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दिल्ली हिंसा और अमित शाह : आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमीं पर रख दो!
गृहमंत्री संसद में कहते हैं कि मरने वाले सभी भारतीय थे, उनका धर्म न पूछो। चलो नहीं पूछते,लेकिन मारने वालों का तो देश-धर्म बताइए साहेब! मारने वालों ने उन्हें किस बात की सज़ा की दी है? 
मुकुल सरल
13 Mar 2020
amit shah
Image courtesy: Evartha

अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे क़ातिल
आप तो क़त्ल का इल्ज़ाम हमीं पर रख दो!

दो दिन लोकसभा और राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह का 'धुआंधार' भाषण सुनने के बाद एक बार फिर राहत इंदौरी का ये शेर याद आया। वाकई गृहमंत्री के बयान के बाद यही कहा जा सकता है कि दिल्ली हिंसा के दोषी वही हैं जो सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं। किसी शायर ने कहा भी है कि : 

वही क़ातिल, वही शाहिद, वही मुंसिफ़ ठहरे
अक़रबा मेरे करें क़त्ल का दावा किस पर

आप कहेंगे मैं शायरी बतियाने लगा। लेकिन क्या करें जब सीधी बात को हुक्मरान उल्टी कर दें तब किन शब्दों में बात की जाए। सवाल था कि इतनी पुलिस, इतना अर्धसैनिक बल होते हुए भी दिल्ली में 36 घंटे से भी ज़्यादा समय तक हिंसा या दंगे कैसे चले? लेकिन गृहमंत्री जी ने इसे उलटकर कहा कि शाबास! दिल्ली पुलिस, जिसने 36 घंटे में दंगे रोक दिए। अब इस उलट बयानी का जवाब कैसे दिया जाए…। 

सवाल था कि उनका दिल्ली चुनाव का पूरा अभियान हिन्दू-मुस्लिम पर क्यों आधारित था, जिसकी परिणिति इस दंगे में हुई, वे बड़े ज़ोर से कहते हैं 14 दिसंबर की रामलीला की कांग्रेस रैली के बाद शाहीन बाग़ का धरना शुरू हुआ और फिर कुछ हेट स्पीच हुईं जिसके बाद 23 फरवरी के बाद दंगा भड़क गया।  लेकिन इन हेट स्पीच में कांग्रेस नेताओं के अलावा शरजील इमाम, वारिस पठान, उमर खालिद तो शामिल हैं, मगर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर,सांसद प्रवेश वर्मा और पूर्व विधायक और बीजेपी के हारे हुए प्रत्याशी कपिल मिश्रा के बयान इन हेट स्पीच में शामिल नहीं। 

दिल्ली चुनाव के दौरान  केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने 'गोली मारो...’ का आह्वान किया। सांसद प्रवेश वर्मा ने कहा कि अगर बीजेपी की सरकार नहीं आएगी तो ये लोग आपके घरों में घुस जाएंगे, बहन-बेटियों का बलात्कार करेंगे। तब मोदी जी आपको बचाने नहीं आएंगे।

कपिल मिश्रा ने अल्टीमेटम दिया कि अगर पुलिस ने रास्ता नहीं खुलवाया तो वे खुद निपट लेंगे। 

औरों का तो छोड़िए अमित शाह को अपना बयान तो याद होगा कि "इतनी ज़ोर से बटन दबाना कि बटन तो बाबरपुर में दबे लेकिन करंट शाहीन बाग़ तक पहुंचे।"  इसे उन्होंने लगभग हर चुनावी सभा में दोहराया। क्या ये हेट स्पीच नहीं था, क्या आप इसे फूल झरना कहेंगे। 

लेकिन ओवैसी को नसीहत देने वाले गृहमंत्री अपना या अपने मंत्री और अपनी पार्टी के नेताओं के बयानों को दंगों का ज़िम्मेदार नहीं मानते। कहते हैं- ये हेट स्पीच हो सकती हैं (इसमें उनका अपना बयान शामिल नहीं), जांच जारी है। लेकिन औरों को वे बिना जांच पूरी हुए दंगों का दोषी करार दे देते हैं। वे बड़े चालाकी से शाहीन बाग़ के शांतिपूर्ण धरना आंदोलन और वहां की औरतों को भी दंगों की साज़िश में शामिल कर देते हैं।

और फिर मासूमियत से कहते हैं कि मरने वाले सभी भारतीय थे, उनका धर्म न पूछो। चलो नहीं पूछते,लेकिन मारने वालों का तो देश-धर्म बताइए साहेब! मारने वालों ने उन्हें किस बात की सज़ा की दी है? 

