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तस्करी विरोधी मसौदा विधेयक के अस्पष्ट प्रावधानों से पीड़ितों व अन्य गतिविधियों के अपराधीकरण को मिलेगा बढ़ावा
कार्यकर्ताओं और यूनियनों को इस बात का डर है कि कुछ प्रावधान का दुरुपयोग हो सकता है और उन्होंने तस्करी और सेक्स वर्क के मुद्दे को मिला देने को लेकर भी इस प्रस्तावित विधेयक की आलोचना की है।
सुमेधा पाल
04 Aug 2021
sex trafficking bill

नई दिल्ली: जैसे-जैसे संसद का मानसून सत्र आगे बढ़ रहा है, भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार कई प्रमुख विधेयकों को अंतिम रूप दे रही है, इन्हीं में से एक है-तस्करी विरोधी मसौदा विधेयक। हालांकि, सरकार ने आख़िरकार अवैध व्यापार पीड़ितों की सुरक्षा की मांगों को तो मान लिया है, लेकिन इस मसौदा क़ानून में प्रस्तावित कई प्रावधान स्पष्ट नहीं दिखते और आशंका है कि इससे पीड़ितों का अपराधीकरण हो सकता हैं।

वकीलों, नागरिक समाज समूहों और कार्यकर्ताओं ने जिन प्रमुख चिंताओं को रेखांकित किया है, उनमें सहमति को दरकिनार करना, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को पर्याप्त अधिकार का दिया जाना और उस पर व्यापक ज़िम्मेदारी का दिया जाना और स्पष्ट बचाव को स्थापित कर पाने में असमर्थता शामिल है। एक बार जब यह विधेयक अधिनियम बन जायेगा, इसके बाद केंद्र के लिए एक राष्ट्रीय तस्करी विरोधी समिति का गठन करना अनिवार्य हो जायेगा और राज्य सरकारें भी राज्य और ज़िला स्तर पर ऐसी समितियां बनायेंगे।

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन(AIDWA) की ओर से व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 पर एक ज्ञापन जारी किया गया है, जिसमें इनमें से कुछ चिंताओं को दर्शाया गया है।

कार्यकर्ताओं का एक स्वर में कहना है कि इस मसौदा तस्करी विधेयक ने तस्करी और सेक्स वर्क के मुद्दे को मिला दिया है। वेश्यावृत्ति और पॉर्नोग्राफ़ी को शोषण और यौन शोषण की परिभाषा के रूप में जोड़ दिया गया है और इसे व्यक्तियों की तस्करी माना गया है। पीड़ितों की सहमति को अप्रासंगिक बना दिया गया है।

इसमें एक और विवादास्पद खंड है और वह है एनआईए को दी गयी अपार शक्तियां। इस विधेयक में एनआईए को "राष्ट्रीय जांच और समन्वय एजेंसी बनाने का प्रस्ताव है, जो इस अधिनियम के तहत व्यक्तियों और अन्य अपराधों में तस्करी की रोकथाम और मुक़ाबला करने के साथ-साथ इसकी ज़िम्मेदारी जांच, अभियोजन और समन्वय की भी होगी। इसके अलावा, एक पुलिस अधिकारी को किसी व्यक्ति को बचाने की शक्ति दी गयी है, अगर उस पुलिस अधिकारी के पास यह मानने का आधार है कि उस व्यक्ति के सामने उसकी तस्करी का ख़तरा मंडरा रहा है और उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा।

एआईडीडब्ल्यूए के ज्ञापन में इस बात पर रौशनी डाली गयी है कि "इस धारा (11) का दुरुपयोग किया जा सकता है और जो वयस्क अपने घर से नहीं जाना चाहते हैं, उन्हें भी जबरन घर से दूर किया जा सकता है। इस अधिनियम की धारा 16 में मजिस्ट्रेट को एक वयस्क व्यक्ति के उस आशय के आवेदन को नामंज़ूर करने की शक्ति भी दी गयी है कि उसे अब पुनर्वास गृह में नहीं रखा जाये, हालांकि वह इस पर ज़िला तस्करी विरोधी समिति से परामर्श कर सकता है। इसका नतीजा किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध घर में क़ैद किये जाने के रूप में सामने आ सकता है। दरअस्ल, यह अधिनियम समुदाय और परिवार आधारित पुनर्वास को नहीं, बल्कि संस्था आधारित पुनर्वास को तरज़ीह देता है।

