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं ने जूरी के सामने गवाही दी।

पुलिस और राज्य की भूमिका - हिंसा पर नियंत्रण और रोकथाम में नाकामी

कई लोगों ने इन उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे की तुलना 1984 के सिख विरोधी दंगों से की, क्योंकि उस समय भी अल्पसंख्यकों पर योजनाबद्ध तरीके से हमला किया गया था, उसमे भी सरकार की भागीदारी थी।

प्रत्यक्षदर्शियों ने इस तथ्य को सामने लाया कि न केवल पुलिस की भीड़ के साथ मिलीभगत थी, इसके साथ उन्होंने (पुलिस) खुद मुसलमानों पर हमला किया। निहत्थे निवासियों पर आंसू गैस के गोले छोड़े। भीड़ को संरक्षण देकर और किसी तरह दंगाइयों को पुलिस हथियार मुहैया कराने के लिए भीड़ को प्रोत्साहित किया।

नॉर्थ ईस्ट के एक निवासी ने गवाही दी। उन्होंने बताया, "हमने कई बार पुलिस को फोन किया, लेकिन उन्होंने कभी भी कॉल का जवाब नहीं दिया, जब दिया भी तो वो बस हमें फोन पर अपमानित किया और कहा कि वे मदद नहीं कर सकते। इसके अलावा, अधिकांश ने हमें भाग जाने के लिए कहा और वे हम तक पहुंचने में असमर्थ हैं। ”

अब तक, पुलिस ने 53 लोगों की मौत की पुष्टि की है, जिसमें एक पुलिसकर्मी और एक खुफिया अधिकारी शामिल हैं। 200 से अधिक लोग घायल हो गए और 200 घर, दुकानें, स्कूल, वाहन और धार्मिक स्थल जल गए। कई निवासी ज्यादातर युवा पुरुष अभी भी लापता हैं, हालांकि, नए शवों को सीवेज नहरों से बाहर निकाला जा रहा है और वर्तमान में, उन्हें पहचानना सबसे कठिन काम है।

इसके साथ ही जन अदालत में कई लोगों ने इस बात को रखा कि इस संभावना को देखते हुए कि कुछ मृत व्यक्ति प्रवासी थे और मूल रूप से क्षेत्र के नहीं थे, उनकी मौत भी हुई है और उनके परिवारों को कोई न्याय नहीं मिल सकता है।

IMG-20200317-WA0001.jpg

गृहमंत्री के विरोधाभासी बयान

इसके साथ ही जन अदालत में बताया गया कि मृत्यु गणना के अलावा, अन्य सभी नुकसानों को 11 मार्च 2020 को लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दंगों पर सदन को संबोधित करते हुए बहुत कम आंका गया है ।

दंगों की कहानी

एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि , “एक संगठित लूट हुई थी और ज्यादातर मुस्लिम दुकानों को निशाना बनाया गया था। उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया गया और फिर पेट्रोल बमों और जलते हुए टायरों का उपयोग करके जला दिया गया। जिन क्षेत्रों में मुस्लिमों और हिंदू दोनों की दुकानें थीं तो वहां केवल मुस्लिम के दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया। ”

बचाव, राहत और पुनर्वास

दंगा प्रभावित क्षेत्रों में शांति और सामान्य स्थिति वापस लाने के लिए दिल्ली पुलिस की कानून व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता पर कई दंगा पीड़ितों द्वारा सवाल उठाए गए हैं। चूंकि दिल्ली पुलिस ने न तो तुरंत प्रतिक्रिया दी, जब इन क्षेत्रों के निवासियों ने 100 नंबर को फोन किया, और न ही उन आक्रामक दंगाइयों को नियंत्रित किया जो उन पर हमला करने के लिए दिल्ली के बाहर से लाए गए थे। अब भी, दंगों के बाद भय और आशंका सामान्य बनी हुई है। पुलिस नुकसान की गलत सूचना दे रही है। एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर रही है। इस तरह न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को और कठिन बना रही है। एक निवासी ने गवाही देते हुए कहा, "एक रात में मेरे पूरे जीवन की कमाई जल गई।"

दंगों में स्वास्थ्य प्रणाली की भूमिका

एक महत्वपूर्ण पैटर्न जो जूरी सदस्यों के सामने लाया गया कि पुलिस बैरिकेड्स के कारण चिकित्सा सहायता बहुत देर से पहुंची, लेकिन जब पीड़ित अस्पतालों में गए, तो उन्हें एक सम्मानजनक उपचार नहीं दिया गया। अल हिंद और जीटीबी जैसे कुछ अस्पतालों ने पीड़ितों का सफलतापूर्वक इलाज किया, लेकिन कई निजी अस्पतालों की रिपोर्टें आई हैं, जहां न केवल पीड़ितों की मदद से इनकार कर दिया गया बल्कि  डॉक्टरों ने मुस्लिम पीड़ितों को भी धमकाया और उन्हें ताना मारा। उपचार में देरी हुई, भेदभाव जो कि चिकित्सा कर्मचारियों के मरीज के साथ सम्बन्धों और उनके कर्तव्यों के खिलाफ़ है। लेकिन ये सब हुआ।

