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डिएगो माराडोना: अमेरिकी साम्राज्यवाद का कट्टर विरोधी खिलाड़ी
फुटबॉल के खेल से लेकर राजनीति विचारों तक में जुर्रत करने की हिमाकत का नाम है माराडोना। एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने 'फीफा' में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर आवाज उठाया और फीफा को 'माफिया' तक कहने की जुर्रत दिखाई।
अनीश अंकुर
28 Nov 2020
डिएगो माराडोना

लैटिन अमेरिका में फुटबॉल सामूहिक पहचान का एक बुनियादी प्रतीक बना हुआ है। फुटबॉल खेलने का अंदाज़, अपने होने का तरीका है जो हरेक समुदाय की अनोखी बनावट को उजागर करता है और उसके अनोखेपन के अधिकार की तस्दीक करता है। इस महाद्वीप का हर देश फुटबॉल खेलने के अपने अलग-अलग अंदाज के लिए जाना जाता है।  

प्रख्यात लैटिन अमेरिकी लेखक एदुआर्दो गालियानो ने इस महाद्वीप के फुटबॉल के बारे में कहा था " मुझे बताओ कि तुम कैसे खेलते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा की तुम कौन हो।" लैटिन अमेरिका में फुटबॉल एक कला में तब्दील हो चुका है। इस कला को ब्राजील के पेले और अर्जेंटीना के डिएगो माराडोना ने जो ऊंचाई प्रदान की उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती। लेकिन विभिन्न देशों की कलात्मक पहचान को फुटबॉल में आई नई तब्दीलियां बदल रही हैं।

फुटबॉल के खेल में कला के बजाए जैसा की गालियानो ने कहा था "यह खेल एक तमाशा हो  गया है। यह तमाशा दुनिया का सबसे मुनाफादेह कारोबार बन गया है, जिसका ताना-बाना खेल को मुमकिन बनाने के लिए नहीं बल्कि इसमें रुकावट पैदा करने के लिए बना है। पेशेवर खेल की तकनीकी नौकरशाही ने बिजली जैसी तेजी और क्रूर ताकत को फुटबॉल पर थोपने में कामयाबी हासिल की है, एक ऐसा फुटबॉल जो खुशियों को नकारता है, कल्पनाओं को हत्या करता है और जुर्रत करने वालों को गैरकानूनी ठहराता है।"

लेकिन माराडोना फुटबॉल में खुशी, कल्पना और जुर्रत करने की संभावना के प्रतीक पुरुष बन चुके थे। फुटबॉल के खेल से लेकर राजनीति विचारों तक में जुर्रत करने की हिमाकत का नाम है माराडोना। एक फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने फीफा में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जमकर आवाज उठाया और फीफा को ' माफिया' तक कहने की जुर्रत दिखाई।

उन्होंने फुटबॉल खिलाड़ियों का यूनियन बनाने के लिए अथक संघर्ष किया। नब्बे के दशक में माराडोना ने अन्य प्रमुख सितारों के साथ मिलकर " इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल फुटबॉल प्लेयर्स " की स्थापना की ताकि इन खिलाड़ियों के अधिकारों की रक्षा हो सके। सन 2000 में माराडोना की आत्मकथा प्रकाशित हुई जिसका नाम  ‘‘आई एम डियागो" था। माराडोना फुटबॉल के मैदानों की तरह राजनीति में भी वामपंथी राजनीति के खुले समर्थक थे।

फिदेल कास्त्रो ने माराडोना  को नशे से बचाया  

यह महज संयोग ही कहा जायगा कि जिस दिन यानी 25 नवम्बर को डिएगो माराडोना की मृत्यु हुई उसके  ठीक  चार  वर्ष पूर्व  क्यूबा के क्रांतिकारी नेता व  राष्ट्रपति  फिदेल कास्त्रो की मृत्यु हो गयी थी। माराडोना फिडल कास्त्रो को अपना दूसरा पिता (second father) मानते थे।