गृहमंत्री ने बताया कि दिल्ली दंगों में 52 भारतीयों की मौत हुई, 523 घायल हुए जबकि 371 दुकानें जल गयीं एवं 141 लोगों के घर जल गये। 

अब ये तो पूछा ही जाएगा कि ये जो 52 भारतीय हैं इनमें सबसे ज़्यादा अल्पसंख्यक क्यों हैं। ये जो दुकान-मकान जले हैं ये सबसे ज़्यादा उन्हीं के क्यों जले हैं, तो क्या उन्होंने खुद अपने घर में आग लगाकर अपनी जान ले ली? 

क़ातिल की ये दलील अदालत ने मान ली 
मकतूल खुद गिरा था चाकू की नोक पर 

                      (अज्ञात)

इसे पढ़ें : आप दुखी न हों, आप तो यही चाहते थे सरकार!

आपसे यह तो पूछा जाएगा कि आप देश के गृहमंत्री हैं,दिल्ली देश की राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश है। पुलिस आपके अंडर में आती है। तो इन मौतों और संपत्ति के नुकसान के लिए आप क्यों नहीं ज़िम्मेदार हैं? आप इस्तीफ़ा क्यों नहीं देते।

अमित शाह ने कहा कि दंगों के बाद 700 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गयी हैं। अभी तक 2647 लोगों को गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि पुलिस ने आज तक कौन लोग गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए हैं इसकी सूची क्यों नहीं जारी की। थानों में भी ये सूची सार्वजनिक नहीं की गई।

क्षतिपूर्ति और पुनर्वास पर भी उन्होंने विपक्ष को अलग से जानकारी देने की बात कही, लेकिन अब तक क्या किया गया इसका कोई ब्योरा उनके पास नहीं था। 

कम से कम ये तो सवाल पूछा ही जा सकता है कि आप 20 दिन बाद भी हिंसा प्रभावित इलाकों के दौरे पर क्यों नहीं गए। पीड़ितों का हाल क्यों नहीं पूछा? वे जवाब देते हैं कि उनके जाने से पुलिस उनकी सुरक्षा में लग जाती, इसलिए नहीं गए। वे यह नहीं बताते कि क्या पुलिस इतनी नाकाफी और असक्षम है कि देश का गृहमंत्री 20 दिन बाद अपने जनता से भी नहीं मिल सकता। उनके आंसू पोंछने नहीं जा सकता। 
अपने पूरे भाषण में उन्होंने एक सवाल भी पुलिस की भूमिका पर नहीं उठाया।  क्योंकि पुलिस पर सवाल उठाने के मतलब था अपने आप पर सवाल उठाना। वे पूरे समय पुलिस का बचाव करते नज़र आए। 

उन्होंने दंगों की जांच के लिए भी कोई स्वतंत्र आयोग बनाने का कोई आश्वासन नहीं दिया,वसूली के लिए ज़रूर न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच की बात कही। इसी के साथ ये ज़रूर बताया कि दंगों से जुड़े तकरीबन 50 गंभीर मामलों की जांच तीन एसआईटी करेंगी। यह जांच डीआईजी एवं आईजी स्तर के अधिकारियों के नेतृत्व में की जाएगी। यानी पुलिस की भूमिका की जांच नहीं होगी और आरोपी पुलिस ही सबकी जांच करेगी।

उन्होंने कहा कि 40 से अधिक टीमों का गठन कर संलिप्त लोगों की पहचान कर उन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी है। लेकिन ये नहीं बताया कि प्रभावित इलाकों में जाकर पीड़ितों के बच्चे ही पकड़ने का काम जोर-शोर से किया जा रहा है। ऐसी भी शिकायतें हैं कि कोई अपना जला हुआ घर देखने आया, तो उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया। कोई थाने अपनों के बारे में पूछने गया तो उसे भी बैठा लिया गया। इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट है मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद के भीतर 10 हिंदू परिवारों और उनके मंदिर की रात-रात भर जग कर रक्षा करने वाले 45 वर्षीय उस्मान सैफी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इलाक़े के हिंदू परिवारों और मंदिर के पुजारी ने उनको रिहा करने के लिए कड़कड़डूमा कोर्ट में अर्ज़ी दी है।