सबसे गंभीर चिंता वाल तथ्य यह है कि इस प्रस्तावित क़ानून का दुरुपयोग किया जा सकता है, क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोगों पर आरोप मढ़ा जा सकता है। इन अस्पष्ट प्रावधानों से उन गतिविधियों का भी व्यापक अपराधीकरण हो सकता है, जो अनिवार्य रूप से अवैध व्यापार से जुड़ी हुई नहीं होती हैं। इस तरह, अगर कोई नौजवान जोड़ा भाग जाता है या फिर रिश्ते में है, तो उनके परिवार लड़के को फंसा सकते हैं और उस पर अपहरण, बलात्कार आदि के अलावा यौन शोषण का आरोप भी लगाया जा सकता है, और उसे कई सालों तक की जेल हो सकती है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए एआईडीडब्ल्यूए की महासचिव मरियम धावले ने कहा: “एआईडीडब्ल्यूए लगातार सरकार को तस्करी की समस्या से अवगत कराता रहता है। अगर हम इस समस्या का समाधान खोजना चाहते हैं, और अगर हम इसमें फंसी हुई महिलाओं का पुनर्वास चाहते हैं, तो सरकार को इसके बारे में कुछ करना चाहिए। आम तौर पर इस सरकार को हर चीज़ को अपराध घोषित करने की आदत है, ऐसा ही कुछ इस नीति के ज़रिये भी करने की कोशिश की जा रही है। इस वजह से महिलाओं पर होने वाली हिंसा को बढ़ावा मिलता है। अगर सरकार ईमानदारी से रोज़गार और ग़रीबी की समस्याओं का हल ढूंढ़ ले, तो इन सभी समस्याओं को जड़ से ख़त्म किया जा सकता है। यह नेटवर्क किसी गांव से लड़की को दिल्ली, कोलकाता या मुंबई लाने जितना आसान नहीं है।”

यह अधिनियम उस शख़्स पर ही सुबूत की ज़िम्मेदारी भी डाल देता है, जिस पर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों में मुकदमा चलाया जा रहा होता है। इस तरह, यह धारा दुरुपयोग के लिए खुली हुई है, क्योंकि किसी व्यक्ति को क़ैद किया जा सकता है और फिर, उसे अपनी बेगुनाही भी साबित करनी होगी।

क़ानून के जानकारों का कहना है कि तस्करी और सेक्स वर्क दो अलग-अलग चीज़ें हैं और वेश्यावृत्ति का अपराधीकरण असंवैधानिक है। इस मसौदा विधेयक में सहमति के मुद्दे को अप्रासंगिक बनाते हुए शोषण की परिभाषा में वेश्यावृत्ति और पॉर्नोग्राफ़ी को शामिल कर लिया गया है। उनका कहना है कि यह विधेयक महिलाओं को अपनी देह और पेशे पर सहमति को लेकर पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं मानने के औपनिवेशिक और पितृसत्तात्मक रंग को बरक़रार रखता है।

इन आधारों पर सेक्स वर्कर्स यूनियनों ने इस मसौदा विधेयक का विरोध किया है। नेशनल नेटवर्क ऑफ़ सेक्स वर्कर्स का कहना है कि यह बिल 'छापे और बचाव' मॉडल की ओर ले जायेगा। नेटवर्क ने अपने एक बयान में कहा है, “सेक्स वर्क को एक वयस्क व्यक्ति की ओर से भुगतान या सामान के एवज़ में यौन सेवाएं प्रदान किये जाने के रूप में परिभाषित किया गया है। यह भारत में लाखों महिलाओं, पुरुषों और ट्रांसपर्सन के अपनाये कार्यों का एक सम्मानजनक विकल्प है। यह एक अहम आय मुहैया कराता है, जिसके ज़रिये वयस्क अपने परिवारों की देखभाल कर पाते हैं। सभी कामगारों को तस्करी का शिकार मानने का घातक असर का नतीजा यह होगा कि आम 'सुधार गृहों' की संख्या बढ़ जायेगी और कमाई करने वाले वयस्कों का एक तरह से 'जबरन बचाव' करना हो जायेगा, चाहे वे घरेलू कामगार हों, बंधुआ मज़दूर हों, भिखारी हों, यौनकर्मी हों या फिर सरोगेट मातायें हों।

यह प्रस्तावित क़ानून भी इसी पूर्व मान्यता पर आधारित है कि मौत सहित अधिकतम सज़ा का परिणाम तस्करी के मामलों को कम करने के वांछित प्रभाव के रूप में सामने आयेगा। इस तथ्य के अलावा हर कानून में दंड को आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए होता है। यह भी इंगित किया गया है कि कठोर से कठोरतम दंड सही मायने में ज़्यादा से ज़्यादा दोषसिद्धि में कामयाब नहीं होंगे या एक निवारक के रूप में तबतक कार्य नहीं कर पायेंगे, जब तक कि अपराध की जांच ठीक से नहीं किया जाये और मुकदमे को उचित रूप से नहीं चलाया जाये।

समुदाय-आधारित पुनर्वास का नहीं होना, समाज में दोबारा वापसी की अनुपलब्ध परिभाषा और पीड़ितों के पुनर्वास से जुड़े फंड को लेकर भी चिंतायें हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/Draft-Anti-Trafficking-Bill-Vague-Provisions-Will-Lead-Criminalisation-Victims-Activities-Activists

Sex Workers
human trafficking
AIDWA

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