फिदेल को वह अपना पिता इसलिए भी मानते थे क्योंकि उन्हें दूसरा जीवन क्यूबा में मिला। जब ड्रग्स और अल्कोहल की लत पड़ जाने के कारण उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था ऐसे वक्त में  फिदेल ने हस्तक्षेप कर उनका क्यूबा में इलाज करवाया। परिणामस्वरूप धीरे- धीरे उनके   स्वास्थ्य में सुधार होता गया। इसी वजह से फिदेल के निधन पर मारोडोना दुख प्रकट करते हुए कहा " वे मेरे लिए पिता के समान थे। उन्होंने अपने क्यूबा का दरवाजा मेरे लिए तब खोल दिया था जब अर्जेंटीना उसे बन्द कर रहा था।"

खेल की दुनिया  को नज़दीक से  जानने  वाले  लोग  ये  मानते  हैं  कि  ग़रीब  घर  से आने वाले माराडोना जैसे  मशहूर खिलाड़ियों  को नशे की और ले जाने में एक ख़ास तरह   गैंग और नेटवर्क भी ऑपरेट करता है। कई प्रतिभाशाली  खिलाड़ियों का इसी वजह से असमय  सितारा डूब चुका है। माराडोना पहली बार फिदेल से 1987 में फुटबाल विश्व कप विजय के एक साल बाद मिले थे। उस  वक्त वे  अपनी  प्रसिद्धि के शिखर  पर थे।

उनकी यह मुलाकात एक आत्मीय रिश्ते में बदल गयी और यह रिश्ता उस समय और गहरा हो गया जब वे साल 2000 में लंबे समय तक नशा मुक्ति केन्द्र में रहे जहां उनका इलाज चला। वे दिल की बीमारी और कोकीन की लत के कारण लगभग मरने के कागार पर पहुंच गये थे। तब फिदेल और क्यूबा ने उन्हें इस तकलीफ से निजात दिलायी, यह चार साल का लंबा समय था जिसमें फिदेल उनकी सहायता के लिए आगे आये। क्यूबा ने उनके लिए तब दरवाजे खोले जब उनके अपने देश के अस्पतालों के दरवाजे उनके लिए बंद हो गये थे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि माराडोना की मृत्यु उनके क्लिनिक में हो जाए। जब 25 नवंबर 2016 को फिदेल इस दुनिया से चले गये तो माराडोना बुरी तरह टूट गये और उन्होंने स्वयं स्वीकारा की वे अपने पिता की मौत के बाद दूसरी बार इतना अधिक टूटे थे कि उनके खुद के आंसूओं पर उनका बस नहीं रहा था।

ज्योति बसु से कोलकाता में भेंट

माराडोना के फिदेल के प्रति प्रेम को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु से उनकी मुलाकात से समझा जा सकता है। जब माराडोना 2008 में भारत आए तो उन्हें देखने के लिए पूरा कलकत्ता उमड़ पड़ा। जगह-जगह उन के कटआउट लगाए गए।

संयोग से उनके स्वागत समारोह में ज्योति बसु उनके साथ मंच साझा नहीं कर पाए तो  माराडोना ने उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की और कहा " फिदेल आपको अपना नजदीकी मानते हैं। मैं फिदेल के प्रति काफी सम्मान रखता हूँ। इस लिहाज से मैं आपके प्रति भी मैं वैसी ही निकटता महसूस करता हूँ।"  

अमेरिकी साम्राज्यवाद  के कटटर विरोधी

फिदेल कास्त्रो और चे-ग्वेरा दोनों द्वारा दुनिया को बदलने के लिए संघर्ष मारोडोना को आकर्षित करती थी। इन दो महान क्रांतिकारियों का टैटू माराडोना के हाथ और पैर पर अंकित था। चेग्वेरा तो माराडोना के हमवतन भी थे। चेग्वेरा के अर्जेंटीना से क्यूबा जाकर फिदेल कास्त्रो के साथ मिलकर  क्रान्ति  सम्पन्न  करने  और फिर बोलीविया में अकेले ही उनका रोमांचकारी अभियान और शहादत पूरे लैटिन अमेरिकी महादेश में लोकाख्यान का दर्जा पा चुका है।