गृहमंत्री ने सदन में यह भी बताया कि 300 से ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश से आए थे जो गहरी साजिश की ओर संकेत देता है। लेकिन यह नहीं बताया कि उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार है। 

गृहमंंत्री ने बताया कि 24 फरवरी के पहले सरकार के पास यह सूचना आ चुकी थी कि विदेश और देश से आये पैसे को दिल्ली में बांटा गया था। उन्होंने कहा कि इस संबंध में दिल्ली पुलिस जल्द ही ब्योरे की घोषणा करेगी। पुलिस ने इस संबंध में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। 

इतनी सूचना के बाद भी दंगें भड़क जाना ये तो वाकई पुलिस और सरकार की विफलता ही दर्शाते हैं। 

एआईएमआईएम के असादुद्दीन औवैसी के सवालों पर शाह ने कहा कि चेहरा पहचानने का सॉफ्टवेयर (फेस आइडेंटिटी सॉफ्टवेयर) के द्वारा लोगों को पहचानने की प्रक्रिया चालू है। शाह ने कहा कि यह सॉफ्टवेयर न तो धर्म देखता है और न ही कपड़े देखता है (क्या ये हमारे प्रधानमंत्री मोदी पर तंज़ है कहना मुश्किल है, क्योंकि उन्होंने ही कहा था कि 'ये जो आग लगा रहे हैं, ये कौन है उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है।’), वो सिर्फ और सिर्फ चेहरा और कृत्य देखता है और उससे ही पकड़ता है। उन्होंने कहा कि फेस आइडेंटिटी सॉफ्टवेयर के माध्यम से हमने 1,100 से ज्यादा लोगों के चेहरे पहचाने हैं, उनकी पहचान कर ली गई है। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए 40 टीमें बनाई गई हैं, जो दिन-रात लगी हुई हैं। हालांकि ये पूरी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ गई है। आलोचकों और विशेषज्ञों ने आम आदमी की निजता का सवाल और उससे जुड़ी चिंताओं को उठाया और सरकार से ऐसी तकनीक को लागू करने से पहले एक नीति या क़ानून बनाने का आग्रह किया है। 

स्वचालित फेशियल रिकॉग्निशन (एएफआर) तकनीक कैमरों का उपयोग कर चेहरों की फोटो लेती है और फीड किए गए डेटा के आधार पर संदिग्ध लोगो की पहचान के लिए दोबारा जांच करती है। इसमें दिल्ली पुलिस पहले भी फेल हो चुकी है।

इसे पढ़ें : क्या फ़ेशियल रेकग्निशन तकनीक फ़ेल हो सकती है?

फिर गृहमंत्री भावुक होकर कहते हैं कि हमारे पार्टी, हमारी विचारधारा पर दंगें कराने का आरोप लगाया जाता है। आज़ादी के समय से ऐसा हो रहा है। और इसके काउंटर में वे कांग्रेस शासन में हुए दंगें गिनाते हैं। कहते हैं कि 76 फीसदी दंगें कांग्रेस शासन में हुए। लेकिन इसके साथ वह यह नहीं बताते कि हर दंगें के पीछे विचारधारा तो एक ही थी। आज़ादी के बाद से हुए दंगों को न रोक पाने के लिए कांग्रेस को तो नाकाम ठहराया ही जाएगा लेकिन इस दौरान क्या उसी नफ़रत की राजनीति को कुसूरवार नहीं ठहराया जाएगा जिसने हिन्दू और मुस्लिम को दो संस्कृति बताते हुए जिन्ना से भी पहले टू नेशन थ्योरी यानी द्विराष्ट्र का सिद्धांत दिया। जिसने बाबरी मस्जिद को भी मिसमार कर दिया और पूरे  देश को दंगों की आग में झोंक दिया। 

हेट स्पीच का संज्ञान जब हाईकोर्ट लेता है और एक जज जब दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हैं तो रातों-रात उनका तबादला कर दिया जाता है। इस पर सवाल पूछने पर गृहमंत्री सफाई देते हैं कि उनके ट्रांसफर की सिफारिश तो पहले ही सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने की।

