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राजनीति
क्या खट्टर के सामने गठबंधन सरकार चलाने के अलावा जाटों को साधने की चुनौती है?
मनोहरलाल खट्टर ने रविवार को दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वह राज्य में भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे। जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
28 Oct 2019
BJP-JJP alliance
Image courtesy: News Nation

मनोहरलाल खट्टर ने रविवार को दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वह राज्य में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे। जनता जननायक पार्टी (जेजेपी) नेता दुष्यंत चौटाला ने राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य ने दीवाली के दिन राज भवन में आयोजित समारोह में दोनों को पद की शपथ दिलाई। खट्टर मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य कुछ दिन बाद शपथ ले सकते हैं।

भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह बदनोर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, आरएल कटारिया, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल भी समारोह में मौजूद थे।

जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला भी समारोह में थे। अजय चौटाला हरियाणा में शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में तिहाड़ जेल में बंद थे, उन्हें शनिवार को ही फरलो मिला है। दुष्यंत की मां नैना चौटाला भी वहां मौजूद थीं।

हालांकि दुष्यंत के नाराज चल रहे चाचा तथा इनेलो नेता अभय चौटाला समारोह में मौजूद नहीं थे।
भारतीय जनता पार्टी हरियाणा में बहुमत हासिल करने से छह सीट पीछे रह गई थी जिसके बाद उसने जेजेपी के साथ गठबंधन किया। 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 40, जेजेपी ने 10, कांग्रेस ने 31 और इनेलो तथा हरियाणा लोकहित पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की जबकि सात निर्दलीय उम्मीदवार भी विजयी रहे।

खट्टर की ‘टास्कमास्टर’ छवि

खट्टर 1977 में 24 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हुए थे। उन्होंने 1996 में मोदी के साथ काम करना शुरू किया जो खुद आरएसएस के प्रचारक थे। उस वक्त मोदी हरियाणा में राज्य के प्रभारी थे।

साल 2002 में खट्टर को जम्मू-कश्मीर चुनाव का प्रभारी बनाया गया। खट्टर अविवाहित हैं और सादे रहन सहन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भाजपा में अहम पदों पर काम करने के दौरान कड़े ‘टास्कमास्टर’ की ख्याति हासिल की और उनके सांगठनिक कौशल को भी सराहना की गई थी।

उन्होंने कई चुनावों के प्रचार में अहम भूमिका निभाई और वह 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में पार्टी की प्रचार समिति के अध्यक्ष थे। बहरहाल, खट्टर की मोदी से निकटता की वजह से अक्टूबर 2014 में उन्हें मुख्यमंत्री का पद मिला और राम बिलास शर्मा, अनिल विज और ओपी धनखड़ जैसे वरिष्ठ नेताओं को किनारे कर दिया गया।

वह हरियाणा के पहले पंजाबी बोलने वाले मुख्यमंत्री बने। राज्य में 18 साल बाद कोई गैर जाट मुख्यमंत्री बना था। खट्टर रोहतक जिले के निंदाना गांव में पैदा हुए थे। वह कृषि की पृष्ठभूमि से आते हैं। उनका परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान से हरियाणा आया था।

वे निंदाना गांव में बस गए थे। उनके पिता और दादा ने कृषि को पेशा बनाया और बाद में पैसा जमा कर एक छोटी दुकान खोली। खट्टर 10वीं कक्षा के बाद पढ़ाई करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य हैं। उन्होंने रोहतक के नेकीराम शर्मा सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया था।

उनके मुख्यमंत्री रहते भाजपा ने पिछले साल सभी पांच मेयर की सीटें जीतीं और इस साल जींद उपचुनाव में भी जीत हासिल की। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की जिसने उनकी स्थिति मजबूत की।

नवंबर 2014 में स्वयंभू धर्मगुरु रामपाल के खिलाफ कार्रवाई, 2016 में जाटों का आरक्षण आंदोलन और 2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को दोषी ठहराए जाने के बाद हुई हिंसा सहित उनकी सरकार ने कई चुनौतियों का सामना किया।

दुष्यंत हैं देवीलाल की विरासत के संभावित उत्तराधिकारी

हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम ने पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं दिग्गज जाट नेता देवीलाल की विरासत पर चर्चा का रुख उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला के पक्ष में मोड़ दिया है।