कानूनी चुनौतियां

इसके अलावा, दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति मुरलीधर की उपस्थिति में जो भूमिका निभाई, उसे जन अदालत में आए सभी लोगों ने सराहा। स्थानीय पुलिस जो कि घटनास्थल पर थी, उसने एंबुलेंस और घायलों तक पहुंचने के लिए चिकित्सकीय मदद से इनकार कर दिया।

इसे अमानवीयता के एक कृत्य के रूप में देखा गया है और इसने आधी रात को सुनवाई की और पुलिस को अपने कर्तव्यों के अनुसार कार्य करने का आदेश दिया। उन्होंने भाजपा के तीन नेताओं, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, और परवेश वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करने के लिए दिल्ली पुलिस की खिंचाई की। उनके नफरत भरे भाषणों जो कथित तौर पर हिंसा के उकासवे के लिए थे की आलोचना की। इससे पहले कि न्यायमूर्ति मुरलीधर का आदेश लागू होता, उनका पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में 26 फरवरी की मध्य रात्रि के करीब अधिसूचना जारी कर तबादला कर दिया गया, जो केंद्र सरकार के इरादों पर भी सवाल उठता है।

लगभग सभी पीड़ितों ने जो बताया वो निराशा की ओर संकेत करता है। संपत्ति के नुकसान झेलने वाले एक निवासी ने कहा, “मुझे अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है लेकिन मेरा कुछ कारोबार किराये के मकानों में था, जहां मकान मालिक हिंदू समुदाय के थे। उन्होंने अनजाने में हमें बेदखल कर दिया और हमें बताया कि वे मुस्लिम व्यक्तियों को किराये पर मकान नहीं देंगे। यदि यह वित्तीय और आर्थिक बहिष्कार नहीं है, तो यह क्या है?”

मीडिया की भूमिका

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने मीडिया के कवरेज पर गंभीर सवाल खड़े किए और कहा कि मीडिया दिल्ली में 50 से अधिक मौतों के बाद भी पुलिस और राजनीतिक दल पर सवाल क्यों नहीं कर रहा है?

उन्होंने कहा ऐसा लगता है मीडिया अमित शाह के एजेंडे को मजबूत कर रहा और शाह पर कोई सवाल नही पूछ रहा है।

अनहद से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि पुलिस छात्रों पर आंसू गैस के गोले दाग सकती है।  महिला प्रदर्शनकारियों को जबरन हटा सकती है लेकिन उन्होंने प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए ऐसा नहीं किया। क्योंकि वो इसका फ़ायदा बाद में उठाना चाहते थे।

वे कहती हैं कि इस दंगे में हिन्दू और मुस्लिम दोनों के घर लूटे और जलाए गए जिससे इसे दो समुदायों के बीच झड़प कहा जा सके।

सभी लोगों को सुनने के बाद, जूरी ने कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। उन्होंने बताया कि दोनों समुदायों के सदस्यों ने संपत्ति, जीवन खोया है और उनके घरों को नुकसान हुआ है, लेकिन सांख्यिकीय रूप से मुस्लिम परिवारों और व्यवसायों को नुकसान की दर और मौत की दर बहुत अधिक है। दोनों समुदायों के प्रमाण बताते हैं कि वे सद्भाव में रह रहे थे और उनका कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं था, हालांकि, हिंसा का विस्फोट निहित मीडिया चैनलों और राजनेताओं द्वारा भड़काने के कारण हुआ।

जूरी ने यह भी उल्लेख किया कि समुदायों के लिए होने वाली मानसिक-सामाजिक क्षति, विशेष रूप से मुस्लिम समुदायों की महिलाओं और बच्चों को हुई है, शायद ही उसकी पूर्ति हो सके। दंगों के कुछ सप्ताह बाद भी अभी लोग उस आघात और झटके से उबर नहीं पाए हैं। अभी भी कारोबार बंद है और इन इलाकों में भय बना हुआ है ।

Delhi Violence
Delhi riots
Delhi violence public hearing
delhi police
Political Party
AAP
BJP
Congress
Arvind Kejriwal
Amit Shah
Indian media
online media
Social Media
Religion Politics
hindu-muslim

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License