जज का कंसेंट यानी सहमिति ली गई। बस उस दिन तो प्रशासनिक आदेश जारी हुआ। फिर बड़े मार्मिक अंदाज़ में कहते हैं कि एक ही जज से न्याय की उम्मीद क्यों? क्या दूसरा जज न्याय नहीं करेगा। ये तो हमारी न्यायपालिका पर संदेह करना हुआ। 

लेकिन सहाब इस सब जुमलेबाज़ी में यह नहीं बताते कि आपकी इस कार्रवाई का अन्य जजों या न्यायपालिका को क्या संदेश गया है। जज मुरलीधर का आनन-फानन में आधी रात को तबादला, जबकि वे अगली सुबह फिर वही मामला सुनने वाले थे, क्या यह सबक नहीं देता हैं कि अगर आप सत्ता के ख़िलाफ़ गए तो आपको भी रहने नहीं दिया जाएगा। इससे पहले देश ने जज लोया का हश्र देखा। फ़ैज़ ने सही कहा है कि 

बने हैं अहल-ए-हवस मुद्दई भी मुंसिफ़ भी 
किसे वकील करें किस से मुंसिफ़ी चाहें 

माना कि आप भी मोदी जी की तरह भाषण कला में माहिर हैं, माना विपक्ष इतना कमज़ोर है कि आपके झूठ को भी न पकड़ सके, लेकिन देश तो सब देख-समझ ही रहा है। आपने कांग्रेस नेता सिब्बल से पूछा कि वह ‘‘संशोधित नागरिकता कानून में ऐसी कोई धारा बता दें जिससे मुसलमानों की नागरिकता चली जाएगी। ’’

ये तो हम भी पहले दिन से कह रहे हैं कि ये कानून मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि संविधान के ख़िलाफ़ है। संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है। आप कहेंगे कि संसद ने बहुमत से इसे पारित किया, लेकिन इससे पहले भी तमाम जनविरोधी कानून पूर्ण बहुमत से पारित किए गए हैं। आपातकाल भी इसी संसद के जरिये ही आया था। 

इसे भी पढ़ें : CAA तो नागरिकता देने का कानून है, तो विरोध क्यों?

आप भोले बनकर कहते हो कि यह कहना गलत है कि कोई कानून धर्म के आधार पर नहीं है, धर्म के आधार पर बने 25 कानून तो मैं गिना दूँ। और नाम लेते हैं मुस्लिम पर्सनल लॉ का। जबकि बात हो रही थी कि हमारे संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता देने का कोई प्रावधान नहीं है। आप बड़ी चतुराई से मूल सवाल गोल करके अपनी सुविधा से उत्तर देते हैं और पूरे देश को गुमराह करने की कोशिश करते हैं और विपक्ष देखता रहता है।   

NPR को लेकर आश्वासन

गृहमंत्री जी के भाषण से एक ही चीज़ अच्छी निकली है वो है  NPR को लेकर आश्वासन। गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा कि NPR में कोई काग़ज़ नहीं मांगा जाएगा। सभी सवाल वैकल्पिक होंगे और किसी के आगे D (Doubtful) यानी संदिग्ध नहीं लिखा जाएगा। ये एक अच्छी बात है, इसकी सरहाना करनी चाहिए, लेकिन इसपर कितना यक़ीन किया जाना चाहिए क्योंकि इन्हीं माननीय गृहमंत्री ने इसी सदन में ज़ोर देकर कहा था कि NRC आकर रहेगा, आकर रहेगा। और 2003 के नागरिकता कानून संशोधन में भी साफ़ कहा गया है कि NPR ही NRC का आधार बनेगा। पीटीआई की ख़बर कहती है कि गृहमंत्री के मुताबिक "कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा", अब इसमें अतिरिक्त का क्या मतलब है? 

NDTV की रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट को आप गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर देख सकते हैं। 2018-19 की सालाना रिपोर्ट के 262 नंबर के पेज पर 15 वां चैप्टर मिलेगा। इसकी शुरूआत में कहा गया है कि एनपीआर एनआरसी की दिशा में पहला कदम है। इसी रिपोर्ट के 273 वें नंबर के पेज पर लिखा है कि बनाने के लिए NPR पहला स्टेज है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने करीब नौ बार कहा है कि NPR के आधार पर ही NRC बनेगा।

इसे पढ़ें : जनपक्ष: दिल्ली की क्या बात करें, अभी तो मुज़फ़्फ़रनगर का इंसाफ़ बाक़ी है!

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