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महामारी के दौर में कौन है नोबेल पुरस्कार का हक़दार?
क्यूबा के स्वास्थ्य अंतरराष्ट्रीयवाद का मुख्य तत्व, अपने डॉक्टर और नर्सों को ज़रूरत महसूस कर रहे देशों में भेजना, और दुनियाभर के स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण देना है।
विजय प्रसाद
18 Jun 2020
कोरोना वायरस

मैं कुछ हफ़्ते पहले दुनिया की स्थितियों पर नोआम चॉमस्की से बात कर रहा था। एक वक़्त ऐसा आया, जब नोआम ने मुस्कुराते हुए कहा कि उन्हें इटली में किसी जर्मन डॉक्टर के होने की जानकारी नहीं है। जबकि दोनों देश यूरोपीय संघ का हिस्सा हैं। इसके बजाय क्यूबा और चीन के डॉक्टर इटली पहुंचे, जहां वे वैश्विक महामारी से लड़ने में मदद कर रहे हैं।

क्यूबा के स्वास्थ्यकर्मी

इसमें कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि क्यूबा के स्वास्थ्यकर्मियों को शांति का नोबेल देने की बात चल रही है। क्यूबा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने लगातार अपनी स्वास्थ्य टीमों (ख़ासकर हेनरी रीव ब्रिगेड) को अंडोरा से वेनेजुएला तक अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल करने के लिए भेजा है।

पश्चिम अफ्रीका में इबोला महामारी से निपटने में सहयोग देने के लिए हेनरी रीव ब्रिगेड को 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से डॉ ली जोंग वुक मेमोरियल प्राइज़ मिल चुका है। यह पुरस्कार डॉ. फेलिक्स बाएज ने ग्रहण किया, जिन्होंने 2005 के भूकंप के बाद पाकिस्तान में काम किया था। उसके बाद डॉ. फेलिक्स अक्टूबर 2014 में इबोला से लड़ने के लिए सिएरा लिओन चले गए। वहां वे इबोला से संक्रमित भी हो गए। इसके बाद वे ठीक होने के लिए क्यूबा और स्विट्जरलैंड चले गए। यहां से वे वापस अपना मिशन खत्म करने के लिए सिएरा लिओन लौट गए।

क्यूबा के स्वास्थ्य अंतरराष्ट्रीयवाद की जड़े क्यूबा की क्रांति में ही निहित हैं। 1959 में हुई उस क्रांति के बाद डॉक्टर्स ने देश छोड़ दिया। लेकिन क्यूबा के लोगों ने मई,1960 में चिली के वालडिविया में आए भूकंप में बड़ी बहादुरी से प्रतिक्रिया दी। उस वक़्त चिली में क्यूबा की एक आपात स्वास्थ्य टीम पहुंची और उसने 6 ग्रामीण अस्पताल बनाए। यह उस प्रक्रिया की शुरुआत थी, जिसके तहत बाद में क्यूबा ने अल्जीरिया, अंगोला, निकारागुआ, विएतनाम में आजादी के युद्ध में स्वास्थ्य सहयोग करने में भूमिका निभाई। साथ में दुनियाभर के छात्रों को क्यूबन मेडिकल ट्रेनिंग दी गई।

क्यूबा के स्वास्थ्य अंतरराष्ट्रीयवाद का अहम हिस्सा दुनिाभर में स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करना है। साथ में क्यूबा के डॉक्टर और नर्सों को विदेशों में भेजा जाता है। हवाना में स्थित लातिन अमेरिकन स्कूल ऑफ मेडिसिन में 100 देशों के 29,000 डॉक्टर्स को प्रशिक्षित किया जा चुका है। इनमें से कई डॉक्टर आज कोरोनो के खिलाफ़ जंग में अग्रिम पंक्ति में लड़ाई लड़ रहे हैं। जैसे हैती की नेशनल लेबोरेटरी ऑफ एपिडेमियोलॉजी के निदेशक पैट्रिक डेली, जो हैती में संक्रमण की चेन तोड़ने की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं।