दुष्यंत अब जाट समुदाय तथा युवाओं में एक सम्मानित नेता बनकर उभरे हैं। पिछले साल इनेलो में दुष्यंत के पिता अजय चौटाला और चाचा अभय चौटाला के बीच दो फाड़ हो गया था। अजय और अभय पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र हैं। अजय और उनके पिता इनेलो के कार्यकाल में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट रहे हैं।

कुछ लोग दुष्यंत को जोखिम उठाने वाला व्यक्ति मानते हैं। उन्होंने इनेलो के उत्तराधिकार को लेकर अपने चाचा अभय के साथ कानूनी लड़ाई में पड़ने की जगह नयी पार्टी बनाने का विकल्प चुना था। कुछ खापों और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने चौटाला परिवार में मेल-मिलाप कराने की कोशिशें की थीं, लेकिन दुष्यंत अपने फैसले पर अटल रहे।

गठन के एक महीने बाद ही जेजेपी को पिछले साल दिसंबर में जींद उपचुनाव में अपनी पहली चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ा। इसके उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला भाजपा के हाथों हार गए, लेकिन जेजेपी कांग्रेस के धुरंधर रणदीप सिंह सुरजेवाला को तीसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब रही।

इसके बाद जेजेपी ने लोकसभा चुनाव में तीन सीटें आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ते हुए सात सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब भाजपा ने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करते हुए अन्य दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था। दुष्यंत चौटाला को खुद अपनी हिसार सीट गंवानी पड़ी थी। लेकिन यह हार उन्हें पार्टी निर्माण और विधानसभा चुनाव में एक शक्ति के रूप में उभरने के बड़े लक्ष्य की ओर जाने से नहीं रोक पाई।

जेजेपी ने इस बार किसी के साथ गठबंधन नहीं किया और विधानसभा चुनाव अपने दम पर ही लड़ा। दुष्यंत ने खुद कड़े मुकाबले वाली उचाना कलां सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी एवं भाजपा नेता प्रेमलता के खिलाफ लड़ने का विकल्प चुना और जीत दर्ज की। प्रेमलता ने पिछली बार उन्हें इस सीट पर हराया था।

पिछले पांच वर्षों में अपनी यात्रा को याद करते हुए दुष्यंत ने कहा था, ‘काफी बदलाव हुआ है, राजनीति में आने के लिए मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और आज मैं पार्टी का नेतृत्व कर रहा हूं। इसके लिए कड़े प्रयास और बड़े बदलावों की जरूरत है।’ सांसद के रूप में दुष्यंत चौटाला संसद में काफी सक्रिय थे। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर 677 सवाल पूछे। किसानों की चिंताओं को रेखांकित करने के लिए वह कई बार ट्रैक्टर से संसद पहुंच जाते थे।

गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती

हिंदी में शपथ लेने के बाद खट्टर (65) और दुष्यंत (31) ने कहा कि गठबंधन स्थायी सरकार देगा। पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के प्रपौत्र दुष्यंत ने कहा कि सरकार समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिये कार्य करेगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में हरियाणा के मुख्यमंत्री पद के लिए जब मनोहर लाल खट्टर पर विश्वास जताया था, तब इस फैसले से कई लोग आश्चर्यचकित रह गए थे। खट्टर हरियाणा में प्रभुत्व वाले जाट समुदाय से नहीं आते हैं। वह पंजाबी बोलते हैं और उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव भी नहीं था।

खट्टर (आयु 63) ने 21 अक्टूबर को हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रचार के दौरान कहा था, ‘ऐसे लोग थे, जो कहते थे कि मैं नया हूं और अनुभवहीन हूं। कुछ लोगों ने मुझे अनाड़ी बताया, लेकिन अब वही लोग कहते हैं कि मैं अनाड़ी नहीं हूं, मगर राजनीति का खिलाड़ी हूं।’

भाजपा को हरियाणा में पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व का फायदा मिला। भाजपा ने 2014 में 90 में से 47 सीटें हासिल करके पहली दफा हरियाणा में अपने बूते पर सरकार बनाई थी और इस बार 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था लेकिन उसे 40 सीटें ही नसीब हुईं जो बहुमत से छह कम हैं।

सत्तारूढ़ पार्टी के स्वच्छ, पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावे के बावजूद, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राज्य की राजनीति में जाटों के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए गैर-जाट वोटों को एकजुट करने की भाजपा रणनीति थी जिसका उसे नुकसान हुआ। खट्टर के सामने गठबंधन सरकार चलाने की चुनौती है।

