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ऑस्ट्रेलिया में इन दिनों चर्चा के केंद्र में क्यों है सेक्स एजुकेशन?
पश्चिम देशों में चैनल कॉन्टोस के चर्चा में रहने की वजह है एक याचिका, जो उसने अपने गृह देश ऑस्ट्रेलिया की अदालत में लगाई है। दरअसल, उसकी याचिका ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में यौन संबंध के बारे में शिक्षा सुधार के लिए कॉल करती है।
शिरीष खरे
26 Dec 2021
Chanel Contos
यह तस्वीर चैनल कॉन्टोस के ट्विटर अकाउंट से साभार ली गई है.

यह कहानी लंदन में स्नातक की पढ़ाई कर रही ऑस्ट्रेलिया की एक ऐसी छात्रा की है, जो कुछ दिनों पहले तक एक आम छात्रा का जीवन जी रही थी, कोरोना महामारी के दौर में देर तक सोती रहती थी और अपने पूर्वी लंदन स्थित अपार्टमेंट में महीनों तक लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेती थी, लेकिन बता दें कि चैनल कॉन्टोस नाम की यह छात्रा इन दिनों चर्चा में है।

पश्चिम देशों में चैनल कॉन्टोस के चर्चा में रहने की वजह है एक याचिका, जो उसने अपने गृह देश ऑस्ट्रेलिया की अदालत में लगाई है। दरअसल, उसकी याचिका ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में यौन संबंध के बारे में शिक्षा सुधार के लिए कॉल करती है। इस तरह, उसके और उसके करीबी दोस्तों ने छात्रों के रूप में यौन उत्पीड़न के दर्दनाक अनुभवों को फिर से महसूस करना शुरू दिया है, जो इस पूरे मुद्दे पर वैश्विक विमर्श के जरिए यौन संबंधी शिक्षा में सुधार लाना चाहते हैं।

'दी न्यूयॉर्क टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में मिस कॉन्टोस बताती है कि एक दिन अचानक उसने यौन उत्पीड़न से पीड़ित कई छात्र छात्राओं के टेस्टिमोनियल कलेक्ट करने शुरु कर दिए, फिर इस बारे में उसने अपने देश के सांसदों को जानकारियां दीं। यही नहीं, जब बाकी रूममेट रात को अपने-अपने कमरे के दरवाजे लगाकर सोते थे, तब भी वह अपने बेडरूम से वीडियो जारी करके इस मुद्दे पर एडवोकेसी करती थी।

स्कूलों में यौन संबंधी शिक्षा क्यों?

कॉन्टोस बताती है, ''ऐसा नहीं है कि यौन उत्पीड़न हर दिन होता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कोई उस पर बात नहीं करता है। यह बच्चों के साथ होता है, यहां तक कि किशोरों के साथ भी होता है, कई तो समान आयु वर्ग के लड़के या लड़कियां अपने दोस्तों का यौन उत्पीड़न करते हैं, इसलिए इस आयु वर्ग के छात्रों को इस मुद्दे पर जागरूक बनाने के लिए यौन शिक्षा की सख्त जरूरत है। यदि इन्हें स्कूलों में ही यौन उत्पीड़न के बारे में नहीं पढ़ाया गया, तो यही बच्चे बड़े होकर जब शक्तिशाली पदों पर पहुंचेगें, तब कार्यस्थल पर अपने प्रभाव का लाभ लेकर यौन उत्पीड़न करेंगे।

अब कॉन्टोस का लक्ष्य ऑस्ट्रेलिया की शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है, जिसका सरोकार यौन संबंधी शिक्षा को ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में अनिवार्य तौर पर शामिल कराने से है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया सरकार भी इन दिनों यौन शिक्षा के मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश कर रही है और यही वजह है कि वहां वर्तमान शिक्षा नीति पर समीक्षा की जा रही है।