चीन के स्वास्थ्यकर्मी

पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने पहली बार 1963 में अपनी स्वास्थ्य टीम को देश के बाहर भेजा। उस वक़्त स्वास्थ्य टीम अल्जीरिया में नए-नए बने देश को सहयोग करने गई थी। तब से चीन ने अल्जीरिया में कई अस्पताल और मेडिकल सेंटर बनाए हैं, जिनमें 20 लाख से ज़्यादा मरीजों का इलाज़ किया जा चुका है। मई के मध्य से चीन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम अल्जीरिया में कोरोना के मरीजों के इलाज़ में लगी है।

कुछ साल पहले फेज़ से राबत की ट्रेन में सफ़र करते हुए मुझे मोरक्को में तैनात कुछ चीनी डॉक्टर्स की टीम से मुलाकात का मौका मिला। यह डॉक्टर 165वीं चाइनीज़ मेडिकल मिशन का हिस्सा थे और मोरक्को के पहाड़ी कस्बों शेफचऔएन और ताजा में काम कर रहे थे। उन्होंने मुझे बताया कि चाइनीज़ और मोरक्को का प्रशासन मिलकर कासाब्लांका में चाइनीज़-मोरक्को सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन बना रहे हैं। मौजूदा महामारी में चीन ने स्वास्थ्य उपकरणों से लैस कुछ हवाई जहाज़ कोरोना से लड़ने के लिए मोरक्को भेजे हैं। वहीं मोरक्को में मौजूद चीनी स्वास्थ्यकर्मी पहले से ही कोरोना वायरस से लड़ने के अपने मिशन में लगे हुए हैं।

अब जब चीन को अपने अनुभव से इस वायरस और बीमारी से लड़ने में अहम काबिलियत हासिल हो चुकी है, तो उसने बुरकीना फासो से लेकर वेनेजुएला तक, पूरी दुनिया में स्वास्थ्यकर्मियों की टीमें भेजी हैं। जैसे सूडान में 35वीं ओमडरमेन फ्रैंडशिप हॉस्पिटल में 35 वें चाइनीज़ मेडिकल एसोसिएशन ने अहम जानकारियों वाली एक कॉन्फ्रेंस की। यहां चानी टीम के प्रमुख झू-लिन ने स्वास्थ्यकर्मियों से खुद को बचाते हुए लोगों को वायरस संक्रमण को रोकने के तरीके सिखाने को कहा। चार लाख सर्जिकल मास्क और दूसरे उपकरणों के दान के साथ बहुत सारा व्यवहारिक ज्ञान भी दिया गया।

चीन में स्वास्थ्य अंतरराष्ट्रीयवाद का समन्वय मुख्यत: चाइना इंटरनेशनल डिवेल्पमेंट कोऑपरेशन एजेंसी करती है। लेकिन इसका बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों पर छोड़ दिया जाता है। ''एक राज्य, एक देश'' का नारा इसके तहत दिया जाता है। झेजियांग प्रांत ने इटली और जिआंग्सू प्रांत ने वेनेजुएला के साथ गठबंधन किया है।

भाईचारे की दिशा में एक अहम कदम फिलिस्तीन में चीन की बढ़ती भूमिका है। चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन द्वारा बनाई गई एक मेडिकल विशेषज्ञों की टीम 11 जून को फिलिस्तीन पहुंची। चीन के विदेश मंत्रालय से हुआ चुनयिंग ने कहा कि यह टीम फिलिस्तीन में एक हफ़्ते तक रहेगी और यह ''महामारी नियंत्रण, क्लीनिकल डॉयग्नोसिस, इलाज़ और लैब टेस्ट'' पर सलाह देगी। यह UNRWA में चीन द्वारा एक मिलियन डॉलर के अनुदान देने के बाद ही यह कदम उठाया गया है। बता दें UNRWA संयुक्त राष्ट्र संघ की वह एजेंसी है, जो फिलिस्तीन में बुनियादी सेवाओं को प्रदान करती है।

