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क्या ताली और थाली बजाकर सच में वायरस मरते हैं?
सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से लेकर मोहनलाल तक और मोदी जी की बातों के पीछे जाकर उनके भावों को समझने वाली 'विशेष जनता' सोशल मीडिया पर फ़ैलाने लगी कि लोग थाली और घंटी की आवाज़ से वायरस को मार देंगे।  
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
24 Mar 2020
ताली और थाली
Image courtesy:Prabhatkhabar

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा ताली और थाली बजाकर उनका आभार व्यक्त कीजिये जो कोरोना वायरस की लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं। यानी दिनभर जनता कर्फ्यू की शांति के बाद एक तरह की ऐसी गूंज निकालिये जिससे डॉक्टरों, हेल्थवर्करों को लगे की उन्हें शाबाशी दी जा रही है। प्रधानमंत्री ने बस इतना कहा। लेकिन बहुत से लोगों ख़ासकर ‘आईटी सेल’ ने प्रधानमंत्री की बातों को बिल्कुल दूसरी तरह से लिया और फैलाया।

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से लेकर मोहनलाल तक और मोदी जी की बातों के पीछे जाकर उनके भावों को समझने वाली 'विशेष जनता' सोशल मीडिया पर फ़ैलाने लगी कि लोग थाली और घंटी की आवाज़ से वायरस को मार देंगे।  

अब यह बात इतनी तेज़ी से फैली की लोगों ने दिन भर कर्फ़्यू का पालन किया और शाम होते ही थाली, ताली और शंख लेकर वायरस को मारने निकल पड़े। इसके बाद ऐसा छीछालेदर मचा कि डॉक्टरों की हौसलाअफ़ज़ाई होने की बजाय उनका काम और मुश्किल करने वाला माहौल बना दिया।

लेकिन क्या इस बात में सच्चाई है कि थाली, ताली, घंटी, शंख या किसी भी तरह के कंपन से वायरस मरते हैं। तो जवाब है बिल्कुल नहीं।  

वायरॉलजिस्ट डॉक्टर दिलीप कहते हैं-

स्टील की थाली और घंटियों की आवाज़ से वायरस मर जाएगा, इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हां, अल्ट्रासाउंड के ज़रिए बैक्टीरिया सेल्स को डिसरप्ट किया जाता है। अल्ट्रासॉउन्ड द्वारा बैक्टीरिया यानी जिवाणु या किटाणु को अलग थलग किया जाता है न कि वायरस यानी विषाणु को। अल्ट्रासॉउन्ड्स में अल्ट्रासॉनिक वेव्स काम करता है। जिससे हाई फ्रीक्वेंसी पैदा होती है। इसे ऐसे समझिये कि जब बहुत छोटी लम्बाई की तरंग बहुत ज़्यादा फ्रीक्वेंसी पैंदा करती है। इसलिए एक स्पेसिफिक फ्रीक्वेंसी या ज़रूरी फ्रीक्वेंसी निकालने के लिए नपी-तुली मशीन्स की ज़रूरत होती है। जिनसे वह फ्रीक्वेंसी निकल पाए और काम हो पाए। बर्तनों से ऐसा मुमकिन नहीं है। इनसे निकलने वाली तरंगों की लम्बाई यानी वेवलेंथ बहुत लम्बी होती है।

सेल डिसरप्ट करने वाले इन एक्सपेरिमेंट्स के दौरान फ्रीक्वेंसी इतनी ज़्यादा होती है कि हम अपने कान खुले नहीं छोड़ सकते। क्योंकि इन फ्रीक्वेंसीज़ से हमारे कान खराब हो जाएंगे। और वायरस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
विश्वास मानिए, आप कुछ भी बजाकर अल्ट्रासॉनिक वेव्स पैदा नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री की बातें लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए थीं। अगर आप विज्ञान की ओर से वायरस मारने या भगाने के झूठे दावे करेंगे तो ये बेहद गलत और गुमराह करने वाला होगा।

अमिताभ बच्चन को भी शायद अपनी ग़लती का एहसास हुआ तभी उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट किया।

‘पीटीआई-भाषा’ के मुताबिक अपने ट्वीट में अमिताभ बच्चन ने कहा था कि एक राय दी गई कि 22 मार्च को शाम पांच बजे ‘अमावस्या’ के दिन वायरस बैक्टीरिया की बुरी ताकतें अपने चरम पर होती हैं। शंख बजाने से होने वाले कंपन से वायरस का प्रभाव कम हो जाता है या नष्ट हो जाता है, क्योंकि चांद नए ‘नक्षत्र’ रेवती की ओर जाता है।

बच्चन ने अपना यह ट्वीट अपनी फोटो के साथ पोस्ट किया था और इसके साथ तीन प्रश्नवाचक चिन्ह लगाए थे। इस वजह से कई लोगों को हैरानी हुई कि क्या अभिनेता अपनी राय साझा कर रहे हैं या सोशल मीडिया पर चल रहे मत पर सवाल कर रहे हैं।

बहरहाल, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों ने गैर तथ्यात्मक बात पोस्ट करने के लिए उनकी आलोचना की।

सबसे पहले, गीतकार वरूण ग्रोवर ने बच्चन की आलोचना की और कहा कि इस मुश्किल वक्त में अभिनेता को और जिम्मेदार होना चाहिए।

Janta curfew
Thali or Taali
Coronavirus
COVID-19
Amitabh Bachchan
Narendra modi
Social Distance

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