इन दोनों क्रांतिकारियों के प्रति सम्मान का कारण था कि ये दोनों अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करते थे। माराडोना जितने बड़े फुटबाल खिलाड़ी से उतने ही बड़े व प्रबल अमेरिकी साम्राज्यवाद के आलोचक भी थे। अमेरिकी साम्राज्यवाद के संबन्ध में  माराडोना ने चावेज के साथ एक टेलीविजन साक्षात्कार के दौरान कहा था " वे अमेरिका से बेइन्तहा नफरत करते हैं और अमेरिका से आना वाला कुछ भी उन्हें मंजूर नहीं है। और मैं इसे पूरी ताकत से नफरत करता हूं।"

माराडोना ने जार्ज बुश के दूसरी बार चुने जाने पर उनकी सार्वजनिक रूप से आलोचना की और बुश को एक 'फ्रॉड 'और 'मियामी का एक आतंकी माफिया' तक कह डाला था। माराडोना ने दुनिया भर की और विशेषकर लैटिन अमेरिका की वामरुझानों वाली प्रगतिशील और समाजवादी  सरकारों का खुले रूप में समर्थन किया करते थे।

फिलीस्तीन के मुद्दे पर समर्थन करते हुए उन्होंने कहा " मैं अपने हृदय से फिलीस्तीन के साथ हूँ। " साथ में यह भी जोड़ा " मैं फिलीस्तीनी जनता के हितों के रक्षक हूँ। मैं उनका सम्मान करता हूँ, उनके प्रति सहानुभति रखता हूं। मैं बिना डरे फिलीस्तीन के साथ खड़ा हूँ।"

चे और फिदेल के अतिरिक्त लैटिन अमेरीका के प्रगतिशील राष्ट्रपति जिसमें वेनेजुएला के ह्यूगो चावेज और बोलीविया के इवो मोरालेस के काफी निकटवर्ती  मित्र थे। चावेज के संबन्ध में उन्होंने कहा था" मैं ह्यूगो चावेज पर यकीन करता हूँ। मैं चाविस्ता हूँ। मेरे दृष्टिकोण से, चावेज और फिदेल,  जो भी  करते हैं वो सर्वोत्तम होता है।"

हां, मैं वामपंथी हूँ

माराडोना वामपंथी राजनीति के प्रति खुलकर अपनी प्रतिबद्धता का इजहार करते रहे थे। माराडोना कहा करते " हमें खरीदा नहीं जा सकता क्योंकि हम वामपन्थी हैं। हम वामपन्थी हैं अपने पैरों में, हम वामपंथी हैं अपने हाथों से, हम अपने दिमाग से वामपंथी हैं। इसे लोगों को जानना चाहिए। हम सच कहते हैं और समानता की चाहत रखते हैं। हम नहीं चाहते कि यांकी ( अमेरिका) का झंडा हमारे ऊपर थोपा जाए।"

फुटबॉल से जुड़ाव

माराडोना का जन्म अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स की झुग्गी बस्ती में एक कारखाना मजदूर के घर में पैदा हुआ था । 30 अक्टूबर 1960 को अर्जेन्टीना की गरीब मजदूर बस्ती में जन्मे आठ भाई बहनों में पांचवे डिएगो माराडोना को बचपन से ही फुटबाल से बेहद लगाव था।  उन्होंने स्थानीय लीग में 15 वर्ष की उम्र में खेलना शुरू किया परंतु किसी तरह वे 1978 की विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा बनने से रह गये थे और 1982 में बीमारी के कारण विश्व कप नहीं खेल सके थे।  

परंतु 1984 तक उन्होंने वापसी की और नापोली टीम ने उन्हें अपना हिस्सा बनाने के लिए 7.5 मिलियन डॉलर का उस समय एक रिकॉर्ड कान्ट्रेक्ट किया। अपने कौशल से माराडोना ने नापोली को दो बार इटली की खिताब विजेता टीम बना डाला। माराडोना और नापोली के रिश्ते को उनके प्रतिद्वंदी भी याद करते हैं।  नापोली दक्षिणी इटली का पिछड़ा इलाका है, लेकिन नापोली की पूरी पहचान माराडोना के इर्द-गिर्द है। इस क्लब से जब माराडोना जुड़े तो इसका प्रभाव बहुत ही व्यापक था। यहां के लोगों की सफलता और उम्मीद को जगाने में माराडोना की अहम भूमिका थी।  माराडोना  ने  491  मैचों  में  कुल  259  गोल  दागे  थे । अपने  देश  अर्जेंटीना  के लिए  उन्होंने  91  मैच  खेले  जिसमें  34  गोल  दागे। हमेशा  10 नम्बर की जर्सी  पहनने के कारण  माराडोना " EI 10"  के नाम से चर्चित थे।