वहीं, इस मुद्दे से जुड़े कई दूसरे छात्र यह मानते हैं कि यदि स्कूलों में छात्रों के बीच के अंतरंग संबंधों को जल्दी से जल्दी नेविगेट करने का कौशल नहीं सिखाया जाता है तो यह एक चूक है, जो आंशिक रूप से किशोरों के बीच यौन उत्पीड़न और यौन हमले की व्यापकता के लिए जिम्मेदार है।

यौन शिक्षा के मामले में भारत

इधर, भारत के संदर्भ में इस तरह के विमर्श को देखा जाए तो वर्ष 1994 में जनसंख्या और विकास पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के किशोर और युवाओं के यौन प्रजनन अधिकारों की पुष्टि की गई थी। इसके तहत भारत सरकार स्कूलों में किशोरों के लिए मुफ्त व अनिवार्य व्यापक लैंगिक शिक्षा प्रदान करने के लिए बढ़ावा देती है।

वर्ष 2007 में भारत सरकार ने किशोरों के लिए यौन शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम में बॉडी इमेज, हिंसा व दुर्व्यवहार, लिंग व लिंगभेद और यौन रोग जैसे संवेदनशील मुद्दों को शामिल किया गया। इसमें अहम बात यह रही कि अंतरंग संबंधों के बारे में खुलकर बातचीत को आवश्यक बताया गया था।

इस बारे में दिल्ली राज्य शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद में सहायक प्रोफेसर आलोक कुमार मिश्रा बताते हैं कि भारत में यौन शिक्षा को लेकर एक तरह की चुप्पी ही रही है। हालांकि, दिल्ली के स्कूलों में किशोरियों के लिए एक कार्यक्रम चल रहा है, जिसमें पीरियड्स के बारे में महिला शिक्षिकाएं लड़कियों को जानकारियां देती हैं और सेनेटरी पैड्स वितरित करती हैं।

वह कहते हैं, ''सामाजिक संदर्भों को ध्यान में रखते हुए यौन शिक्षा स्कूली बच्चों को दी जा सकती है, क्योंकि यह स्वास्थ्य और मनोविज्ञान कारकों को प्रभावित करता है। हम नहीं चाहते हैं कि अधूरी, गलत और अफवाह आधारित सूचनाएं पाकर बच्चे भटक जाएं।''

मीटू कैंपेन का अगला चरण

दूसरी तरफ, पश्चिमी मीडिया इस कैम्पेन को उन युवा प्रचारकों की लहर का हिस्सा मानती है, जो ऑस्ट्रेलिया में मीटू (MeToo) कैम्पेन को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं, जहां इसकी शुरुआत धीमी मानी जाती है।

वहीं, यौन उत्पीड़न के विरोध में कार्य रहा एक नया संगठन, टीच यस कंसेंट (Teach Us Consent) अब इस बात की एडवोकेसी के लिए सामने आया है कि बच्चों को स्कूलों में यौन उत्पीड़न के बारे में संबोधित किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे जैसे-जैसे परिपक्व हों, वे यौन उत्पीड़न और डिजिटल उत्पीड़न जैसे विषयों के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें और हाई स्कूल तक पहुंचते हुए इस तरह की चुनौतियों से भलीभांति निपट भी सकें।

हालांकि, पश्चिमी देशों में एक वर्ग यौन शिक्षा को लागू कराने के मामले में असहमत नजर आता है। यही नहीं, एक वर्ग इसके विरोध में भी है जो यह मानता है कि ऐसी शिक्षा छात्रों को यौन संबंध बनाने के लिए उकसा सकती है। इस बारे में कॉन्टोस कहती है, ''संयम एक विकल्प है, जिसका अर्थ यौन सहमति नहीं होता।''

यौन उत्पीड़न पर घिरी ऑस्ट्रेलिया सरकार

पिछले एक साल के दौरान ऑस्ट्रेलिया में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के प्रकरणों में तेजी आई है, यहां तक कि बलात्कार और यौन उत्पीड़न के आरोपों से सरकार का ऊपरी स्तर भी गिरफ्त में है, ऐसे में वहां यौन संबंधी शिक्षा को लेकर एक माहौल बन रहा है और इस दिशा में सरकार भी सहमति के आधार पर कोई बड़ा निर्णय लेना चाहती है।

