NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
भारत
राजनीति
विश्व आदिवासी दिवस पर उठी मांग, ‘पेसा कानून’ की नियमावली जल्द बनाये झारखंड सरकार
आदिवासी समुदायों ने आदिवासियों के जबरदस्त समर्थन से झारखंड की सत्ता में काबिज़ हुई हेमंत सोरेन सरकार द्वारा आदिवासी मुद्दों को लगातार नज़रंदाज़ करने की तीखी निंदा की है।
अनिल अंशुमन
13 Aug 2021
विश्व आदिवासी दिवस पर उठी मांग, ‘पेसा कानून’ की नियमावली जल्द बनाये झारखंड सरकार

संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा द्वारा दुनिया के आदिवसियों की संरक्षा व उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने को लेकर साल 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा की गई थी, बीते वर्षों में आदिवासी समुदाय के लोगों में अपने अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है। कई देशों की सरकारें संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के दिशा निर्देशों का अनुपालन करते हुए आदिवासी समुदाय और उनके सवालों को लेकर गंभीर हुईं हैं। 

वहीं कई ऐसे भी देश हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ की उक्त घोषणा अनुशंसाओं से बहुत लेना देना नहीं है। जिनमें भारत का भी नाम प्रमुखता से शुमार है। कहा जाता है कि शुरू में तो तत्कालीन भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ को यह रिपोर्ट दी थी कि नार्थईस्ट को छोड़कर यहां आदिवासी हैं ही नहीं। बाद में

आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने आवाज़ उठाने पर सरकार ने स्वीकार किया कि यहां आदिवासी हैं। वर्तमान की केंद्र सरकार से लेकर कई राज्यों कि सरकारों का आज भी आदिवासी समुदाय और उनके मुद्दों को लेकर न सिर्फ उपेक्षा का भाव बरकार है, बल्कि दमनात्मक रुख है। आये दिन आदिवासी समुदाय को अपने जल, जंगल, ज़मीन, खनिज व प्राकृतिक संसाधनों की बेलगाम लूट के खिलाफ आवाज़ उठाने पर ‘विकास विरोधी’ करार देकर राजद्रोह जैसे मुक़दमें लगाकर जेलों में डाल दिया जाता है।

झारखण्ड प्रदेश के रघुवर दास सरकार ने तो पत्थलगड़ी आन्दोलन का समर्थन करने वाले दर्जनों आदिवासी गावों के 1500 से अभी अधिक लोगों पर एक साथ राजद्रोह का मुकदमा ठोक दिया था।   

एक विडंबना यह भी है कि विश्व आदिवासी दिवस को भी यहां की सरकारें, अधिकांश राजनीतिक दल व नेताओं ने महज आदिवासी समुदाय के वोटरों को रिझाने की रस्मादयागी के दिखावे में तब्दील कर दिया है। जहां भव्य रंगारंग सरकारी व गैर सरकारी आयोजनों में आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ नाच गान का फोटो सेशन करते हुए जिम्मेवारियों से छुटकारा पा लिया जा रहा है। लेकिन दूसरी ओर, इस दिवस के संदेशों से प्रेरित होकर देश के आदिवासी समुदाय के लोग संविधान द्वारा उनकी संरक्षा और विकास हेतु दिए गए विशेषाधिकारों को लेकर दिनों दिन गंभीर होते जा रहें हैं।

इसका एक नज़ारा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर झारखण्ड के आदिवासी समुदाय ने प्रदर्शित किया। इस दिवस पर आयोजित कई रैली, जनसभा और संगोष्टियों में हमेशा की तरह लोगों ने अपने पारंपरिक परिधानों में मांदर-नगाड़े बजाते हुए, नाच गान के साथ-साथ आदिवासी अधिकारों पर हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ बुलन्द की। झारखण्ड की राजधानी रांची स्थित फादर कामिल बुल्के सभागार में आयोजित ‘पांचवी अनुसूची और स्वशासन’ विमर्श कार्यक्रम में आज के आदिवासी प्रश्नों को मुखरता के साथ उठाया गया। ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, झारखण्ड व हॉफमैन लॉ एसोसिएशन ने इस संयुक्त विमर्श का आयोजन किया था। जिसमें आदिवासी मामलों के कई विशेषज्ञों के अलावा इन मुद्दों पर सक्रिय बुद्धिजीवियों व सोशल एक्टिविस्टों ने झारखण्ड में आदिवासी समुदायों के विशेष संरक्षण हेतु बनी संविधान की पांचवी अनुसूची को मजबूती से नहीं लागू किये जाने का सवाल उठाया।  

साथ की संसद द्वारा 1996 में पारित ‘पेसा‘ कानून के तहत प्रदान आदिवासी समुदाय की ‘स्वायत्त स्वशासन परम्परा’ को लागू करने में असफल रहे राज्यपाल व सरकार समेत पूरे प्रशासनिक तंत्र की साजिशपूर्ण भूमिका की पर सवाल खड़ा किया। इस सन्दर्भ में आदिवासी समुदायों के जबरदस्त समर्थन से राज्य की सत्ता में काबिज़ हुई हेमंत सोरेन की सरकार द्वारा आदिवासी मुद्दों को लगातार नज़रंदाज़ करने की तीखी निंदा भी हुई।

विमर्श कार्यक्रम की शुरुआत फ़ादर स्टैन स्वामी समेत जल जंगल ज़मीन के अधिकारों के शहीदों को मौन श्रद्धांजली देकर की गयी। जंगल बचाओ अभियान से जुड़े व झारखण्ड जन संस्कृति मंच के प्रदेश संयोजक जेवियर कुजूर ने आरोप लगाया कि वर्तमान की केंद्र सरकार इस देश का चरित्र वेलफेयर स्टेट से बदलकर एक कॉरपोरेट स्टेट में बदल चुकी है। जल जंगल ज़मीन और खनिजों की बेलगाम लूट को जारी रखने के लिए ही ‘पेसा कानून’ और स्वशासन के अधिकारों को निष्प्रभावी बना दिया गया है।