 अर्जेंटीना  को 1986 में  पश्चिम  जर्मनी की सशक्त टीम को हराकर विश्व फुटबाल कप में विजेता बनाया। इस पूरे टूर्नामेंट में वह मात्र दो गोल ही कर पाए। एक इंग्लैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल विवादित गोल जिसे ''हैंड आफ गाड'  के नाम से विश्वप्रसिद्ध है जबकि  दूसरा फाइनल में पश्चिम  जर्मनी के खिलाफ। इस प्रकार वह दुनिया के फुटबाल प्रेमियों के एक प्रेरणाश्रोत बने। दुनिया में बहुत सारे लोग यह भी मानते हैं कि वह अबतक दुनिया में सबसे श्रेष्ठ फुटहाल खिलाड़ी है। दुनिया भर के उनके चाहने वालों ने उन्हें  2000 का फीफा शताब्दी ऑवार्ड सर्वाधिक वोट के साथ दिलवाया और इस ऑवार्ड के लिए की गयी वोटिंग में महान पेले  के बाद माराडोना दूसरे स्थान पर थे।

पेले या माराडोना: कौन बड़ा खिलाड़ी?

आखिर पेले और माराडोना में कौन ज्यादा बड़ा खिलाड़ी था। इसे लेकर दोनों के मध्य एक अंदरूनी प्रतियोगिता चला करती थी। यह एक ऐसी प्रतिद्वंद्विता थी जिसमें फीफा ने पक्ष लेने से इनकार कर दिया था। 20 वीं सदी के सबसे महान खिलाड़ी  पेले  को विशेषज्ञों ने, तो माराडोना को, ऑनलाइन  वोटिंग के माध्यम से आम जनता ने चुना।

तीन बार के विश्वकप विजेता पेले के संबन्ध में विचार व्यक्त हुए एक इंटरव्यू में माराडोना ने कहा " आखिर कुल 1281 गोल किसके ख़िलाफ़ बनाये ? किसके विरुद्ध आपने गोल किये? अपने घर के आंगन और उसके पीछे के भतीजों के विरुद्ध?" लेकिन इस प्रतियोगिता के पीछे एक दूसरे के प्रति प्रशंसा भी थी।

जब माराडोना की मृत्यु हुई तो 80 वर्षीय पेले ने कहा " मैंने अपना प्रिय मित्र खो दिया और दुनिया ने एक लीजेंड को " साथ में यह भी कहा " मैं उम्मीद करता हूँ कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमदोनों आसमान में फुटबॉल खेलेंगे।"

गालियानो ने फुटबॉल में अनोखपन को समाप्त कर एक खास किस्म  के फुटबॉल ( कला की जगह ताकत व क्रूरता) को थोपने की कोशिश के खतरे के संबन्ध में आगाह किया था  " अनेक बरसों से फुटबॉल अलग-अलग अंदाज में खेला जाता रहा है, हरेक इंसान की शख्सीयत की अनोखी अभिव्यक्ति और इस फर्क को, अलग-अलग खासियतों को बचाकर रखना मुझे पहले के किसी दौर के मुकाबले आज ज्यादा जरूरी मालूम होता है। यह फुटबॉल में  और बाकी सभी चीजों में थोपी गई हमशक़्ली का वक्त है। "

डिएगो माराडोना फुटबॉल के साथ साथ खेल के साथ राजनीति में  इस 'थोपी गई हमशक्ली'  के प्रतिपक्ष की तरह खड़े  नजर आते  हैं। इसलिए दुनिया भर के न सिर्फ खेलप्रेमियों बल्कि दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिशों में लोगों को ये एहसास हुआ कि उन्होंने अपना एक हमदर्द खो दिया है।

(अनीश अंकुर, पटना स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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