दूसरी तरफ, ऑस्ट्रेलिया के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य न्यू साउथ वेल्स (New South Wales) में पुलिस द्वारा सार्वजनिक की गई रिपोर्ट के मुताबिक यौन उत्पीड़न में वहां एक वर्ष के दौरान 61 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

यह भी एक वजह है कि यौन संबंधी शिक्षा के लिए दाखिल की गई याचिका के समर्थन में एक सप्ताह के भीतर 44 हजार से अधिक ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों द्वारा हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।

यौन संबंधों के लिए सहमति पर आधारित शिक्षा

दक्षिण पूर्वी ऑस्ट्रेलिया स्थित एक राज्य विक्टोरिया (The state of Victoria) ने घोषणा की है कि वह कम उम्र से ही यौन संबंधों पर सहमति शिक्षा को अनिवार्य कर देगा। वहीं, अगले वर्ष जुलाई में ऑस्ट्रेलिया के ही क्वींसलैंड राज्य (Queensland state) ने भी कहा है कि वह यौन सहमति पर शिक्षा करेगा, जो अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट होगी।

दूसरी तरफ, समाजशास्त्र की प्रोफेसर जेसिका रिंगरोज (Jessica Ringrose) ने पिछले दिनों ब्रिटिश मीडिया के साथ बातचीत के दौरान कहा कि सहमति से संपर्क और यौन शिक्षा से बच्चों में आत्म-सम्मान की भावना बढ़ेगी, वे रिश्तों में सीमाओं की समझ को समझेंगे और लोगों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना सीखेंगे। इस बारे में वह कहती हैं, ''यह पहले होना चाहिए, क्योंकि सभी शोध इसकी ओर इशारा करते हैं।'' जेसिका रिंगरोज यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (University College London) में और लिंग, कामुकता और शिक्षा मामलों की विशेषज्ञ हैं।

वहीं, ऑस्ट्रेलियाई मीडिया भी यौन संबंधों पर सहमति शिक्षा पर चर्चा कराने के लिए 23 वर्षीय कॉन्टोस की ओर रुख कर रही है और केवल कुछ महीनों में ही चैनल कॉन्टोस का नाम सेक्स एजुकेशन का पर्याय बन गया है। इस मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन (Prime Minister Scott Morrison) ने चैनल कॉन्टोस से मुलाकात का वादा किया है। दरअसल, चैनल कॉन्टोस की चर्चा इसलिए भी अधिक है कि उन्होंने यौन शिक्षा में सुधार के लिए अपने देश से करीब दस हजार मील दूर रहकर भी राष्ट्रीय आंदोलन के लिए प्रवक्ता की अप्रत्याशित भूमिका निभाई है।

13 साल की थी तब यौन उत्पीड़न

कॉन्टोस बताती हैं कि जब वह 13 साल की थी तो एक लड़के ने उनका यौन उत्पीड़न किया गया था। उस लड़के ने कॉन्टोस को आतंकित किया था और बाद में उसने एक अन्य दोस्त के साथ भी यौन उत्पीड़न किया था। वह इस उत्पीड़न की शिकायत न करने के कारण खुद को दोषी मानती है और कहती है कि ऐसी शिकायतों का अच्छी तरह से निराकरण करने के लिए स्कूलों में भी पारदर्शिता की कोई व्यवस्था नहीं होती है।

कॉन्टोस कहती है, ''यदि स्कूल में ही उस लड़के को अपने दोस्तों के साथ सम्मान करना सिखाया जाता और लैंगिक समानता के प्रति संवेदनशील बनाया जाता तो शायद वह ऐसा नहीं करता!''

(शिरीष खरे पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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