चीन और क्यूबा का गठबंधन

एक जनवरी, 2020 को जैसे ही महामारी ने आकार लेना शुरू किया था, चीन और क्यूबा ने हुनान राज्य में चाइना-क्यूबा बॉयोटेक्नोलॉजी ज्वाइंट इनोवेशन सेंटर का उद्घाटन किया। बता दें यह सहयोग दो दशकों से जारी है। 2003 में दोनों देशों ने चीन के जिलिन राज्य में चंगचुन हेबेर बॉयोटेक्नोलॉजी लिमिटेड शुरू किया। कोरोना महामारी के इलाज़ में इस्तेमाल होने वाली दवाई इंटरफेरॉन अल्फा 2B (IFNrec) को भी इसी कंपनी ने बनाया है। इस दवाई को पहली बार 1981 में क्यूबा के भीतर डेंगू के बुखार से निपटने के लिए बनाया गया था। इसके बाद यह HIV-AIDS, हेपेटाइटिस बी और सी के साथ-साथ ''रेस्पिरेटरी पापिल्लोमेटोसिस'' के इलाज़ में इस्तेमाल होती रही। चीन में कोरोना के मरीज़ों का इलाज़ करने के लिए इस दवाई को पारंपरिक चीनी दवाईयों के साथ बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, कोरोना महामारी के खिलाफ़ क्यूबा की लड़ाई प्रेरणादायक है। चीन ने क्यूबा को सुरक्षात्मक कपड़ों, सर्जिकल मास्क, इंफ्रारेड थर्मोमीटर जैसी जरूरी चीजें भेजी हैं। इनमें से कुछ सरकार ने भेजी हैं, तो कुछ झेंगझू युतोंग जैसी सार्वजनिक कंपनियों से आई हैं। बता दें झेंगझू युतोंग दुनिया की सबसे बड़ी बस निर्माता कंपनियों में से एक है।

समाजवादी भाईचारा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो जैसे छोटी सोच वाले लोग ही इस महामारी से लड़ने के क्रम में खुद की कमियों को छुपाने के लिए दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं। ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाने को आपनी आदत बना लिया है। वहीं बोलसोनारो के बेटे रोड्रिगो ने ट्रंप की तरह, वायरस के लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को दोषी बताने वाले ट्वीट करने की आदत पाल ली है। दरअसल इन सरकारों ने खुद को बचाने के लिए एक दूसरे वायरस को घर कर लिया है। वह दूसरा वायरस है- ज़ीनोफोबिया (इंसान से घृणा)। उसमें भी ख़ास तौर पर यह लोग चीन से घृणा करते हैं।

चीन और क्यूबा ने दूसरे समाजवादी देशों की तरह WHO के लांछन लगाने के बजाए भाईचारे पर जोर देने की बात को दिल में बसा लिया है। चाइना इंटरनेशनल डिवेल्पमेंट कोऑपरेशन एजेंसी के वाइस चेयरमैन डेंग बोकिंग ने कहा, ''बूंद-बू्ंद गिरते पानी के बदले तेज धार वाली बौछार देनी चाहिए।'' इस कहावत से उनका मतलब है कि दूसरे देशों के लिए चीन की प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर नहीं करेगी कि उन्होंने चीन के लिए क्या किया है। बल्कि यह चीन का सहयोग इस पर निर्भर करेगा कि उन देशों को किस चीज की जरूरत है। यही तो पुराना मार्क्सवादी विचार है, जो सिखाता है कि ''आप जो दे सकते हो, वो दो और जिसकी जरूरत है, वो ले लो।'' डेंग बोकिंग ने कहा कि ''चीन जो कर सकता है, वह करेगा और उसके लिए अपनी सबसे बेहतर कोशिश करेगा।''

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे Globetrotter पर मुख्य संवाददाता हैं, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट का प्रोजेक्ट है। वे लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक हैं। साथ में ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक भी हैं। उन्होंने बीस से ज़्यादा किताबें लिखी हैं। इसमें डार्कर नेशन्स और द पूअरर नेशन्स भी शामिल हैं। उनकी हालिया किताब ''वाशिंगटन बुलेट्स'' है। जिसका एक इंट्रोडक्शन एवो मोराल्स आयमा ने लिखा है।

यह लेख Globetrotter ने प्रकाशित किया है, जो इंडिपेंडेट मीडिया इंस्टीट्यूट का एक प्रोजेक्ट है।

मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Who Deserves the Nobel Peace Prize in a Time of Pandemic?

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