आदिवासी कानूनों के विशेषज्ञ वरिष्ठ एडवोकेट रश्मि कात्ययान ने कहा कि वर्तमान की केंद्र सरकार का जो रवैया है, उसमें आदिवासियों के लिए बने पांचवी अनुसूची प्रावधानों को कभी भी ख़त्म कर दिया जा सकता है। ट्राइबल सब-प्लान के पैसों के दुरुपयोग और आदिवासियों की ज़मींन की लूट के लिए ही ‘पेसा कानून’ को लागू नहीं किया जा रहा है।

वरिष्ठ आदिवासी राजनेता प्रभाकर तिर्की ने बताया कि देश में कॉर्पोरेट कंपनियों के फायदे के लिए ही ‘सेज़’ लाया गया है। इसी के तहत भाजपा शासन ने संथाल आदिवासियों की ज़मीनें छीन कर झारखण्ड के पाकुड़ इलाके में अडानी पवार प्रोजेक्ट का सम्राज्य स्थापित कर लिया है।

अध्यक्षता करते हुए फोरम से जुड़े वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवी प्रेमचंद मुर्मू ने कहा कि वर्तमान की केंद्र सरकार तो देश के संविधान को ही निरस्त करने पर तुली हुई है। ‘संतोषी की भूख से मौत’ मामले को उठाने वाली फोरम कि युवा एक्टिविस्ट तारामणि साहू ने हाल ही में कोल्हान क्षेत्र के आदिवासियों पर संघ समर्थित ग्रामीण ताक़तों द्वारा किये जा रहे हमलों की जानकारी दी। साथ ही यह भी बताया कि कैसे आदिवासियों की एकता को तोड़ने के लिए गांव-गांव ‘सरना इसाई’ विभाजन का कुचक्र रचा जा रहा है।

चर्चित शिक्षाविद और आन्दोलनकारी आदिवासी बुद्धिजीवी डा. कर्मा उराँव ने हेमंत सोरेन सरकार पर भी आदिवासियों व उनके सवालों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि हमारे वोटों से सरकार बनाने वाले ही आज अदिवासी विरोधी ताक़तों के मदगार बन रहें हैं। रघुवर दास सरकार द्वारा लगाये गए राजद्रोह मुक़दमे का सामना कर रहे वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवी वाल्टर कंडूलना ने कहा कि ग्लोबलाइजेशन की नीतियों को भारत में स्थायी बना देने के लिए ही केंद्र की  सरकार देश को निजीकरण के रास्ते पर धकेल रही है। खनिज और प्राकृतिक संसाधनों की लूट का सबसे मुखर विरोध आदिवासी करते हैं, इसीलिए भाजपा आदिवासी अधिकारों पर सबसे अधिक हमला बोलने के साथ-साथ ‘सरना ईसाई’ का विभाजन कर इनकी सामुदायिक एकता तोड़ने में जुटी हुई है।

विमर्श कार्यक्रम के सर्वसम्मत प्रस्ताव में हेमंत सोरेन सरकार से मांग की गयी कि वो ज़ल्द से ज़ल्द राज्य में ‘पेसा कानून’ नियमावली तैयार कर पंचायतीराज व्यवस्था में स्वशासन व्यवस्था को राजकीय मान्यता दे। साथ ही खूंटी के इलाकों में जिन आदिवासियों पर रघुवर दास सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा किया है , अध्यादेश लाकर उसकी जारी सभी प्रक्रियाओं पर अविलम्ब स्टे लगाए। 

विश्व आदिवासी दिवस मनाते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी तीर चलाते हुए पोज की तस्वीर को ट्वीट करने के साथ साथ ‘मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना’ और ‘बिरसा किसान’ योजना का शुभारम्भ किया है। देखना है कि झारखण्ड में पांचवी अनुसूची के पालन तथा संसद द्वारा पारित पेसा कानून की नियमावली लागू करने की मांग को वे कब तक पूरा करते हैं।

World tribal day
United nations
Jharkhand
Jharkhand Protest
Jharkhand government
Hemant Soren
PESA Act

Related Stories

झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण

झारखंड: पंचायत चुनावों को लेकर आदिवासी संगठनों का विरोध, जानिए क्या है पूरा मामला

झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत

झारखंड : ‘भाषाई अतिक्रमण’ के खिलाफ सड़कों पर उतरा जनसैलाब, मगही-भोजपुरी-अंगिका को स्थानीय भाषा का दर्जा देने का किया विरोध

'सोहराय' उत्सव के दौरान महिलाओं के साथ होने वाली अभद्रता का जिक्र करने पर आदिवासी महिला प्रोफ़ेसर बनीं निशाना 

भारत में हर दिन क्यों बढ़ रही हैं ‘मॉब लिंचिंग’ की घटनाएं, इसके पीछे क्या है कारण?

झारखंड: बेसराजारा कांड के बहाने मीडिया ने साधा आदिवासी समुदाय के ‘खुंटकट्टी व्यवस्था’ पर निशाना

झारखंड: ‘स्वामित्व योजना’ लागू होने से आशंकित आदिवासी, गांव-गांव किए जा रहे ड्रोन सर्वे का विरोध

झारखण्ड : शहीद स्मारक धरोहर स्थल पर स्कूल निर्माण के ख़िलाफ़ आदिवासी संगठनों का विरोध


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License