जाट और जेजेपी से समन्वय भी चुनौती

खट्टर सरकार के आठ मंत्री हार गए जिसमें जाट समुदाय से आने वाले अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ शामिल हैं। अब उनकी पार्टी सात निर्दलियों और 10 महीने पुरानी जेजेपी से समर्थन ले रही है और जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। जेजेपी चुनाव से पहले किए गए सभी वादों को पूरा करने के लिए गठबंधन सहयोगी भाजपा पर दबाव बना सकती है।

जाट और गैर-जाट के बीच सामंजस्य बनाने के साथ-साथ जेजेपी ने जिस तरह से चुनाव में वादे किए हैं, उन्हें पूरा करना मनोहर लाल खट्टर के लिए बड़ी चुनौती होगी। जबकि, जेजेपी प्रमुख और डिप्टी सीएम बने दुष्यंत चौटाला अपनी सियासी आधार बढ़ाने के लिए अपने वादों को हर हाल में अमलीजामा पहनाने की कवायद करेंगे।

हरियाणा में बीजेपी के राजनीतिक आधार बढ़ने के पीछे गैर-जाट छवि का होना सबसे बड़ा फैक्टर रहा है। जबकि, जेजेपी का आधार पूरी तरह से जाट समुदाय के बीच ही सिमटा हुआ है। दुष्यंत चौटाला जाट समुदाय के युवा चेहरा बनकर उभरे हैं।

आपको बता दें कि जेजेपी ने बरोजगारों को 11,000 रुपये देने, राज्य के लोगों के लिए 75 फीसदी नौकरी आरक्षित करने और 5,100 रुपये की मासिक वृद्धावस्था पेंशन देने, नए मोटर व्हीकल एक्ट में ढील देने का वादा विधानसभा चुनावों में किया है।

बीजेपी ने बुजुर्गों की पेंशन 3 हजार देने का वादा किया तो जेजेपी ने बुजुर्गों की पेंशन 5100 रुपये देने का वादा कर रखा है। इस तरह से इन वादों को अमलीजामा पहनाना दुष्यंत चौटाला के लिए आसान नहीं होगा तो मनोहर लाल खट्टर के लिए अपने वोटबैंक को साधकर रखने की बड़ी चुनौती होगी।

इसके अलावा खट्टर के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के मैनिफेस्टो की काट भी खोजनी होगी। कांग्रेस ने इस बार वृद्धा पेंशन स्‍कीम पर और किसानों की कर्ज माफी को चुनावी नारा बनाया है। कांग्रेस ने वादा किया है कि अगर वह सत्‍ता में आती है तो वृद्धा पेंशन को बढ़ाकर 5600 रुपये कर देंगे। इसके साथ किसानों की कर्ज माफी का भी वचन दिया है। ऐसे में खट्टर को इसकी काट खोजनी होगी।

जेजेपी पर हमलावर है कांग्रेस

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा में भाजपा और जेजेपी के गठबंधन सरकार बनाने को लेकर कटाक्ष करते हुए रविवार को कहा कि जेजेपी ने जनादेश का अपमान किया है और लोगों की भावनाएं आहत की हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘लोगों ने वोट किसी के लिए दिया था, लेकिन जेजेपी ने समर्थन किसी और को दिया।’ बहरहाल, उन्होंने हरियाणा की नयी सरकार को बधाई दी। हुड्डा ने कहा, ‘मैं नयी सरकार को शुभकामनाएं देता हूं। साथ ही मैं यह देखना चाहूंगा कि नयी सरकार चलाने में जेजेपी और भाजपा के बीच कितना समन्वय रहता है।’

वहीं, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने शनिवार को कहा कि जेजेपी ने भाजपा को समर्थन देकर मतदाताओं के साथ विश्वासघात किया है। शैलजा के मुताबिक जिन्होंने भी जेजेपी को वोट दिया था आज वे भाजपा को समर्थन दिए जाने के बाद ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। एक बयान में कांग्रेस नेता ने कहा कि 90 में से 75 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा को लोगों ने मुंहतोड़ जवाब दिया लेकिन लोग यह नहीं समझ पाए कि जेजेपी ने भाजपा के साथ समझौता किया था और उसकी ‘बी’ टीम के रूप में कार्य किया।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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